‘जो लोग समाज में खलल डालते हैं, उन पर सख्त कार्यवाही करें. नक्सलवाद और सिमी के नैटवर्क को पूरी तरह खत्म करें. पर आतंकवाद के नए खतरे को सब से पहले देखना है, उस से निबटने की तैयारी कर लें. इनसानियत के दुश्मनों को हर हाल में खत्म करना है. जेलों की हिफाजत पर कड़ी नजर रखें.’

दीवाली के ठीक 4 दिन पहले 26 अक्तूबर, 2016 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ये लफ्ज खासतौर से बुलाई गई कलक्टर, एसपी कौंफ्रैंस में कहे थे. हां, उन्होंने यह नहीं बताया था कि आतंकवाद का नया खतरा क्या है और इस से कैसे निबटना है. लेकिन शिवराज सिंह चौहान को नजदीक से जाननेसमझने वाले अफसरों और लोगों के कान खड़े हो गए थे कि यह जरूर खतरे की घंटी है, जिस से होशियार रहने के लिए उन्हें नसीहत और मशवरा दिया जा रहा है.

इस के महज 5 दिन बाद ही भोपाल की सैंट्रल जेल में कैद सिमी यानी स्टूडैंट इसलामिक मूवमैंट औफ इंडिया के 8 कैदी जेल तोड़ कर भागे, तो सहज लगा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कलक्टर, एसपी कौंफ्रैंस में भाषण नहीं दिया था, बल्कि पेशेवर ज्योतिषियों की तरह एक होने वाली वारदात की भविष्यवाणी सी की थी.

इतमीनान से भागे

भोपाल की सैंट्रल जेल बहुत महफूज मानी जाती है, जिसे कई सर्टिफिकेट  भी मिले हुए हैं. हिफाजत के लिहाज से सिमी के कार्यकर्ताओं को यहां रखा गया था.

30 अक्तूबर, 2016 की देर रात कह लें या 31 अक्तूबर की अलसुबह वे आठों इस जेल को प्लास्टिक के मानिंद ढहा कर भाग निकले.

उन आठों कैदियों को जेल के हाई सिक्योरिटी वाले बी ब्लौक में रखा गया था. भागने के लिए उन्होंने पहले से ही योजना बना रखी थी, ऐसा कई वजहों के चलते लग नहीं रहा.

इस दिन रात को 2 बजे ड्यूटी की पाली बदली गई थी. दीवाली के त्योहार की खुमारी और थकान में डूबे मुलाजिमों को एहसास ही नहीं था कि बहुत जल्द जेल की साख पर बट्टा लगने वाला है.

मुलाजिमों को ड्यूटी संभाले अभी एक घंटा ही हुआ था कि वे कैदी मानो जादू के जोर से अपनेअपने बैरकों से बाहर आ गए. भागते हुए उन के रास्ते में जेल का गार्ड रमाशंकर यादव आड़े आया, तो उन्होंने उस की हत्या कर दी.

हत्या करने में उन्होंने जेल की थाली और गिलास तोड़ कर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया.

रमाशंकर यादव की हत्या के बाद एक दूसरा गार्ड चंदर तिरंथे आया, तो उन्होंने उस के हाथपैर बांध दिए और उस की जेब में रखी सीटी तोड़ दी, जिस से वह किसी को उन के भागने के बाबत आगाह न कर सके. चंदर के मुंह में उन्होंने कपड़ा ठूंसते हुए उसे न चीखने की भी धौंस दी थी.

बैरकों के बाहर आ कर उन कैदियों ने जेल की 28 फुट ऊंची दीवार साथ लाई चादरों की सीढ़ी बना कर पार की और दूसरी तरफ एकएक कर कूद गए.

शिवराज सिंह चौहान को रात के 3 बजे इस वारदात की खबर दी गई. इस के पहले जेल और पुलिस महकमे के आला अफसर फुरती दिखाते हुए अपनेअपने बिस्तर छोड़ कर जेल और पुलिस हैडक्वार्टर की तरफ दौड़ लगा चुके थे.

भागने के बाद उन कैदियों ने जेल से आजादी तो हासिल कर ली, पर अब कहां जाना या भागना है, इस की योजना उन्होंने नहीं बनाई थी. अभी तक सारा कुछ फिल्मी स्टाइल में बड़ी आसानी से हुआ था, जिस में सिवा रमाशंकर यादव के कोई अड़चन पेश नहीं आई थी.

नीम अंधेरे में उन्होंने बजाय मेन रोड के कच्चा रास्ता भागने के लिए चुना, जिस से किसी की निगाह में न आ सकें और ऐसा हुआ भी. कोई 10 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद वे आठों एकसाथ मनीखेड़ी गांव की चट्टानों पर जा पहुंचे, जबकि वे और भी दूर तक भाग सकते थे, लेकिन क्यों नहीं भागे, इस सवाल का जवाब दूसरे कई दर्जनों सवालों की तरह मिलना बाकी है.

इधर भोपाल में खासा हड़कंप मच चुका था. लोग फोन कर के एकदूसरे को बता रहे थे कि क्या कुछ हो चुका है. पुलिस, एटीएस और एसटीएफ के अफसर जेल पहुंच चुके थे. मीटिंगों का दौर जारी था, जिन में 8 भगोड़े कैदियों को ढूंढ़ने और घेरने की प्लानिंग की जा रही थी.

4 घंटे पुलिस वाले और दूसरी एजेंसियां भागमभाग करती रहीं. खोजी कुत्तों की मदद ली गई, जिस से यह और पता चला कि कैदी जंगल की तरफ भागे हैं. लिहाजा, वहां के नजदीकी और गांधीनगर, गुनगा थाना इलाकों के गांवों में अलर्ट जारी कर दिया गया.

अभी तक पुलिस की तरफ से कोई करिश्मा नहीं हुआ था. सुबह तकरीबन 8 बजे खेजड़ादेव गांव के कुछ लोगों के जरीए कैदियों के मनीखेड़ी गांव के आसपास होने की खबर मिली, तो पुलिस की गाडि़यां वहां पहुंचने लगीं. जब इतमीनान हो गया कि फरार कैदी इन्हीं पहाडि़यों में छिपे हैं, तो 10 बजे तक पुलिस वालों ने पूरी पहाड़ी को चौतरफा घेर लिया.

अब तक आसपास के गांव वाले भी इकट्ठा हो चुके थे. उन्होंने पुलिस अफसरों को बताया था कि वे लोग यानी कैदी पुलिस वालों को गालियां दे रहे थे और पाकिस्तान के हक में नारे भी लगा रहे थे. खेजड़ादेव गांव के सरपंच मोहन सिंह मीणा की मानें, तो उन्होंने ही सब से पहले इन कैदियों को नदी पार करते देखा था.

यों हुआ ऐनकाउंटर

खुद को पुलिस वालों से घिरा देख  कैदियों को अपने अंजाम का अंदाजा हो गया था. लिहाजा, उन्होंने पुलिस टीमों की तरफ पत्थर बरसाना शुरू कर दिए. उस वक्त सुबह के 10 बज चुके थे और सिमी के कैदियों के फरार होने की खबर जंगल की आग की तरह देशभर में फैल चुकी थी.

मनीखेड़ी की पहाड़ी पर क्या हो रहा है, यह कम ही लोगों को मालूम था कि कैदी घेर लिए गए हैं, जहां गांव वालों सहित पुलिस और एटीएस के जवानों के समूह दिख रहे थे. ये लोग किसी भी अनहोनी और वारदात से निबटने के लिए पोजीशन ले चुके थे. पहाड़ी पर चढ़ कर कैदी लगातार पथराव कर रहे थे. कुछ जवानों को इस से चोटें भी आईं.

सुबह साढ़े 10 बजे भोपाल नौर्थ के एसपी अरविंद सक्सेना ने वायरलैस सैट पर पुलिस वालों को हुक्म दिया कि वे कैदियों को मार गिराएं. इस से पहले पुलिस ने कैदियों से हथियार डालने को कहा था, पर वे नहीं माने, तो पुलिस की तरफ से फायरिंग शुरू हो गई और एक घंटे में आठों कैदी ढेर हो गए. पुलिस द्वारा चलाई गई ज्यादातर गोलियां कैदियों के सीने में लगी थीं.

कठघरे में जेल प्रशासन

भागने से ले कर मार गिराए जाने के दरमियान सबकुछ ठीक वैसा था नहीं, जैसा कि बताया जा रहा था. कैदी भागे और फिर मारे गए, लेकिन भागने की बात पर हर किसी ने सवाल किए, जिन के मुकम्मल जवाब शायद ही कभी मिल पाएं और यही वे सवाल या वजहें हैं, जो इस मुठभेड़ के साजिश होने की तरफ भी इशारा कर रही हैं.

कैदियों ने अपनेअपने बैरकों के ताले तोड़े नहीं थे, बल्कि चाबियों से खोले थे, जबकि ये चाबियां बैरकों से तकरीबन सवा किलोमीटर दूर बने जेलर के केबिन में जस की तस रखी थीं.

इस सवाल का जवाब जेल प्रशासन द्वारा यह दिया गया कि कैदियों ने प्लास्टिक की चाबियों का इस्तेमाल किया था. उन्होंने टूथ ब्रश से हर एक ताले की चाबी बना ली थी.

पर दूसरे सवालों का जवाब शायद ही कभी मिले कि जेल के पास की निगरानी के लिए जेलर के दफ्तर के पास जो खासतौर से केबिन बनवाया गया था, उस पर ड्यूटी दे रहा सिपाही कहां था?

उन कैदियों की निगरानी के लिए ही खासतौर से एसएएफ के जिन 4 जवानों की ड्यूटी लगाई गई थी, वे कैदियों के भागने के वक्त कहां थे? भागने के लिए कैदियों को 3 दीवारों को फांदना पड़ा था. उन्हें पूरा रास्ता साफ कैसे मिला और क्यों मिला? ड्यूटी दे रहे जवान कहां गायब हो गए थे?

दीवाली के त्योहार के चलते जेल के आधे मुलाजिमों को छुट्टी दे देना और शक पैदा कर रहा है, क्योंकि जेल तोड़ने का अंदेशा आईबी (इंटैलीजैंस ब्यूरो) जैसी एजेंसी जता चुकी थी.

एक जेल अफसर ने चिट्ठी लिखते इस बाबत प्रशासन को आगाह किया था, पर उस पर कोई कार्यवाही या पहल नहीं की गई. एक और यह सवाल भी  शक पैदा करने वाला है कि जेल के सीसीटीवी कैमरे कब से और क्यों बंद थे.

बातें और सवाल यहीं खत्म नहीं होते. उन कैदियों के पास से हथियार बरामद किए गए थे, वे कहां से आए, यह भी कोई नहीं बता पाया. जब वे कैदी लाश में तबदील हुए, तब उन के बदन पर जींस व टीशर्ट थे, हाथ में घडि़यां थीं, नए जूते थे, उन की दाढ़ी बनी हुई थी. यह सब कैसे हुआ? ये सारे सवाल अब धीरेधीरे दम तोड़ रहे हैं.

यह बात जरूर फौरी तौर पर मान ली गई कि जरूर जेल के कुछ मुलाजिम उन कैदियों से मिले हुए थे.

ऐनकाउंटर की यह घटना बहुत तेजी से घटी, जिस के तहत एडीजी सुशोमन बनर्जी और डीआईजी जेल मंशाराम पटेल को सस्पैंड कर दिया गया.

राज्य सरकार ने तुरंत केंद्र सरकार से गुजारिश की कि पूरे मामले की जांच एनआईए (राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी) से कराई जाए और तुरंत जांच का जिम्मा रिटायर्ड डीजीपी नंदन दुबे को सौंप दिया गया. लेकिन 5 दिन बाद ही ये फैसले बदल दिए गए.

बवाल कम मचा, तो एनआईए से जांच की गुजारिश ही राज्य सरकार ने केंद्र को नहीं भेजी और नंदन दुबे को भी हटा कर जांच का जिम्मा एक न्यायिक आयोग को सौंपते हुए उस का मुखिया रिटायर्ड जज एसके पांडे को बना दिया.

सियासत और समाज

8 घंटे चले इस ड्रामे में जब पुलिस वालें का रोल खत्म हुआ, तो उन की जगह नेताओं ने ले ली. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार जानकारी ले रहे थे. उन की चिंता जायज थी कि अगर आतंकी वाकई दूर भाग जाते, तो उन की छीछालेदार होती. सुबह 9 बजे ही वे केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को सारी जानकारी उन के मांगने पर दे चुके थे.

कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने यह पूछते हुए की कि पहले खंडवा से आतंकी भागे, अब भोपाल सैंट्रल जेल से, जांच होनी चाहिए कि यह किस की मिलीभगत है? क्या वे किसी योजना के तहत भगाए गए?

आम चर्चा और सोशल मीडिया पर हर कोई दिग्विजय सिंह के इस बयान पर नाराज दिखा. यही इस ड्रामे का क्लाइमैक्स माना जाना चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ. हर किसी ने उन्हें मुसलिमों और आतंकियों का हिमायती माना. रहीसही कसर असउद्दीन ओवैसी ने यह शक जताते हुए पूरी कर दी कि ये कैदी विचाराधीन यानी अंडर ट्रायल थे, उन्हें किस बिना पर मारा गया है.

इस के बाद कई नेताओं, जिन में बसपा प्रमुख मायावती भी शामिल हैं, ने भी इस ऐनकाउंटर पर एतराज जताया. लेकिन जनता की अदालत ने इस मुठभेड़ को गलत तरीके से किया गया अच्छा काम करार दे दिया था. शिवराज सिंह चौहान को हीरो बना दिया गया था, जो मारे गए हवलदार रमाशंकर यादव को शहीद का दर्जा देते हुए उस के घर वालों को हिम्मत बंधाने और उस की अर्थी को कंधा देने पहुंचे व इनाम की रकम भी बढ़ा दी थी.

इतना ही नहीं, मुठभेड़ में शामिल पुलिस वालों और गांव वालों को भी 40 लाख रुपए के नकद इनाम का ऐलान कर दिया गया, जो उन आतंकियों के सिर पर रखा गया था.

मुद्दे की बात पर गफलत

इस में कोई शक नहीं कि इस मुठभेड़ से शिवराज सिंह चौहान हीरो बन कर उभरे हैं और लोगों की सोच यहीं तक सिमट कर रह गई है कि आखिर इस में हर्ज क्या है? यानी लोग पुलिस की अदालत को मंजूरी दे रहे हैं, तो यह बात उन्हीं के भविष्य के लिहाज से खतरनाक भी साबित हो सकती है.

यह हिंदुत्व का करंट ही था कि मध्य प्रदेश के लोगों ने यह भी मान लिया कि चूंकि वे सिमी के कार्यकर्ता थे, मुसलिम थे, देश के दुश्मन थे, इसलिए उन्हें यों मारना नाजायज बात नहीं.

यह वक्ती तौर का जोश भर लगता है कि कल को पुलिस वाले अगर चौराहों पर इसी तर्ज पर इंसाफ करने लगेंगे, तो क्या उस पर भी हां की मुहर लोग लगाएंगे? और जब फैसला पुलिस को ही करना है, तो अदालतों की जरूरत क्या?

जाहिर है कि यह मुठभेड़ लोगों के जज्बातों और जोश की बलि चढ़ गई है, जो सरकार से सवाल नहीं पूछ रहे हैं, बल्कि समर्थन कर रहे हैं.

यह समाज और सियासत का वह दौर है जिस में आम लोग हिंदुत्व और राष्ट्रप्रेम में फर्क नहीं कर पा रहे हैं. अब व्यापम महाघोटाले की तरह सालोंसाल जांच चलती रहेगी. कुछेक और मुलाजिम, अफसर सस्पैंड होंगे, जिन्होंने इन कैदियों की मदद की, पर वे गद्दार करार नहीं दिए जा रहे हैं, क्योंकि उन से और उन जैसों से किसी को किसी किस्म का खतरा अभी महसूस नहीं हो रहा. देशभक्ति, हिंदुत्व का जुनून लोगों से काफीकुछ छीन रहा है, जिस के तहत दिग्विजय सिंह की यह दलील दम तोड़ चुकी है कि ये कैदी किसी साजिश के तहत भगाए तो नहीं गए थे.

आम लोगों की निगाह में ऐनकाउंटर का यह तरीका अगर कारगर है, तो बेहतर यह होगा कि देश की तमाम जिलों में बंद आतंकियों के अलावा दूसरे मुजरिमों को भी इसी तरह मार गिराने की मंजूरी दी जाए, जिस से चुटकियों में इंसाफ हो जाता है.                  

ये भी हैं शक की वजहें

बात भले ही अंत भला तो सब भला की तर्ज पर खत्म हो रही है, लेकिन शक को बढ़ावा देने और तमाम बातें अभी भी वजूद में हैं. मसलन, ऐनकाउंटर के बाद एक वीडियो वायरल हुआ, जिस में साफ दिख रहा है कि पुलिस वाले मरे हुए आतंकियों पर नजदीक से गोली दागते हुए कहते जा रहे हैं कि जल्दी मारो, एसपी साहब आने वाले हैं. यह वीडियो न्यूज चैनलों ने दिखाया, तो सरकार और पुलिस महकमे को कोई जवाब या सफाई नहीं सूझी.

दूसरा गड़बड़झाला तब सामने आया, जब एटीएस आईजी संजीव शमी ने यह कहा कि आतंकियों के पास हथियार नहीं थे, जबकि आईजी योगेश चौधरी ने साफसाफ कहा था कि आतंकियों ने46 राउंड फायर किए थे. बकौल योेगेश चौधरी, ‘‘आतंकियों ने फायरिंग की थी, जिस की जवाबी कार्यवाही में ऐनकाउंटर हो गया. आतंकियों के पास से कट्टों के अलावा धारदार हथियार भी बरामद हुए.’’

इन में से कोई एक तो गलत या झूठ बोला. क्यों बोला, इस की जांच भी जरूरी है, क्योंकि ये दोनों ही जिम्मेदार अफसर हैं.

एक और अहम वजह चंदर तिरंथे का दिया गया वह बयान है कि कैदियों द्वारा बांधने के तकरीबन 15 मिनट बाद जेल के दूसरे मुलाजिमों ने उसे खोल दिया था यानी महज 15 मिनट में यह कैदी जेल की दीवारें पार कर चुके थे, जो कतई मुमकिन नहीं.

सिमी और उस का नैटवर्क

सिमी यानी स्टूडैंट इसलामिक मूवमैंट औफ इंडिया  का गठन साल 1977 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. इस का मकसद भारत में पसर रही पश्चिमी संस्कृति को खत्म करना और भारत को इसलामिक देश बनाना है. साल 2001 में पोटा कानून के तहत सिमी पर पाबंदी लगाई गई थी, जो अभी भी बरकरार है.

यों तो सिमी के तार और ताल्लुकात देशभर में फैले हुए हैं, पर उस काअसर और आतंक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के बाद मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा है. मध्य प्रदेश में सिमी के सब से ज्यादा कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए हैं.

संप्रग सरकार ने पोटा कानून खत्म कर दिया, लेकिन मध्य प्रदेश समेत गुजरात और महाराष्ट्र में राज्य सरकारों की गुजारिश पर इस पर पाबंदी जारी रही. सिमी का महासचिव सफार नागौरी इस वक्त अपने संगठन का मुखिया है और अभी भी जेल में बंद है.

पुलिस की मानें, तो साल 2001 में पुणे और कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों और साबरमती ऐक्सप्रैस ट्रेन में हुए बम धमाकों में सिमी का ही हाथ था. ऐसे कई आरोप सिमी पर हैं. सिमी के तार तमाम अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं, जिन में जमात ए इसलाम और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन भी शामिल हैं.

गुजरात में हुए साल 2002 के दंगों में पुलिस भी सिमी का हाथ बताती रही है. कई राज्यों की यूनिवर्सिटियों में सिमी की अच्छी पैठ है और उत्तर प्रदेश के कानपुर, अलीगढ़, लखनऊ, आजमगढ़, रामपुर और मुरादाबाद शहरों में उसे लोकल लोगों का समर्थन मिला हुआ है.

भोपाल की मुठभेड़ में जो आतंकी मारे गए, उन पर कई मुकदमे चल रहे थे.

अब्दुल मजीद- बम बनाने में माहिर अब्दुल मजीद उज्जैन के महिदपुर का बाशिंदा था और पेशे से इलैक्ट्रिशियन था. साल 2014 में उसे गिरफ्तार किया गया. अब्दुल मजीद बम बनाता था और सप्लाई भी करता था.

मोहम्मद अकील- खंडवा का रहने वाला मोहम्मद अकील साल 2012 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले से गिरफ्तार किया गया था.

मोहम्मद खालिद- महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के बाशिंदे मोहम्मद खालिद को साल 2013 के आखिर में मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के सेंधवा कसबे से गिरफ्तार किया गया था.

खंडवा जेल से फरार मोहम्मद खालिद ने पूछताछ में माना था कि वह देश के उस समय के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और उन की बेटी के कत्ल की योजना बना रहा था.

मेहबूब गुड्डू- खंडवा का रहने वाला मेहबूब गुड्डू मध्य प्रदेश सिमी का चीफ था. साल 2009 में उसे एक तिहरे हत्याकांड का आरोपी बनाया गया था. वह साल 2010 में हुए अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट का भी आरोपी था. इलजाम यह भी है कि मेहबूब गुड्डू साल 2011 में रतलाम के एटीएस के हवलदार के कत्ल में भी शामिल था.

जाकिर हुसैन- जाकिर हुसैन खंडवा की झुग्गी बस्ती का बाशिंदा था. इस के दूसरे नाम विक्की डौन और विनय कुमार भी थे. जाकिर पर कई डकैतियों के आरोप थे. भोपाल में साल 2010 में हुई मणप्पुरम गोल्ड डकैती का भी वह आरोपी था.

जाकिर हुसैन को साल 2011 में मध्य प्रदेश एटीएस ने गिरफ्तार किया था. बाद में छूटने पर उस ने तेलंगाना में भारतीय स्टेट बैंक की करीमनगर शाखा से 46 लाख रुपए लूटे थे. इस के बाद उसे राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था.

अमजद खान- खंडवा के रहने वाले अमजद खान के भी कई नाम थे. उस पर भाजपा नेता प्रमोद तिवारी पर जानलेवा हमला करने समेत कई बैंक डकैतियों के भी आरोप थे. उसे भी राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था.

मोहम्मद सालिक- खंडवा के गुलशन नगर का रहने वाला मोहम्मद सालिक भी राउरकेला से गिरफ्तार किया गया था. उस पर भी कई तरह के आरोप दर्ज थे.

मुजीब शेख- मुजीब शेख पर साल 2008 के आजमगढ़ के बम ब्लास्ट में शामिल होने का आरोप था. उसे साल 2011 में जबलपुर से गिरफ्तार किया गया 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...