सिविल हॉस्पिटल लखनऊ में टेस्टिंग डिपार्टमेंट में कार्यरत राजकमल उदास स्वरों में कहते हैं, ‘कोरोना ने मेरे हट्टे कट्टे दोस्त को तीन दिन में निगल लिया. वो मेरे साथ कोविड टीम का हिस्सा था. जिम जानेवाला, स्पोर्ट का शौक़ीन, सेहत के प्रति सतर्क और हमेशा हंसमुख दिखने वाले मेरे दोस्त ने कोरोना टेस्ट टीम का हिस्सा बन कर कितने ही लोगों में जीने की उम्मीद जगाई और खुद तीन दिन में सबकी उम्मीदें ख़त्म करके चला गया. पता ही नहीं चला कि कब कोरोना ने उसके फेफड़ों में पहुंच कर उसके श्वसन तंत्र को बुरी तरह जकड़ लिया. एक दिन तेज़ बुखार, दूसरे दिन खांसी और तीसरे दिन सांस में दिक्कत के साथ उसकी इहलीला ख़त्म हो गयी.’

कोरोना वायरस इंसान के रेस्पिरेटरी सिस्टम में दाखिल होकर उसके फेफड़ों को तबाह कर देता है और उसे मौत की दहलीज तक ले जाता है. कोविड-19 हमारे फेफड़ों का क्या हाल करता है, इसका एक डरावना उदाहरण कर्नाटक में देखने को मिला है. यहां 62 साल के एक मरीज के कोरोना संक्रमित होने के बाद फेफड़े किसी ‘लैदर की बॉल’ की तरह सख्त हो चुके थे.

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फेफड़ों का इतना बुरा हाल होने के बाद मरीज की मौत हो गयी. हैरान करने वाली बात ये है कि मरीज की मौत के 18 घंटे बाद भी उसकी नाक और गले में वायरस एक्टिव था. यानी संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद भी शव के संपर्क में आने से दूसरे लोग बीमार पड़ सकते थे.

ऑक्सफोर्ड मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर दिनेश राव का कहना है कि इस मरीज के फेफड़े कोरोना के कारण किसी लैदर की बॉल जैसे सख्त हो चुके थे. फेफड़ों में हवा भरने वाला हिस्सा खराब हो चुका था और कोशिकाओं में खून के थक्के बन चुके थे. शव की जांच से कोविड-19 की प्रोग्रेशन को समझने में भी मदद मिली है.

रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. राव ने शव की नाक, मुंह-गला, फेफड़ों के सरफेस, रेस्पिरेटरी पैसेज और चेहरे व गले की स्किन से पांच तरह के स्वैब सैम्पल लिए थे. RTPCR टेस्ट से पता चला कि गले और नाक वाला सैम्पल कोरोना वायरस के लिए पॉजिटिव था. इसका मतलब हुआ कि कोरोना मरीज का शव दूसरे लोगों को संक्रमित कर सकता है. हालांकि स्किन से लिए गए सैम्पल की रिपोर्ट नेगिटिव आयी.

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कोरोना से मरने वाले इस मरीज के शव की जांच परिवार की सहमति से ही की गई है. जब मरीज की मौत हुई तो उसके परिवार वाले या तो होम आइसोलेशन में चले गए या क्वारनटीन हो गए. वे डेड बॉडी के लिए दावा भी नहीं कर सकते थे.

डॉ राव ने कहा कि शव की जांच के बाद तैयार हुई मेरी यह रिपोर्ट अमेरिका और ब्रिटेन में दर्ज हुई रिपोर्ट्स से काफी अलग है. इसका मतलब हो सकता है कि भारत में देखे जाने वाले कोरोना वायरस की नस्ल दूसरे देशों से अलग है.

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भारत में ठण्ड और त्यौहार का मौसम शुरू होते ही लोग कोरोना के प्रति लापरवाह हो रहे हैं. जबकि ठण्ड, कोहरा और प्रदूषण कोरोना को और मजबूती दे रहा है. दिल्ली में ठण्ड बढ़ने के साथ ही कोरोना केसेस बढ़ने लगे हैं. बहुतेरे लोग अस्पतालों के लम्बे चौड़े खर्चों, डॉक्टरों की लापरवाही और घर सील किये जाने के डर के चलते बुखार खांसी होने पर ना तो कोई कोरोना टेस्ट करवा रहे हैं और ना ही डॉक्टर के पास जा रहे हैं. वे घर में ही अलग कमरे में रह कर बुखार के लिए पैरासिटामोल दवा का सेवन कर रहे हैं. साथ ही खांसी के लिए गर्म पानी का भंपारा ले रहे हैं. ऐसे में उनको कोरोना है या फ्लू इसका पता ही नहीं चल रहा है. घर के अन्य लोग जो उनके कांटेक्ट में हैं उनका बाहर के लोगों के बीच भी उठना बैठना है. जिसके चलते कोरोना को बढ़ने का अवसर मिल रहा है. कोरोना संक्रमित लोग हमारे आसपास घूम रहे हैं और हमें पता ही नहीं है. वायरस हर इंसान की इम्युनिटी पावर को देख कर हमला कर रहा है, किसी को कम तो किसी को बहुत ज़्यादा नुक्सान पहुंचा रहा है. इसलिए लॉक डाउन भले खुल गया हो, ऑफिस जाना शुरू हो गया हो, मेट्रो, ट्रेन, बसों ने रफ़्तार पकड़नी शुरू कर दी हो मगर ठण्ड के मौसम में कोरोना को लेकर हमें और ज़्यादा सतर्कता और सावधानी बरतने की ज़रूरत है.

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