सदियों से माना जा रहा है कि महिलाओं का हृदय कोमल होता है. पर कोई महिला पुरुष की अपेक्षा कठोर भी हो सकती है और कोई पुरुष भी महिला की अपेक्षा संवेदनशील हो सकता है. कुछ भी होपर यह खूबी मानसिक तनाव देने वाली होती है. महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैंइसलिए वे जल्दी ही हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत सहन नहीं कर सकतीं.

संवेदना यानी कि समवेदना यानी कि किसी की वेदना उसी की तरह अनुभव करने वाली भावना. यह भावना रखने वाला आदमी संवेदनशील माना जाता है. इस मामले में महिलाओं को अधिक संवेदनशील कहा गया है. कुछ हद तक यह सच भी है. अब तो ट्रैजडी वाली फिल्में ज्यादा आती नहीं हैं. ढाईतीन दशकों पहले हर फिल्म में इस तरह की घटनाएं जरूर दिखाई जाती थीं और उस समय सिनेमाघर में सिसकने की आवाजें निश्चित सुनाई देती थीं और सिसकने की वे आवाजें महिलाओं की होती थीं.

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इस का मतलब यह हुआ कि संवेदनशील महिलाएं दूसरे की भावना को बहुत गहराई से अनुभव करती हैं. जो दूसरे की भावना को गहराई से अनुभव करती होवह अपने प्रति कितना संवेदनशील होगीऐसी महिला को अगर कोई मजाक में भी कोई बुरी बात कह देता है तो कई दिनों तक उस की नींद हराम रहती है. उसे खाना भी नहीं अच्छा लगता. उस की भावनाओं पर हुए इस आघात का सीधा असर पहले मैंटल हैल्थ पर और फिर उस के बाद फिजिकल हैल्थ पर पड़ता है.

बहुत जल्दी विश्वास करना

महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं. इसीलिए वे तेजी से हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत नहीं सहन कर सकतीं. वे अपने खतरे पर दूसरे की हैल्प करने को तत्पर रहती हैं. अगर उन्हें हर्ट करने वाला माफी मांग लेता है तो वे सरलता से दूसरे की गलती को माफ कर देती हैं. यह गुण बेशक अच्छा हैपरंतु महिलाओं के इस अच्छे गुण का पौजिटिव परिणाम क्या सचमुच उन के घरपरिवारऔफिस और समाज पर पड़ता हैयह जानने के लिए कुछ उदाहरण देखते हैं-

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12-13 साल की संवेदनशील बेटी जब देखती है कि उस के पैरेंट्स उस के भाई को ओवर पैंपरिंग कर रहे हैं और उस के प्रति अन्याय कर रहे हैं तो उस की संवेदनशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है. युवा होने पर जब दर्जनों लड़के शादी के लिए रिजैक्ट कर देते हैं तो उन की संवेदनशीलता घायल होती हैक्योंकि उन के सपने जो धराशायी होते हैं. यह बात सच है कि महिलाएं अधिक संवेदनशील होती हैं. परंतु सभी महिलाओं में यह बात एकसमान नहीं होती. कालेज में भेदभाव सहना पड़ता है तो अधिक संवेदनशील लड़कियां मन से घायल होती हैं. कम संवेदना रखने वाली महिलाएं यह सब तो जिंदगी में चलता रहता है’ मन को यह आश्वासन दे कर शांत हो जाती हैं. हमारे समाज में सभी व्यक्ति सभी कामों में आसपास के सभी लोगों की संवेदना का खयाल नहीं रख सकते. परिणामस्वरूप हर मौके और हर स्थान पर अधिक संवेनशील महिलाओं का हृदय घायल होता रहता है. सोवे बातबात में हताशानिराशा और आघात से पीडि़त होती रहती हैं. आसपास के लोग उन की इस अधिक संवेदनशीलता के बारे में व्यंग्य भी मारते रहते हैं. परंतु वे अपनी संवेदना की धार गोठिल नहीं होने देतीं.

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प्रैक्टिकल महिला

संवेदना तर्क के म्यान में रहती होऐसी महिलाएं नहीं अच्छी लगतीं. पीड़ा देने वाली बातों की वास्तविकता को ध्यान में रख कर वे आगे बढ़ती हैं. अन्याय की सोच को खंगाल कर खुद को स्वस्थ करती हैं. ऐसी महिला को समाज में प्रैक्टिकल महिला कहा जाता है. अगर इसे तर्क के रूप में सोचें तो महिलाओं को प्रैक्टिकल होना ही चाहिए. पर प्रकृति ने सभी का भावनात्मक तंत्र पहले ही बना दिया हैइसलिए संवेदनशील महिलाएं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकतीं.

उदाहरण के लिएएक संवेदनशील महिला का पति सब के सामने कहता है, ‘तुम्हारे पास अक्ल नाम की कोई चीज नहीं है.’ यह कहने वाले पति को पता नहीं कि उस की इस बात से पत्नी का दिल टूट जाएगा और वह कमरे में जा कर अकेले में रोएगी और कई दिनों तक इसी बात को बिसूरती रहेगी. इस से उस के चेहरे की हंसी और आंखों की नींद गायब हो जाएगी. इस बीच वह अपने काम भूल जाएगी और छोटीछोटी बातों पर दूसरे पर गुस्सा करेगी. इस का असर उस के अपने मन के साथ तन पर भी पड़ेगा. जबकि उस की जगह कोई प्रैक्टिकल महिला होगी तो वह पति को तार्किक जवाब दे कर खुश होगी अथवा पति का स्वभाव ही ऐसा हैयह सोच कर इस बात पर वहीं पूर्णविराम लगा देगी.

संवेदनाओं को घायल करना

हमारे परिवारों में महिलाओं की संवेदनाओं को अनेक तरह से घायल किया जाता है. उस के मायके वालों को ताना मार कर उसे चोट पहुंचाई जाती है. घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय से उसे बाहर रखा जाता है. उस की स्वतंत्रता और इच्छाओं का गला घोंटा जाता है. मैरिटल रेप होता है. बच्चों से ले कर परिवार के किसी भी सदस्य की जिंदगी में कुछ गलत होता हैतो उस का दोष महिलाओं के सिर मढ़ दिया जाता है.

अगर वह कुछ कहना चाहती है तो तुम्हें इस बारे में क्या पता’ यह कह कर उस का अपमान किया जाता है. तर्क की लगाम से संवेदना को लगाम में रखने वाली महिलाओं पर इस सब का कोई असर नहीं होता. कुछ जो लड़ाकू स्वभाव की महिलाएं होती हैंवे लड़ झगड़ कर अपना अधिकार पाने की कोशिश करती हैं. जबकिसंवेदनशील महिलाएं अगर इस तरह का कोई अन्याय होता है तो सिर्फ रोती हैंदुखी होती हैंखुद को सब से अलग कर लेती हैं. अपने ऊपर हुए अन्याय के लिए खुद को जिम्मेदार मानती हैं. हमेशा गिल्टी फील करती हैं.

इस सब का क्या परिणाम होता हैउन की तबीयत खराब होती है. शरीर में तरहतरह की गड़बडि़यां होती हैं. बीमारियां लगती हैं. खुद को व्यर्थ और असहाय सम झती हैं. अतिशय विचारअतिशय गिल्टी और अतिशय भावनात्मकता मन पर हमेशा नकारात्मक असर करती है.

ज्यादा संवेदनशील व्यक्ति ही मानसिक रोग का शिकार बनते हैं. उदासीडरआत्मविश्वास का अभावहमेशा तनावसैल्फ रिस्पैक्ट की कमीअपराधबोधचिड़चिड़ापनहमेशा रोना आना और जीवन से रुचि का खत्म हो जाना जैसे कई मानसिक सवाल पैदा होते हैं. ये उसे तनमन से असमय बूढ़ा बना देते हैं.

तरह-तरह के लांछन

जो महिला अधिक संवेदनशील और रो कर संतोष कर लेने वाले स्वभाव की होती हैउसे लोग और दुखी करते हैं. परंतु दुख की बात यह है कि हमारे यहां महिला की संवेदनशीलता को और न तो उस के मानसिक सवालों को गंभीरता से महत्त्व नहीं दिया जाता जितना दिया जाना चाहिए. महिला बारबार रोती है तो उसे नाटक मान लिया जाता है. उदास रहती है तो कहा जाता है कि यह है ही ऐसीजब देखो तब मुंह लटकाए रहती है. तनाव का अनुभव करती है तो आरोप लगता है कि यह काम बिगाड़ने वाली है. महिलाओं के इन मानसिक सवालों के लिए खुद महिलाएं ही नहींअगलबगल के लोग या वातावरण भी जिम्मेदार हो सकता हैइस बात पर भी सोचना चाहिए.

यहां बात संवेदनहीन बनने की नहीं है. सही बात तो यह है कि संवेदनशील होना गर्व की बात है. संवेदना जीवंतता की निशानी है और अपने आसपास जड़ लोगों का साम्राज्य हो तो हमें जीवतंता पर मोटी चमड़ी का थोड़ा आवरण चढ़ाना पड़ता है. जिन लोगों को हमारे आंसुओं की कद्र न होउन के लिए क्यों रोनाअपना लगावभावनाअनुकंपासहानुभूति या संवेदना एकदम कुपात्र को दान नहीं की जा सकती.

हमारी संवेदनशीलता हमारे ही सुख में रुकावट पैदा करने लगे तो वह हमारे लिए खराब बन जाती है. मानसिक समस्याएं बुरे या निर्लज्ज लोगों को सम झ में नहीं आतीं क्योंकि वे तनाव लेने में नहींतनाव देने में विश्वास करते हैंजो सरासर गलत है. उन के सामने अधिक संवेदनशील बनना खुद पर अत्याचार करना है. इतना भी संवेदनशील नहीं होना चाहिए कि जिस से जीवन में बहुत ज्यादा ऊबड़खाबड़ दिखाई देहमेशा पीड़ा ही होती रहे.

हर दुखी या गलत व्यक्ति अपने कर्म के हिसाब से भोगता है. अपवादस्वरूप मामलों के सिवा अब खुद के जलने का समय नहीं रहा. संवेदना की इस भावना को इस तरह व्यक्त करो कि मानसिक समस्याओं का तूफान आप की खुशियों और जीवन के उत्साह को तबाह न कर सके. बी सैंसिटिव बट बी केयरफुल.

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