जो लोग टी नहीं पीते, उन में से ज्यादातर आजकल ग्रीन टी पीते हैं. और इस बात को गर्व व उत्तेजना के साथ बताते हुए उन के भाव कुछ ऐसे रहते हैं कि ‘पी रहे हैं ग्रीन टी, चाय मत समझ लेना.’ पीने से ज्यादा इस फिक्र में जीते हैं, हाय, दुनिया को खबर कैसे हो. ग्रीन टी पीने की पड़ोसी, साथीसहयोगी और फेसबुक फ्रैंड्स को खबर न हो, तो इस के बड़े साइड इफैक्ट होने लगते हैं. पी कर स्लिम होते हैं और बताने की उधेड़बुन में दुबलाते हैं. यहांवहां बताते रहते हैं कि हम चायवाय नहीं पीते, ग्रीन टी पीते हैं. बहुत फायदे हैं इस के. इन की बातें सुन कर साधारण चायपेयक खुद को हेय, बीपीएल, एपीएल टाइप महसूस करने लगते हैं.
आजकल ग्रीन टी का नया हल्ला है. टी बैग स्टेटस सिंबल है. गरम पानी में डुबोना एक क्रिया है, जिस से एक क्लास की गमक उठती है, जो क्लासिकल सा आनंद देती है. सेल्समैन बताते हैं, ये फायदे, वो फायदे, फायदे ही फायदे, एक बार पी कर तो देखें. जिस ने भी एक बार पी कर देखा, फिर सेल्समैन के जरिए कंपनी को फायदा ही फायदा है. पीने वाले को फायदा हो न हो, बताने का सुख जरूर हासिल हो जाता है कि ‘क्या है कि चायवाय सूट नहीं करती हमें, इसलिए ग्रीन टी पीते हैं.’ ऐसा बताते हुए वे सामने वाले पर अपना रोब सा जमा लेते हैं.
बहुत से लोग इन दिनों ग्रीन टी के औनलाइन बागानों में टहलते पाए जाते हैं. इन्हें किसी खास ब्रैंड की तलाश रहती है. ऐसे लोग बिना पिए भी यह बताने के लिए उत्तेजित सी अवस्था में रहते हैं कि उन के दिन की शुरुआत ग्रीन टी से होती है और जब से ग्रीन टी पीने लगे हैं, सारा आलस व थकान गायब सी हो गई है. दिनभर स्फूर्तिताजगी उन के आगेपीछे टहलती रहती है. यह अलग बात है कि पत्नी के ताने भी उन्हें पार्क तक टहलने को मजबूर नहीं कर पाते.
साधारण चायपेयकों के लिए चाय का मतलब पत्ती, दूध, अदरक, इलायची का मिलाजुला अटूट गठबंधन होता है, जिस की चुस्कियों के साथ वे डोनाल्ड ट्रंप, बलूचिस्तान, कश्मीर, पैलेटगन, ओलिंपिक, वाडा, नाडा, पुरस्कार वापसी, असहिष्णुता, गाय, कालाधन, जुमले, अच्छे दिनों से गुजरते हुए समूचा ब्रह्मांड घूम आते हैं. ग्रीन टी वाले कप से बाहर निकलते ही कुम्हलाने लगते हैं. किसी दिन ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी वे लोग दूध वाली चाय को जिम्मेदार ठहरा दें तो कोई आश्चर्य नहीं. कालेज के दिनों की एक दोस्त है, जबतब फेसबुक पर ग्रीन टी पीते हुए सैल्फी शेयर करती रहती है. एक दिन पारदर्शी मग के साथ अपारदर्शी फीलिंग्स शेयर की, ‘ड्रिंकिंग ग्रीन टी विद लिस्ंिनग चार बोतल वोदका.’ मैं ने शेयर किया, कमाल है, ग्रीन टी के साथ चार बोतल वोदका और उस से भी तगड़ा कमाल यह कि ‘चार बोतल वोदका’ के साथ ग्रीन टी. कैसे कर लेती हो यह सब. कहने लगी, ‘तुम औलटाइम बैकवर्ड ही रहोगे, यह कंट्रास्ट का दौर है, लाइफ में स्टाइल, ड्रैस, आइडियाज, अंडरगारमैंट्स तक सबकुछ कंट्रास्ट में चाहिए. इस से कम में कुछ स्वीकार नहीं.’ पढ़ कर मैं चौंक उठा. मुझे डर लगा, कहीं यह कंट्रास्ट हस्बैंडवाइफ के रिश्तों तक न खींच बैठे. क्या पता उत्तेजना का आधिक्य कहां तक ले जाए.
आजकल मेरे घर में भी कइयों को ग्रीन टी का चस्का लगा है. सुबह तब तक आलस्य से आलिंगनबद्ध पाए जाते हैं जब तक कि कोई उन्हें एक कप ग्रीन टी नहीं बना दे. फिर लंबा लैक्चर इस के फायदों के साथ मेरी दूध वाली चाय में उड़ेलते हैं. उफ, ग्रीन टी का इतना कड़वा स्वाद, उस समय कोई मेरे से पूछे. ऐसेऐसे परमआलसी देखता हूं जो संस्कार चैनल भी तब बदलते हैं जब पत्नी रिमोट ढूंढ़ कर देती है और दिनभर अपनी स्फूर्ति का सारा श्रेय ग्रीन टी को देते नहीं थकते हैं. मेरे एक सहकर्मी हैं, जो कभी टाइम से औफिस नहीं आते और ऊपर से तुर्रा यह कि जब से ग्रीन टी पीने लगे हैं, हर काम वक्त पर निबटाने लगे हैं. ‘अरे, आप ग्रीन टी नहीं पीते, पी कर देखिए न.’ साथ में पुरजोर तरीके से यह सलाह जरूर नत्थी करेंगे. इतना दबाव तो भारत भी पाकिस्तान पर वार्त्ता के लिए नहीं डाल पाता, जितना ग्रीन टी वाले मेरे जैसे साधारण चायपेयकों पर डालते रहते हैं.
महल्ले में कई तो इस कदर कुख्यात हो चुके हैं कि हरदम ग्रीन टी की पिनक में रहते हैं और ग्रीन टी के चलतेफिरते पौधे से नजर आते हैं. पास से निकलो, तो हराभरा सा एहसास छोड़ते रहते हैं. जरा सा छेड़ दो, ‘विपिन, बड़े तंदुरुस्त से, स्लिम से, हैंडसम से नजर आ रहे हो, किस चक्की का आटा खाते हो आजकल.’ सुन कर विपिन का जायका बिगड़ जाता है, ‘खाते नहीं हैं, पीते हैं आजकल, ग्रीन टी पीते हैं. हम और हम ग्रीन टी पीने वालों की बात ही कुछ और है.’ और इतना कह कर वे अपनी बात कह कर आगे निकल जाते है. हम जैसे लोग वहीं खड़े रह जाते हैं.
मेरी पड़ोसिन सुबहसुबह बालकनी में आ कर अपने भीगे बालों को झटकते हुए आवाज लगाती है, ‘अजी, मेरी ग्रीन टी तैयार हुई.’ इस झटके की फुहार अड़ोसीपड़ोसी, राह गुजरते लोगों तक पहुंच जाती है और वे ठिठक कर जायजा सा लेने लगते हैं कि देखें, तैयार हुई कि नहीं. उन की ज्यादा जिज्ञासा इस बात में रहती है कि ग्रीन टी तैयार नहीं हुई, तो देखें क्या होता है. कुछ यहांवहां फूलपत्ती सी ढूंढ़ने लगते हैं. कुछ को अचानक कोई अर्जेंट कौल याद आ जाती है और स्मार्टफोन में झांकने के बहाने कान इधर खींच कर लंबे कर देते हैं. यह माजरा देख भीतर ‘अजी’ कुढ़ते रहते हैं, रिक्वैस्ट करते रहते हैं कि तुम ये सब को सुना कर फरमाइश मत किया करो.
‘हायहाय, क्यों न करूं, ग्रीन टी जो पीती हूं, तुम्हारी तरह कोई चायपियक्कड़ थोड़े ही हूं. पूरे जहान को सुनाऊंगी, समझे.’
सच, साइडइफैक्ट तो इधर भी कम नहीं दिखते. सुबहसुबह यह दृश्य राहगीरों के लिए खासा रसदार होता है और वे बिन पिए ही हरे से हो जाते हैं. कुछ के लिए यहीं प्रात:भ्रमण का उद्देश्य पूरा हो जाता है. सुबहसुबह पार्क में कई मोहतरमाओं के वार्त्तालाप का मुख्य विषय भी ग्रीन टी होता है. मैं चाल धीमी कर, कान लगा कर सुनता हूं. ‘हायहाय, सुबह जब तक एक बड़ा कप ग्रीन टी नहीं ले लेती, कुछ करने का मन ही नहीं करता है.’‘अरे, मैं ने तो बैड टी को ग्रीन टी से रीप्लेस कर दिया है. बौडी से सारे टौक्ंिसस निकल जाते हैं.’
‘वैसे, दफ्तर से आते ही मेरे को एक कप ग्रीन टी जरूर चाहिए ही चाहिए. थकान यों भागती है जैसे दफ्तर से हम.’
यों, पता इन की उम्र का भी नहीं चलता. चाहें तो इस का श्रेय ग्रीन टी को आप दे सकते हैं, लेकिन सिर्फ अपने रिस्क पर, क्योंकि न पीने वालों के लिए ग्रीन टी के साइड इफैक्ट कुछ ज्यादा ही होते हैं. फिर समापन इस रिसर्च की घोषणा के साथ होता है कि ग्रीन टी के बड़े फायदे हैं. अब तो ग्रीन टी कैंसर तक को ठीक करने लगी है. सुनते ही एकाएक मेरी चाल तेज हो जाती है. क्या पता, उन्हें आसपास मेरी उपस्थिति कैंसर की तरह खटक रही हो. वैसे भी, कुछ खास लोगों की नजर में हम जैसे आम लोग कैंसर जैसे ही हैं.