रेटिंगः 3 स्टार
निर्माताः टीवीएफ
निर्देशकः चैतन्य कुंभकोणम
कलाकार:अभिषेक चौहाण, बद्री चौहाण, अभिषेक पांडे, शिवांकित परिहार, सोनू आनंद, निकेतन शर्मा, प्रतीश मेहता, जैमिनी पाठक, अशीश गुप्ता, खुशबू बैद, आयुषी गुप्ता, निधि बिस्ट, विद्या पटेल व अन्य.
अवधिः लगभग तीस से 36 मिनट के पांच एपीसोड, कुल दो घंटे 42 मिनट
ओटीटी प्लेटफार्मः सोनी लिव
क्युबिकल्स’ के पहले सीजन के बाद कोरोना महामारी के चलते ‘वर्क फ्राम होम’चल रहा था, अब धीरे धीरे लोग आफिस जाने लगे हैं.
कहानीः
यूं तो दूसरे सीजन की कहानी वहीं से शुरू होती है,जहां पहले सीजन की कहानी खत्म हुई थी. लेकिन अब पीयूष का पुराना रूममेट कल्पेश चला गया है और अब उसका सहकर्मी गौतम (बद्री चव्हाण) उसका नया रूममेट है. ऐसा लग रहा था कि गौतम ने नए सीजन में पीयूष के साथ जगह बदल ली है, क्योंकि वह पीयूष को क्रैक करने की कोशिश कर रहा है और पीयूष को समय पर बिलों का भुगतान करने की याद दिलाता रहता है.
पुणे में पीयूष प्रजापति (अभिषेक चौहाण) को एक बड़ी आई टी कंपनी ‘‘सायनोटेक’ में अच्छी नौकरी मिल गयी है, लेकिन सैलरी थोड़ी कम है. फिर भी वह खुश है कि उसे बड़ी कंपनी मे उसे काम करने का मौका मिल रहा है, लेकिन जब पीयूष को उसकी कंपनी के बडे़ अफसरों व एचआर की तरफ से दबाव पड़ने लगता है, तो उसके जीवन में समस्याएं पैदा होने लगती हैं. वह दूसरी कंपनी में नौकरी के लिए कोशिश शुरू करता है.
पीयूष प्रजापति (अभिषेक चौहाण) की अपनी कहानी के साथ दूसरे किरदारों की कहानी भी चल रही है. पीयूष की बॉस मेघा अस्थाना (निधि बिष्ट) काम व निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ शेट्टी (निकेतन शर्मा) पिता बनने की दिशा में है और उसे पैटर्निटी लीव चाहिए. गौतम को जीवन साथी की तलाश है. जबकि नई भर्ती हुई सुनयना चौहाण (आयुषी गुप्ता) ‘छोड़ना मत चौहाण’ रटते हुए हर किसी का गला काटकर खुद आगे बढ़ने में यकीन करती है, पर अंततः पीयूष उसका हृदय परिवर्तन करता है.
एक एपीसोड में पीयूष कहते हैं कि एक कर्मचारी और एक संस्था के बीच तीन तरह के रिश्ते होते हैं.
हुकअप- जब कोई कर्मचारी एक माह के भीतर त्यागपत्र देता है.
विलंबित हुकअप – जब मामला 4-6 माह तक खिंचता है. लेकिन जब रिश्ता लंबा चलता है तो वह शादी जैसा होता है. इसीलिए अब पीयूष एक विवाहेत्तर संबंध की तलाश में है. वैसे भी वह अपनी वेतन वृद्धि से खुश नहीं है. लेकिन उसकी दुविधा यह है कि वह तीस प्रतिशत बढ़ी सैलरी के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा व ‘सर ’,‘मैम’ के साथ अपने उच्चाअधिकारियों के साथ बात करने वाली कंपनी में जाए अथवा कम सैलरी के बावजूद वहां काम करे जहां उसने दोस्त बनाए हैं और उच्चाधिकारी अपनेपन के माहौल में काम करते हैं.अंततः वह क्या चुनते हैं इसके लिए ‘क्यूबिकल्स एस 2’ देखना ही उचित होगा.
लेखन व निर्देशनः
निर्देशक की हास्य व ह्यूमर के साथ कथा कथन शैली काफी रोचक है.दर्शक बोर नही होता.इसमें इस बात को रेखंाकित किया गया है कि हर क्यूबिकल एक जैसा लगने के बावजूद कर्मचारियों द्वारा एक ही तरह का काम करने के साथ ही हर कर्मचारी अलग-अलग आकांक्षाओं और पृष्ठभूमि वाला व्यक्ति है.निर्देशक चैतन्य कुंभकोणम कारपोरेट जगत में लोगों के सुबह नौ से षाम पांच बजे तक के जीवन को यथार्थ परक ढंग से चित्रित करने में सफल रहे हैं.वहीं उन्होने
कारपोरेट जगत में गला काट प्रतिस्पर्धा और अनैतिकता की परतों को बाखूबी चित्रित किया है. पर बीच बीच में दिलीप उर्फ आरडी एक्स की बातों व पीयूष के मन की बातों से जिस तरह का उपदेश परोसा गया है, उससे लोग सहमत नही हो सकते. इसे इस वेब सीरीज की कमजोरी समझी जा सकती है.मेघा के किरदार व उसकी कामकाजी व निजी जिंदगी के बीच के कश्मकश पर और अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए था. सुनयना चौहाण का किरदार ठीक से नही लिखा गया. इस पर लेखक व निर्देशक दोनो को मेहनत करनी चाहिए थी, पर लेखक व निर्देशक का ध्यान केवल पीयूष पर ही केंद्रित रहा.
अभिनयः
अभिषेक चौहाण ने पीयूष प्रजापति के किरदार को अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है. उन्होंने पीयूष को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है. तो वहीं पीयूष की बॉस मेघा के किरदार में निधि बिस्ट ने कमाल का अभिनय किया है. अन्य कलाकारों का अभिनय ठीक ठाक है.