3 अक्तूबर, 2016 की ढलती दोपहर, स्थान पश्चिमी साइबेरिया में इर्तिश नदी के किनारे बसा नगर खांती मांसीस्क का उग्रा टेनिस सेंटर, जहां कुछ ज्यादा ही चहलपहल थी, क्योंकि वहां 20 सितंबर से चली आ रही वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप के फाइनल मुकाबले हो रहे थे. दुनिया के कोने कोने से आए शतरंज के 3,500 से भी अधिक दिग्गज इस में भाग ले रहे थे.

अंडर 16 वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप के ताज के प्रत्याशियों में एक थी भारत की आकांक्षा हगवणे, जो पुणे के एक सब्जी विक्रेता श्रीनाथ हगवणे की इकलौती बेटी है. 16 वर्षीय आकांक्षा के आमतौर पर शांत और गंभीर चेहरे पर उत्कंठा के भाव छिपाए नहीं छिप रहे थे. उस ने कुछ समय पहले ही पोलैंड की अलीत्स्या स्लिविका को अपने 11वें और अंतिम मुकाबले में मात दी थी.

इस मुकाबले में 8 अंक ले कर नीदरलैंड्स की एनामाया कजारियान के साथ बराबरी कर चुकी थी. मंजिल नजर तो आ रही थी, लेकिन जीत और उस के बीच कुछ फासला अभी शेष था. आकांक्षा जहां स्लिविका से जीतीं, वहीं कजारियान ईरान की मोबीना अलीनासाब से हार गई. अंतिम तालिका में आकांक्षा ने अलीनासाब तथा रूस की पोलीना शिवालोवा से आधा अंक अधिक अर्जित कर बाजी मारी.

आकांक्षा को इस चैंपियनशिप के आरंभ में 12वां स्थान प्राप्त हुआ था, लेकिन 11 मुकाबलों में 9 अंक अर्जित करने वाली आकांक्षा ने अपनी विजय यात्रा के दौरान रूस की गलीना क्रपीविना, बल्गारिया की वेरा, तुर्की की सायनेन गुंडोगन, नीदरलैंड्स की एनामाया कजारियान, पोलैंड की ओलिविया कियोलबासा, चीन की याओ लैन और पोर्तो रिको की डानिटजा मैकारिनी को परास्त कर दिया. 2 मुकाबले अनिर्णीत रहे और केवल एक में आकांक्षा पराजित हुई. लेकिन 7वें मुकाबले में शिवालेवा से मिली पराजय को उस ने अपने हौसले की राह का रोड़ा नहीं बनने दिया और अगले 4 खेलों में काफी सूझबूझ और धीरज के साथ विजय पताका लहराई.

आकांक्षा इस प्रतियोगिता में 14, 16 तथा 18 आयुवर्गों में भाग लेने वाले 18 भारतीयों में स्वर्ण पदक जीतने वाली अकेली भारतीय रही. अब तक कुल 2,300 अंक प्राप्त कर के वह इंटरनैशनल वूमन मास्टर की श्रेणी में पहुंच गई है और उस का लक्ष्य महिला ग्रैंडमास्टर बनना है.

आकांक्षा कहती है, ‘‘यह मेरा पहला विश्व खिताब है. मैं जीतने की उम्मीद के साथ इस चैंपियनशिप में नहीं उतरी थी. मैं तो बस, हर मुकाबले में अपनी सर्वोत्तम कोशिश करना चाहती थी, अपना पूरा जोर लगा देना चाहती थी. रूस में जीत हासिल करने के बाद आकांक्षा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने प्रशिक्षक जयंत गोखले को दिया, जो पिछले 9 वर्ष से उन का मार्गदर्शन कर रहे हैं.’’

अगस्त से अक्तूबर 2016 के दौरान आकांक्षा ने इस विश्व खिताब के अतिरिक्त 2 और उल्लेखनीय सफलताएं भी हासिल कीं. श्रीलंका में आयोजित अंडर 16 कौमनवैल्थ चैंपियनशिप और कोलकाता में आयोजित अंडर 17 राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भी न केवल उस का प्रदर्शन जबरदस्त रहा, बल्कि उस ने स्वर्ण पदक भी अपने नाम कर लिया. रूस में मिली विजय की बदौलत अगले वर्ष दक्षिण अमेरिका में होने वाली वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप के लिए अब उस का सीधा चयन हो गया है. निजी जीवन में आकांक्षा बहुत शर्मीले स्वभाव की है, लेकिन शतरंज की बिसात और मुहरों को सामने पा कर उस में कमाल का बदलाव देखने को मिलता है. न केवल उस का आत्मविश्वास बल्कि कुछ कर गुजरने का जनून भी अपने परवान पर पहुंच जाता है.

आकांक्षा का जन्म 22 अगस्त, 2000 को हुआ. 7 साल की उम्र से ही आकांक्षा में शतरंज के प्रति रुचि उत्पन्न हो गई थी. आकांक्षा बताती है, ‘‘एक बार गरमी की छुट्टियों में मैं अपने भाइयों, गौरव और हर्षद के साथ टाइम पास कर रही थी कि मेरे पिताजी ने शतरंज की अपनी पुरानी बिसात निकाली और हमें खेल सिखाने लगे, क्योंकि हम बहनभाई बहुत झगड़ते थे और पिताजी को शायद लगा हो कि शतरंज से हम अधिक केंद्रित, सहनशील तथा एकाग्र हो सकेंगे. बस, यहीं से मेरी शतरंज यात्रा आरंभ हुई.

‘‘बचपन में मेरा और भी कई खेलों से परिचय हुआ, लेकिन शतरंज से मेरा विशेष लगाव बना रहा. आज भी मेरे पिताजी मेरी प्रेरणा हैं. वे स्वयं राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज और रैफरी रह चुके हैं. उन्होंने मुझे सपने देखने तथा उन सपनों को साकार करने के लिए अथक प्रयत्न करने की प्रेरणा दी है. मेरे प्रशिक्षक जयंत गोखले ने भी मुझ में विश्वास दिखा कर मेरे जीवन को नई दिशा दी है. मुझे सदा ही मेरी मां, दादी तथा शिक्षकों से बहुत प्रोत्साहन मिला, जिस से मुझे आगे बढ़ने की शक्ति मिलती रही है.’’

आकांक्षा के पिताजी कहते हैं, ‘‘आकांक्षा में काफी कम उम्र से ही शतरंज को ले कर गहरी ललक थी. मैं ने पहले आकांक्षा को जोसेफ डिसूजा अकादमी में प्रवेश दिलवाया तथा वहां उस की तरक्की देख कर गोखले सर के मार्गदर्शन में सौंप दिया. तब से आकांक्षा अपनी आयुवर्ग में जिला स्तर की प्रत्येक प्रतियोगिता में विजयी रही है. 2013 में एक ही वर्ष में अंडर 13, 15 और 17 के आयुवर्गों में चैंपियन बनने की अद्भुत उपलब्धि भी उसी के नाम दर्ज है.’’

वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप को याद करते हुए आकांक्षा के प्रशिक्षक जयंत गोखले कहते हैं, ‘‘आकांक्षा ने दबाव में न आ कर काफी धीरज, समझदारी तथा निश्चय के साथ अपने मुकाबले खेले और विजयी हुई. कुल साढ़े 5 घंटे तक चले अंतिम मुकाबले के लिए आकांक्षा ने पहले से ही काफी तैयारी की हुई थी. वास्तविक मुकाबला उसी तर्ज पर हुआ और समूचे अभ्यास का आकांक्षा को 90 चालों के लंबे अंतिम मैच में काफी फायदा हुआ. अगस्त और सितंबर में 2 बड़ी प्रतियोगिताएं जीतने की वजह से आकांक्षा का आत्मविश्वास पहले ही बुलंदी पर था.’’

आकांक्षा ने 2009 में पहली बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग लिया था. उस वर्ष वह 9 वर्ष से कम आयुवर्ग में छठे स्थान पर रही, लेकिन 2012 में आयोजित स्कूल नैशनल गेम्स में उस ने स्वर्ण पदक जीता और राष्ट्रीय सबजूनियर वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहीं.

2014 में एशियाई युवा शतरंज प्रतियोगिता में उन्होंने कांस्य पदक अर्जित कर पहली बार अंतर्राष्ट्रीय सफलता हासिल की. आकांक्षा का कहना है, ‘‘मैं ने इस प्रतियोगिता से बहुत कुछ सीखा. मुझे यह पता चला कि विदेशी प्रतिस्पर्धी अकसर किताबी नीतिनियमों के अनुसार नहीं खेलते, बल्कि अपनी अलग रणनीति स्वयं बनाते हैं, जिस से उन पर विजय पाना मुश्किल हो जाता है. इस के बाद मैं ने अपना खेल बेहतर करने पर अधिक करीब से ध्यान देना आरंभ किया और अधिक तैयारी करने लगी.’’

आकांक्षा आज भी प्रतिदिन 4 घंटे शतरंज का अभ्यास करती है. पढ़ाई के साथसाथ शतरंज के अभ्यास एवं क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए समय निकालना अपनेआप में चुनौती से कम नहीं है, पर आकांक्षा यह काफी योजनाबद्ध तरीके से, सहजतापूर्वक कर लेती हैं. इसीलिए उन के शिक्षक और शतरंज के प्रशिक्षक उन से काफी प्रसन्न रहते हैं.

अपने आदर्श नौर्वे के विश्व शतरंज चैंपियन मैग्नस कार्ल्सन के बारे में आकांक्षा का मानना है, ‘‘वे कभी परिवर्तन से नहीं डरते. इसीलिए खेल में हमेशा नई चालें, नई रणनीतियां अपनाते रहते हैं. वे खेल को आसान बना देते हैं.’’

आकांक्षा कहती हैं, ‘‘आज तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग है. हर दिन काबिल, हुनरमंद खिलाडि़यों का उदय हो रहा है. अंडर 13 का खिताब जीतने के बाद मुझ में आत्मविश्वास जगा. मैं ने जाना कि मेहनत से सबकुछ संभव है.’’               

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