फिल्म निर्माता पियूष मूंदड़ा ने सेक्स रैकेट व नाचने वालियों पर अपनी फिल्म‘‘बाबूजी एक टिकट मुंबई’’ को 2016 में नोटबंदी के चलते चाहकर भी प्रदर्शित नही कर पाए थे.उसके बाद यह फिल्म‘‘काॅंस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में दिखायी गयी.पर जब मशहूर नृत्य निर्देशक सरोज खान ने इस फिल्म को देखा,तो उन्होने इस फिल्म के निर्माता पियूष मूंदड़ा और निर्देशक अरविंद त्रिपाठी से इस में कई बदलाव करने के साथ ही फिल्म का नाम ‘‘राग:द म्यूजिक ऑफ लाइफ’’रखने की सलाह दी थी.स्व.सरोज खान की सलाह पर अमल करते हुए फिल्म को नए सिरे एडिट कर नाम बदला और अब यह फिल्म 26 मार्च को सिनेमा घरो में प्रदर्शित होने जा रही है.

इस संबंध में फिल्म के निर्माता पियूष मूंदड़ा कहते हैं-‘‘यह सच है कि हमने 2016 में इस फिल्म को रिलीज करने की कोशिश की थी, लेकिन तब विमुद्री करण कि स्थिती निर्माण हो गयी थी.घोषणा के बाद के महीनों में लंबे समय तक नकदी की कमी का सामना करना पड़ा, जिसने बहुत बडी बाधा निर्माण की. लोग अपने बैंक में नोट एक्सचेंज करने के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते थे. इसलिए हमने तब रिलीज को स्थगित कर दिया.इसके बाद 2017 में फिल्म को काॅन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’में स्क्रीनिंग के लिए चुना गया,वहां हम पुरस्कार नही जीत पाए,लेकिन अच्छी सराहना मिली.

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कान्स में स्क्रीनिंग के बाद मैं सरोज खान जी से मिला और उन्होंने इस फिल्म को नए नजरिए से देखकर बदलाव करने के सुझाव दिए.उनकी राय के अनुसार हमने फिल्म को नए सिरेसे एडिट करने के साथ कुछ दृष्य पुनः फिल्माए,पुनः डबिंग और तकनीकी बदलाव किए. फिर नाम भी बदला.सरोज जी ने यह भी सुझाव दिया कि नाम नाचने वाली बिरादरी में फिल्म के साथ नहीं गूंजता और बहुत लंबा था. हम सभी ने दिमाग लगाया और नए नाम ‘राग‘ के साथ आए, जो संक्षिप्त और उपयुक्त था.

जब सब कुछ सही हो गया, तो हम कोरोना महामारी से घिर गए.फिर हमने सरोज खान जी को खो दिया, जो इस फिल्म की रीढ़ थी.यह फिल्म उनके लिए एक श्रद्धांजलि है.उनके मरणोपरांत प्रदर्षित होने वाली उनके नृत्य निर्देशन से सजी यह पहली फिल्म है.’’ फिल्म ‘‘रागः द म्यूजिक ऑफ लाइफ’’मानव तस्करी की दुनिया में एक वास्तविक अंतर्दृष्टि डालने वाली फिल्म है, जिसमें इस बात का चित्रण है कि व्यावसायिक रूप से यौन शोषित होने वाली महिलाओं को गरिमा पूर्ण मृत्यु भी नहीं मिलती है. इस फिल्म में इस बात पर रोशनी डाली गयी है कि किस तरह पूरे विश्व में औरतों का शोषण किया जा रहा है और खुलेआम ‘‘प्रत्येक मनुष्य को मूल्य और समान व्यवहार करने के अधिकार’’की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं.

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यूं तो फिल्म में कहानी के दो पहलू है.एक सेक्स वर्कर की लड़ाई का पक्ष,जो वेश्यावृत्ति को मानवाधिकारों के हनन और मानव की गरिमा पर हमला बताते हुए निंदा करता है.तो दूसरा कुछ देशों में सेक्सवर्कर एक वैध व्यवसाय है, जिसमें व्यक्ति पैसे के लिए विनिमय करता है. इसमें यौनकर्मियों के साथ पुलिस अफसरों के दुर्व्यव्यवहार और  शोषण को भी उजागर किया गया है. फिल्म‘राग’’में उन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की भी बात रखी गयी है,जो मानते हैं कि अपराधी वातावरण में पुलिस अधिकारी यौन कर्मियों को परेशान करते हैं, रिश्वत मांगते हैं.

पुलिस अफसर इन यौन कर्मियों का शारीरिक शोषण करने के साथ ही उनके संग दुव्र्यवहार भी करते हैं. यौमकर्मी द्वारा मना करने पर यह पुलिस अफसर उनसे बलात्कार या जबरदस्ती भी करते हैं.इस संबंध में निर्देशक अरविंद त्रिपाठी कहते हैं-‘‘हमने यह सारे तथ्य कई शोध पत्रिकाओं ये उद्धृत किण् हैं. अपराधीकरण यौन कर्मियों को हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है, जिनमें बलात्कार, हमला और हत्या शामिल है.

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हमलावर हमेशा यौन कर्मियों को आसान लक्ष्य के रूप में देखते हैं,क्योंकि यौनकर्मी कलंकित और समाज से बहिस्कृत होने के साथ ही पुलिस से सहायता प्राप्त करना इनके लिए संभव नहीं.इस तरह का अपराधी करण भी पुलिस से बचने के लिए यौन कर्मियों को असुरक्षित स्थानों पर काम करने के लिए मजबूर करता है.’’

फिल्म के निर्माता पियूष मूंदड़ा कहते हैं-‘‘सीएस डब्ल्यू को बहुत भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है. उनके पास चिकित्सा सुविधाओं और समय पर उपचार तक नहीं पहुँच पाते हैं.इस प्रकार उनमें से कई एसटीडी के शिकार हैं. उनमें से कई कलंकित होने के डर से अस्पतालों में नहीं जाते हैं. इसके अलावा इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि तस्करी की जा चुकने के चलते इन महिलाओं के पास खुद के पहचान का कोई प्रमाण नहीं होता.”

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अरविंद त्रिपाठी कहते हैं-‘‘अक्सर यौनकर्मियों के लिए मृत्यु में भी कोई गरिमा नही है.उनके शरीर को अक्सर अचिह्नित  कब्रों  में या नदी में फेंक दिया जाता है.या कीचड़ में दफन कर दिया जाता है.कई बार इन्हें वेश्यालय के अंदर ही विद्युत में जला दिया जाता है.आमतौर पर रात में बिना किसी औपचारिक प्रार्थना के दफनाया जाता था.सोचिए अगर इस व्यापार को समग्रता में वैध कर दिया जाए,तब सीएसडब्ल्यू का पुन र्वास हो सकता था और फिर से तस्करी को रोका जा सकता था.’’

पियूष मूंदड़ा कहते हैं-‘‘ हमने इस फिल्म में मानव तस्करी पीड़ितों की गंभीर स्थितियों का चित्रण कर हकीकत को दर्शकों तक पहुंचाने का प्रयत्न किया है.यह पीड़िता किसी अन्य मनुष्य की तुलना में कम नहीं हैं, समय आ गया है कि हम उनके साथ सम्मान के साथ व्यवहार करे और उन्हें हर मानव के सम्मान का हकदार बनाएं.अगर हम कुछ लोगों के जीवन को भी बदल सके, तो हम खुद को सफल मानेंगे.’’

अरविंद  ‘‘राग’’में राजपाल यादव, राकेश बेदी, सुधाचंद्रन, मोहनजोशी, यशपाल शर्मा, मिलिंद गुणाजी, मनीषा मरजारा, किरण शरद, रघुबीर यादव, हीना पांचाल जैसे कलाकार हैं.मोहित चैहान, पलक मुछाल, ममता शर्मा, शान और शबाब शबरी जैसे प्रशंसित गायकों द्वारा गाने गाए गए हैं औ रसंगीत टी-सीरीज का है.

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