लेेखक-नीरज कुमार मिश्रा
उत्तर प्रदेश के तराई वाले इलाके में बसा खीरी जिला गन्ने की फसल के लिए प्रसिद्ध है. इस जिले में कुलमिला कर 9 चीनी मिलें हैं. ये सारी चीनी मिलें अपने लिए गन्ना पेराई और चीनी उत्पादन का अलगअलग लक्ष्य रखती हैं. मसलन, गोला चीनी मिल ने 110 लाख क्विंटल गन्ना पेराई का लक्ष्य रखा और उसे पूरा कर 16.80 लाख क्विंटल चीनी की पैदावार की और अन्य मिलें भी अपने लिए गन्ना पेराई और चीनी उत्पादन का अलगअलग लक्ष्य रखती हैं. खीरी जिले में चीनी का इतना अच्छा उत्पादन इसलिए भी हो पाता है, क्योंकि गन्ने की फसल के लिए लाल ज्वालामुखी मिट्टी और नदियों की जलोढ़ मिट्टी की जरूरत होती है. जिले में शारदा, मोहना, सुहेली आदि नदियों के होने से यहां की मिट्टी गन्ने के लिए उपयुक्त बनी रहती है और इसीलिए खीरी जिले में गन्ने की फसल की बहुतायत है.
खेत में खड़ी गन्ने या ईख की फसल आंखों को तो बहुत सुकून देती है, पर इसे बोने वाले किसानों का चैन और सुकून आजकल खोया हुआ है, क्योंकि ये चीनी मिलें किसानों की फसल ले लेती हैं, पर उन्हें समय पर भुगतान नहीं मिलता है. इन चीनी मिलों पर किसानों का हजारों रुपया बाकी है. समय पर भुगतान न मिल पाने के कारण किसान का आत्मविश्वास मर जाता है और फिर वह अपनी फसल आसपास बने छोटेमोटे क्रैशर पर औनेपौने दाम पर बेचने को मजबूर हो जाता है. उसे एक क्विंटल गन्ने की कीमत पर तकरीबन 60 से 70 रुपए का नुकसान हो जाता है, पर उसे भुगतान तुरंत ही हो जाता है. गांव त्रिलोकपुर के एक किसान शिवराज का कहना है, ‘‘अरे साहब, हम कोई बड़े किसान तो हैं नहीं, जो 5-6 लाख रुपए खेत में फंसा कर रखें. हम तो खेती जीवनयापन के लिए करते हैं और इस में भी हमें पैसा नहीं मिले तो क्या फायदा ऐसी खेती से.’’ किसान शिवराज की तरह और भी बहुत से ऐसे किसान हैं, जो गन्ने का भुगतान न मिल पाने से परेशान हैं. गांव बो?ावा के रणबीर सिंह से पूछा गया कि जब तुम लोगों को समय पर भुगतान नहीं मिलता है, तो फिर गन्ना ही क्यों बोए जा रहे हो… किसी और फसल की खेती क्यों नहीं करते हो? रणबीर सिंह ने बताया कि तराई का इलाका होने के चलते यहां पर बाढ़ आने की संभावना लगातार बनी रहती है, कभीकभार थोड़ाबहुत पानी आता है, तो गन्ना इस थोड़े पानी की मार सह जाता है, जबकि कोई और फसल इस थोड़े पानी में पूरी तरह खत्म ही हो जाएगी. इसी गांव के शत्रोहन लाल बताते हैं कि गन्ने की फसल उगाने में कोई बवाल नहीं है.
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एक बार गन्ना खड़ा हो जाए, तो फिर ज्यादा चिंता नहीं और जब तक गन्ना तैयार होता है तब तक किसान कोई और काम देख सकता है और अन्य फसलों को उगाने में चोरी होने का भी खतरा है, जबकि गन्ने की फसल में बड़ी चोरी का खतरा नहीं होता. हालांकि गन्ने को बोने से ले कर मिल तक पहुंचाने में एक लंबी प्रक्रिया लगती है और भुगतान भी नहीं मिलता, इसलिए गन्ने की फसल को नकदी फसल कतई नहीं कहा जा सकता. चीनी मिलों से किसानों का भुगतान नहीं करने के कारण खीरी जिले के बहुत से किसान नकदी फसल की ओर आकर्षित हो रहे हैं और नकदी फसल में सब से पहली पसंद आजकल केले की खेती बनी हुई है. गन्ने की खेती का भुगतान न होने से परेशान हो कर खजुआ गांव के महेंद्र सिंह मेहरा ने केले की खेती शुरू कर दी. उन्होंने अपने 50 बीघा खेत में केले की पौध लगाई. केले की पौध लगाने का समय जूनजुलाई होता है और एक एकड़ में तकरीबन सवा लाख रुपए का खर्चा कर के उन्होंने 6-6 फुट के अंतर पर पौध लगाई और लगभग 15 महीने जम कर मेहनत की और पौधों का ध्यान रखा.
उन की मेहनत रंग लाई. जब मंडी से व्यापारी सीधा उन के खेत पर पहुंचा और फसल खेत से ही उठा ली और तुरंत भुगतान भी कर दिया. महेंद्र सिंह मेहरा ने बताया कि उन्हें गन्ने की फसल से तो फायदा हुआ ही है, वहीं केले की फसल में भी मुनाफा हुआ है. एक बार केले के पौधे को लगाने के बाद ये 5 साल तक फल देता रहता है. केले को बेचने के लिए उन्हें किसी दूसरी जगह जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. खीरी जिले के ही बिजुआ गांव के किसानों का ?ाकाव भी केले की खेती की तरफ हो गया है. चूंकि केले की खेती नकदी फसल है, जिस से किसानों को तुरंत पैसा मिलता है. इस गांव के किसान केले की खेती से लाखों रुपए की कमाई कर रहे हैं. इस इलाके के केले बरेली तक में पहुंचाए जाते हैं. इस खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होने की वजह से किसानों को केले की खेती बहुत भा रही है. महेंद्र सिंह बताते हैं कि अगर एक बीघे में केले की खेती करते हैं, तो 50 हजार रुपए के आसपास लागत आती है
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और 2 लाख रुपए तक की बचत हो जाती है. संजीव बताते हैं कि बाकी फसलों के मुकाबले केले की खेती में जोखिम कम है. खास बात यह है कि खीरी में जो केले की खेती हो रही है, वह जैविक है. यहां के किसान गोबर के खाद का इस्तेमाल करते हैं. केले की कटाई के बाद जो भी इस का कचरा बचता है, उसे खेत से बाहर नहीं फेंका जाता है, उसे खेत में ही खाद के रूप में तबदील कर दिया जाता है और ये खेत की उपज क्षमता को बढ़ाता है. खीरी जिले के किसान के लिए केले की फसल और नई तकनीक को अपनाना तो अच्छी बात है, पर अच्छा तो ये होगा कि किसान नई फसल को पलायन कर के और मजबूरीवश न अपनाएं, बल्कि नई फसलों के द्वारा अपनी खेती को बेहतर करने की नीयत से अपनाएं तो और भी अच्छा होगा. पर ऐसा तब ही संभव होगा, जब मिल मालिक किसानों को समय पर पूरा भुगतान करेंगे. ऐसा करने के लिए सरकार को भी दखल देना होगा, पर फिलहाल तो ऐसा कुछ होता नहीं दिखता. लिहाजा, किसानों का गन्ने की फसल को छोड़ कर किसी अन्य वैकल्पिक खेती की तरफ ध्यान जाना स्वाभाविक ही लगता है.