आज अनिल का जन्मदिन है,कल से उसकी याद आ रही है, बचपन का मेरा हर क्राइम में पार्टनर ! बचपन के क्राइम पार्टनर लाइफ में ख़ास जगह रखते हैं, अभी तो इंडिया में अनिल उठा नहीं होगा सोकर, बर्थडे पर ऑफिस नहीं जाता है, चेक कर लेता हूँ क्या पता उठ गया हो, सोचकर मैंने उसे व्हाट्सएप्प कॉल की, जनाब ने फोन उठा आकर ऐसा बात शुरू की जैसे बीते सालों में हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो ! बोला,‘’और मेरे परदेसी बाबू ! याद है मेरा बर्थडे! क्या ऐश हो रही है बोस्टन में?”

”थोड़ा चुप हो जाओ तो मैं तुम्हे बर्थडे विश कर लूँ!” कहते हुए मैं बहुत जोर से हंस दिया,उसे हैप्पी बर्थडे कहा तो फिर शुरू हो गया, नाटकीय स्वर में बोला,”अरे, यहाँ के क्या हैप्पी बर्थडे ! मौज तो तुम करते होंगे वहां ?”

”बकवास मत करो! अकेला रहता हूँ, सब कुछ अकेले मैनेज करने में हालत खराब हो जाती है, तुम लोगों को तो सब कुछ किया कराया मिलता है वहां !”

”तो कमा भी तो तुम ही रहे हो हम सबसे ज्यादा, हम तो यहाँ इलाहाबाद में ऑफिस से घर, घर से ऑफिस! बस !”

”अच्छा, और वो ऑफिस में गप्पें और आते जाते नुक्कड़ के हरि चाय वाले पर जो दोस्ती यारी होती है, उसके मजे नहीं लेते तुम लोग? कहीं भी आना जाना हो, सबका अड्डा आज भी वही है न?राधे की ठंडी फ्रूट क्रीम,देहाती के रसगुल्ले,राजाराम की रबड़ी कुल्फी ! हाय! खा रहे हो न तुम सब वहां ?’’

”अरे, आनंद, तुम्हे ये सब याद आ रहा है? मुझे तो लगा कि अब कहाँ याद आता होगा तुम्हे यह सब! तुम सबको भूल गए होंगें !”

”नहीं, मेरे भाई, अब तो सब कुछ, एक एक बात और ज्यादा याद आती है!’’मेरा स्वर शायद थोड़ा उदास हुआ था, तभी शायद अनिल ने बात बदल दी, ”यह बता, कोई बेब पसंद आयी वहां ?”

मैं हंस पड़ा, ”जिस तरह से पूछ रहा है, उस तरह से तो नहीं, हाँ, ऑफिस में अच्छी दोस्त हैं कुछ !”

”मतलब कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?”

”नहीं!”

”फिर तो तेरी लाइफ सच में बोरिंग है, तू एक काम कर, कोई अफेयर चला ले, मन लगा रहेगा!”

”बड़े भाई को कौन ऐसी सलाह देता है!”

”दो ही साल बड़ा है तू, और कॉलेज की खुराफ़ातों में शामिल करते हुए ध्यान नहीं आया कि तू बड़ा है!”

हम दोनों ने फिर तो एक एक बात याद की और बहुत हंसे, जैसे पिछले कुछ समय की कड़वाहट ने हमें छुआ भी न हो ! और फोन रखने से पहले मैंने पूछ लिया, ”यहाँ आजा, थोड़े दिन,आएगा?साथ घूमेंगें,मस्ती करेंगें थोड़ा !”

”यार, अभी तेरे पास आने के लिए थोड़ा सेविंग कर लूँ, फिर आता हूँ.‘’

”अरे, मैं हूँ न! मैं भेज दूंगा टिकट, ये बता तू कब फ्री है? पासपोर्ट तो हम सबने साथ ही बनवाया था !”

”सोच कर बताता हूँ.‘’

”सोच कर क्या बताएगा? ऐसा कर, मेरे बर्थडे पर आ जा!”

”चल फिर, आता हूँ.” आगे की कई बातें करकेबहुत सारे हंसी मजाक करके हमने फोन रख दिया.

इलाहाबाद के नैनी क्षेत्र में हमारा बड़ा सा मकान है, जिसकी दूसरी मंजिल पर  मेरे पिता केशव,मम्मी लता,पहली मंजिल पर मेरे बड़े चाचा शेखर,चाची सुधा,उनके बच्चे सुनील, अनिल और तीसरी मंजिल पर मेरे छोटे चाचा महेश, चाची रमा, उनकी बेटियां नेहा और आरती रहते थे,ग्राउंड फ्लोर पर नौकरों के लिए एक कमरा और गैराज है. सिविल लाइन्स में हमारे रेडीमेड गारमेंट्स के बड़े बड़े शोरूम्स हैं. कुल मिलाकर सब ठीक चल रहा था पर धीरे धीरे बिजनेस में वो बात नहीं रही जो हुआ करती थी. तीनों भाइयों में मनमुटाव होने लगा जिनमे हम सब बच्चे जो दिल से एक दूसरे के साथ जुड़े थे, हम भी पिस गए.हालात इतने बिगड़े कि घर और बिजनेस का बॅटवारा हो गया और सब अलग अलग हो गए. घर भी अलग, बिजनेस भी अलग. हम बच्चे आपस में किसी भी तरह कभी भी जुड़े रहते, हमारा प्यार बड़ों की तरह कम  नहीं हो पाया, मैं इकलौता बेटा था, मेरे तो सब भाई बहन ही थे, उनसे दूर होने का ख्याल मुझे कई दिन तक परेशान करता रहा.बिजनेस में मेरा मन नहीं लग रहा था, मैंने पेरिस से ही एम बी ए किया और फिर मुझे बोस्टन में ही यह अच्छा जॉब मिल गया है. यहाँ तो आ गया पर अकेलापन तो लगता है, ऑफिस में काम करते रहना अच्छा लगता है, घर आकर अकेलापन ज्यादा महसूस होता है, हमेशा भरे पूरे घर में समय बीता था, अब एकदम अकेला था, दोस्त भी ख़ास नहीं थे, घर आकर अपने  फ्लैट में बंद हो जाता हूँ, मैच देख लिया, घर के काम निपटा लिए, कोई शो देख लिया, घर आकर भी स्क्रीन पर, ऑफिस में भी !कभी छुट्टी वाले दिन एप्पल  सिनेमाहॉल चला जाता हूँ जहाँ हिंदी  फ़िल्में चलती हैं. पर मैंने तो कभी अकेले फ़िल्में देखी ही नहीं थीं, हम सब कजिन्स साथ जाया करते थे, बस अनिल आ जाए, बहुत मस्ती करेंगें साथ, बस चाचाजी उसे आने दें ! और फिर मैंने जल्दी ही अनिल की फ्लाइट बुक करदी.

मेरे बर्थडे पर एयरपोर्ट पर खड़ा वो मेरे गले मिल रहा था, मुझे यकीन ही नहीं हुआ. मैं उसे टैक्सी से अपने फ्लैट पर ले गया, साथ ही साथ उसे शहर के बारे में बताता रहा, आती जाती स्मार्ट लड़कियों को देख आकर वो जैसे मुझे देख कर हाथ से वाह का इशारा करता, मैं खुल कर हँसता! मुझे अपनी ही हंसी अच्छी लग रही थी, मुदद्तों हो जाती है ऐसे हंसे हुए आजकल !फिर मैंने एक हफ्ते की छुट्टी ले ली, उसे अपने साथ घर का कुछ सामान लेने फेनुएल हॉल भी ले गया, पटेल ग्रॉसरी स्टोर में वो हैरान होता रहा, ”यार, सब कुछ मिलता है क्या ?” पैराडाइस बिरयानी खा आकर उसने  बिरयानी की हद से ज्यादा शौक़ीन नेहा और आरती को वीडियो कॉल ही कर दी, हमारी दोनों बहनें शुरू हो गयीं,”बहुत गुस्सा आ रहा है, आनंद भैया, आपने अनिल भैया को बुलाया, हमें नहींऔर बिरयानी खाते हुए वीडियो कॉल करते हुए आप दोनों भाइयों को शर्म नहीं  आयी? देखना, हजम नहीं होगी! आनंद भैया,हमें भी आना है !”

”तो आ जाओ, जब कहोगी, तुम्हारे भी टिकट्स बुक कर दूंगा.‘’

आरती ने कहा,”भैया, मुझे भी वहीँ पढ़ना है.‘’

”ठीक है, जी मैट की तैयारी करो, आकर एम बी ए कर लो, मैं पूरी हेल्प कर दूंगा, चिंता मत करो !”

”भैया, मेरे लिए कुछ जरूर भेजना !”

मैं हंस पड़ा ,”सब तो मिलता है वहां !”

”हाँ,  भैया, फिर भी कुछ तो भेजना, फ्रेंड्स को थोड़ा शो ऑफ करुँगी.‘’

हंसी मजाक होता रहा, हमारा डिनर हो गया तो अनिल और  मैं बोस्टन पब्लिक गार्डन घूमते रहे. हमने  कितनी ही बातें की,  अपने सब दोस्तों के अफेयर्स और ब्रेक अप पर खूब बातें की. मेरा मन जैसे चहक उठा था, नया जोश भर गया था, आसपास बहुत घूमे, मैं भी अकेले अभी तक इन जगहों पर नहीं गया था. हमने सबके लिए इंडिया ले जाने के लिए कुछ न कुछ खरीदा. मेरे कहने पर ‘लोकनाथ चौक’ की कचौड़ी , नमकीन जो वो लाया था, मैं डट कर खाता, कह देता,”यह तुम न खाना, तुम तो जाकर भी खा लोगे !” और वो इस बात पर हंस देता. बहुत ही यादगार समय बिताकर अनिल चला गया. बड़ों के विवादों का हम पर जरा भी असर नहीं हुआ है, यह बात मन को बहुत ख़ुशी दे गयी थी.मेरे कुछ दिन बहुत अच्छे बीते,इन मीठी सी यादों ने दिल को एक नए उत्साह से भर  दिया था, मैं  अपनी लाइफ में फिर बिजी हो गया, अब इतना जरूर हुआ था कि मेरे कजिन्स मेरे साथ बड़े हक़ से बड़े प्यार से टच  में रहते. सब मेरे पास घूमने आने के लिए तैयार थे.हम सब कभी भी वीडियो कॉल करते, हमें अपने बड़ों से इस मामले में अब कोई मतलब नहीं था, उनके आपसी सम्बन्ध बिगड़ गए थे पर हम सब भाई  बहन आपस में प्यार करते, हमारा बचपन एक साथ एक घर में बीता था, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि हम सब आपस में कितना  जुड़े थे. मैं तो आते समय चुपचाप उदास सा आ गया था पर बाद में सब मुझसे फोन पर कितना लड़े थे कि मैं माफ़ी मांगता रह गया था. जबसे अनिल मिलकर गया था, मुझे अपने कजिन्स और याद आते. मेरी मम्मी की अपने भाई रमेश मामा से नानी नाना के बाद बनी  नहीं, पर मामा का बेटा रोहित मुझे बहुत प्रिय था, मामा के यहाँ लखनऊ आना जाना छूट गया पर रोहित जब भी इलाहाबाद आता, घर जरूर आता, मम्मी खिंची खिंची रहती पर हम सब कजिन्स उसका खूब स्वागत करते, हम सारे जब दो कारों में भरकर उसे ‘शामियाना’ में छोले भठूरे खिलाने ले जाते, वहां मिलने वाले दोस्त कहते,”आ गयी आनद की टीम !” और फिर किसी दिन जॉर्ज टाउन की पंडित जी की चाट खायी जाती,मजा आ जाता. चाट खिलाने वाले भी जानते थे कि हम सब एक घर से हैं. अब जब उसी रोहित का एक दिन फोन आया, मेरा चौंकना स्वाभाविक ही था, व्हाट्सएप्प कॉल पर मेरी डी पी देखते हुए उसका पहला सेंटेंस था,”यार, तू तो बहुत हैंडसम लग रहा है, डी पी में !”

”देख भाई, हैंडसम तो मैं शुरू से ही था, बस घर की मुर्गी दाल बराबर वाली बात है !” फिर क्या था, दो कजिन्स, दो बालसखा जब बात करेंगें तो क्या होगा! बस एक दूसरे  की टांग जी भर कर खींची, फिर उसने कहा, ”न्यू यॉर्क  की एक कंपनी ने जॉब ऑफर किया है, आ जाऊँ ?”

”अबे, सच? आ जा, भाई,वाह वाह,क्या बात बतायी! मेरे यहाँ से लगभग ३००  किलोमीटर दूर है,सब हो जायेगा !”

उसने बहुत कुछ यहाँ के हालचाल पूछे,मैंने कहा,”और जब आएगा तो मामी जो भी कुछ अपने हाथ से बना कर  देंगीं, मेरे लिए भी लाना.‘’

”भुक्खड़! आज भी तुम्हारे खाने के शौक कम नहीं हुए?”

”आओ, देखो, यहाँ रहकर! क्या क्या याद आता है!”

फोन रखने के बाद मैं बड़ी देर तक मुस्कुराता रहा था, रोहित आएगा, कोई होगा आसपास अपना !घर तो रोज बात  होती ही थी, मैं जब अपने कजिन्स की बातें बताने लगता, कोई अच्छा रिस्पांस न मिलता, हमारे बड़े लाइफ में शायद कुछ ज्यादा ही आगे बढ़ चुके थे.अब तो नेहा और आरती कभी भी वीडियो कॉल कर लेतीं, उन्होंने कह दिया था,”भैया, हम दोनों बहुत जल्दी ही मम्मी पापा से ज़िद करके आपके पास घूमने आने वाली हैं, हमने तो अभी से घर में बार बार कहना शुरू कर दिया है जिससे बार बार की ज़िद से मम्मी पापा चिढ़ कर कह ही दें, ‘जाओ, जो करना है करो !”

मैं उनके कहने के ढंग पर बहुत हंसा,समझाया, ”उन्हें चिढ़ा कर नहीं, आराम से कह कर प्रोग्राम बना लो कि अपने भाई के पास जा रहे हैं, हो सकता है किसी दिन हमारे बड़े भी मेरे पास आ ही जाएँ !”

”भैया, बड़ों की बातें तो आप रहने ही दो ! हम भाई बहन बहुत अच्छे हैं उनसे ! लड़ने दो उन्हें आपस में !” कहते कहते आरती उदास हुई थी,मैं भी चुप हुआ तो नेहा ने फिर हंसी मजाक करके फोन रख दिया था.जबसे अनिल आकर गया था, मेरे दिल का अकेलापन कुछ कम हो गया है, मेरे भाई बहन मेरे टच में रहते हैं, जानता हूँ कोई न कोई मेरे पास आता रहेगा, इस विदेशी धरती पर जब मेरा कोई अपना मेरे साथ होगा, इस जगह की खूबसूरती और बढ़ जाएगी. हमारे बड़ों के आपसी मनमुटाव ने हम भाई बहनों के प्यार में कोई कमी नहीं आने दी, यही सबसे बड़ी ख़ुशी की बात है. अब रोहित भी पास में ही आ जाएगा, कभी भी मिला करेंगें, साथ साथ घूमेंगें तो कितना मजा आएगा. फिर नेहा आरती भी आएंगीं. विदेशी धरती पर मैं अपनों का स्वागत करने के लिए अधीर था.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...