राजस्थानी फिल्मों से धारावाहिक ‘दिया और बाती हम’ में भाबो की भूमिका निभाकर नाम कमा चुकी अभिनेत्री नीलू वाघेला राजस्थान की हैं. बचपन से अभिनय का शौक रखने वाली नीलू एक थिएटर आर्टिस्ट हैं. उन्होंने 11 वर्ष की उम्र से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा. उनकी फिल्म ‘बाई चाली सासरिया’ काफी सफल फिल्म रही, जिसे हिंदी में रीमेक फिल्म ‘साजन का घर’ बनी. उन्होंने आज तक करीब 50 राजस्थानी फिल्में और 5 गुजराती फिल्में की हैं. अत्यंत शांत और मृदु भाषी नीलू के इस कदम को उनके परिवार वालों ने खूब सपोर्ट किया. अपनी सफलता का श्रेय वह अपने माता-पिता को और अपने पति अरविन्द कुमार को देती हैं. उनके दो बच्चे, बेटा कैज़र (15 वर्ष) और बेटी वंशिका (10 वर्ष) हैं. धारावाहिक ‘दिया और बाती हम’ की सफलता को देखते हुए इसकी सिक्वल ‘तू सूरज मैं सांझ पियाजी’ एक बार फिर से स्टार प्लस पर आ रहा है. इसमें नीलू, भाबो की ही भूमिका में दूसरी पीढ़ी का स्वागत करने वाली है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.
प्र. इस सीक्वल में खास क्या रहेगा?
इसमें मैं अपने आने वाले राठी परिवार का स्वागत करूंगी. 20 साल आगे बढ़ चुकी इस कहानी में मैं भी ओल्ड हो चुकी हूं, लेकिन मेरा स्वभाव पहले जैसा ही है. परिवार का वही भाव, वही इमोशन, नई सोच आदि सब कुछ इसमें भी है और ये कहानी भी एक मेसेज के साथ ही होगी. केरल में हमने शूटिंग की है. यहां की ताजगी और नयेपन को उसमें दिखाया जायेगा. इसमें मेरा पहनावा साड़ी है.
प्र. भाबो के चरित्र को करने के बाद आप अपने आप में क्या बदलाव महसूस करती हैं?
मेरी सोच काफी बदल चुकी है. आज मैं देखती हूं कि लोग बहुत व्यस्त रहने के बावजूद भी परिवार के साथ मिलने की कोशिश करते हैं. वे उन्हें मिस करते हैं. मैं अपने किरदार को घर तक भी लेकर जा चुकी हूं. इसके अलावा मैंने यह भी सीखा है कि अपनी कोई भी समस्या को आप खुद ही सुधार सकते है, इसकी जिम्मेदारी किसी पर थोपना ठीक नहीं और इंसान को हमेशा सच की लड़ाई लड़नी चाहिए.
प्र. बीच में ऐसा कहा गया था कि आप ये शो छोड़ने वाली हैं, इसकी वजह क्या थी?
उन दिनों मेरी तबियत काफी ख़राब हो गयी थी. रोज 12 से 14 घंटे काम करना पड़ रहा था. ऐसे में मुझे आराम नहीं मिल रहा था. इसलिए मैंने सोचा थी कि मैं थोड़ा रेस्ट कर लूं और कोई बात नहीं थी.
प्र. आप अपने काम से कितनी संतुष्ट हैं? क्या कभी लगा कि आप भाबो की भूमिका से कुछ और अच्छा काम कर सकती थी?
मेरा ये पहला टीवी शो था. मैंने इस चरित्र को जिया है. ये चरित्र मेरे दिल के बहुत करीब है. इसे करते हुए मुझे बहुत सुकून मिला और ऐसा कभी नहीं लगा कि मैं कुछ और अच्छा कर सकती थी.
प्र. आप थिएटर आर्टिस्ट हैं, उसे कितना मिस करती हैं? कितना फायदा आपको इसकी वजह से हुआ है?
मैं थिएटर आज भी करती हूं. मुझे बहुत गर्व होता है कि मैं आज भी अपने दर्शकों के बीच में जाती हूं. मैंने किसी को छोड़ा नहीं है. मैं अभी भी सब्जी खरीदने खुद ही जाती हूं. असल में थिएटर करने के बाद आप नेचुरल बन जाते हैं. पहले लोग थिएटर को असल नहीं, बल्कि बनावटी एक्टिंग करने की जगह बताते थे. लेकिन आजकल ऐसा नहीं है, आज ये बहुत नेचुरल है. इससे आप का आत्मविश्वास बढ़ता है और कैमरे का डर खत्म हो जाता है. फिर अगर आप में लगन है तो उसे और अधिक निखार सकते हैं.
प्र. क्या जिंदगी में कुछ मलाल रह गया है?
मैं कॉमेडी करना चाहती हूं, क्योंकि लोगों को हंसाना भी एक कला है.
प्र. क्या इस तरह के महिलाओं को प्रेरित करने वाले धारावाहिक का कुछ प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है?
मुझे याद आता है कि राजस्थान में एक महिला पुलिस अधिकारी ने मुझे पास बुलाकर धन्यवाद दिया था. उसका कहना था कि वह जब आईपीएस अधिकारी बनना चाहती थीं, तो उन्हें बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ी थी.
प्र. किस बात से आपको गुस्सा आता है?
जब कोई झूठ बोलता है तो मुझे गुस्सा आता है.
प्र. क्या टीवी इंडस्ट्री में योग्यता के अनुसार पैसे नहीं मिलते, जिस वजह से कई कलाकार टीवी छोड़ जाते हैं?
ऐसा मेरे साथ नहीं हुआ, ये सभी बातें आपके स्वभाव और तरीके पर निर्भर करती हैं, लेकिन अगर कोई समस्या है तो उसे मिल बैठकर सुलझाया जा सकता है.
प्र. इतना सब कुछ दिखाए जाने के बाद भी आज महिलाएं शोषित और प्रताड़ित होती हैं, किसे जिम्मेदार मानती हैं?
इसके लिए पूरे परिवार की जिम्मेदारी बनती है कि हमें अपपनी लड़कियों को इतना मजबूत बनाना होगा कि वे अपने परिवार, समाज और उन दरिंदों के साथ डटकर मुकाबला कर सकें. हमें उन्हें बांधकर नहीं रखना है, उन्हें पहनावे से लेकर शिक्षा तक की पूरी आजादी मिलनी चाहिए. जिससे उन्हें हिम्मत मिले. मेरी 10 साल की बेटी को आज से ही मैं सिखाती हूं कि कोई अगर गलत तरीके से छुए तो तुम जोर से चीखोगी या भागोगी. बच्चे को मजबूत बनाने के साथ-साथ उसकी सोच को भी नया बनाना पड़ेगा.
प्र. महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?
जो माहिलायें सफल होती हैं, उसमें उनके परिवार का काफी योगदान होता है. जब भी समय मिले, परिवार की छोटी-छोटी बातों को इग्नोर कर दिल से उन्हें समय दें. तभी परिवार जुड़ पायेगा.