लेखिका- डा. रेखा व्यास
भारत में ऐसा अंदाजा है कि 25-30 फीसदी फलसब्जियों की तुड़ाई के बाद उपभोक्ता तक पहुंचने से पहले ही सड़गल कर खराब हो जाती हैं. विदेशों में उत्पादित फलसब्जियों का 40-70 फीसदी भिन्नभिन्न परिरक्षण उत्पादन के लिए काम में लिया जाता है, जबकि भारत में 0.72 फीसदी ही है, जो कि सोचनीय है. अगर तुड़ाई के समय से ही इन का परिरक्षण किया जाए, तो हर साल काफी मात्रा में फलसब्जियों को खराब होने से बचाया जा सकता है. परिरक्षण के निम्नलिखित फायदे हैं :
* इस के द्वारा फलसब्जियों की उपलब्धता को सालभर तक विभिन्न जगहों पर बनाए रखा जा सकता है और बेमौसम में इन के स्वादिष्ठ स्वाद का जायका लिया जा सकता है.
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* परिरक्षण द्वारा फलसब्जियों को उन की बहुलता के समय संग्रहित कर उन का कमी के समय इस्तेमाल किया जा सकता है.
* परिरक्षित सब्जियों को कम जगह में रखा जा सकता है और उन्हें कम खर्च में एक जगह से दूसरी जगह पर भेजा जा सकता है.
* इस से स्वरोजगार के अवसर पैदा होंगे. साथ ही, कच्चे माल के परिवहन में होने वाले खर्च से भी बचा जा सकेगा.
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* मूल्यों के तय करने में भी मदद मिल सकती है.
फलसब्जियों के खराब होने की वजह फलसब्जियों के खराब होने की अनेक वजहें हैं. ज्यादातर फलसब्जियां सड़ कर खराब हो जाती हैं. ज्यादा पकने के चलते ये फलसब्जियां सड़ने लगती हैं. इन को सड़ाने में सूक्ष्म जीव ज्यादा कारक साबित हुए हैं, जिन्हें
निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है :
कवक : इन्हें फफूंदी के नाम से भी जाना जाता है. इन का फलसब्जियों को सड़ाने में प्रमुख हाथ होता है. ये काले, नीले और भूरे रंग के होते हैं. इन के बीजाणु अचार, मुरब्बा, सूखे फल, टमाटर कैचप आदि पर उगते हैं. ये नमी वाले खाद्य पदार्थों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.
खमीर : इन्हें अपने विकास व वृद्धि के लिए काफी नमी की जरूरत होती है. ये ताप के प्रति बहुत ज्यादा सुग्राही होते हैं और आमतौर पर 60.8 डिगरी फौरनहाइट से ज्यादा तापमान पर जीवित नहीं रह पाते. खमीर के कुछ विशेष वर्ग फल रसों को मदिरा में और मदिरा को सिरके में बदलने की क्षमता रखते हैं. इसी प्रकार कुछ आभासी खमीर भी पाए जाते हैं, जो फल रसों को इनसान के लायक बनाने के बजाय उन्हें खराब कर देते हैं. इन दोनों वर्ग के खमीरों को पाश्चुरीकरण द्वारा या रासायनिक परिरक्षकों द्वारा निष्क्रिय किया जा सकता है.
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जीवाणु : अनेक प्रकार के जीवाणु हमारी सेहत के लिए हानिकारक होते हैं, जो कवक या खमीर की तरह सब्जियों और फलों को सड़ाते हैं. ये औक्सीजन की उपस्थिति या अनुपस्थिति दोनों में ही पनप सकते हैं, किंतु इन की वृद्धि व कोशिका गुणन के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी का होना बहुत जरूरी है.परिरक्षण के सिद्धांत फलसब्जियों की तुड़ाई के बाद भी श्वसन व उपापचय जैसी क्रियाओं को चलते रहने से ये जल्दी खराब हो जाते हैं. इस के अलावा सूक्ष्म जीवियों के प्रवेश के चलते भी फलसब्जियां खराब हो सकती हैं. यह खराबी फफूंद, खमीर और जीवाणु द्वारा प्रभावित होती है. परिरक्षण के अंतर्गत फलसब्जियों को खराब करने वाले कारकों की सक्रियता को कम या निष्क्रिय किया जाता है, जिस से कि इन्हें खराब होने से बचाया जा सके, इसलिए परिरक्षण वह कला है जिस के द्वारा फलसब्जियों को बिना किसी खराबी के एक लंबी अवधि तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
फलसब्जियों का निर्जलीकरण (सुखाना) हमारे देश में फलसब्जियां सुखाने की प्रथा पुराने समय से चली आ रही है. अदरक, हलदी, आलू चिप्स, मटर, कद्दू, भिंडी, अमचूर, ग्वारफली, पोदीना, पालक, मेथी, धनिया, फूलगोभी, गाजर, केर, गूंदे, सांगरी वगैरह ऐसी कई फलसब्जियां हैं जो सुखाई जा सकती हैं. सुखाने से सब्जियों में उपस्थित नमी को वाष्पीकरण द्वारा दूर किया जाता है.
इस के कारण फलसब्जियों में विद्यमान सूक्ष्म जीव और किण्वन जल के अभाव में निष्क्रिय हो जाते हैं और वे परिरक्षित हो जाते हैं. फलसब्जियों के सुखाने के लिए उस में पाई जाने वाली किण्वक प्रणाली को निष्क्रिय किया जाना जरूरी है. इस के लिए उन को भाप से उपचार कर या उबलते पानी में डाला जाता है. सूखे फलसब्जियों को संचयन करने के लिए उस में 4 फीसदी से कम नमी होना जरूरी है. सुखाने के बाद फलसब्जियों को वायुरुद्ध अवस्था में पैक कर के रखना चाहिए वरना 4 फीसदी से कम जलांश होते हुए भी फलसब्जियों के खराब होने का डर रहता है.