राधिका की दादी तारा बाकी दादियों से एकदम अलग हैं. क्रूर, त्योरियां चढ़ी, हर वक्त नाक पर गुस्सा, बातबात पर चिल्लाना उन की आदत है. करीब 75 साल की तारा सरकारी स्कूल से रिटायर्ड प्रिंसिपल हैं. उम्र के इस पड़ाव में वे आज भी फिट हैं. सुबहशाम अकेले टहलने निकल जाती हैं. आमतौर पर तारा अकेले रहना ही पसंद करती हैं. बेटियां उन के साथ वक्त बिताना पसंद नहीं करती हैं. उन के बेटेबहू और पोतेपोतियां तो उन से ग्यारह इंच की दूरी पर रहते हैं. भरापूरा परिवार होने के बावजूद वे अकेली हैं. पति काफी समय पहले ही गुजर चुके हैं. खैर, उन के साथ भी तारा के कुछ खास अच्छे ताल्लुकात नहीं थे. इन सब के अलावा पड़ोसी भी उन से कम ही बतियाते हैं. पड़ोसी उन के घर के बाकी सदस्यों से बात करना पसंद करते हैं लेकिन तारा से बात करने में हर कोई असहज रहता है. ऐसा नहीं है कि तारा से इलाके के सारे लोग डरते हैं.
दरअसल, लोगों के इस रवैये के पीछे वजह है तारा का अजीबोगरीब रूखा स्वभाव. वे स्वभाव से बहुत चिड़चिड़ी हैं. बातबात पर उन्हें गुस्सा आ जाता है. गुस्से में वे क्या कह दें, वे खुद भी नहीं जानतीं. इसी आदत की वजह से उन्हें कोई पसंद नहीं करता.
तारा तो महज एक उदाहरण हैं. ऐसे कई घर हैं जहां दादीनानी बन चुकी सास आज भी हिटलर बन कर बैठी हैं. स्वभाव में रूखापन लिए असंवेदनशील बातें करने वाली सास आप को काफी घरों में देखने को मिल जाएंगी.
सब कुछ छिन जाने का डर
बेटों की शादी के बाद काफी महिलाओं के स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है. बहू के आने के बाद उन्हें अपनी सत्ता छिनती दिखती है जिस के चलते उन का बरताव अजीब सा हो जाता है. पलपल उन को डर सताने लगता है कि कहीं बहू घर में कब्जा न जमा ले? कहीं वह उन के बेटे को न बहका दे? कहीं बेटा हम से अलग न हो जाए? अगर बेटाबहू साथ खुश हैं तो ऐसे में उन्हें तनाव घेर लेता है कि आखिर वे खुश क्यों हैं? वे कहां जा रहे हैं? अगर वे अकेले कहीं बाहर जा रहे हैं तो सास को दौरे पड़ने शुरू हो जाते हैं. वे बातबात पर गुस्सा करने लगती हैं. बेटे को काबू में करने के लिए मर जाने और घर छोड़ जाने तक की धमकी दे डालती हैं जिस से घर में हर वक्त तनाव का माहौल बना रहता है और इसी वजह से पतिपत्नी के बीच आएदिन कलह होती है.
बेटियां भी काट लेती हैं कन्नी
बातबात पर टोकना किसी को पसंद नहीं होता, चाहे वह बेटी हो या फिर बहू. मां के सिरफिरेपन के चलते बेटियां भी मायके आना नहीं चाहतीं क्योंकि बेटियां भी मां की आदत से अच्छी तरह से अवगत होती हैं. ऐसी महिलाएं न सिर्फ अकेले रह जाती हैं, बल्कि बुढ़ापे में जब उन्हें सहारे की जरूरत पड़ती है तब वही बहुएं काम आती हैं, जिन को कभी उन्होंने ताने मारे थे और बहू के बेटे के साथ वक्त बिताने के नाम पर वे विचलित हो जाती थीं.
ऐसी महिलाओं की कोशिश रहती है कि वे सब से पहले पति और बेटे को काबू में करें. बेटे को पट्टी पढ़ाने की फिराक में रहती हैं जिस के चलते बेटा भी मां का अंधभक्त बन जाता है. इस सब के बीच बहू भी छटपटा उठती है. अगर बातबात पर झगड़े होने लगें तो बात बिगड़ते देर नहीं लगती. ऐसी सास न तो घर में कभी शांति रखती है और न ही बेटेबहू का घर चलने देती है. छोटीछोटी बातों का बतंगड़ बनाने, बेटेबहू के बीच झगड़ा करवाने और घर में अशांति पैदा करने में वह माहिर होती है. घर को शतरंज की बिसात पर चलाना ऐसी महिलाएं बखूबी जानती हैं.
क्या करें, जब सास हो ऐसी
हर किसी के हालात अलगअलग हैं और हालात के हिसाब से ही फैसले लिए जा सकते हैं. अगर घर का कोई बड़ा ऐसा है जो आप के रिश्ते को खराब करे या फिर बातबात पर ताना दे तो कोशिश करें कि मामले को प्यार से सुलझाएं. उन्हें समझाएं कि आप के इस व्यवहार के चलते घर के सदस्यों को परेशानी हो रही है. उन के रिश्तों पर आप के स्वभाव का असर पड़ा है. अगर बात समझ में आ जाए तो इस से बेहतर कुछ और नहीं हो सकता. लेकिन फिर भी अगर सामने वाला लड़ रहा है या तनाव पैदा कर रहा है तो आप शांत रहें. आप न उलझें क्योंकि अगर आप उलझे तो उस का असर धीरेधीरे आप पर भी पड़ता हुआ दिखाई देने लगेगा. अगर बात आप के काबू से बाहर चली जाए तो अच्छा होगा ऐसे शख्स से दूरी बना ली जाए.
अकसर देखा गया है कि जिन बहुओं या बेटियों को अपशब्द कहे जाते हैं, बातबात पर अपमानित किया जाता है आखिरी पड़ाव में वही बेटे और बहुएं काम आते हैं. कोशिश करें सामने वाले के स्वभाव को बदलने की. यह जानने की कोशिश करें कि आखिर क्या वजह है उन की बेरुखी की. हर कोई एकजैसा हो, यह भी तो संभव नहीं न. बात को टालमटोल कर जानें कि क्यों इतना तनाव है उन के मस्तिष्क में. हो सके तो मनोचिकित्सक के पास ले जाएं.
कुछ मामलों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर मामलों में सिर्फ अकड़ ही सामने आती है. सामने वाला उम्र में बड़ा है, लिहाजा वह अपनी ही चलाना चाहता है, चाहे वह सही हो या फिर गलत. हर मामले में वह खुद को सही साबित करने की जुगत में लगा रहता है. अपनी खुशी और स्वार्थ के चलते उन्हें गलत भी अगर सही लगे तो उस काम को वह 100 फीसदी पूरा करता है. लेकिन अगर उस के किसी छोटे से काम से भी किसी को खुशी मिल जाए तो उस काम से वह दूरी बना लेता है. सो, हिटलरटाइप सासों को सोचना चाहिए कि भले ही आज वे अपने हिटलरशाही व्यवहार से खुश हैं, बहू और बाकी घर वालों को अपने हिसाब से चला लें लेकिन आगे चल कर उन का यह रवैया न केवल उन्हें सब से अलगथलग कर देगा बल्कि उन की छवि को भी खराब करेगा.