‘शाहीनबाग‘ की तरह ‘किसान आन्दोलनकारियों’ पर लांछन लगाकर, नकली और लालची बताकर आन्दोलन को फेल करने का काम किया जा रहा है. जाति और धर्म की बात से अधिक महत्वपूर्ण है कि किस तरह से सरकार के खिलाफ उठती आवाज को दबा दिया जाये. ऐसे में सरकार के लिये ‘शाहीनबाग‘ और ‘किसान आन्दोलन’ में कोई फर्क नहीं रह गया है.दिल्ली की सडको पर आन्दोलन कर रहे किसान ठंड और डिप्रेशन जान गंवा रहे है. केन्द्र सरकार इनको किसान मानने के लिये तैयार नहीं है. किसानों को गुमराह मान रही है. सोशल मीडिया पर अन्नदाताओं को आतंकवादी, खालिस्तानी बताया जा रहा है. इनको चीन और पाकिस्तान से प्रेरित बताया जा रहा है. अच्छे खाने, रहने और पब्लिसिटी का भूखा बताया जा रहा. कुछ पैसों के लालच का भूखा बताया जा रहा. यह ठीक वैसे ही लांछन है जैसे दिल्ली के ‘शाहीनबाग‘ में नागरिकता कानून के खिलाफ धरना देने वालो पर लगाये गये थे. केन्द्र सरकार भले ही खुलकर किसानों को विरोध ना कर रही हो पर सरकार समर्थक प्रौपेगंडा टीम पूरी तरह से किसानों के औचित्य पर सवाल खडे करते रहे है.

23 दिसम्बर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसान दिवस पर कई घोषणायें की. पूरे देश में भाजपा षासित राज्यों में इस तरह के कार्यक्रम तेज कर दिये गये. जिससे इन कार्यक्रमों की चमक में किसान आन्दोलन को धुमिल किया जा सके. 28 साल के युवा किसान शुभम सिंह कहतें है ‘आज के समय में खेती करने वालों में युवाओं की संख्या सबसे अधिक है. जिसका कारण बेरोजगारी, जागरूकता और खेती के आधुनिक साधन है. युवा को लगता है कि 10-12 हजार की नौकरी करने की जगह पर अपने खेत में मालिक बनकर काम किया जाये. यह युवा मोदी सरकार के कृषि कानूनों की हकीकत को जानते है. यह कानून किसान विरोधी है. हम इसके विरोध को जारी रखेगे.‘

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35 साल के उमेश सिंह ने इस साल पुरानी धान गेंहू की खेती को छोडकर पपीता की खेती की है. वह कहते है हमें एमएसपी की गारंटी चाहिये. केन्द्र सरकार हमको बरगला नहीं सकती है. वह किसान आन्दोलन के खिलाफ कितना भी प्रचार कर ले हमें खेती का निजीकरण स्वीकार नहीं है. हमारे जैसे तमाम युवा इस आन्दोलन के समर्थन में खडे है. वाराणसी के रहने वाले अजय पटेल युवा है. अपनी खेती और किसानी के साथ सामाजिक कार्यो के प्रति भी सजग है. वह कहते है ‘कृषि कानून खेती पर कंपनी राज की तरह कब्जा करने वाले है. सरकार हमको बरगला नहीं सकती है. हम पूरी तरह से सजग है. अब खेती में भी युवाओं की संख्या अधिक है.

युवा किसान 30 साल के आशीष कुमार कहते है ‘कृषि कानून में खाद्यान के भंडारण को लेकर जो बदलाव किये गये है वह किसानों के लिये उचित नहीं है. इससे कारोबारियों में जमाखोरी बढेगी. उपभोक्ताओं को मंहगे दर पर सामान मिलेगा. किसान से सस्ते में खरीदकर भंडारण करके मंहगे में बेचा जायेगा. सरकार किसानों को बरगलाने का प्रयास कर रही है. अब किसान पढा लिखा है वह कानून के दांव पेंच को समझ रहा है. किसानों में बडी संख्या में युवा है. जो इस आन्दोलन की मजबूत रीढ है. सरकार के दांवपेंच को बेनकाब करने के लिये वह अपना अखबार भी निकाल रहे और सोशल मीडिया के जरीये जनता को सच बताने का काम भी कर रहे है.

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सरकार को किसान हितैषी बताने का प्रयास:
‘शाहीनबाग‘ में धरने के समय भी इसी तरह के लांछन लगाये जा रहे थे. बात जाति और धर्म की नहीं विरोध के उठते हुये स्वर की है. उसको दबाने के लिये सरकार एक जैसा ही व्यवहार करने लगी है. कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद किसान आंदोलन कानूनी खानापूर्ति में फंस गया. किसानों को सडक के साथ ही साथ कोर्ट में भी अपनी पैरवी करनी पडी. सरकार ने किसान आन्दोलन को दरकिनार करने के लिये पूरे देश में किसानों को लेकर अलग तरह का अभियान शुरू कर दिया. जिसमें किसान नेता कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चैधरी चरण सिंह के जन्मदिवस पर 23 दिसम्बर को भव्य आयोजन किया गया. किसानों की पूरानी योजनाओं का जोरदार प्रचार किया गया. जिससे पूरे देश को यह समझ आ जाये कि भाजपा की केन्द्र सरकार किसानों की कितनी हितैषी है. यह प्रचार का वह तरीका है जिसमें सच को झूठ साबित किया जा सके.

सरकार के लिये शाहीनबाग और किसान आन्दोलन में कोई फर्क नहीं है. जो लोग हिन्दू-मुसलिम की बात कह कर शाहीनबाग के आन्दोलनकारियों को खारिज कर रहे थे वह किसान आन्दोलन को देखकर हतप्रभ है. शाहीनबाग के समय जनता को लग रहा था कि सरकार हिन्दुत्व के एजेंडें के कारण शाहीनबाग की अनदेखी कर रही है. किसान आन्दोलन करने वालों के समय भी केन्द्र सरकार और उसकी पूरी प्रौपोगंडा टीम वैसा ही व्यवहार कर रही है. पुलिस और प्रशासन ने किसानों पर जाडे के मौसम में पानी भिगाने का काम किया. किसानों के रास्ते में बुलडोजर चलाये गये. सडको को खोद दिया गया. किसानों का तरह तरह से उत्पीडन शुरू किया गया. किसान आन्दोलन को देख कर जनता को पिछले साल सर्दियों के इन्ही महीनों का शाहीनबाग याद आ गया.

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किसानों को बदनाम करने की साजिश :
सबसे पहले तो किसानों को किसान मानने से इंकार किया. इसके बाद यह भ्रम फैलाया गया कि किसान आन्दोलन पूरे देश की जगह पंजाब, हरियाणा और पष्चिम उत्तर प्रदेश वाले ढाई प्रदेश का है. आन्दोलन करने वाले किसानों को देशद्रोही बताने के साथ ही साथ पाकिस्तान, चीन और खालिस्तान समर्थक बताया गया. किसानों के रहने खाने, कपडे, घडी पहनने, मोबाइल का इस्तेमाल करने और मंहगी कार से चलने पर सवाल उठाये गये. पूरे देश और किसानों को यह समझाने का काम किया गया कि एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य का सबसे अधिक लाभ हरियाणा और पंजाब के बडे किसान लेते है इस कारण यह परेशान है. अब देश भर के किसानों को यह लाभ मिलेगा.

किसानों के धार्मिक धुव्रीकरण का प्रयास भी किया गया. इसके तहत यह समझाया गया कि आन्दोलन करने वाले किसान नहीं आढतिया है. आढतियों का साथ उनके यहां काम करने वाले कर्मचारी दे रहे है. किसानों के खाने तक पर सवाल उठाये गयेे. किसान है तो पिज्जा, बर्गर क्यों खा रहे ? लंगर में खाना कैसे बन रहा. इसके बाद भी जब किसान अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हुये तो किसान संगठनों में फूटडालने का काम किया गया. केन्द्र सरकार के कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर और गृहमंत्री अमित शाह ने ऐसे किसान नेताओं से बात की जो किसान आन्दोलन का हिस्सा ही नहीं थे. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर भाजपा का छोटे से छोटा कार्यकर्ता किसान आन्दोलन के विरोध में बोलने लगे. किसानों को विपक्ष द्वारा गुमराह बताया जाने लगा.

सरकारी संसाधनो का प्रयोग :
केन्द्र सरकार और भाजपा ने अपने साधनों और प्रचारतंत्र के जरीये यह बताने का काम शुरू किया कि सरकार किसानों और खेती के हित में काम कर रही है. आन्दोलन करने वाले गुमराह और नासमझ है. पूरे देश के किसानों को किसान आन्दोलन के खिलाफ खडा करने के लिये जनसभाएं होने लगी. भाजपा वाले राज्यों की सरकारों ने किसानो के लिये चलाई जा रही सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार शुरू कर दिया. एक तरह से केन्द्र सरकार ने किसान आन्दोलन को झूठा और भ्रामक साबित करने के लिये हर स्तर पर काम शुरू कर दिया है. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट को भी पूरे मामलें में सामने ला खडा किया है.

दिल्ली में ही नागरिकता कानून के खिलाफ जब शाहीन बाग में धरना दिया गया तो उसको बदनाम करने के लिये इसी तरह से काम किये गये थे. आज वही काम किसान आन्दोलन को लेकर किया जा रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता और मैग्सेसे अवार्ड विजेता संदीप पांडेय कहते है ‘सरकार अपने विरोध को हर स्तर पर जाकर दबाना चाहती है. यह आवाज जो भी उठायेगा उसके साथ यही सलूक होगा. सरकार ने शाहीनबाग के समय भी तय कर लिया था कि उसे कानून में कोई बदलाव नहीं करना है. सरकार ने किसान आन्दोलन के समय भी यही तय कर रखा है कि उसे कृषि कानूनों को वापस नहीं लेना है. ऐसे में आन्दोलन करने वाले किसानों को बदनाम करने, उनके हौसले को तोडने का काम करना है. सरकार इसी तरह हर आवाज को दबाने का काम करेगी. चाहे भी जो उस आवाज को उठायें.’

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