अनार का रस स्वाद से भरा होता है. इस में औषधीय गुण भी होते हैं. अनार सेहत के लिए बहुत फायदेमंद और पोषक तत्त्वों से भरपूर फल माना जाता है. अनार में खासतौर से विटामिन ए, सी, ई, फौलिक एसिड और एंटी आक्सीडेंट पाए जाते हैं.
जलवायु
फलों के विकास व पकने के समय गरम व शुष्क जलवायु की जरूरत होती है. फल के विकास के लिए सही तापमान 38 डिगरी सेंटीग्रेड माना जाता है.
मिट्टी
अनार की खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. फलों की गुणवत्ता व रंग हलकी मिट्टी में अच्छा होता है.
किस्में
गणेश : इस किस्म के फल मझोले आकार के व बीज मुलायम गुलाबी रंग के होते हैं. यह महाराष्ट्र की मशहूर किस्म है.
ज्योति : फल मझोले से थोड़े बड़े आकार के चिकने व पीलापन लिए हुए लाल रंग के होते हैं. इस के बीज मुलायम व बहुत मीठे होते हैं.
मृदुला : फल मझोले आकार के चिकनी सतह वाले गहरे लाल रंग के होते हैं. दाने गहरे लाल रंग के, बीज मुलायम, रसदार व मीठे होते हैं. इस किस्म के फलों का औसत वजन 250-300 ग्राम होता है.
भगवा : इस किस्म के फल बड़े आकार के भगवा रंग के चिकने व चमकदार होते हैं. दाने आकर्षक लाल रंग के व बीज मुलायम होते हैं. अच्छा प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 30-40 किलोग्राम उपज हासिल की जा सकती है. यह किस्म राजस्थान व महाराष्ट्र में ज्यादा उगाई जाती है.
अरक्ता : यह एक ज्यादा उपज देने वाली किस्म है. फल बड़े आकार के मीठे, मुलायम बीजों वाले होते हैं. दाने लाल रंग के व छिलका चमकदार लाल रंग का होता है. अच्छा प्रबंधन करने पर प्रति पौधा 25-30 किलोग्राम उपज हासिल की जा सकती है.
कंधारी : इस के फल बड़े और ज्यादा रसीले होते हैं, लेकिन बीज कुछ सख्त होते हैं. अनार की अन्य किस्में रूबी, करकई, गुलेशाह, बेदाना, खोग व बीजरहित जालोर आदि हैं.
पौधे लगाने का समय
अनार के पौधों को लगाने का सही समय अगस्त से सितंबर या फरवरी से मार्च के बीच होता है.
गड्ढा खुदाई व भराई
पौध रोपण के 1 महीने पहले 60×60×60 सेंटीमीटर (लंबाई, चौड़ाई, गहराई) आकार के गड्ढे खोदें. गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 50 ग्राम क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिला कर गड्ढों को सतह से 15 सेंटीमीटर ऊंचाई तक भर दें. गड्ढे भरने के बाद सिंचाई करें, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए. उस के बाद पौधों की रोपाई करें. रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई करें.
पौधों की रोपाई
आमतौर पर 5×5 या 6×6 सघन विधि में बाग लगाने के लिए 5×3 मीटर की दूरी पर अनार की रोपाई की जाती है. सघन विधि से बाग लगाने पर पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ सकती है. इस में करीब 600 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाए जा सकते हैं.
सिंचाई
अनार एक सूखी फसल है. इस की सिंचाई मई से शुरू कर के मानसून आने तक करते रहना चाहिए. बारिश के मौसम के बाद फसलों के अच्छे विकास के लिए 10-12 दिनों पर सिंचाई करनी चाहिए. बूंदबूंद सिंचाई अनार के लिए बेहतर होती है. इस में 43 फीसदी पानी की बचत व 30-35 फीसदी उपज में बढ़ोतरी पाई गई है.
खाद व उर्वरक
पहले साल नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटेशियम सभी 125 ग्राम.
दूसरे साल नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम सभी 225 ग्राम.
तीसरे साल नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम क्रमश: 350 ग्राम, 250 ग्राम, 250 ग्राम.
चौथे साल नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम क्रमश: 450 ग्राम, 250 ग्राम, 250 ग्राम.
5 साल बाद 10-15 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद और 600 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस व 250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा देना चाहिए.
कीट व रोग
अनार का मुख्य कीट अनार बटर फ्लाई?है.
रोकथाम : साईपर मैथरिन 200 मिलीलीटर (रिपकार्ड) या मोनोक्रोटोफास 200 मिलीलीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.
उपज
अच्छी तरह से विकसित पौधा 60-80 फल हर साल 25-30 सालों तक देता रहता है. सघन विधि से बाग लगाने पर करीब 480 टन सालाना उपज हो सकती है, जिस से 1 हेक्टेयर से 5-8 लाख रुपए सालाना आमदनी हो सकती है. नई विधि से अनार उगाने में खाद व उर्वरक की लागत में महज 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती है, जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है.
– पिंटू लाल मीणा