6 साल की उम्र में ही ऐक्टिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाली कलाकार सरिता जोशी को लीड रोल निभाने का मौका 16 साल की उम्र में मिला. उन्होंने हिंदी, मराठी, गुजराती सभी भाषाओं में काम किया है. उन्होंने थिएटर से ऐक्टिंग शुरू की और आज भी वे टैलीविजन सीरियल, फिल्म और थिएटर सभी को समयसमय पर कर रही हैं. उन का मशहूर सीरियल ‘बा, बहू और बेबी’ है, जिस की वजह से वे हर घर में जानी गईं.

5 दशक से ज्यादा समय तक काम कर चुकीं सरिता जोशी को अभी भी लगता है कि उन्हें नई पीढ़ी से बहुतकुछ सीखना बाकी है. हर दिन उन का नया होता है. हर काम उन के लिए चुनौती है.

स्वभाव से नम्र और हंसमुख सरिता जोशी की शादी थिएटर डायरैक्टर प्रवीण जोशी के साथ हुई. उन की 2 बेटियां केतकी दवे और पूरबी जोशी हैं. दोनों ही ऐक्टिंग के क्षेत्र से जुड़ी हैं.

इन दिनों सरिता जोशी ‘सब टीवी’ के सीरियल ‘खिड़की’ में दक्षिण भारतीय महिला अम्मां का किरदार निभा रही हैं. पेश हैं, उन से हुई बातचीत के खास अंश:

सीरियल ‘खिड़की’ में आप का रोल क्या है?

इस में मैं पहली बार दक्षिण भारतीय औरत का किरदार निभा रही हूं. इस के लिए मैं ने काफी तैयारी की है. इस में हम दिखाना चाहते हैं कि हमारे मन की एक खिड़की होती है, जो दिमाग से चलती है. वह हमेशा खुली रखनी चाहिए. सही को अंदर आने दें और गलत के लिए खिड़की को बंद कर दें.

पहले और आज की टैलीविजन इंडस्ट्री में आप क्या फर्क पाती हैं?

आज इंडस्ट्री की मांग अलग है. पहले जो स्टार होता था, उस की जगह बन जाने के बाद उसे ज्यादा समय नहीं देना पड़ता था. चरित्र कलाकार और नए कलाकारों को ज्यादा समय दे कर अपनेआप को साबित करना पड़ता था, तब 13 एपिसोड बनते थे, एक समय के बाद शो खत्म हो जाता था. 6 घंटे से 9 घंटे के बाद शूटिंग भी बंद हो जाती थी, जिस से सभी कलाकारों को आराम करने का मौका मिलता था या फिर वे अपने परिवार की देखभाल कर पाते थे.

अब ऐसा नहीं होता. सभी को 10 से 12 घंटे काम करना पड़ता है, जो कई बार तकलीफ वाला होता है. कलाकार तनाव से भर जाते हैं. कई बार नींद कम होने से बीमार भी हो जाते हैं.

मेरे हिसाब से हर प्रोड्यूसर को यह समझना जरूरी है कि एक समयसीमा तय हो, ताकि सभी कलाकार बेहतरीन परफौर्मैंस दे सकें. किसी भी कलाकार के साथ कोई हादसा न हो. इस के अलावा अब काम खूब मिलता है. पैसा भी अच्छा मिल जाता है.

आप अपने किस किरदार को सब से ज्यादा पसंद करती हैं?

मैं ने अलगअलग तरह के तमाम किरदार किए हैं, लेकिन ‘बा, बहू और बेबी’ में ‘बा’ का किरदार, गुजराती फिल्म ‘गंगूबाई’ में गंगूबाई, फिर सकुबाई वगैरह सभी किरदार एकदूसरे से अलग और पसंदीदा हैं.

आप नई पीढ़ी के कलाकारों के साथ कैसे तालमेल बिठाती हैं?

नई पीढ़ी अच्छी है. वह किसी भी तरह की चुनौती लेने से पीछे नहीं हटती. टीम के सारे लोग मुझे खूब इज्जत देते हैं. सब मुझे ‘बेन’ या ‘बा’ बुलाते हैं. अच्छा लगता है कि मैं इस उम्र में भी काम कर रही हूं.

मैं ने आज तक जो भी काम किया, बहुत संतुष्टि मिली. हर तरह के अवार्ड मिले. लोगों का प्यार मिला. मुझे उन के साथ काम करने में कोई समस्या नहीं होती.

आप किसी रोल को किस तरह चुनती हैं?

मैं कहानी सुनने के बाद अपना रोल देखती हूं. मैं उस में अपनी कितनी छाप छोड़ सकती हूं, यह सोचती हूं. मैं हमेशा किरदार पर ध्यान देती हूं.

आजकल टैलीविजन पर सांप, बिच्छू, डायन, मक्खी और न जाने क्याक्या दिखाया जाता है. क्या आप को लगता कि टैलीविजन के शो ऐसे होने चाहिए?

अगर यह सब काल्पनिक तौर पर कहानी को मजेदार बनाने के लिए है, तो कुछ हद तक ठीक है. पर किसी को गुमराह करना या अंधविश्वास में जकड़ने के लिए दिखाया जाना गलत है, क्योंकि इस से किसी का घर उजड़ सकता है, कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है.

मुझे अगर इस तरह के धारावाहिक में काम करने के लिए बुलाया जाता है, तो मैं माफी मांगने के साथ हाथ जोड़ कर मना कर देती हूं. पैसे के लिए मैं कुछ भी नहीं करती. मैं मिडिल क्लास परिवार से हूं और बहुत मेहनत कर मैं यहां तक पहुंची हूं.

ऐसे नए कलाकारों को आप क्या मैसेज देना चाहती हैं, जो आएदिन ऐक्टिंग के लिए अपना शहर और गांव छोड़ देते हैं?

अपने काम से ही हर कोई ‘स्टार’ बनता है. यह किसी भी क्षेत्र में मुमकिन है. उस के लिए केवल ऐक्टिंग ही सबकुछ नहीं है. अगर आप में ऐक्टिंग की कूवत है, तो मेहनत करें, ट्रेनिंग लें, फिर अपना शहर छोड़ें. इस के बाद भी अगर कामयाब न हों, तो टूटे नहीं. कुछ और काम तलाश करें.

खाली समय में आप क्या करना पसंद करती हैं?

मैं अखबार, पत्रिकाएं, किताबें, कविताएं वगैरह पढ़ती हूं, गाने सुनती हूं, खासकर पुराने गीत. इस के अलावा मैं सुबह शाम थोड़ाबहुत टहल लेती हूं. 

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