बौलीवुड के मशहूर गायक व संगीतकार लेजली लेविस ने संगीत जगत में अपनी एक अलग उपस्थिति दर्ज करा रखी है. मशहूर संगीतकार ए आर रहमान की तर्ज पर लेज़ली लुइस ने आज तक एक ही तरह का संगीत नहीं परोसा. लेज़ली ने पौप संगीत से शुरूआत कर मैलोडी, जैज सहित हर तरह का संगीत परोसा. उन्हे एमटीवी के ‘एसिया व्यूवर्स च्वाइस अवार्ड’ के अलावा ‘कोलोनियल कंजिन्स’’ के लिए ‘‘यू.एस. बिलबोर्ड व्यूवर्स च्वाइस अवार्ड’ से नवाजा जा चुका है.

लेजली लेविस ने ए हरिहरण के साथ ‘कोलोनियल कंजिस’ पेश कर जबरदस्त शोहरत बटोरी. उसके बाद वह ‘कोक स्टूडियो’ से जुड़े. फिर कुछ अलग तरह का संगीत बनाने लगे. उन्होने जिंगल्स बनाए. फिल्मों के अलावा प्रायवेट अलबमों के लिए संगीत गढ़ा व कुछ गाया भी. उनका दावा है कि अभी तक उन्होंने अपना संगीत बनाया ही नहीं है. इतना ही नहीं लेज़ली लुइस पहले भारतीय संगीतकार हैं, जिन्होने एक हॉलीवुड फिल्म के लिए अंग्रेजी गीत गाया है.

मजेदार बात यह है कि लेजली लेविस के पिता स्व. पी. एल राज अपने वक्त में बौलीवुड के मशहूर नृत्य निर्देशक थे. मगर लेज़ली ने संगीत को अपनाया. उनकी गिनती बेहतरीन गिटार वादकों में भी होती है.

फिलहाल वह अपने नए गाने ‘‘तू है मेरा’’ को लेकर सुर्खियों में हैं. इस गीत को लिखने के साथ ही इसे संगीत से भी संवारा है. जबकि इस गीत को स्वरबद्ध किया है काव्या जोन्स ने.

प्रस्तुत है उनसे हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश…

आपके पिता पी.एल राज मशहूर नृत्य निर्देशक थे.पर आपने संगीत को कैरियर बनाया?

-आपने एकदम सही फरमाया. वास्तव में मुझे बचपन से ही अलग अलग तरह का संगीत सुनने का शौक रहा है. मैं बचपन से ही ‘द बीटल्स’,‘जिमी हेंड्रिक्स’ और ‘एरिक क्लैप्टनली’ से बहुत प्रभावित रहा हूं. इसके अलावा मुझे गिटार बजाने का भी शौक रहा है. इस तरह मेरा रूझान संगीत की तरफ ही हमेशा रहा. मैने कैफे रॉयल, ओबेरॉय टावर्स, मुंबई में गिटार बजाया और कल्याणजी-आनंदजी, लक्ष्मीकांत -प्यारेलाल, आर.डी. बर्मन और लुइस बैंक्स के साथ गाने रिकॉर्ड किए.

वैसे बतौर गायक व संगीतकार मैने कैरियर की षुरूआत 1987 में जिंगल्स से की थी. और कई पुरस्कार अपनी झोली में डाल लिए. मैने दूध-दूध-दूध (पियो फुल ग्लास), मैंगो फ्रूटी फ्रेश एंड जूसी, थम्स अप टेस्ट द थंडर, संतूर संतूर, आदि जैसे कुछ प्रसिद्ध जिंगल बनाए. मैने आशा भोंसले के अलबम ‘राहुल एंड आई’ को रीमिक्स किया और जानम समझा करो, ओ मेरे सोना, पिया तू-अब तो आजा जैसे कई गाने तैयार किए.

मैंने ‘परी हॅूं मैं’ में सुनीता राव,‘‘बॉबे गर्ल’ में अलीशा चिनाय, ‘पल’ में के के का गवाया. मैने ही आशा भोसले से पौप सांग ‘जानम समझा करो’ गवाया. इसके अलावा ‘मेरी नींद’,‘गोरी’ और ‘आ जा मेरी जान’ जैसे कई सफल गीतों को संगीत से संवारा.

मैंने हिंदी फिल्मों ‘मेला’ व ‘जाहद’ और तमिल फिल्मों मोधी विलायडु और चिक्कू बुक्कू को संगीत से संवारा. फिर 1992 में मैने ए हरिहरन के साथ ‘‘कोलोनियल कजिंस’’ में जोड़ी बनाकर जबरदस्त सफलता हासिल की. फिर मैने ‘कोक स्टूडियो’ में नया प्रयोग किया.

जब कोलोनियल कजिंससे आपकी अच्छी पहचान बन गयी थी, तो फिर कोक स्टूडियोके पीछे आपकी क्या सोच थी?

-मैने किसी के घर पर गिटार नही देखा. मगर ‘कोक स्टूडियो’ के बाद मैने एक दिन ओलेक्स पर एक युवा लड़के का विज्ञापन देखा-‘‘मैने अपनी गिटार बेच दी.’’ इससे समझ में आया कि उसके घर पर गिटार आयी थी. इसका अर्थ यह हुआ कि हमने ‘काक स्टूडियो’ से ऐसा संगीत बनाया, जिससे युवा पीढ़ी जुड़ी. उसने वाद्य यंत्रों की कद्र करना सीखा.

सच मानिए ‘कोक स्टूडियो’ से युवा पीढ़ी और खासकर कालेज में पढ़ने वाले लड़के व लड़कियां जुड़े. उन्होने गिटार, ड्म्स,बांसुरी,तबला आदि बजाना सीखने लगे. लोगों ने कई तरह के वाद्ययंत्र खरीदे. तो युवा पीढ़ी ने फिर से अपने भारतीय संगीत को समझा व अपनाया,. जबकि कोक स्टूडियो में भी विदेषी संगीत का मिश्रण है. तो लोगों को ‘कोक स्टूडियो’ में इंटरनेशनल के बहाने भारतीयपना भी मिला.

इसमें हमने भारतीय व वेस्टर्न गायकों को एक साथ गंवाया. जब कोक स्टूडियो भारत में आया,तो उसने नई पीढ़ी को नया जोश दिया. नया संगीत दिया.

कोक स्टूडियोसे आपको किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली थी?

-जब कोक स्टूडियो पहले वर्ष रिलीज हुआ,तो सोनी म्यूजिक पर इसकी सीडी प्लेटिनम डिस्क थी.यह सिर्फ आडियो सीडी थी,वीडियो नहीं. सिर्फ आडियो ने बिक्री के सारे रिकार्ड तोड़े थे. हमने पहले सीजन में एक भी गाना डब नहीं किया था. हमने स्टार्ट टू फिनिश हर गाने को लाइव रिर्काड किया था. उस वक्त अगर किसी ने गलती की, तो कट करके पुनः शुरूआत से उस गाने को रिकार्ड किया था. इस तरह मैने चालिस दिन के अंदर 51 गाने रिकार्ड किए थे.

पहले किसी भी गाने को लाइव रिकार्ड किया जाता था.अब उसकी जगह की बोर्ड/मशीन पर काम होने लगा है. इसका संगीत पर किस तरह का असर पड़ा?

-देखिए, दुनिया बदल रही है. ऐसे में संगीत में, तकनीक में बदलाव आना स्वाभाविक है. पहले हम कपड़ा खरीदकर दर्जी के पास जाते थे, दर्जी हमारी नाप लेने के बाद कपड़ा काटकर सिलाइ करता था. अब बाजार में रेडीमेड यानी कि सिले सिलाए कपड़े धड़ल्ले से बिक रहे हैं. अब हम दुकान पर जाते हैं. सिली सिलाई शर्त खुद पर फिट बैठने वाली लार्ज या एक्स्टृा लार्ज की नाप वाली ले लेते हैं. फिटिंग सौ प्रतिशत सही नहीं होगी.

लोगों की राय में की बोर्डके प्रचलन से संगीत का स्तर गिर गया है?

-ऐसा होना स्वाभाविक है. क्योंकि संगीत का जो बेंचमार्क या स्तर अब आया है, उसे अंग्रेजी में कहते हैं- ‘ऑसम’. ऑसम तो ऑसम ही है. इस ऑसम ने संगीत का स्तर गिरा दिया. ‘ऑसम’ शब्द का इस्तेमाल ने सब कुछ गड़बड़ कर दिया. क्योंकि जब हमने इंडियन आयडल शुरू किया था, तब इसके विजेता को कहा गया था इंडिया का नंबर वन सिंगर.

आप लता मंगेशकर को भी इंडिया का नंबर वन सिंगर कहते हो. इसी से समझ लेना चाहिए कि संगीत में कितनी गिरावट आ गयी है. वह नया गायक भी ऑसम और लता जी भी ऑसम.

अब कैसेट,प्लेटिनम डिस्क,सीडी वगैरह की जगह सिंगल गानो ने ले लिया है. इस बदलाव को आप किस तरह से देखते हैं?

-पूरा विश्व बदल रहा है.तकनीक बदल रही है. अब डिजिटल का जमाना आ गया है. आपके पास अब कोई दूसरा रास्ता ही नहीं बचा. अब तो सीडी प्लेअर भी नहीं मिलते. सीडी भी ढूढ़नी पड़ेगी. कैसेट भी शायद किसी के पास मिल जाए. ऐसे हालात में आगे जाने के लिए आपके पास समझौता करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा.

आपके घर पर सीडी प्लेअर और पुरानी सीडी पड़ी है, तो आप उसे सुनकर उसका आनंद ले सकते हैं. मगर नई सीडी या सी प्लेअर बाजार में नहीं मिलेगी. यदि आपको नया संगीत बनाना है, नए लोगों से मिलना है, नए लोगों के साथ काम करना है, तो नई तकनिक को अपनाना ही पड़ेगा.

अब संगीत अच्छा है या नहीं, इसको ‘जज’ करने वाला मैं कौन होता हूं?आपको अपना संगीत अच्छा लगता है तो उसे मैं खराब कहने वाला कौन?

तो इन दिनों सभी अपना अपना अच्छा संगीत परोस रहे हैं. अपने नए गीत ‘‘तू है मेरा’’ को लेकर क्या कहेंगें?

-यह गाना काव्या के लिए ही बनाया है. मैं हमेशा जिसके लिए गाना बनाता हूं, उसके टाइप का गाना बनाता हॅूं. जब मैने ‘तू है मेरा’ गाने पर काम षुरू किया, तो मैने ऐसा गाना लिखा व उसे सगीत से सजाया, जो काव्या के निजी जीवन जैसा फंकी है. काव्या दावा करती है कि वह चार वर्ष से मेरे साथ काम करते हुए मुझे जानती है. जबकि मैं कहता हूं कि मैं भी उसे चार वर्ष से अच्छी तरह से जानता हूं. वह सोलफुल है. उसमें पागलपन भी है. उसकी सुरीली आवाज है. मैलोडी के पीछे भागने वाली कलाकार है. उसकी आवाज में ही नाटकीयता है.

काव्या के लिए आपने पहले जिन गीतों को संगीत से संवारा था, उनसे यह गाना अलग कैसे है?

-मैने सबसे पहले काव्या को ‘‘आजा मेरी बाहों में’’ गीत में गवाया था. इस गाने में उसके चेहरे व शरीर की सुंदरता के अलावा सेंसुआलिटी को उभारा था. जबकि अब जो गाना ‘‘तू है मेरा’’ आ रहा है, इसमें काव्या का व्यक्तित्व और फैंकीनेस की बात है. यह बहुत ही अलग तरह का गाना है.

आपने आशा भोसले से लेकर काव्या जोन्स तक कई गायकों के साथ काम किया है. मेरा सवाल यह है कि आप गायक को ध्यान में रखकर गाना या संगीत की धुन बनाते हैं अथवा गाना व संगीत की धुन बनाने के बाद उसके योग्य गायक की तलाश करते हैं?

-पहले के जमाने में यह देखा जाता था कि इस गाने को कौन गाने वाला है? उसी हिसाब से गाना बनता था. लता जी गाएंगी,तो ताली दो में गाना बनेगा. यह उनकी रेंज थी. लता जी के लिए उससे उपर की रेंज का गाना नहीं बनता था. अब हो यह रहाहै कि गाना बना लेते हैं, फिर सोचते हैं कि किससे गंवाएं.

किसी ने कहा इस वक्त यह गायक चल रहा है, तो ठीक है, इसे बुला लो, इससे गवा लिया. पता चला कि गायक तो अच्छा है, मगर जो गाना उससे गवाया, वह गाना उसके साथ मैच नहीं करता. तब हम दोबारा किसी अन्य से उसी गाने को गवाकर उसे डब करते हैं अथवा वह गाना लोगों को अच्छा नहीं लगता.

आज कल तो एक ही स्केल में सारे गाने बन रहे हैं. फिर उसे ‘की बोर्ड’पर ठीक करने का प्रयास किया जाता है. अब आप कहते हैं कि ‘फीमेल सिंगर’. पर सभी का स्केल हो गया. जबकि आशा भोसले के लिए अलग स्केल होना चाहिए. और उशा जी के लिए अलग स्केल होना चाहिए. इस हिसाब से तो बहुत कुछ गड़बड़ है. मैने तो अपनी तरफ से हर गायक के लिए अलग अलग स्केल के गाने बनाने का ही प्रयास किया है.

आशा भोसले से काव्या तक मैने गायक के अंदर की खूबियों को उभारने व कमजेारी को दबाते हुए ही संगीत की धुने बनाता रहा हॅूं. मेरी सोच यही है कि गायक की कलात्मक कमियों को छिपाते हुए ही काम करना है. मैं सामने वाले गायक को यह बात बता भी देता हॅूं. गायक की जो ताकत है, उसे बाहर लाकर लोगों तक पहुंचाना ही मेरा काम है.

पहले एक फिल्म में एक ही संगीतकार हुआ करता था. अब एक ही फिल्म में चार चार संगीतकार होते हैं. क्या इससे संगीतकारों को काम करने में सहूलियत होती है?

-नहीं..मुझे नही लगता कि बतौर संगीतकार किसी को इस तरह से काम करना अच्छा लगता है.एक फिल्म में चार निर्देशक नहीं होता.मगर संगीतकार चार होते हैं. ऐसा इस सोच के साथ किया जाता है कि किसी का तो गाना हिट हो जाएगा.ऐसे मे हर संगीतकार अपने अपने अंदाज का गाना बना रहा है.मगर पूरी फिल्म की जो एक पहचान होनी चाहिए, वह नही बनती.

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