‘धर्म पर मैं धंधा नहीं करता’, ‘बनिए का दिमाग और मियां भाई की डेयरिंग’, ‘कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता, जिससे किसी का बुरा न हो’ आदि कई अलग-अलग संवादों से सजी हुई एक्शन, क्राइम, थ्रिलर फिल्म है ‘रईस’. इस फिल्म को निर्देशक राहुल ढोलकिया ने 5 साल की रिसर्च के बाद बनाया है, जिसमें शाहरुख खान ने फिर से एक नए अवतार के रूप में आने की कोशिश की है.

पूरी फिल्म में शाहरुख शुरू से लेकर अंत तक हावी रहे, उनका बार-बार पर्दे पर आना अच्छा लगा, उनका गेटअप और संवादों का आदान-प्रदान काफी सहज था, जिससे फिल्म रोचक लगी. हालांकि ये कहानी गुजरात के क्रिमिनल अब्दुल लतीफ के जीवन से प्रभावित दिखी, पर निर्देशक ने अपने इंटरव्यू में इसे एक फिक्शन स्टोरी बताया.

बात जो भी हो इसमें साल 1970 और 80 के दशक को दिखाया गया है. जब गुजरात में ‘लिकर बैन’ कर दिया जाता है. इसके लिए निर्देशक ने गुजरात के दृश्य को उस समय के हिसाब से फिल्माया है. जो अच्छा रहा. फिल्म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी कुछ खास प्रभाव नहीं जमा पाए. ऐसा लगा कि उन्हें उभर कर आने का मौका नहीं मिला. चोर-पुलिस का खेल अंत तक चलता रहा. शाहरुख खान के दोस्त के रूप में मोहम्मद जीशान अय्यूब ने काफी अच्छा काम किया. महिरा खान फिल्म में न के बराबर थी. शाहरुख खान के साथ उनकी केमिस्ट्री एकदम सही नहीं बैठ पायी.

फिल्म की कहानी

रईस (शाहरुख खान) गुजरात के फतेहपुरा में अपनी मां (शीबा चड्ढा) के साथ बहुत मुश्किल में गुजर- बसर करता है. दिमाग से तेज रईस बचपन से ही जयराज (अतुल कुलकर्णी) के लिए ‘लिकर’ का आदान-प्रदान कर पैसा कमाता है, इसमें साथ देता है उसका दोस्त सादिक (मोहम्मद जिशान) जो हर वक्त किसी भी परिस्थिति में उसका साथ देता है.

धीरे-धीरे रईस को लगने लगता है कि उसे अब अपना व्यवसाय कर, अपनी प्रेमिका आशिया (महिरा खान) के साथ घर बसाना है. इसके बाद वह बड़ा ‘लिकर’ तस्कर व्यवसायी मूसा भाई (नरेन्द्र झा) से मिलकर जयराज को खत्म करने की साजिश रचता है. आई पी एस ऑफिसर मजमुदार (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) इस काम में उसे रंगे हाथ पकड़ने की जी-जान से कोशिश करता है, लेकिन उसकी कोशिश हमेशा नाकामयाब होती है. रईस कभी उसके हाथ नहीं आता, बल्कि वह राजनेता का सहारा लेकर मजमुदार का ट्रान्सफर करवा देता है. फिर भी मजमुदार अपनी जिद नहीं छोड़ता और हर मोड़ पर रईस की ‘लिकर’ की तस्करी के आड़े आता है. इस प्रकार कई एक्शन, फाइट और मर्डर के बाद कहानी अंजाम तक पहुंच कर यह बताने की कोशिश करती है कि गलत काम का फल कभी सही नहीं होता.

फिल्म को राहुल ढोलकिया ने मसाला फिल्म बनाने की कोशिश की है, पर वे थोड़े उसमें कम नजर आये. फिल्म की शुरूआती भाग से दूसरे भाग में फिल्म की पकड़ अच्छी रही. फिल्म का गाना ‘उरी-उरी जाये….’ सिचुएशन के हिसाब से था. बहरहाल फिल्म एक बार देखने लायक है. इस फिल्म को शाहरुख खान की एक अच्छी और अलग फिल्म की लिस्ट में शामिल की जा सकती है. इसे थ्री स्टार दिया जा सकता है.

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