उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर लालपुर गांव की रहने वाली देवकी देवी परेशान हैं. इस परेशानी की वजह यह है कि उन की बचा कर रखी गई मेहनत की कमाई एक झटके में रद्दी हो गई है. उन के बेटों को यह भी पता चल गया कि उन के पास कितना पैसा है. देवकी देवी कहती हैं, ‘‘हमें पैसा दांत से दबा कर बचाना होता है. कई बार पैसा बचाने के लिए हम बीमारी में दवा नहीं लेने जाते, त्योहार में नए कपड़े नहीं लेते और किसी करीबी तक को मुसीबत के वक्त उधार नहीं देते.

‘‘अब जब ये पैसे सब के सामने आ रहे हैं, हमारे रिश्ते खराब हो रहे हैं. लोग यह सोच रहे हैं कि मेरे पास पैसा था, पर मैं ने मुसीबत के वक्त उन को नहीं दिया.’’

इस तरह का अफसोस करने वालों में देवकी देवी अकेली नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में हर गांवशहर में ऐसी कई करोड़ देवकी हैं.

लालपुर तकरीबन 5 हजार की आबादी वाला गांव है. यहां पर हर जाति और धर्म से जुड़े लोग रहते हैं. किसी सामान्य गांव की ही तरह यहां के लोग भी मेहनतमजदूरी करने शहर जाते हैं और शाम को कुछ पैसे ले कर वापस अपने घर आते हैं. बड़े नोटों पर लगी पाबंदी के बाद शहरों में दिहाड़ी का काम मिलना बंद हो गया है. ऐसे में गांव से शहर जाने वाले ये लोग गांव में ही बेकार बैठे हैं. नतीजतन, रबी की फसल की बोआई अब धीमी पड़ गई है, क्योंकि किसानों के पास बीज, खाद और मजदूरी देने के लिए पैसे नहीं रह गए हैं. जैसेजैसे नोटबंदी की परेशानी बढ़ रही है, लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि काले धन का यह कैसा इलाज हो रहा है, जिस से सफेद धन वाले ज्यादा परेशान हो रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार अपने खिलाफ हुए जनमानस को समझ रही है, इसीलिए बंद किए गए बड़े नोटों को सरकारी संस्थानों में वापस लेने की समय सीमा बढ़ाई गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गाजीपुर की रैली में जुटी कम भीड़ से पार्टी को अपनी गलती का एहसास होने लगा है. जिस तरह से कई अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले पर उंगली उठा रहे हैं, उस से उत्तर प्रदेश में विरोधी दल खुश हैं. देश में 5 सौ और एक हजार के नोट अचानक बंद होने से अफरातफरी का माहौल है. जहां पहले लोग सुबह होते ही अपने कामधंधे पर निकल जाते थे, अब वे पैसे बदलवाने के चक्कर में घंटों तक बैंकों, डाकघरों और एटीएम की लाइनों लग रहे हैं. गांव ही नहीं, शहरों तक में लोग परेशानबदहाल हो रहे हैं.

गांवों से शहरों में आया एक बड़ा तबका भाजपा का समर्थक था. इस में शामिल नौजवानों को लग रहा था कि भाजपा के राज में उन का भला होगा. यह नौजवान तबका भी भाजपा के इस कदम से परेशान है. होस्टल में रहने वाले बच्चों के पास खाने के लिए खुले पैसे नहीं हैं. एटीएम काम नहीं कर रहे हैं. जो काम कर रहे हैं, वहां लंबीलंबी लाइनें लगी हुई हैं. ज्यादातर कारोबारी भी भाजपा के कट्टर समर्थक थे. सरकार के इस फैसले से वे भी बेहद परेशान हैं. उन को लगता है कि भाजपा के इस कदम से कारोबारी तबके को जमाखोर और काला धन रखने वाला साबित किया जा रहा है. सर्राफा कारोबारियों और प्राइवेट नर्सिंग होम पर इनकम टैक्स के छापों की खबरों ने कई दुकानों को बंद कर दिया है. शहरों में बड़े मौल, दुकानें सूनी हैं, तो सड़क किनारे लगने वाली फुटपाथ की दुकानें ग्राहकों की कमी में जल्दी ही बंद हो रही हैं.

सफेद धन वाले भी परेशान

बड़े नोटों पर केंद्र सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी से काला धन रखने वालों से कहीं ज्यादा वे लोग परेशान हो गए, जिन के पास खरी कमाई के रूप में बड़े नोट रखे थे, जिस पर कोई टैक्स देना ही नहीं था. वे सभी लोग भी गांव से ले कर शहर तक अपने काम को भूल कर नोट बदलने के लिए बैंकों के सामने लाइन लगाने लगे.

केंद्र सरकार को खुद इस बात का इल्म नहीं था कि नोटों पर लगी पाबंदी का असर लंबे समय तक चलेगा. सरकार मान रही थी कि नोटबंदी का असर 3 दिन में सामान्य हो जाएगा. पर 3 दिन बीतने के बाद भी जनता की परेशानी खत्म नहीं हुई, तो सरकार ने जरूरी कामों के लिए 14 नवंबर तक सरकारी सिस्टम में नोट का चलन जारी रखने का फैसला किया. बाद में इस समय सीमा को 24 नवंबर तक बढ़ा दिया गया.

गोवा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भावुक भाषण में देश की जनता से 50 दिन का समय मांगा और सबकुछ ठीक होने का भरोसा दिलाया.

गोवा में अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरी आंखों से भावुक  हो कर कहा, ‘‘मैं लोगों की परेशानी समझता हूं. देशवासी मुझे 50 दिन का समय दें. इस के बाद अगर कोई गलती निकल जाए, तो जिस चौराहे पर खड़ा करेंगे और जो सजा देंगे, उसे भुगतने को तैयार हूं.’’

नम आंखों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों का दिल जीतने की कोशिश की. जनता को भरोसा दिलाते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मैं कुरसी के लिए पैदा नहीं हुआ. देश के लिए मैं ने अपना घरपरिवार सबकुछ छोड़ दिया.’’

पर यह तो ममता बनर्जी भी कह सकती हैं और जयललिता भी. मनमोहन सिंह ने कौन सा अपने परिवार को खजाना बांट दिया? सवाल है कि कौन से चौराहे पर कौन उन्हें कैसी सजा दे सकता है? यह चलताऊ भाषण किसे बहकाने के लिए दिया जा रहा है?

जनता हुई परेशान

नोटबंदी पर जनता से जिस समर्थन की उम्मीद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को थी, वह पूरी होती नहीं दिखी, तो उन्हें भावुक हो कर जनता से अपील करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सौ और एक हजार के नोट बंद होने के बाद से देशभर की जनता आतंकित है.

शहरों की छोटी बस्तियों के ज्यादातर लोग अपने पास नकद पैसा ही रखते हैं. वहां के दुकानदार भी उन से नकद पैसे में ही हिसाबकिताब करते हैं. वहां के बैंकों की हालत तो सब से ज्यादा खराब है, क्योंकि न तो लोग ज्यादा पढ़ेलिखे हैं कि वे सारी कागजी कार्यवाही खुद कर लें और न ही बैंकों के मुलाजिमों के पास इतना समय है कि वे फार्म भर कर उन की मदद कर सकें.

गांव के लोग भी परेशान हैं. वहां तो बहुत सारे लोगों के बैंकों में खाते ही नहीं हैं. ज्यादातर जगह बैंक गांवों से 5 से 10 किलोमीटर दूर हैं. पुराने नोट बंद होने के बाद इन बैंकों में नए नोट समय से नहीं पहुंच सके हैं.

सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को जिस समय नोट बंद करने का ऐलान किया था, वह सीजन त्योहार, शादी, खेतों में फसल की बोआई वगैरह का था. ऐसे में जनता का परेशान होना स्वाभाविक था.

नोटबंदी के बाद बैंकों की पोल खुल गई. सरकार के इस दावे की कलई खुल गई कि गांवगांव में बैंक की सुविधाएं पहुंच गई हैं और गांव के लोग एटीएम सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं.

भारतीय किसान यूनियन, लखनऊ, उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता आलोक कुमार सिंह कहते हैं, ‘‘केंद्र की मोदी सरकार के अचानक बड़े नोट बंद करने के ऐलान से सब से ज्यादा असर गरीब और मजदूर तबके पर पड़ा है. गरीब लोगों के सामने रोजमर्रा की जरूरतों के लिए नकदी की कमी आ गई है. दिहाड़ी मजदूरों को काम मिलने में परेशानी होने लगी है. इस से ये लोग भूखे मरने के कगार पर पहुंच गए हैं.

‘‘इस के अलावा किसान रबी की फसल की बोआई के वक्त बीज, खाद, कीटनाशक दवा जैसी जरूरी चीजें नहीं खरीद पा रहे हैं. बोआई के ऐसे समय में किसानों को अपने खेत में होना चाहिए था, उस समय वे ग्रामीण बैंकों, जिला सहकारी बैंकों, सहकारी समितियों व दुकानों के बाहर लाइन लगा कर खड़े हैं. उन्हें खाद और बीज नहीं मिल पाए.

‘‘नोट बंद करने से पहले सरकार को इन बातों और सामाजिक हालात को ध्यान में रखना चाहिए था. भारत कृषि प्रधान देश है. खेती प्रभावित होने से इस का असर फसल की पैदावार पर पड़ेगा और देश में खाद्यान का संकट खड़ा हो जाएगा.’’

लखनऊ शहर से 40 किलोमीटर दूर लालपुर गांव की रहने वाली 55 साल की देवकी देवी की कहानी मार्मिक है. देवकी देवी ने अपनी जमीन के 3 हिस्से किए थे. 2 हिस्से उन के बेटों के नाम और एक उन के अपने नाम था.

देवकी देवी का बैंक में कोई खाता नहीं था. वे अपनी जरूरत के लिए पैसों को 5 सौ और एक हजार के नोट में बदल कर रखती थीं. यह पैसा वे अपनी बेटी को दे दिया करती थीं.

पिछले 3 साल के दौरान देवकी देवी ने 6 लाख रुपए जोड़ कर रखे थे. वे ये पैसे अपनी बेटी की बेटी की शादी में खर्च करना चाहती थीं. नोट पर लगी सरकारी पाबंदी के बाद देवकी देवी को यह बात अपने बेटों को बतानी पड़ी, जिस की वजह से उन के घर में कलह मच गई. देवकी देवी को समझ नहीं आ रहा कि वे अपने पैसों को कैसे बचाएं.

गांव में रहने वाले रामकुमार ने गेहूं की फसल को बेच कर पैसे घर में रखे थे. वे इस पैसे से आलू की बोआई करना चाहते थे. जब धान काट कर आलू की बोआई का समय आया, तो सरकार ने बड़े नोट बंद कर दिए.

रामकुमार ने अपने पास रखे 5 हजार रुपए बदलने के लिए बैंक के कई चक्कर लगाए, इस के बाद भी वे नोट नहीं बदलवा सके.

रामकुमार कहते हैं, ‘‘देना बैंक में लोगों ने कहा कि एक हजार से ज्यादा एक दिन में नहीं बदल सकते. नोट बदलने के लिए कई बार लाइन लगानी पड़ी. इस के बाद भी कभी नोट खत्म हो जाते, तो कभी बैंक का सर्वर खराब हो जाता. ऐसे में आलू की बोआई खराब हो गई.’’

मुसीबत में फंसी शादियां

बड़े नोट बंद होने के बाद एक परेशानी शादी वाले घरों में हो गई. जेवर खरीदने से ले कर कपड़े, खाना, ब्यूटीपार्लर और शगुन तक के पैसों का इंतजाम करना मुश्किल हो गया.

रायबरेली शहर के बाशिंदे अंकुर के घर में बहन की शादी थी. उस के लिए घर में अलगअलग जगहों से पैसा इकट्ठा किया गया था. इस में सब से ज्यादा 5 सौ और एक हजार के नोट ही थे. ये नोट बंद हो गए, तो अंकुर के परिवार की धड़कनें ही मानो बंद हो गईं.

अब मुसीबत यह थी कि शादी के लिए पैसों का इंतजाम कैसे हो? सरकार ने 4 हजार रुपए रोजाना बदलने को कहा है. इस के बाद बैंकों के अलगअलग नियम बन गए. एक पहचानपत्र पर 15 दिन में एक बार ही 4 हजार के नोट बदले जा रहे थे. ऐसे में शादी के लिए नई नकदी का इंतजाम करना मुश्किल हो गया.

अंकुर कहता है, ‘‘शादी की सारी खुशियां हवा हो गईं. घर वालों को अपने नातेरिश्तेदारों से पैसा लेना पड़ गया. बहन की शादी के लिए सालों से रखे पैसे एक ही झटके में रद्दी हो गए. हम कंगालों की तरह शादी करने को मजबूर हो गए. सरकार द्वारा लाख भरोसा देने के बाद भी शादी तक नोटबंदी की परेशानी से नजात नहीं मिली.

‘‘अगर यह फैसला शादी के सीजन के बाद होता या पहले हो गया होता, तो लोग इस तरह से परेशान नहीं होते. जब सरकार यह कह रही है कि इस नोटबंदी के लिए उस ने 6 से 10 महीने तक का समय सोचने और तैयारी करने में लगाया, तो ये बातें भी सरकार ने क्यों नहीं सोचीं?’’

पानी में बहाए शव

नोटबंदी की शिकार केवल शादी और खेत की बोआई नहीं हुई, बल्कि बीमारी और मरने के बाद होने वाले दाहसंस्कार तक के लिए लोगों को दरदर भटकना पड़ा.

रायबरेली जिले के डलमऊ शवदाह स्थल पर काम कर रहे परीदीन ने बताया, ‘‘एक शव को जलाने में 5 हजार रुपए तक की लकड़ी का खर्च आता है. ज्यादातर लोग 5 सौ के नोट ले कर आते थे. ऐसे में उन को लकड़ी नहीं मिलती थी. इस वजह से बहुत सारे लोगों ने शव को जलाने के बजाय गंगा नदी में बहाने का ही काम किया. जिस घाट पर रोज सैकड़ों की तादाद में शव जलाए जाते हैं, वहां गिनती के शव ही जलाए गए. ज्यादातर शव नदी में बहाए गए.’’

आज के समय में हर बड़ा नोट काला धन नहीं है. बहुत सारे लोग अपनी जरूरत के लिए ऐसे नोट बचा कर रखते हैं. जब एकाएक बड़े नोट बंद हो गए, तो उन का परेशान होना स्वाभाविक है.

शुरुआत में लोगों ने इस बात की खुशी जरूर दिखाई कि इस से काला धन प्रभावित होगा, पर जब खुद को परेशानियों से दोचार होना पड़ा, तो उन्हें सरकार के फैसले पर गुस्सा आने लगा. 

अपनों से बिगड़ते रिश्ते

काले धन की खोज में निकली सरकार को काले धन की जगह घर की औरतों के पास रखा वह पैसा जरूर मिल गया, जो उन सब ने अपनी मुसीबत के लिए बचा कर रखा था. पूरे देश में ऐसी औरतें और उन के गुप्त खजाने मिले. यह रकम बड़ी नहीं, पर अहम जरूर थी.

देवकी देवी की तरह दूसरी औरतों ने भी इस तरह से बचत के पैसे जोड़ कर रखे थे. पहले इस बात को छोटा समझ कर नजरअंदाज किया गया. जैसेजैसे औरतों का दर्द सामने आने लगा, इस बात की गहराई का अंदाजा सरकार को भी होने लगा.

औरतों की भावनाओं का दर्द समझते हुए सरकार को ऐलान करना पड़ा कि कोई भी औरत अपने खाते में ढाई लाख रुपए तक जमा कर सकती है. सरकार कोई पूछताछ नहीं करेगी.

कुछ भी हो, बड़े नोटों पर अचानक लगी इस पाबंदी ने घर के ढांचे को बुरी तरह से प्रभावित किया है. देश रुक गया है. सबकुछ ठप हो गया है. जो लोग, चाहे वे शहरों में रहते हैं या गांवों में, रोज कुआं खोद कर पानी पीते हैं, उन पर सब से ज्यादा गाज गिरी है. लोगों में यह डर बैठ गया है कि कहीं कुछ साल बाद फिर ऐसा हो गया, तो वे क्या करेंगे? वे तो अब मुसीबत के दिनों के लिए पैसा भी नहीं बचाना चाहेंगे.

वे नरेंद्र मोदी से लाख टके का सवाल भी पूछना चाहेंगे कि अगर इस नोटबंदी से काले धन पर रोक नहीं लगी, तो उन का अगला तुगलकी फरमान क्या होगा?

बिना तैयारी के उठाया बड़ा कदम

सरकार भले ही बारबार यह कह रही हो कि उस ने यह कदम सोचसमझ कर 5 से 10 महीने की तैयारी के बाद उठाया है, पर उस ने कोई तैयारी नहीं की थी.

आर्थिक बाजार के जानकार लोग कहते हैं कि सरकार ने समुचित उपाय नहीं किए, जिस से जनता परेशान हो रही है. अगर कुछ कदम सोचसमझ कर उठाए होते, तो हालात इतने खराब नहीं होते.

बाजार में बड़े नोट बंद होने के पहले 10 रुपए के सिक्के के बंद होने की हवा उड़ चुकी थी, जिस से दुकानदारों ने 10 रुपए के सिक्के लेने बंद कर दिए थे. कई जगहों पर लड़ाईझगड़ा तक हुआ था. इस के बाद भी सरकार ने बड़े नोट बंद करने से पहले सावधानी नहीं बरती. अगर सरकार कुछ ऐसे उपाय करती, तो जनता को परेशान नहीं होना पड़ता.

* बाजार में छोटे नोट के बजाय बड़े नोट ज्यादा चलन में थे. ऐसे में बड़े नोट बंद करने से पहले छोटे नोट चलन में लाने की कोशिश करनी चाहिए थी. अगर छोटे नोट चलन में होते, तो जनता को इतना परेशान नहीं होना पड़ता.

* 2 हजार का नया नोट किसी परेशानी को हल करने के बजाय उसे बढ़ाने वाला साबित हुआ. जिन लोगों ने अपने पैसों को बैंक में जा कर बदला, उन को 2 हजार का नया नोट मिला, जिस के बाजार में खुले पैसे नहीं मिले.

* सरकार ने 5 सौ का नया नोट कई दिन बाद जारी किया, जिस से छोटे नोट से खरीदारी मुमकिन नहीं हो सकी.

* बैंकों की एटीएम व्यवस्था पूरी तरह से फेल हो गई. नए नोट उस में रखे नहीं जा सके और सौ के नोट रखते ही खत्म होने लगे. बहुत कोशिश के बाद भी केवल 10 फीसदी एटीएम ही चले.

नहीं लगेगी नकली नोट पर रोक

सरकार ने यह दावा किया है कि बड़े नोट इसलिए बंद किए गए, क्योंकि इन के बहुत सारे नोट नकली थे. भारत के दुश्मनदेश ही आर्थिक तंत्र को बरबाद करने के लिए नकली नोट भेज रहे थे, सरकार ने नकली नोट को रोकने के लिए नए नोट जरूर जारी किए, पर नए नोट के नकली नोट नहीं तैयार होंगे, यह गारंटी लेने को सरकार तैयार नहीं है.

बैंक के लोगों से बात करने पर पता चला है कि नए नोटों की छपाई में ऐसा कोई फीचर नहीं है, जिस से यह कहा जा सके कि इन नोटों की नकल नहीं हो सकती.

सोशल मीडिया पर इस बात को ले कर प्रचार किया गया कि नए नोट में खास चिप लगी है. बाद में पता चला कि ऐसा कोई फीचर नए नोट में नहीं है. ऐसे में नए नोट के नकली नोट भी जल्द ही बाजार में होंगे. जो लोग काला धन रखते थे, उन के लिए एक हजार के नोट की जगह 2 हजार के नोट रखना आसान हो जाएगा.

राजनीतिक है यह दांव

केंद्र सरकार ने बड़े नोट बंद करने का दांव उस समय चला है, जब उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत कई राज्यों में जल्दी ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.

विधानसभा के यह चुनाव लड़ने के लिए भारी तादाद में पैसे खर्च करने पड़ते हैं. इन में बड़े नोट सब से ज्यादा होते हैं.

विरोधी दल इस बात का आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा ने दूसरे दलों के प्रचार को प्रभावित करने के लिए यह दांव चला है.

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में बड़े नोट के बंद होने से खलबली मची है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नोटबंदी को जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया.

बसपा प्रमुख और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती ने कहा कि मोदी सरकार ने गरीब, मजदूरों और किसानों की परेशानियों का ध्यान नहीं रखा.

नोटबंदी की शुरुआत में भाजपा को लग रहा था कि केंद्र सरकार का यह कदम उस के पक्ष में जाएगा. लेकिन जैसेजैसे लोग परेशान हो रहे हैं, भाजपा को भी लगने लगा है कि कहीं केंद्र सरकार का यह कदम बैक फायर न कर जाए.

 

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