रेटिंग: दो स्टार
निर्माताः जाॅन अब्राहम,भूषण कुमार, किशन कुमार,दिव्या खोसला कुमार, मोनिषा अडवाणी व निखिल अडवाणी
निर्देशकः काशवी नायर
कलाकारः अर्जुन कपूर,रकूल प्रीत सिंह, नीना गुप्ता,कुमुद मिश्रा,जाॅन अब्राहम, अदिति राॅय हादरी,सोनी राजदान,कंवलजीत,दिव्या सेठ, मसूद अख्तर,आकषदीप साबिर व अन्य.
अवधिः दो घंटा उन्नीस मिनट
ओटीटी प्लेटफार्म: नेटफ्लिक्स
कुछ समय पहले खबर आयी थी कि विज्ञान के विकास के साथ तकनीक भी विकसित हो चुकी है.जिसके चलते अब किसी भी इमारत या मंदिर आदि को एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित करने के लिए उसे ध्वस्त कर नई जगह पर बनाने की जरुरत नही रही.कुछ वर्ष पहले अहमदाबाद में ‘मामचंद एंड संस’ नामक कंपनी ने एक चार मंजिला मंदिर को उसकी नींव के नीचे से उठाकर लोडर ट्क पर लाद कर चार सौ मीटर दूर दूसरी जगह पर ज्यों का त्यों स्थांतरित कर दिया था.
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शायद इसी तरह की खबर से प्रेरित होकर फिल्मकार काशवी नायर एक भावनाप्रधान रोमांटिक ड्रामा वाली फिल्म ‘‘सरदार का ग्रैंडसन’’ लेकर आयी हैं,जिसे अनुजा चैहाण,अमितोष नागपाल और काशवी नायर ने लिखा है.इसमें 1947 में देश के बंटवारे के समय लाहौर में छूट गए मकान को सत्तर वर्ष बाद लाहौर से उठाकर अमृतसर में स्थापित किए जाने की कहानी है.
इस भावनात्मक फिल्म की पटकथा में कई कमियां हैं.इस फिल्म में भारतीय राजनीति व ब्यूरोके्रट्स को लेकर संकेत में बहुत कुछ कहा गया है.बहरहाल,इस फिल्म को ओटीटी प्लेटफार्म पर 18 मई से देखा जा सकता है.पूरी फिल्म देखने के बाद फिल्म की निर्देशक काशवी नायर का पाकिस्तान प्रेम उभरकर आता है कि पाकिस्तान अति उदारता दिखाते हुए फिल्म के नायक अमरीक को उनकी दादी का पुश्तैनी मकान उखाड़ कर ट्रॉलर पर ले जाने देता है.
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कहानीः
फिल्म की शुरूआत अमरीका के लास एंजेल्स षहर में अपनी प्रेमिका राधा (रकूल प्रीत सिंह)के घर ग्रीन कार्ड धारी अमरीक सिंह(अर्जुन कपूर)के पहुॅचने से होती है. अमरीक सिंह कोई भी काम सही ढंग से नही करते हैं.राधा के घर पहुॅचते ही अमरीक सिंह के हाथों कुछ न कुछ टूटता रहता है.इसी वजह से राधा से मनमुटाव हो जाता है.वैसे अमरीक सिंह वहां पर एक माॅल में नौैकरी करते हैं.अचानक अमृतसर से अमरीक के पिता गुरकीरत सिंह(कंवलजीत सिंह)उसे फोन करके कहते है कि जल्दी भारत आ जाए.
क्योंकि उसकी नब्बे वर्षीय दादी रूपिंदर कौर उर्फ सरदार कौर( नीना गुप्ता ) अब अपनी जिंदगी के अंतिम पड़ाव पर हैं.अमरीक को देखकर दादी खुश हो जाती है.वह अमरीक से कहती है कि वह एक बार पाकिस्तान के लाहौर षहर जाना चाहती हैं.रूपिंदर उर्फ सरदार कौर लाहौर जाकर अपने स्व.पति गुरशीर सिंह(जाॅन अब्राहम )द्वारा लाहौर में बनवाए गए अपने मकान के अंदर बैठकर एक बार उनसे माफी मांगना चाहती हैं.पता चलता है कि वर्तमान में अमृतसर की मशहूर सायकल कंपनी ‘‘चैपियन सायकल’’ की नींव लाहौर में 70 वर्ष पहले गुरशेर सिंह ने रखी थी.
और लाहौर में कई मंजिला मकान बनवाकर युवा रूपिंदर कौर(अदित राव हादरी)के संग खूबसूरत रोमांटिक जिंदगी बिता रहे थे.पर 1947 में देश के बंटवारे के वक्त कुछ मुस्लिमों ने उनके घर में घुसकर गुरषेर सिंह की हत्या कर दी थी.तब रूपिंदर कौर अपने छोटे बेटे को पीठ पर बांधकर सायकल पर बैठकर बाघा बार्डर से अमृतसर पहुॅची थी.इस बात को सत्तर वर्ष हो चुके हैं.
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अब वह पोते पोती वाली हैं और लोग उन्हे सरदार कौर(नीना गुप्ता) बुलाते हैं.अमरीक वादा करता हे कि वह अपनी दादी को लाहौर लेकर जाएगा.दादी कह देती हैं कि यदि उसने ऐसा किया,तो वह उसे ‘चैंपियन सायकल’ कंपनी का सीईओ बना देंगी.अमरीक अपना व अपनी दादी का वीजा बनवाने जाता है.ग्रीन कार्ड होने के कारण उसका वीजा बन जाता है.मगर सरदार कौर का वीजा नही बनता.क्योंकि उसे पाकिस्तान ने बैनर कर रखा है.वास्तव में एक बार क्रिकेट मैच के दौरान एक पाकिस्तानी अधिकारी नियाजी (कुमुद मिश्रा)द्वारा भारतीय खिलाड़ी हरभजन सिंह के खिलाफ अपषब्द कह दिए थे,तब सरदार कौर ने उसकी दाढ़ी नोंच ली थी.
इस वीडियो के वायरल होने के बाद सरदार कौर पाकिस्तान में बैन कर दी गयी थी.अब दादी को उदास देखकर अमरीक सोच में पड़ जाता है.तभी वह यूट्यूब पर एक वीडियो देखता है जिसमे एक अमरकीन कंपनी एक बड़े पेड़ को जड़ सहित उठाकर एक जगह से दूसरी जगह तबादला करती है.तो अमरीक को लगता है कि इस तरह वह लाहौर से दादी का मकान लाकर यहां अमृतसर में रख सकता है.वह इस तैयारी में लग जाता है.भारत सरकार के अधिकारी कह देते हैं कि उसके इस काम में भारत सरकार का कोई जुड़ाव नही है.अमरीक लाहौर पहुॅचता है,तो देखता है कि उसकी दादी के मकान को तोड़ने की काररवाही की जा रही है.वह किसी तरह ऐसा नही होने देता.इसमे वहां पर चाय बेचने वाला एक बालक मदद करता है.पर हंगामा इतना हो जाता है और वीडियो वायरल हो जाता है.
पुलिस आती है और अमरीक को पकड़ कर ले जाती है.पर मकान का टूटना बंद हो जाता है.वह चाय वाला लड़का पाकिस्तान में मौजूद भारत के राजदूत को बुलाकर लाता है,जो कि अमरीक की जमानत कराते हैं.पर भारतीय राजदूत, अमरीक से कहते हैं,‘हमारा नाम कहीं भी मत लेना.तुम्हारी जमानत से भारतीय दूतावास या मेरा कोई संबंध नही है.यहीं से सब कुछ भूल जाओ.’पर अमरीक लाहौर के कमिश्नर के पास मकान को उठाकर भारत ले जाने की इजाजत लेने जाते है,तो पता चलता है कि यह तो वही नियाजी हैं जिनकी दाढ़ी उनकी दादी ने नोची थी.नियाजी उस पुरानी घटना को याद कर इजाजत देने से इंकार कर देते हैं.
इसी बीच अमरीका से अमरीक की प्रेमिका राधा भी लाहौर पहुॅच जाती है.फिर मकान के सामने खड़े होकर चाय वाले लड़के के इशारे पर अमरीक व राधा मकान को न तोड़ने देने की नारे बाजी करते हैं.राधा आर्कियोलाॅजी के ‘के पी केविन 1997’का हवाला देती है.यह वीडियो पूरे विश्व में वायरल हो जाता है.अब मजबूरन भारत के प्रधानमंत्री, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से फोन पर बात करते हैं.पाकिस्तानी वजीरे आजम इजाजत दे देते हैं.पर नाजी अपनी तरफ से अड़चन लगा देते हैं.कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.अंततः मरणासन्न दादी का मकान लेकर अमरीक अमृतसर पहुॅच जाते है. दादी खुश हो जाती हैं.फिर वह सात साल तक जीती हैं.अमरीक व राधा की भी षादी हो जाती है.
लेखन व निर्देशनः
विदेश में पली बढ़ी निर्देशक काशवी नायर ने जिस तरह से इस फिल्म में भारतीय रिश्तों की कड़ी को पिरोया है,उसके लिए वह बधाई की पात्र हैं.मगर फिल्म में भावनाओ का ज्वार नजर नही आता.पारिवारिक संघर्ष भी बहुत दबा हुआ है.यह उनकी पहली फिल्म है.उनके अनुभव की कमी इस फिल्म में स्पष्टरूप से नजर आती है.
फिल्म की पटकथा में कमियां ही कमियां है,जिसके चलते यह न तो बेहतरीन हास्य फिल्म बन पायी और न ही अच्छी सामाजिक व राजनीतिक फिल्म ही बन पाती है. निर्देशक काशवी की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी यह है कि अनुभवहीनता के चलते कहें अथवा एक बड़ा परिवार दिखाने के चक्कर में उन्होने किरदार काफी जोड़ दिए,कलाकारों की लंबी चैड़ी फौज भी खड़ी कर दी,मगर अधिकांष किरदारों के संग वह न्याय करने में पूरी तरह से विफल रही हैं.अमरीक के किरदार मे अर्जुन कपूर का चयन भी गलत ही है.अमरीक व राधा की प्रेम कहानी ठीक से उभरती ही नही है.
फिल्म की गति काफी ढीमी है.इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी.फिल्म के कई दृष्य बेमानी हैं.फिल्म कई जगह बहुत ही ज्यादा उबाउ है. अमितोष नागपाल के संवाद बेसिर पैर के हैं.फिल्म में एक जगह चाय बेचने वाला लड़का अर्जुन कपूर से कहता है-‘‘आपके देश में लोग चाय वाले को अंडरइस्टीमेंट बहुत करते हैं.’’इस संवाद के माध्यम से वह क्या कहना चाहते हैं,वही जाने.इसके अलावा कई संवाद भारत सरकार की कार्यशैली पर चोट करने के लिए रखे गए हैं,मगर वह न स्तरीय हैं और न ही असरदार हैं. भारत व पाकिस्तान के राजनेताओं और ब्यूरोक्रेसी पर बहुत डर के भाव लेखकोें ने कलम चलाई है.
अभिनयः
कुछ वर्ष पहले ‘‘बधाई हो’’से जिस तरह नीना गुप्ता ने वापसी करते हुए अपने अभिनय का लोहा मनवाया था,उसके चलते अब लोग उन्हे षीर्ष भूमिका में लेकर फिल्में बनाने लगे हैं.यह फिल्म पूर्णरूपेण नीना गुप्ता के ही इर्दगिर्द घूमती है.नब्बे वर्ष की सरदार कौर के किरदार में नीना गुप्ता ने कमाल का अभिनय किया है.मगर उनके अभिनय पर मेकअप हावी हो गया है. 90 साल का दिखने के लिए नीना गुप्ता को प्रोस्थेटिक मेकअप भी कराना पड़ा है,पर वह उसमें भी सुंदर ही नजर आती हैं.इस फिल्म की कमजोर कड़ियों में अमरीक का किरदार निभाने वाले अभिनेता अर्जुन कपूर भी हैं.वह अपने अभिनय से कहीं भरी प्रभावित नही करते.रकूल प्रीत सिंह सुंदर जरुर नजर आयी हैं,मगर अर्जुन कपूर संग उनकी केमिस्ट्री बेदम है.रूपिंदर कौर के किरदार में अदिति राव हादरी ने भी बेहतरीन अभिनय किया है.
लाहौर के काइयां कमिष्नर नियाजी के किरदार में कुमुद मिश्रा एक बार फिर अपेन अभिनय का जलवा दिखा जाते हैं.कंवलजीत सिंह व जाॅन अब्राहम पूर्णरूपेण निराष करते हैं.चाय वाले का किरदार निभाना वाला बालक अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है.मगर सोनी राजदान,आकादीप शब्बीर,मसूद अख्तर,रवजीत सिंह आदि के किरदारों को अहमियत ही नही दी गयी.