1997 में शेखर सुमन के राजनीतिक हास्य व्यंग वाले टीवी शो ‘‘मूवर्स एंड शेकर्स’’ ने हंगामा मचा दिया था. उस वक्त शेखर सुमन ने साबित कर दिखाया था कि राजनीति जैसे गंभीर विषय पर भी रोचक व मनोरंजक कार्यक्रम पेश किया जा सकता है. लेकिन अब हालात बदल गए हैं. इन बदले हुए हालात में ‘‘मूवर्स एंड शेकर्स’’ जैसा कार्यक्रम बनाना आसान नहीं है. शायद इसी वजह से अब शेखर सुमन इसे ‘वेब’ पर लेकर आने की सोच रहे हैं.

खुद शेखर सुमन कहते हैं, ‘‘मैं ‘‘मूवर्स एंड शेकर्स’’ को भी लाना चाहता हूं. हो सकता है कि इसे मैं वेब पर ले आऊं. टीवी पर भी संभव है. लेकिन अब कुछ लोगों का धैर्य कम होता जा रहा है. उनका संयम खत्म हो गया है. अब वह सकारात्मक आलोचना भी नहीं सुन सकते.’’

समाज व लोगों में आए इस बदलाव पर शेखर सुमन ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से बात करते हुए कहा, ‘‘अव्वल तो यह बदलाव ही नहीं है. बदलाव वह होता है, जो अच्छी चीजें लेकर आता है. बदलाव अच्छी सीरत या अच्छी सूरत के लिए होता है. पर जो गिरावट आयी है, वह विभत्स है. जब किसी चीज के पीछे कोई सोच नहीं रहती है, तो वह चीजें सड़ने गलने लगती हैं. राजनीति की स्थिति भी कुछ ऐसी ही होती जा रही है. अब राजनीति में उस हैसियत के लोग नहीं रहे. पहले पढ़े-लिखे सुलझे इंसान थे, उन्हें पता था कि किस चीज की कितनी एहमियत है और वह किस काम को किस मंशा से कर रहे हैं. अब लोग चाहते हैं कि उनकी सिर्फ तारीफ की जाए. जब इस तरह के खुदगर्ज नेता आपके इर्दगिर्द पैदा हो जाएं, तो फिर ‘‘‘मूवर्स एंड शेकर्स’’ जैसा कार्यक्रम नहीं बन सकता.”

शेखर जी न आगे कहा, ‘‘मूवर्स एंड शेकर्स’’ को हम सकारात्मक सोच के साथ बनाते थे. पर जो कार्यक्रम बदलाव लाने की बजाय किसी की सोच में नफरत पैदा कर रहा है, तो ऐसा कार्यकम बनाने का फायदा नहीं.’’

 

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