एक अच्छे विषय को एक अनुभवहीन लेखक व निर्देशक किस तरह से घटिया फिल्म में परिवर्तित करता है, इसका ताजातरीन उदाहरण है फिल्म ‘‘काफी विथ डी’’.

फिल्म की कहानी के केंद्र में मुंबई का एक समाचार चैनल और उसमें कार्यरत न्यूज एंकर अर्नब घोष (सुनील ग्रोवर) के इर्द गिर्द घूमती है. अर्नब घोष अपने चैनल के प्राइम टाइम कार्यक्रम का संचालक है, जिसमें वह राजनीतिज्ञों के इंटरव्यू लेता है. चैनल की टीआरपी कम होती जा रही है. इस वजह से चैनल का संपादक (राजेष शर्मा) भी अर्नब से खुश नहीं है. क्योंकि चैनल के मालिकों ने दो माह के अंदर चैनल की टीआरपी को बढ़ाकर चैनल को फायदे में लाने की चेतावनी दे दी है, अन्यथा चैनल बंद कर दिया जाएगा.

संपादक ने अर्नब को शाम सात बजे के कूकरी शो को संचालित करने के लिए कह दिया है. जबकि उसके कार्यक्रम की जिम्मेदारी नेहा (दीपानिता शर्मा) को दे दी गयी. जब अर्नब यह बात अपने घर जाकर अपनी गर्भवती पत्नी पारूल (अंजना सुखानी) को बताता है, तो पारूल उससे कहती है कि उसे डी (जाकिर हुसेन) का इंटरव्यू करना चाहिए. यह बात अर्नब को जंच जाती है. फिर अर्नब, डी के बारे में कुछ अजीबो गरीब कहानियां बनाकर प्रसारित करता है. जिसकी वजह से डी का ध्यान उसकी तरफ जाता है. आखिरकार डी, अर्नब की चार सदस्यीय टीम को कराची अपने घर बुलाकर इंटरव्यू देता है.

एक समाचार चैनल का न्यूज एंकर मशहूर डान डी से इंटरव्यू करने जाता है, जिसका हौव्वा हमारे देश में है, जिसने आज तक किसी पत्रकार से बात नहीं की, यह सोच अपने आप में काफी अनूठी है. मगर इस सोच को कहानीकार व निर्देशक तथा पटकथा लेखक आभार दधीच सिनेमा के परदे पर लाने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. फिल्म देखते समय कहानी में अधूरापन नजर आता है. फिल्म का गीत संगीत भी प्रभावित नहीं करता. संवाद लेखक के रूप मे भी आभार दधीच निराश करते हैं.

इंटरवल तक फिल्म किसी तरह से घिसटती रहती है. पर दर्शक को उम्मीद बंधती है कि डी से अर्नब के इंटरव्यू का हिस्सा लुभाएगा, मगर वहां भी फिल्म निराश करती है. डी और अर्नब के बीच बातचीत देखते समय लगता है कि यह फिल्म कब खत्म हो.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अंजना सुखानी और सुनील ग्रोवर दोनों ही बहुत निराश करते हैं. सुनील ग्रोवर को मान लेना चाहिए कि उनके अंदर अभिनय क्षमता का अभाव है, उसे निखारने के लिए उन्हे काफी मेहनत करने की जरुरत है. टीवी के कामेडी शो में औरतों के कपड़े पहनकर फूहड़ हरकतें कर दर्शकों को हंसाना अभिनय नहीं है. कलाकार की असली परीक्षा सिनेमा के परदे पर अभिनय कर लोगों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में है. पर सुनील ग्रोवर बुरी तरह से असफल रहे हैं. ‘निल बटे सन्नाटा’ से बेहतर कलाकार  के रूप में उभरे पंकज त्रिपाठी भी इस फिल्म में डी के सहायक गिरधारी के किरदार में विफल रहे हैं. डी के किरदार में जाकिर हुसेन सही बैठे. पर महज एक कलाकार की प्रतिभा के बल पर अच्छी फिल्म नहीं बनती है.

फिल्म ‘‘काफी विथ डी’’ की कमजोर कड़ियों में कहानीकार व निर्देशक विशाल मिश्रा, पटकथा लेखक आभार दधीच व अभिनेता सुनील ग्रोवर आते हैं.

दो घंटे तीन मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘काफी विथ डी’’ के निर्माता विनोद रमानी, निर्देशक विशाल मिश्रा, पटकथा व संवाद लेखक आभार दधीच, कलाकार हैं-सुनील ग्रोवर, अंजना सुखानी, दीपानिता शर्मा, राजेश शर्मा, पंकज त्रिपाठी, जाकिर हुसेन.

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