नादिरा कहती-"पुतुल तो अखिल का बैंक बन गयी है"
मिठू कहती-"पुतुल कामधेनु गाय है जो अखिल के हाथ लगी है"
लेकिन मैं खुश थी.
उनके सभी मजाक पर अखिल के कहे वे प्रेम से भींगे शब्द भारी पड़ जाते थें-"पुतुल तुम मेरी जान हो."
-"पुतुल हम लवर हैं"
'लवर', शब्द सुनकर बहुत अच्छा लगता. दिल करता उसके लिये सात समुद्र-तेरह नदियां, सभी पार कर जाऊं.
लेकिन प्रेम की कसौटी में छात्र जीवन कहाँ फिट बैठता है.
मेरी यूनिट टेस्ट का परिणाम आया और आशा के अनुरूप ही आया. यह परिणाम मेरे छात्र जीवन का सबसे बेकार परिणाम था. मम्मी-पापा तो सकते में आ गये थें. सहम तो मैं भी गयी थी! लेकिन परिणाम के कारण नहीं, अखिल के व्यवहार के कारण.
परीक्षा में मेरे प्रदर्शन से जहाँ मैं दुःखी थी, वहीं अखिल के व्यवहार में किसी भी प्रकार की संवेदना का अभाव था. दो दिन पहले परिणाम आया था. तब से आज तक उसने मात्र दो बार फोन किया था. एक बार उसका फोन रिचार्ज कराने के लिये और दूसरी बार रिचार्ज प्लान बताने के लिये.
जब मैंने अपना दर्द उससे बाँटना चाहा तो बोला-"अरे यार.पढ़ना चाहिये था! अब रोकर क्या फायदा! चियर अप"
वो मुझे पढ़ने पर सुझाव दे रहा था, जिसने आजतक बिना मेरी सहायता के एक परीक्षा भी पास नहीं की थी!
मैं शाम को बरामदे में उदास बैठी थी.
मम्मी मेरे पास आयीं और बोलीं-"तुम आजकल कहाँ गायब रहती हो!"
-"कही नहीं."
-"तुम परसो कहाँ गयी थी?"
-"नादिरा के घर. क्यों?"
-"ये फोन पर इतना क्यों लगी रहती हो?"
-"मम्मी, ये क्या हैं!?"
-"सुनो, मुझसे मत छिपाओ. तुम्हारा हाव-भाव आजकल कुछ ठीक नहीं लग रहा. पापा को तुम्हारे मार्क्स से धक्का लगा है. बेटा, शिक्षा वह पतवार है जो हर तूफान से तुम्हें निकाल लेगी. दिन-भर सोचते रहने से क्या होगा! जो गलत कर रही हो, उसे सुधारो!"
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