लेखक-नरेंद्र सिंह, मेहरचंद कम्बोज, ओपी चौधरी, अश्विनी कुमार एवं प्रीति शर्मा

पिछले अंक में आप ने मक्का की जैविक खेती के लिए खेत तैयार करने, बीज, खाद, उर्वरक, सिंचाई आदि के बारे में जाना. अब जानते हैं, मक्का की फसल में कीट व बीमारी की रोकथाम के बारे में. खरीफ मक्का फसल के हानिकारक कीट व उन का प्रबंधन खरीफ मक्का फसल में कीटों का ज्यादा प्रकोप होता?है. मक्का फसल में महत्त्वपूर्ण कीटों की पहचान, नुकसान पहुंचाने के तरीके व लक्षणों की पहचान करना इन के प्रबंधन के लिए बहुत जरूरी?है. तना छेदक : मक्का का यह सब से ज्यादा हानिकारक कीट है. इस का अधिक प्रकोप जून से सितंबर महीने में होता है. इस का आक्रमण पौधा उगने के शीघ्र बाद शुरू हो जाता है. इस कीट की मादा पत्तियों के निचले हिस्से पर अंडे देती है, जिन में से 3 दिन बाद सूंड़ी बाहर निकल कर पत्तियों को खाती हुई गोभ में चली जाती है.

पत्तियों पर एक ही लाइन में छोटेछोटे छेदों का होना इस कीट की उपस्थिति जताता है. एक ही पौधे में कई सूंडि़यां खाते हुए तने में चली जाती?हैं. फसल की छोटी अवस्था में गोभ सूखने से पौधे की मौत हो जाती?है, जिसे ‘डैड हार्ट’ भी कहते हैं. बड़े पौधों में गोभ नहीं सूखती, पर सूंडि़यां पत्तों पर सुराख बनाती हैं. इस कीट के आक्रमण से मक्का की पैदावार में काफी कमी आती है. टिड्डा (फुदका या फड़का) : यह भूरे मटमैले रंग का होता है, जो फुदकफुदक कर चलता है और पौधे से रस चूसता है. यह कीट फसल को छोटी अवस्था में ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. सैनिक कीट : इस कीट का प्रकोप कभीकभी सितंबरअक्तूबर महीने में होता है. छोटी सूंडि़यां गोभ के पत्तों को खाती हैं और बड़ी हो कर दूसरे पत्तों को भी छलनी कर देती हैं. इस के प्रकोप से खेतों में इस का मल पत्तों पर आमतौर पर देखा जाता है. पत्तियों के अलावा यह मक्का के भुट्टे को भी नुकसान पहुंचाती हैं.

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यह कीट अकेले या झुंड में भी आक्रमण करता है. बालों वाली सूंडि़यां (कातरा) : कातरा भी कभीकभी आक्रमण करता है. इस कीट की सूंडि़यों के शरीर पर लंबे गुच्छेनुमा बाल होते हैं. छोटी अवस्था में निचली सतह पर इकट्ठा रहती हैं व बड़ी हो कर ये सारे खेत में फैल जाती हैं. शिराओं को छोड़ कर सारा भाग खा जाती हैं और नुकसान करती हैं. इस कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए अंडों के समूहों व छोटी सूंडि़यों के समूह वाले पत्तों को तोड़ कर नष्ट कर दें. बड़ी सूंडि़यों को पैरों तले कुचल कर या मिट्टी के तेल में डुबा कर भी मारा जा सकता है. सलेटी भूंडी : यह भूंडी हलके सलेटी रंग की होती है.

यह पत्तियों को किनारों से खा कर अगस्त से अक्तूबर महीने तक नुकसान करती है. इस का आक्रमण कभीकभी व कम मात्रा में होता है. चुरड़ा (थ्रिप्स) : भूरे रंग के थ्रिप्स अप्रैल से जुलाई महीने तक छोटे पौधों के पत्तों से रस चूसते हैं, जिस से पत्तों के अगले सिरे सूख जाते हैं. गरम मौसम में इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है. हरा तेला : हरे रंग के शिशु व प्रौढ़ अप्रैल से जुलाई महीने तक कोमल पत्तियों की निचली सतह से रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं. शरदकालीन (रबी) मक्का की फसल के हानिकारक कीट शरदकालीन मक्का में कोई विशेष कीट का आक्रमण नहीं होता. केवल गुलाबी तना छेदक व सैनिक कीटों का कभीकभार आक्रमण हो सकता है. गुलाबी तना छेदक कीट की सूंडि़यां सफेद गुलाबी रंग की होती हैं व पौधे के सभी भागों को नुकसान पहुंचाती हैं. इस के प्रकोप से पत्तों पर लंबे सुराख बन जाते हैं, जिस के बाद सूंडि़यां तने में घुस कर पौधे की गोभ पर आक्रमण करती हैं.

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छोटी फसल में गोभ सूख जाती है व पौधा मर जाता है. कीट प्रबंधन कटाई के बाद मक्का फसल के अवशेष खेत से बाहर निकाल कर और गरमियों में खेत की गहरी जुताई कर कीटों का प्रकोप कम कर सकते हैं. कीटों की रोकथाम के लिए जैविक कीटनाशकों व ट्रैप का इस्तेमाल करें. यांत्रिक विकल्प कीटों से ग्रसित पौधे अलग हटा कर नष्ट करने से इस का प्रकोप कम किया जा सकता है. अंडा व लार्वा समूहों को इकट्ठा कर के नष्ट करना, चिडि़यों के बैठने की जगह बनाना, प्रकाश पिंजरा, चिपचिपी रंगीन पट्टी और फैरोमौन ट्रेप आदि कीट नियंत्रण की दूसरी असरदार विधियां हैं.

जैविक विकल्प जैविक खेती में कीटों की रोकथाम के लिए कृत्रिम रसायनों का इस्तेमाल नहीं होने के चलते खेत में ऐसे पर्यावरण का निर्माण होता?है, जो मित्र कीटों के पनपने में सर्वथा अनुकूल है. ऐसे हालात में मजबूत आहार शृंखलाएं व आहार जल विकसित होने से मित्र कीट फसलों के हानिकारक कीड़ों का प्रभावी नियंत्रण करते हैं. इस पर्यावरण को और मजबूत करने के लिए विभिन्न जैविक कीटनाशकों जैसे ट्राइकोग्रामा किलोनसि व चैलोनस किलोनसि बर्नी के 15-20 हजार अंडे प्रति एकड़ बोआई के 15 दिन बाद और नाशीजीवों के भक्षण करने वाले जीवजंतु व अन्य परजीवी बोआई के 30 दिन बाद प्रयोग करने से नाशीजीवों का नियंत्रण प्रभावी ढंग से हो जाता है.

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नीमास्तर : चूरड़ा, हरा तेला, फुदका जैसे रस सूचने वाले कीड़ों व तना छेदक, सैनिक कीट, कातरा कीड़े की प्रारंभिक अवस्थाओं में नीमास्तर असरकारक है. एक एकड़ के लिए ड्रम में 200 लिटर पानी लें व उस में 10 लिटर देशी गाय का गोमूत्र और 5 किलोग्राम ताजा गोबर डालें. नीम की तकरीबन 10 किलोग्राम टहनियों को पत्तों समेत छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर पीस लें. इस चटनी को भी पानी में डाल कर मिलाएं. ड्रम को जूट की बोरी से ढक दें व 48 घंटे के लिए रख दें.

सुबहशाम एक मिनट के लिए लकड़ी के टुकड़े से घड़ी की दिशा में घुमाएं. 2 दिन बाद नीमास्तर तैयार हो जाता है. इसे कपड़े से छानें व भंडारण करें. इस मिश्रण को 6 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं. एक एकड़ के लिए 200 लिटर घोल का इस्तेमाल बिना पानी मिलाए करें.

ब्रह्मस्तर : तना छेदक, सैनिक कीट, कातरा की बड़ी सूंडि़यों व सलेटी सूंडि़यों की रोकथाम के लिए ब्रह्मस्तर का इस्तेमाल करें. एक टंकी में 100 लिटर पानी लें व उस में 30 किलोग्राम देशी गाय का गोबर मिलाएं व 2 किलोग्राम नीम की पत्ती समेत टहनियों की चटनी बना कर मिलाएं. सीताफल, बेलगिरी, अरड़, धतूरा, करेज, आम में से किन्हीं 5 पौधों की 2-2 किलोग्राम पत्तियों को पीस लें व उपरोक्त मिश्रण में डाल कर मिलाएं. मिश्रण को धीमी आंच पर एक उबाल आने तक गरम करें. जूट की बोरी से छाया में ढकें व 48 घंटे के लिए छोड़ दें.

प्रतिदिन सुबहशाम एक मिनट के लिए लकड़ी के टुकड़े से घड़ी की दिशा में मिलाएं. इसे कपड़े से छान कर भंडारित करें. इस मिश्रण को 6 महीने तक इस्तेमाल कर सकते हैं. प्रति एकड़ 6-8 लिटर पानी में घोल कर मक्का पर छिड़काव करें. अग्निस्तर : भुट्टे के अंदर घुस कर खाने वाली सूंडि़यों व तना छेदक, कातरा और सैनिक कीट के अत्यधिक आक्रमण की स्थिति में अग्निस्तर का प्रयोग कर सकते हैं. एक टंकी में 200 लिटर पानी लें व उस में 20 लिटर गोमूत्र मिलाएं. उस में नीम की पत्ती समेत टहनियों की 2 किलोग्राम चटनी मिलाएं.

उस में 500 ग्राम तंबाकू पाउडर, 500 ग्राम पिसी हुई तीखी हरी मिर्च व 250 ग्राम लहसुन की चटनी डाल कर मिलाएं. मिश्रण को धीमी आंच पर उबाल आने तक गरम करें. जूट की बोरी से छाया में ढकें व 48 घंटे के लिए छोड़ दें. प्रतिदिन सुबहशाम एक मिनट के लिए लकड़ी के टुकड़े से घड़ी की दिशा में मिलाएं. इसे कपड़े से छान कर भंडारित करें. इस मिश्रण को 3 महीने तक प्रयोग कर सकते हैं. प्रति एकड़ 6-8 लिटर मिश्रण को तकरीबन 200 लिटर पानी में डाल कर छिड़काव करें.

मक्का फसल की हानिकारक बीमारियां और उन का प्रबंधन खरीफ बीज और पौध अंगमारी : यह रोग पीथियम, फ्यूजेरियम, एक्रीमोनियम, पैनिसिलियम व स्क्लैरोसियम प्रजाति के कारण होता है. इस रोग से बीज या उगता हुआ पौधा गल जाता है, जिस से जमाव कम होता है और पौधों की संख्या कम हो जाती है. मेडिस पत्ता अंगमारी : यह रोग बाईपोलैरिस मेडिस नामक फफूंद से होता है. इस रोग से पत्तों पर सलेटी व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो किनारों पर गहरे रंग के होते हैं और पत्तों को सुखा देते हैं.

यदि रोग फसल की प्रारंभिक अवस्था में लग जाए और इसे समय पर न रोका जाए तो उपज में काफी कमी हो सकती है. तना गलन जीवाणु तना गलन : यह रोग ईविनिया क्राईसेंधिमी पीवी जया नामक जीवाणु द्वारा होता है. सब से पहले ऊपर के पत्ते सूखने शुरू होते हैं. तने के नीचे की पोरियां नरम व बदरंग हो जाती हैं, तना अपना हरा रंग खो देता है और ऐसे दिखाई देता है, जैसे तने का रोगग्रस्त भाग पानी में उबाला गया हो. सड़ने के बाद बदबू आने लगती है. बीमार पौधे गिर जाते हैं और आखिर में मर जाते हैं.

पीथियम तना गलन : इस रोग का कारण पीथियम एफेनिडरमेटन नामक फफूंद है. यह रोग पौधे की नीचे की 2 या 3 पोरियों पर लगता है. इस से तने की बाहरी शाल व केंद्रीय भाग गल जाते हैं. पौधा गिर जाता है. बीमारी वाले भाग पर रुई जैसे रेशे बन जाते हैं और फसल की औसत पैदावार में काफी गिरावट आ जाती है.

पट्टित पत्ती और आवरू अंगमारी : यह रोग राईजोक्टोनिया सोलेनाई नामक फफूंद द्वारा लगता है. यह बीमारी आमतौर पर मक्का फसल में पत्तों के घास या जमीन से संपर्क में होने के कारण लगती है. इस बीमारी से पत्तों और तने की बाहरी शाल पर बड़ेबड़े धब्बे बनते हैं, जो पत्तों और तने की बाहरी शाल को सुखा देते हैं. इन धब्बों में बैंड बन जाते हैं. इस बीमारी से दानों का आकार व वजन कम हो जाता है. रबी रबी फसल में मुख्यतया सामान्य जंग की समस्या आती है. यह रोग पक्सिनिया सोरघई नामक फफूंद द्वारा लगता है. इस में पत्तों पर जंग जैसे छोटेछोटे धब्बे बन जाते हैं.

रोगों की सामूहिक रोकथाम रोग रोधी किस्मों का प्रयोग : रोग रोधी सिफारिश सुधा किस्मों का प्रयोग करें. जैविकनाशी जीवनाशकों का प्रयोग : ट्राइकोडर्मा विरीडी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अकेले अथवा संयुक्त रूप से अधिकांश बीजजनित या मृदाजनित रोगों के नियंत्रण में प्रभावी रहता है. बाजार में उपलब्ध बावेरिया वैसीयाना, मैटारीजियम एनीसोप्लीआई आदि विशेष नाशीजीव समुदाय का प्रबंधन कर सकते हैं.

फफूंदनाशक : 200 लिटर के एक ड्रम में 3 लिटर लस्सी या छाछ डालें, जो कम से कम 5 दिन पुरानी हो. अधिक असर के लिए 20 लिटर जीवामृत भी मिला सकते हैं. कपड़े से छान कर तुरंत प्रयोग करें. यह मक्का में आने वाले सभी रोगों के लिए उत्तम फफूंदनाशक है. विषाणु जैव कीटनाशक : वैयूनोवकरस समूह जैसे ग्रेनूलोसिस के लिए 200 लिटर पानी में 20 लिटर जीवामृत और 5 लिटर खट्टी छाछ या लस्सी मिला कर फसल पर छिड़काव करें.

पक्षियों से देखभाल : फसल पकने के अंतिम 25 दिनों के दौरान इस का पक्षियों से बचाव करें. पक्षियों को गुलेल, पटाकों, ढोल, आदि से डरा कर भगाया जा सकता है. कटाई व गहाई जब भुट्टे का ऊपर का छिलका भूरा पड़ जाए, तो समझ लें कि फसल पक कर तैयार हो गई है. हालांकि तने व पत्ते अभी हरे ही दिखाई देते हैं. मक्का की कटाई के लिए भुट्टों को खड़ी फसल से तोड़ लें और सुखा कर यंत्रचालित या हस्तचालित मशीन से गहाई करें. अधिक उपज लेने संबंधी संकेत * खेत को अच्छी प्रकार से तैयार करें.

* आखिरी जुताई से पहले ट्राइकोडर्मा विरीडी 2 क्विंटल देशी गाय के गोबर की पुरानी गलीसड़ी खाद में 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज व स्यूडोमोनास 100 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज जैव उर्वरक राइजोबियम/एजोटोबैक्टर/ पीएसबी डालें.

* रोग रोधी उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करें.

* समतल खेत के बजाय मेंड़ों पर बिजाई को वरीयता दें.

* उन्नत कृषि तकनीक को प्रयोग में लाएं और बिजाई के लिए मक्का बिजाई की मशीन (क्रौन प्लांटर) का इस्तेमाल करें.

* पौधा, दूधिया और गुंफ अवस्था के समय सिंचाई तय करें.

* समय पर खरपतवार नियंत्रण जरूर करें.

* दाने के लिए खरीफ व रबी मौसम में 70×20 सैंटीमीटर और वसंतकाल में 60×20 सैंटीमीटर पर बिजाई करें.

* मधु मक्का व पोपकौर्न के लिए 60×20 सैंटीमीटर और शिशु मक्का के लिए 60×15 सैंटीमीटर पर बिजाई तय करें.

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