Hindi Kahani : दरवाजे की घंटी बजी तो बंटी और बबली दोनों ही दौड़े मगर जीती बबली. उस ने लपक कर दरवाजा खोला, “ओह, सनी भैया, सोनी दीदी,” कहते हुए वह बच्चों से लिपट गई. फिर दोनों ने उन दोनों का गरमजोशी से अभिवादन करते हुए स्वागत किया.

बात लगभग 10 साल पहले की है. राज और परमजीत, जो कई साल पहले पंजाब से जा कर लंदन में बस गए थे। वे कई साल बाद अपने पैतृक गांव आए थे. उन का कार्यक्रम कुछ दिन दिल्ली में आदर्श नगर में रह रहे जीजाजी पुनीत और दीदी सिमरन से मिल कर पंजाब जाने का था. 1 सप्ताह तक दोनों परिवारों ने खूब मौजमस्ती की और फिर राज अपने परिवार के साथ पंजाब अपने गांव चले गए.

दरअसल, राज 90 के दशक में उस समय लंदन गए थे जब पंजाब से लोग काम की तलाश में अवैध रूप से ब्रिटैन, कनाडा और अमेरिका जा रहे थे. देश में बेरोजगारी और खेतीबाड़ी में ज्यादा मेहनत और कम आमदनी के चलते डौलर और पाउंड में कमाई करने के लालच में लोग अपनी जमीनजायदाद बेच कर बच्चों को वैधअवैध तरीकों से विदेश भेज रहे थे.

पंजाब व देश के अन्य भागों से विदेश जाने की होड़ के चलते दलाल व ट्रैवल ऐजैंट्स ने लूट मचा रखी थी. सरकारी तंत्र में इस धंधे को ‘कबूतरबाजी’ का नाम दिया गया था।राज के पिताजी ने भी अपना जमीन का एक बड़ा हिस्सा बहुत ही कम दामों में बेच कर एक दलाल के माध्यम से वीजा लगवा कर बेटे को लंदन भेज दिया.

राज कोई ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए शुरूशुरू में तो उन्होंने पेट भरने के लिए मजदूरी तक की और पैट्रोल पंप पर भी काम किया. कई साल बाद किसी एनआरआई की मदद से टैक्सी ड्राईवर की नौकरी मिली. दिनरात काम कर के राज अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने पिताजी के पास भेजते रहते थे. उन के पिताजी को बड़ा सहारा मिला और राज के छोटे भाई व बहन सिमरन की पढ़ाईलिखाई व शादी अच्छे से हो गई.

राज ने अपना रहनसहन बिलकुल सादा रखा. कुछ साल बाद अपनी जमापूंजी और कुछ लोन ले कर कई टैक्सी खरीद कर ट्रैवल सर्विस शुरू कर दी और उन की अच्छीखासी आमदनी होने लगी.

सिमरन की शादी दिल्ली के आदर्श नगर में रहने वाले पुनीत से हुई. पुनीत शादी के समय संजय गांधी ट्रांसपोर्ट नगर के पास औटो पार्टस की एक दुकान पर नौकरी करते थे. राज ने शादी के बाद भी अपनी बहन सिमरन की काफी मदद की और पुनीत को पगड़ी पर औटो पार्टस की एक दुकान दिलवा दी. पुनीत का काम चल निकला और अब तो उन्होंने मौडल टाउन में एक कोठी खरीद ली थी.

राज के अपनी बहन सिमरन और जीजा पुनीत से संबंध बहुत अच्छे थे और वे दोनों भी उन के एहसान भूले नहीं थे. सिमरन अपने भाई के जन्मदिन पर कोई न कोई उपहार अवश्य भेजती थी और राज भी हर साल रक्षा बंधन पर सिमरन को कोई न कोई उपहार जरूर भेजते थे. लगभग हर साल भारत आने पर अपने गांव जाने से पहले 2-4 दिन दिल्ली में जरूर रुकते थे. इतना ही नहीं, 2 बार तो राज ने सिमरन और पूरे परिवार की टिकट भेज कर उन्हें लंदन और यूरोप के अन्य देशों की यात्रा कराई और उन के घूमनेफिरने व खानेपीने का सारा खर्च भी उठाया.

इधर पुनीत की आमदनी बढ़ी तो भाईबहन के स्नेह के बीच उन का घमंड आड़े आने लगा. अब वे अपने खर्चे से बच्चों को विदेश यात्रा पर ले जाने लगे. उन की कोशिश रहती थी कि या तो लंदन जाएं ही नहीं या फिर जाएं तो घंटे 2 घंटे बहन के घर मिल कर किसी होटल में ही ठहरें.

सिमरन उन के इस व्यवहार से आहत तो बहुत होती थी पर क्लेश की वजह से चुप ही रहती थी. राज भी जब भारत आते तो अपने गांव जाने से पहले या वापसी में सिमरन के घर घंटे 2 घंटे के लिए मिलने आ जाते. कई बार तो वे सिमरन को एअरपोर्ट पर ही बुला लेते थे.

पिछले साल मार्च में राज और उन के परिवार का लंदन से भारत आने का कार्यक्रम बना तो सिमरन ने औपचारिकतावश राज से कम से कम 1 दिन दिल्ली में रुकने का आग्रह किया, “प्राहजी, 1 दिन तो दिल्ली हमारे यहां रुकना, गपशप करेंगे। बच्चे भी कई साल से मिले नहीं हैं.” राज मना नहीं कर पाए.

जिस दिन राज परिवार सहित दिल्ली सिमरन के घर पहुंचे उसी दिन कोरोना महामारी फैलने की वजह से देशभर में लौकडाउन की घोषणा कर दी गई. इस बार सिमरन के अलावा खुराना परिवार के किसी भी सदस्य ने राज और उन के परिवार के आने पर कोई विशेष खुशी व्यक्त नहीं की. लौकडाउन की घोषणा होते ही सब के मन में यह आशंका घर कर गई कि अब न जाने कितने दिनों तक राज और उन का परिवार यहीं टिका रहेगा.

2 दिन तो जैसेतैसे बीते मगर तीसरे दिन पुनीत की आवाज में एक तल्खी थी, “यार सिमरन, यह तुम्हारे भाई और इस की फैमिली को पंजाब भेजने का कुछ करो. कब तक हम ऐसे ही परेशान होते रहेंगे?”

“जरा धीरे बोलो, ये लोग क्या सोचेंगे? इन्हें क्या पता था कि लौकडाउन लग जाएगा. कुछ दिन की ही तो बात है,” सिमरन ने दबी जबान में कहा.

पुनीत बिफर पड़े, “अजी छड्डो, जब पता था ऐसे हालात बन रहे हैं तो एअरपोर्ट से सीधे पंजाब निकल जाते, यहां किसलिए आ गए ?” सिमरन मन मसोस कर रह गई. उधर बच्चों ने हंगामा मचा रखा था. बंटी और बबली की 1 मिनट भी सनी और सोनी से नहीं बनती थी.

“ममा, आई कांट शेयर माई रूम विद ऐनी बडी. व्हैन विल दे गो?” बंटी गुस्से से तमतमा रहा था। कुछ समय बाद बबली भी बड़बड़ाते हुए आई,“ममा, मुझे औनलाइन क्लास अटैंड करनी हैं पर सोनी दीदी वीडियो गेम खेल रही हैं, समझाओ इन्हें.”

सिमरन ने बच्चों को समझाया, “अरे पुत्तर, तुम नहीं जानते इन के हमारे ऊपर कितने एहसान हैं. तुम यह भी भूल गए कि लंदन में मामाजी के छोटे से अपार्टमैंट में ही कितने दिन तक हमलोग रहते थे. उन्होंने कितनी बार अपने खर्चे से लंदन और कई और देशों की यात्रा हमें करवाई.”

सिमरन बड़ी दुविधा में थी. वह भाई जिस ने उस के लिए इतना सब किया था, इस महामारी में वह चाहते हुए भी उस की कोई मदद नहीं कर पा रही थी. जरा सा एकांत पाते ही वह बच्चों और पुनीत को समझाने का प्रयास करती पर सब व्यर्थ. पुनीत का पारा तो हर वक्त ही चढ़ा रहता था.

एक दिन पुनीत सिमरन पर बुरी तरह झल्ला रहा था, “सिमरन, किसी तरह कर्फ्यू पास बन जाए तो इन से पीछा छूटे.”

सिमरन भी फट पड़ी, “मेरे ऊपर क्यों झल्ला रहे हो, यह जो दिनरात सरकारी अफसरों और पुलिस वालों के यहां चक्कर लगाते रहते हो, उन्हीं से मदद क्यों नहीं ले लेते. दिनरात की चिकचिक तो खत्म होगी.”

उधर मौका मिलते ही सिमरन राज को भी समझाने का प्रयास करती. राज मन से तो बहुत दुखी था पर बहन का मन रखने के लिए कहता,“अरी बहना छड्ड भी, जीजा दिल दा वड़ा चंगा है पर वह हालात की वजह से परेशान है. फिर हमें कौन सा पता था कि लौकडाउन लग जाएगा. वैसे भी हम तो सिर्फ तेरा दिल रखने के लिए आ गए वरना एअरपोर्ट से सीधे पंजाब निकल जाते.”

ऐसे ही एक दिन सिमरन की कामवाली रजनी ने पुनीत को ऊंची आवाज में बात करते हुए सुना तो सिमरन से पूछ बैठी, “दीदी, का बात है, आजकल साहब बहुत नाराज रहते हैं.”

एक बार तो सिमरन ने अनसुना कर दिया पर उस के दोबारा पूछने पर किचन में खड़ेखड़े धीमे स्वर में सारी बात रजनी को बता दी. रजनी के चेहरे के भाव सिमरन की बातें सुनतेसुनते बदल रहे थे.

जैसे ही सिमरन ने अपनी बात पूरी की, रजनी शुरू हो गई, “दीदी, आप तो अपने भैया की इतनी तारीफ करती हैं. आज आप लोग जहां हैं, वहां तक लाने में इन का कितना हाथ है। लगता है, साहब ई सब भूल गए. अरे कौनो मदद न भी किया हो तो भी हैं तो आप के भाई ही न. मेहमान का भी तो कुछ सम्मान होता है.”

2 दिन भागदौड़ कर के पुनीत ने राज और उस के परिवार के लिए कर्फ्यू पास का इंतजाम कर लिया. हालांकि कोरोना महामारी की सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार राज और उस के परिवार को हरियाणा पंजाब सीमा पर 1 सप्ताह के लिए क्वारंटाइन करना था पर पुनीत यह बात बड़ी सफाई से छिपा गए।

घर में कदम रखते ही वह बड़े उत्साहित स्वर में बोले, “लो राज पाजी, आप का घर जाने का इंतजाम करवा दिया.”

कुछ देर बाद पुनीत जब अपने कमरे में चेंज कर रहे थे तो सिमरन और रजनी की बातचीत उन के कानों में पड़ी. सिमरन कह रही थी, “अरी रजनी, घर में मेहमान आए हुए हैं और तू आज फिर लेट हो गई।”

“अरे का बताएं दीदी, हम तो आप को बताना ही भूल गए. जिस दिन आप के भैयाभाभी आए थे उसी दिन यूपी से हमारी ननद और ननदोई भी आए थे. 2 महीना पहले ननद की शादी हुई थी, सो हम ने उन को दिल्ली घुमाने की खातिर इंहा बुला लिए. सो थोड़ा काम बढ़ गया है पर 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा। मेरी ननद भी काम में हाथ बंटाने लगी हैं.”

सिमरन के स्वर में चिंता झलक रही थी,“रजनी इतनी छोटी सी झुग्गी में कैसे गुजारा करोगी? अब तो लौकडाउन खत्म होने तक वे लोग वापस भी नहीं जा पाएंगे.”

रजनी अपनी ही धुन में बोले जा रही थी, “अरे दीदी, चिंता की कौनो बात नहीं, दिल में जगह होनी चाहिए. मेरे ससुरजी झुग्गी बस्ती के प्रधान थे. 2 झुग्गी हमारे परिवार के कब्जे में हैं, मिलजुल कर रह लेंगे. रही बात खानेपीने की, तो सरकार इस महामारी के चलते सब को मुफ्त राशन दे रही है, उसी से इन का गुजारा भी हो जाएगा. वैसे भी, अभी तो हम इन को घूमने के लिए बुलाए हैं पर कुछ समय बाद मेरे ननदोई को दिल्ली में ही काम दिलाना था.”

रजनी पल भर के लिए रुकी तो सिमरन ने हाथ के इशारे से उसे चुप कराना चाहा पर वह कहां मानने वाली थी, “आखिर भाई का बहन की खातिर कुछ तो फर्ज होता है न. इस बीमारी के खत्म होते ही मेरे पति ननदोईजी को औटो रिकशा चलाना सिखा देंगे और किराए पर औटो ले कर चलाएंगे तो इन का घरगृहस्थी भी चल जाएगा. तब तक हम तो हैं ही।”

रजनी की बातें सुनतेसुनते सिमरन की आंखें भर आईं. उधर दूसरे कमरे में कान लगा कर खड़े पुनीत को न जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि रजनी यह सारी बातें उसे ही सुनाने के लिए कह रही है.

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