लेखिका-डा. रंजना जायसवाल
‘‘मुग्धा, आज मिसेज सिंघानिया आई थीं. बहुत देर तक बैठी रहीं. उन की छोटी बेटी आजकल लंदन में है. 2 बच्चे हो गए उस के. वह तुम से छोटी थी. पति का बहुत लंबाचौड़ा कारोबार है. मिसेज सिंघानिया तो अपने दामाद की तारीफ करते नहीं थक रही थीं. ‘‘अच्छा,’’ मुग्धा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.
‘‘जानती हो, मिसेज सिंघानिया बता रही थीं कि उन की बेटी नंदिता जब भी आती है तो उस के लिए बहुत महंगेमहंगे उपहार ले कर आती है. उस के दोनों बच्चे दिनभर नानीनानी कह कर उन से लगे रहते हैं.’’ ‘‘अच्छा.’’ ‘‘क्या अच्छाअच्छा, इतनी देर से मैं ही बोले जा रही हूं और तुम हो कि मेरी बात का ठीक से जवाब भी नहीं दे रही.’’
‘‘दे तो रही हूं न मां, बोलो, क्या कहना चाहती हो?’’ मां धीरे से मुग्धा के निकट आ गई और उस के बालों पर अपनी उंगलियां फेरते हुए बोली, ‘‘मुग्धा, कब तक ऐसी बैठी रहेगी, अपने बारे में तो सोचो. काम करने के लिए तो पूरी जिंदगी पड़ी है. एक बार उम्र निकल जाएगी तो शादी होना भी मुश्किल हो जाएगी. आज मिसेज सिंघानिया तुम्हारे लिए अपने बड़े भाई के बेटे का रिश्ता ले कर आई थीं. 13-14 साल पहले उन के बड़े भाई के बेटे की शादी हुई थी, पत्नी की रोड ऐक्सीडैंट में मृत्यु हो गई थी. 10-12 साल की बेटी है. खाताकमाता परिवार है. लड़का भी देखने में ठीकठाक है, उन्हें तुम्हारी नौकरी करने से भी कोई दिक्कत नहीं है. अगर तुम हां करो तो मैं बात आगे बढ़ाऊं?’’
मुग्धा अपनी मां की बात को सुन कर ही झुं झला उठी और उस ने चादर को अपने शरीर से अलग किया और बिस्तर से नीचे उतर आई. ‘‘क्या मां, रोजरोज वही… कितनी बार सम झा चुकी हूं. मु झे शादी नहीं करनी है, तो बस, नहीं करनी है. और ऐसा है, मिसेज सिंघानिया से कह दो अपने भाई के बेटे के लिए कोई और लड़की ढूंढ़ लें, मेरा रास्ता न देखें.’’
‘‘एक बार मिल तो लो बेटा, बहुत अच्छा परिवार है. तुम बहुत खुश रहोगी. मेरा क्या है, मैं आज हूं, कल नहीं. न जाने कब क्या हो और मैं इस दुनिया से चली जाऊं.’’
मां ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए मुग्धा से कहा. मुग्धा ने बड़े प्यार से मां के गले में अपनी दोनों बांहें डाल कर कहा, ‘‘तुम अभी इतनी जल्दी मु झे छोड़ कर नहीं जा रहीं. दुनिया की परवा करना छोड़ दो, उन का तो काम ही है कहना और बैठेबैठे कुछ काम कर लिया करो. दिनभर सासबहू के सीरियल देखती रहती हो न, इसीलिए ऐसी खुराफाती बातें दिमाग में घूमती रहती हैं. घूमफिर आया करो. मैं ने ट्रैवल एजेंसी से बात कर ली, बहुत अच्छा पैकेज है. जाओ, चारों धाम की यात्रा कर आओ. कुछ पुण्य मिलेगा,’’ कह कर मुग्धा जोर से हंस पड़ी.
मुग्धा अपनी मां का ध्यान भटकाने की भरसक कोशिश करती रही. पर मां का रिकौर्ड जहां था वहीं आ कर अटक गया था. ‘‘अब तू मु झे चारों धाम की यात्रा पर भेजेगी. काश, तेरा कोई भाई होता तो मु झे चारों धाम पर भेजता तो मु झे मरने के बाद स्वर्ग मिलता, पर ऊपर वाले ने न जाने मेरे लिए क्याक्या सोच रखा है. अब बेटी, मु झे चारों धाम पर भेजेगी,’’ कह कर मां आंचल में मुंह छिपा कर रोने का उपक्रम करने लगी. मां की यह हमेशा की आदत थी जब वह मुग्धा से अपनी बात मनवा नहीं पाती थी तो इसी तरीके से अनर्गल बातें करना शुरू कर देती थी.
‘‘मां, तुम भी किस तरह की बातों में पड़ जाती हो. तुम्हें जाने से मतलब है न. कितने दिन से सोच रही हो पर मेरी वजह से कहीं निकल नहीं पातीं. जाओ और मजे करो,’’ मुग्धा ने अपनी मां के गालों को खींच कर बड़े ही शरारती लहजे में कहा.
कभीकभी मुग्धा इस उम्र में भी छोटी बच्ची की तरह लगने लगती. पर अब तो मुग्धा के बालों में भी सफेद चांदनी दिखने लगी थी. छोटी बहन की भी शादी हो चुकी थी और वह अपने 2 बच्चे व परिवार के साथ बहुत खुश थी. याद है आज भी उसे वह दिन जब मुग्धा ने जिद कर के छोटी बहन की शादी करा दी थी. मां कहती रह गई बड़ी बहन के रहते छोटी की शादी करना कहां तक सही है. समाज क्या कहेगा बड़ी बहन अभी कुंआरी बैठी है और छोटी बहन की शादी कर दी. जरूर बड़ी में कोई खोट है या किसी के साथ कोई चक्कर चल रहा है. पर मुग्धा अपनी मां को कभी जवाब न देती. मुग्धा की जिद के आगे किसी की एक न चली और छोटी भी ब्याह कर अपने घर चली गई.
मां को चारों धाम पर गए आज 15 दिन हो गए थे. मुग्धा अस्पताल से लौटने के बाद देररात तक टीवी देखती, खाली घर उसे काटने को दौड़ता. जब आंखें और शरीर थकान और नींद से बो िझल हो जाते तब वहीं सोफे पर लेट जाती. समय पंख पसारे उड़ता चला जा रहा था.
एक दिन अचानक रात में दरवाजे पर किसी ने जोरजोर से आवाज लगाई, ‘‘डाक्टर साहब, डाक्टर साहब, दरवाजा खोलिए,’’ गहरी नींद में डूबी मुग्धा हड़बड़ा कर उठ बैठी. उस की निगाह बगल में रखी घड़ी पर गई. रात के एक बज रहे थे. उस वक्त भला कौन हो सकता है. चौकीदार भी कुछ दिनों से छुट्टी पर था, गांव में उस की मां बीमार थी. मुग्धा निर्णय नहीं ले पा रही थी कि इतनी रात को वह दरवाजा खोले कि नहीं. उस ने दरवाजे के पास आ कर धीरे से पूछा, ‘‘कौन है?’’
‘‘बेटा, दरवाजा खोलो हम हैं रामू काका.’’ ‘‘रामू काका, आप, इस वक्त?’’ ‘‘बेटा, अस्पताल से थोड़ी दूर पर एक कार का ऐक्सीडैंट हो गया है. 16-17 साल का लड़का है, किसी अच्छे घर का लड़का लगता है, काफी चोट आई है, काफी खून बह गया है. जरा जल्दी से चल कर देख लो, न जाने किस के घर का चिराग है.’’
‘‘रामू काका आप जल्दी से उसे अस्पताल ले कर चलिए, मैं अभी आती हूं,’’ मुग्धा का घर अस्पताल से सटा हुआ था. मुग्धा ने जल्दीजल्दी कपड़े बदले और अस्पताल की तरफ चल पड़ी. मुग्धा रास्तेभर यही सोचती रही, ‘‘16-17 साल का लड़का, अभी तो उस की जिंदगी शुरू हुई है, अभी तो उसे बहुतकुछ देखना था,’’ पूरा शरीर खून से लथपथ था. मुग्धा ने तुरंत औपरेशन थिएटर में जाने का आदेश दिया. चोट बहुत गहरी तो नहीं थी पर खून काफी बह गया था. नर्स ने जल्दीजल्दी उस लड़के के चेहरे पर लगी चोटों को साफ किया. एक घंटे के अथक प्रयास के बाद वह लड़का खतरे से बाहर था.
‘‘डाक्टर साहब, इस लड़के के पास से वह मोबाइल और पर्स मिला है. उस के घरवालों को भी इन्फौर्म करना होगा,’’ नर्स ने कहा. ‘‘हां, यह बात तो है,’’ मुग्धा ने कहा और अपने चैंबर में आ गई और उस ने वार्डबौय से एक कप कौफी लाने को कहा. वह बहुत थक चुकी थी. उस ने उस लड़के से मिले हुए मोबाइल की डिटेल्स को खंगालना शुरू किया. आखिरी कौल पापा के नाम से थी. उस ने उस पर फोन मिलाया. 4-5 घंटी जाने के बाद किसी ने फोन उठाया, ‘‘हैलो, डाक्टर मोहित हेयर.’’
मुग्धा आवाज सुन कर स्तब्ध थी. नियति उस के साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं कर सकती. क्या दुनिया में मोहित नाम का सिर्फ एक ही व्यक्ति है. यह मेरी गलतफहमी भी तो हो सकती है.यादों की किताबों के न जाने कितने पन्ने उस की आंखों के सामने पलटते चले गए, ‘‘हैलो… हैलो, क्या आप मेरी आवाज सुन रहे हैं.’’
मुग्धा जैसे नींद से जागी, ‘‘हैलो, मैं गौरीगंज से बोल रही हूं. हमारे यहां ऐक्सीडैंट का एक केस आया है.16-17 साल के लड़के के पास से एक मोबाइल और पर्स मिला है. मयंक नाम है लड़के का. क्या आप उस लड़के को जानते हैं? अगर हां, तो कृपया कर के मरीज को ले जाएं.’’