सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोटबंदी को लेकर सरकार से जवाब तलब करना जरूरी हो गया था, एक महीने का लंबा वक्त गुजर जाने के बावजूद ग्रामीण स्तर से लेकर मेट्रो शहरों तक स्थिति सामान्य से परे मालूम पड़ रही है. किसी भी लोकतांत्रिक देश में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि उस देश के नागरिक को अपने पैसे निकालने में इतनी दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को एक महीने व्यतीत हो जाने के बावजूद नोटबंदी की समस्याओं से निजात नहीं मिल पाई है, जोकि नोटबंदी को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा उठाए जा रहे सवालात को बल प्रदान करते हैं. तीस दिनों का लेखा-जोखा देखा जाए तो काला धन प्रतिदिन निकलकर सामने आ रहा है, लेकिन जिस तरीके से छापेमारी के दौरान नई नोटों के बंडल बरामद हो रहे हैं, वह सरकार की नोटबंदी को लेकर सुनियोजित तैयारी न होने की दिशा में संकेत व्यक्त करते हैं.

दक्षिण के राज्यों में लगातार व्यापक स्तर पर काली कमाई का भंडाफोड़ हो रहा है, जिसमें अच्छे-खासे स्तर पर नई नोटों की खपत भी बरामद हो रही है. फिर इसे देखकर यही ख्याल आता है कि आखिर सरकार की खामी कहां रह गई कि इस कदर नई नोटों की खेप कालाबाजारी करने वालों तक पहुंच गई और आम जनता एक महीने बाद भी एटीएम और बैंकों की कतार में लगकर अपने पैसे के इंतजार में दिख रही है. जिस देश की आधी से अधिक जनता गांवों में निवास करती हो, और वहां पर शिक्षा और बिजली जैसी मूलभूत समस्याओं से दो-चार हो रही हो, वहां पर कैशलेस सिस्टम कैसे काम कर सकता है. यह सवाल अब भी विचार-विमर्श का मुद्दा बना हुआ है.

हमारे देश की शिक्षा पद्धति इतनी हाईटेक नहीं हुई है कि दूरदराज के गांव और कस्बों में निवास करने वाली जनता इन माध्यमों से रूबरू हो सके, जहां आज भी बिजली पानी का अभाव है, जिसकी वजह से संचार के उपयुक्त साधन भी उपलब्ध नहीं हैं कि वे आपने आप को इतना सजग कर सकें कि अगर वे कैशलेस इकोनमी सिस्टम से जुड़ जाएं तो उनका सुरक्षित लेन-देन हो सके. जब वे बैंकिंग सुविधा में जागरूकता के अभाव में गुमराह हो जाते हैं, फिर मोबाइल-वायलेट आदि से वे कैसे स्वच्छ तरीके से कैशलेस व्यवस्था में योगदान कर सकते हैं. नोटबंदी से छोटे उद्योग-धंधे और ग्रामीण क्षेत्रों के साथ शहरों के मध्यम वर्ग के कारोबारियों को अभी भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनका कारोबार प्रतिदिन की नकद आमदनी पर निर्भर होता है.

सरकार ने अभी तक लगभग तीस बार नोटबंदी के कानून को लेकर फेरबदल किया, जो इस बात का गवाह है कि नोटबंदी को लेकर सरकार की तरफ से पहले से व्यापक पहल की सरासर कमी थी, जो एक महीने बाद भी जाहिर हो रही है. किसान और आम आदमी मुसीबतों से पीड़ित नजर आ रहा है और सरकार कुछ दिन और समस्याएं होने की बात कह रही है. सुप्रीम कोर्ट का इस मसले पर सरकार से जवाब तलब करना स्वस्थ लोकतंत्र को सूचित करता है, क्योंकि कुछ फीसद लोगों के चक्कर में पूरे देश की आबादी को परेशानी में नहीं रखा जा सकता है.

विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में युवाओं की पीढ़ी भले देश की आबादी की लगभग 50 फीसदी हो, लेकिन देश में केवल 34 करोड़ लोग की पहुंच इंटरनेट तक है, विश्व में दूसरे स्थान पर स्मार्टफोन यूजर्स की संख्या होने के बावजूद इनमें से अधिकतर कभी-कभार इंटरनेट का उपयोग करते हैं. भारत में मोबाइल कनेक्शन धारकों की संख्या भले 2 करोड़ है, लेकिन इनमें से केवल लगभग पंद्रह फीसद के पास ब्राडॅबैंड की सुविधा उपलब्ध है. फिर स्वीडन, बेल्जियम और ब्रिटेन की बराबरी के लिए भारत को अभी व्यापक स्तर पर होमवर्क करने की जरूरत है.

अभी भारतीय अर्थव्यवस्था में दो फीसद डिजिटल भुगतान होता है, जिसे आगे बढ़ाने में काफी समय लग जाएगा. भारत में इंटरनेट के संजाल को और व्यापक स्तर से फैलाने की जरूरत है, देश के दूरदराज के क्षेत्र अभी भी इस अद्भुत खिलौने से वाकिफ नहीं हैं. 4जी का जमाना आ जाने के बावजूद भी इंटरनेट की धीमी गति गले की फांस बनी हुई है. विकसित देशों की तुलना में क्रेडिड कार्ड और डेबिट कार्ड की स्वैपिंग मशीनें भी भारत में काफी कम हैं, प्रति दस लाख जनसंख्या पर लगभग 850 मशीनें ही डिजिटल भुगतान के दौर में काफी सिद्ध नहीं हो सकती हैं.

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