जब तक कानून का सख्ती के साथ अमल न हो, तब तक अपराधियों के हौसले बुलंद ही रहते हैं. सही समय पर दी गई सख्त सजा ही अपराधियों के मन में भय पैदा करती है. हाल ही में इंडोनेशिया में दुष्कर्मियों के खिलाफ ऐसा सख्त कानून बनाया गया है, जो आजकल हर देश में चर्चा का विषय बना हुआ है.
16 दिसंबर, 2012 को दिल्ली में जो निर्भया कांड हुआ था, उस की गूंज दुनिया भर में पहुंची थी. निर्भया केस की ही तरह इंडोनेशिया में भी करीब 5 महीने पहले एक घटना घटी. मई, 2016 में 14 साल की एक लड़की के साथ 12 लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म कर के उस बच्ची की हत्या कर दी थी.
इस घटना के विरोध ने पूरे इंडोनेशिया में आंदोलन शुरू हो गया था. लोगों का कहना था कि उन के देश में दुष्कर्म के रोजाना करीब 35 मामले दर्ज होते हैं, जबकि हकीकत में इन की संख्या बहुत अधिक है. क्योंकि 90 प्रतिशत मामलों में पुलिस रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती.
आक्रोशित जनता दुष्कर्मियों के खिलाफ सख्त काररवाई करने की मांग कर रही थी, ताकि दुष्कर्मियों के मन में खौफ पैदा हो. राष्ट्रपति जोको विडोडो ने जब देखा कि जनता का गुस्सा शांत नहीं हो रहा है तो उन्होंने जनता को भरोसा दिया कि वह दुष्कर्मियों के खिलाफ नया कानून बनाएंगे.
राष्ट्रपति जोको विडोडो ने संसद में नए कानून का मसौदा पेश किया. उस मसौदे पर संसद में चर्चा हुई. जबरदस्त बहस के बाद 2 पार्टियों ने कानून के विरोध में वोट डाले. लेकिन विरोध के बजाय समर्थन में अधिक वोट पड़े, जिस से कानून संसद में पास हो गया. अब इस नए कानून के मुताबिक बच्चों का यौनशोषण करने वालों को कम से कम 10 साल की सजा देने के साथ उन्हें रासायनिक तरीके से नपुंसक बनाया जाएगा. उन की यौन आक्रामकता कम करने के लिए उन में महिलाओं वाले हारमोंस डाले जाएंगे.
इतना ही नहीं, उन के नाम भी सार्वजनिक किए जाएंगे, ताकि अन्य लोग भी उन के चरित्र के बारे में जान सकें. आरोपियों की गतिविधियों पर ध्यान रखने के लिए उन के शरीर पर एक चिप भी लगाई जाएगी. यह चिप उन की सजा पूरी होने के बाद भी लगी रहेगी. इस के अलावा नए कानून में गंभीर मामलों में दुष्कर्मी को मौत तक की सजा का भी प्रावधान रखा गया है.
इंडोनेशिया की संसद ने यह कानून बना जरूर दिया है, पर वहां की महिला आयोग और डाक्टरों का संघ इस कानून के पक्ष में नहीं है. महिला आयोग की अध्यक्ष एजरीना का कहना है कि दक्षिण कोरिया, पोलैंड, रूस और कुछ अमेरिकी राज्यों में भी इसी तरह के कानून हैं, पर वहां बच्चों के दुष्कर्म के मामलों में कमी नहीं आई है.
उन का कहना है कि यह सजा देने में पैसा बहुत खर्च होता है. यदि यही पैसे पीडि़तों की मदद पर खर्च कर दिए जाएं तो अच्छा रहेगा. वहीं डाक्टरों के संघ का कहना है कि किसी को नपुंसक बनाना उन के पेशेवर सिद्धांतों के खिलाफ है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी इस कानून पर दोबारा विचार करने की अपील की है.
इंडोनेशिया की तरह भारत में भी दुष्कर्म के रोजाना करीब 98 केस दर्ज होते हैं. इन में 95 प्रतिशत मामलों में दुष्कर्म करने वाले उन के अपने ही परिजन होते हैं. निर्भया कांड के बाद भारत में भी महिलाओं से जुड़े कुछ कानूनों में संशोधन किया गया था. उस के बाद भी दुष्कर्म के मामलों में कमी आती दिखाई नहीं दे रही.
कानून चाहे कितना भी सख्त बना दिया जाए, इस से अपराधियों पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता. इस की वजह यह है कि कोर्ट में केस सालों तक चलता है. इस दौरान पीडि़ता भी मानसिक रूप से परेशान रहती है. अपराधियों में यदि खौफ पैदा करना है तो केस का निपटारा जल्द होना चाहिए. त्वरित न्याय ही अपराधियों में कानून का भय पैदा कर सकता है.