सौजन्य-मनोहर कहानियां 

300गज में फैली उस कोठी में 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम भूतल पर था, 2 बैडरूम और एक ड्राइंगरूम पहली मंजिल पर था. दाएं हिस्से में एक लंबी ओपन गैलरी कोठी के पीछे के हिस्से में बने गैराज तक गई थी. ऊपर की मंजिल में जाने के लिए सीढि़यां अंदर से भी थीं और बाहरी गैलरी से भी.

इस कोठी में एक ही परिवार रहता था. इस परिवार में मात्र 5 प्राणी थे- नरेश सेठी, उस की पत्नी पूर्णिमा सेठी और नौकर रामकिशन उर्फ रामू. नरेश सेठी का एकमात्र 8 वर्षीय बेटा विशु मसूरी के किसी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था और बोर्डिंग में रहता था.

पूर्णिमा सेठी की लाश ऊपर की मंजिल के एक बैडरूम में डबल बैड पर पड़ी मिली थी. उसे गला घोंट कर मारा गया था. जिस चुन्नी से पूर्णिमा का गला घोंटा गया था, वह उसी की थी और उस के गले में ही लिपटी मिली थी.

पता चला कि पूर्णिमा सेठी सुबह साढ़े 9 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक घर में अकेली थी. उस का पति नरेश सेठी अपने औफिस गया हुआ था और नौकर रामू कनाट प्लेस. इसी बीच किसी समय पूर्णिमा का कत्ल हुआ था. पूर्णिमा की लाश सब से पहले दोपहर के डेढ़ बजे नौकर रामू ने देखी थी. उसी ने शोर मचा कर पासपड़ोस के लोगों की बुलाया था. उन्हीं में से किसी ने पुलिस को सूचना दी थी.

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जिस वक्त मैं मौका ए वारदात पर पहुंचा, उस समय पूर्णिमा का पति नरेश आ चुका था और इंसपेक्टर उसी से पूछताछ कर रहा था. नरेश ने बताया कि वह सुबह 9 बजे घर से निकला था. रास्ते में उसे 2-3 जगह जाना था, वहीं से होता हुआ वह पौने 2 बजे औफिस पहुंचा था. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली थी.

पूछताछ में रामू ने बताया कि वह सुबह साढ़े 9 बजे घर से निकला था. उसे पहले जमुनापार शकरपुर में अपने एक रिश्तेदार के घर जाना था और उस के बाद कनाट प्लेस की एक ट्रैवल एजेंसी से मैडम का मुंबई का हवाई टिकट ले कर वापस लौटना था.

यह काम कर के वह डेढ़ बजे कोठी पर लौटा. उस समय कोठी का मुख्य द्वार बंद था, पर अंदर के सारे दरवाजे खुले मिले. मैडम नीचे दिखाई नहीं दीं तो वह ऊपर पहुंचा. वहीं उस ने बैडरूम में मैडम की लाश पड़ी देखी.

घर में न तो किसी प्रकार की लूटपाट हुई थी और न ही कोई चीज गायब थी. संघर्ष का भी कोई चिह्न नहीं मिला. अलबत्ता जिस में पूर्णिमा की लाश मिली थी, उसी बैडरूम में बैड के पास कमीज का गुलाबी रंग का एक बटन जरूर पड़ा मिला. बटन रामू की उसी कमीज का था, जो वह पहने हुए था.

रामू को स्वयं पता नहीं था कि उस की कमीज का एक बटन गायब है. इंसपेक्टर ने इस ओर उस का ध्यान दिलाया तो वह चौंका. उस ने बताया कि सुबह कमरे की सफाई करते समय बटन टूटा होगा.

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रामू शादीशुदा युवक था. वह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर का रहने वाला था और पिछले 11 सालों से नरेश सेठी के घर में नौकरी कर रहा था. मात्र बटन के आधार पर उस पर शक करना बेमानी था.

मैं ने इंसपेक्टर को साथ ले कर कोठी की दोनों मंजिलों का मुआयना किया. कोठी की छानबीन में हमें कई ऐसी चीजें मिलीं, जो हमारी जांच को दिशा दे सकती थीं. ऐसी चीजें थीं, फ्रिज के ऊपर रखा मिला एक बिल और कुछ खुले रुपए. बिल 440 रुपए का था और उसी के पास 10 रुपए खुले रखे थे.

नरेश सेठी ने बताया कि वह बिल दूध का है. उस दिन महीने की 2 तारीख थी और 2 तारीख को ही दूध वाला बिल लेने आता था. बिल के अलावा हमें कुछ और भी ऐसी चीजें मिलीं, जिन्हें मुद्दा बना कर घटना की जड़ों को टटोल सकते थे.

चाय के 2 जूठे प्याले रसोई के सिंक में पड़े मिले थे और 2 ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की सेंटर टेबल पर. इस के अलावा नीचे की मंजिल वाले ड्राइंगरूम के सोफे पर हमें खूबसूरत सा एक पेन भी पड़ा मिला. वहीं पर साइड टेबल पर 2 किताबें और एक आधी लिखी नोट बुक रखी थी. दोनों ही किताबें जनरल इंगलिश की थीं और नोटबुक में भी अंगरेजी ही लिखी थी.

पूछताछ करने पर पता चला कि पूर्णिमा सेठी मदन भाटिया नाम के एक ट्यूटर से अंगरेजी बोलना सीख रही थी. जो उसे प्रतिदिन 11 से 12 बजे के बीच पढ़ाने आता था. सोफे पर मिले पेन को पूर्णिमा का पति नरेश तो नहीं पहचान पाया, अलबत्ता रामू ने उस पेन को पहचान कर बताया कि उस तरह का पेन मदन भाटिया अपनी जेब में लगाए रहते थे.

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सिंक और ऊपर की मंजिल वाले ड्राइंगरूम की टेबल पर मिले प्यालों के बारे में किसी तरह की कोई जानकारी नहीं मिल सकी कि उन में किस ने चाय पी थी. हम ने अनुमान लगाया कि चाय 2 बार बनाई गई थी और दोनों बार नीचे की मंजिल वाली रसोई में ही बनी थी.

पूर्णिमा ने दोनों बार चाय एक ही व्यक्ति के साथ पी या अलगअलग व्यक्तियों के साथ, यह कहना मुश्किल था. ऊपर की मंजिल पर पूर्णिमा सेठी किसी खास व्यक्ति को ही साथ ले जा सकती थीं. प्यालों से यह भी संदेह हुआ कि पूर्णिमा सेठी की हत्या संभवत: दूसरी बार चाय पीने के बाद चाय पीने वाले व्यक्ति द्वारा की गई होगी.

साढ़े 9 बजे से डेढ़ बजे के बीच हुई हत्या की वारदात के लिए हम ने 5 लोगों को संदेह के दायरे में रखा. ये थे रामू, मृतका का पति नरेश सेठी, दूध वाला शंकर और ट्यूटर मदन भाटिया. 5वें नंबर पर उस शख्स पर संदेह किया जा सकता था, जिस के साथ पूर्णिमा ने ऊपर के ड्राइंगरूम में चाय पी थी.

इन पांचों में सब से ज्यादा संदिग्ध रामू लगा. वह काफी घबराया हुआ भी था, जिस से उस पर संदेह और भी बढ़ा.

मैं ने रामू से पूछा, ‘‘तुम कहां सोते हो?’’

‘‘पहली मंजिल के जिस बैडरूम में मैडम की लाश मिली है, उसी के बराबर वाले बैडरूम में सोता हूं. कोठी में सर्वेंट क्वार्टर न होने की वजह से मालिक ने वह कमरा मुझे दे रखा है.’’ रामू बोला.

रामू पर शक था, इसीलिए मैं ने उस के कमरे में जा कर देखा. जिस कमरे में रामू सोता था, यह 8×10 का बैडरूम था और उस में सिंगल बैड पड़ा हुआ था.

सामान या सजावट के नाम पर उस कमरे में कुछ नहीं था, अलावा रामू के कपड़ों और जरूरत की दूसरी चीजों के. बैड भी सामान्य सा था. बैड के साथ वाले शोकेस में एक औरत और बच्चे का सादा सा फोटो फ्रेम रखा था. वह रामू की पत्नी और बच्चे का फोटो था.

मैं ने रामू के बैड को गौर से देखा तो मुझे लगा कि उस कमरे में जरूर कुछ न कुछ अस्वाभाविक घटा था.

रामू के कमरे का निरीक्षण करने पर खिड़की में लाल रंग की टूटी हुई चूड़ी का एक टुकड़ा मिला. पूर्णिमा सेठी के दोनों हाथों में कोई चूड़ी नहीं मिली थी. मैं ने चूड़ी के उस टुकड़े को सावधानीपूर्वक उठा लिया. जिस खिड़की में टुकड़ा मिला था, वह पीछे की ओर गली में खुलती थी. कुछ सोच कर मैं कोठी के बाहर आया और आसपड़ोस की 2-3 कोठियों का चक्कर काट कर पीछे वाली गली में पहुंचा.

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पीछे वाली गली से मुझे रामू के कमरे की वह खिड़की नजर आ गई, जिस में चूड़ी का टुकड़ा मिला था. मैं ने उस खिड़की के नीचे गली में खोजबीन की, तो लाल चूडि़यों के वैसे ही 8 टुकड़े मिल गए. सारे टुकड़े एकत्र कर के मैं ने कागज में रख लिए.

मैं ने वे टुकड़े नरेश सेठी को दिखा कर पूछा, ‘‘ये टुकड़े तुम्हारी पत्नी की चूडि़यों के हैं?’’

‘‘नहीं,’’ नरेश सेठी ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘मेरी पत्नी कांच की चूडि़यां विशेष अवसरों पर ही पहनती थी. लाल रंग की चूडि़यां तो उस ने कभी पहनी ही नहीं. चूडि़यां तो क्या, लाल रंग के कपड़ों तक से उसे चिढ़ थी.’’

रामू के कमरे की खिड़की के नीचे से चूडि़यों के टुकड़े एकत्र करते समय मैं सोच रहा था कि मैं हत्यारे के करीब पहुंच गया हूं, लेकिन नरेश सेठी ने यह बात बता कर मेरी सारी आशाओं पर पानी फेर दिया.

रामू 27-28 साल का था, लगभग इतनी ही उम्र पूर्णिमा सेठी की भी थी. ऐसी स्थिति में संदेह के लिए कई बातें सोचीसमझी जा सकती थीं.

मैं ने रामू को चूडि़यों के टुकड़े दिखा कर पूछा, ‘‘पहचानते हो इन्हें? तुम ने ही खिड़की से बाहर फेंके थे?’’

‘‘जी नहीं, मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘कोई बात नहीं, थाने चल कर हम पता लगा लेंगे.’’ मैं ने उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डाला तो वह रोने लगा, ‘‘साहबजी, आप गलत समझ रहे हैं. मैं इस घर में 11 साल से नौकरी कर रहा हूं. मैं इस परिवार का बुरा नहीं सोच सकता.’’

नरेश सेठी पत्नी की असमय मौत के गम से व्यथित था. फिर भी उस ने रामू को तसल्ली दी. समझाया, ‘‘डर मत. पुलिस को अपना काम करने दे.’’

मैं ने नरेश सेठी से पूछा कि क्या उसे रामू के शकरपुर और कनाट प्लेस जाने की बात मालूम थी. उस ने बताया कि इस संबंध में तो उसे कोई जानकारी नहीं थी, अलबत्ता यह जरूर मालूम था कि पूर्णिमा को 5 अगस्त को मुंबई जाना है और इस के लिए उस ने कनाट प्लेस की किसी ट्रैवल एजेंसी को टिकट का इंतजाम करने को कहा था.

मैं ने रामू से उस के शकरपुर वाले रिश्तेदार और ट्रैवल एजेंसी का पता ले लिया, फिर वह टिकट देखा, जो वह ले कर आया था. टिकट वास्तव में 5 अगस्त का ही था.

‘‘पूर्णिमा मुंबई किस सिलसिले में जा रही थी?’’ मेरे यह पूछने पर नरेश सेठी ने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया.

उस वक्त हमारे सामने रामू के अलावा कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं था, जिसे हम संदेह के दायरे में रख सकते. इसीलिए हम रामू को पूछताछ के लिए थाने ले आए.

चूडि़यों के टुकड़े, कमीज का बटन, सोफे पर मिला पेन, ड्राइंगरूम और सिंक में मिले चाय के प्याले, फ्रिज पर मिला दूध का बिल और पैसे आदि सभी चीजें हम ने जांच के लिए कब्जे में ले ली थीं. इस के साथ ही हम ने हत्या का केस दर्ज करने के बाद पूर्णिमा सेठी की लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी थी.

जिन दिनों की यह बात है, उन दिनों मैं एसीपी था. मेरा औफिस थाने में ही था. थाने पहुंचते ही मैं ने 2 सबइंसपेक्टरों को बुलाया. उन में से एक को कनाट प्लेस स्थित ट्रैवल एजेंसी और दूसरे को रामू के शकरपुर स्थित रिश्तेदार के यहां भेजा.

शाम होतेहोते मुझे दोनों जगह की रिपोर्ट मिल गई. पता चला कि रामू पौने 11 बजे अपने मौसा श्यामबाबू के यहां पहुंचा था.

श्यामबाबू के पास रामू पौन घंटे के करीब रुका. उस के बाद वह कनाट प्लेस स्थित टै्रवल एजेंसी के औफिस पहुंचा. वहां वह 12 या सवा 12 बजे पहुंचा था और 15 या 20 मिनट वहां रहा, फिर वहां से मैडम का एयर टिकट ले कर वापस लौट आया.

रात को हम ने रामू से पूछताछ की. रामू के अनुसार उस ने न तो पूर्णिमा सेठी का कत्ल किया था और न वह ऐसा सोच सकता था. पूर्णिमा को वह अपनी बहन मानता था.

रामू ने बताया कि वह डेढ़ नहीं, बल्कि एक बजे कोठी पर वापस लौटा था. उसे कोठी का मुख्य दरवाजा बंद मिला. दरवाजा खोल कर जब वह अंदर पहुंचा, तो उसे सारे दरवाजे खुले मिले. उस ने मैडम को पहले नीचे खोजा, लेकिन जब वह नीचे नजर नहीं आईं तो वह ऊपर की मंजिल पर गया.

ऊपर  की मंजिल पर उस ने मैडम को अपने कमरे में बैड पर पड़े देखा, तो उस का माथा ठनका. मैडम ऊपर की मंजिल पर कम ही आती थीं. उस के रूम में तो मैडम के आने का प्रश्न ही नहीं था.

रामू ने बताया कि मैडम को 2 चीजें चमचमाती हुई रखने का शौक था, एक बाथरूम और दूसरा बैड. वह न तो किसी के बैड पर बैठना पसंद करती थीं और न ही किसी को अपने बैड पर बैठाती थीं. मैडम का रामू के बैड पर तो बैठने का प्रश्न ही नहीं था.

वह समझ गया कि जरूर कोई गड़बड़ है. गौर से देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि मैडम मर चुकी हैं. उन के गले में जिस ढंग से चुन्नी लिपटी थी, उसे देख कर कोई भी बता सकता था कि उन्हें गला घोंट कर मारा गया था.

पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू के कमरे में उसी के बैड पर हुई थी. वह यह सोच कर डर गया था कि सब उसी पर शक करेंगे, वह पकड़ा जाएगा. सोचविचार कर उस ने मैडम की लाश को अपने कमरे से हटाने का निश्चय किया. सब से पहले उस ने लाश को नीचे वाली मंजिल में ले जाने की सोची. लेकिन पूर्णिमा सेठी चूंकि उस से काफी भारी थीं, इसलिए उसे अपना इरादा बदलना पड़ा.

अंतत: उस ने पूर्णिमा की लाश को अपने कमरे से उठा कर दूसरे बैडरूम के बैड पर डालने का निश्चय किया. ऐसा ही उस ने किया भी. लाश को दूसरे बैडरूम में डालते समय ही उस की कमीज का बटन भी दूटा था, जिस पर बौखलाहट में ध्यान नहीं दे पाया था.

इतना सब करने के बाद रामू ने अपने आप को सामान्य किया और फिर शोर मचा कर आसपड़ोस के लोगों को बुला लिया था.

रामू से हम ने रात को साढ़े 12 बजे पूछताछ शुरू की थी, जो सुबह साढ़े 4 बजे तक चलती रही. इस पूछताछ के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि रामू जो कह रहा है, वह सच है. उस ने अपने बचाव के लिए हत्या के सबूतों को अपने स्थान से हटाने और मिटाने का अपराध जरूर किया है, लेकिन वह हत्यारा नहीं है.

अब सवाल यह था कि पूर्णिमा सेठी की हत्या रामू ने नहीं की, तो किस ने की? रामू के बाद संदिग्धों की लिस्ट में हम दूधिया शंकर, ट्यूटर मदन भाटिया और नरेश सेठी को रख सकते थे. रामू की गैरमौजूदगी में मदन भाटिया और शंकर कोठी पर आए थे, इस बात के प्रमाण हमारे पास थे ही.

मदन भाटिया का पता मैं ने नरेश सेठी से ले लिया था. शंकर का पता उस के पास भी नहीं था. मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि वह सुबह होते ही एक हवलदार को इस निर्देश के साथ नरेश सेठी की कोठी पर भेज दें कि शंकर अगर दूध देने आए, तो वह उसे थाने ले आए.

सुबह में मैं ने इंसपेक्टर से कहा कि एक एसआई को मदनगीर स्थित भाटिया के घर भेज कर उसे बुला लें.

मदन भाटिया की उम्र 32-33 साल थी. स्वभाव से वह सीधासज्जन लगता था. उसे ले कर आने वाले दरोगा ने मेरी हिदायत के मुताबिक उसे पूर्णिमा सेठी के कत्ल की बात नहीं बताई थी. मैं ने मदन भाटिया को सामने की कुरसी पर बैठा कर पूछताछ की. कुछ सामान्य रूप से तो कुछ तीखे सवालों के साथ.

मदन भाटिया के चेहरे और मन के भावों को समझने के लिए मैं उस के साथ सख्ती से पेश आया था.

पूर्णिमा सेठी की हत्या की बात सुन कर मदन भाटिया बेहद आश्चर्य में था. उस से बातचीत के दौरान मुझे जरा भी ऐसा नहीं लगा कि वह इस मामले में कहीं दोषी है. मैं ने उस से पिछले दिन की सारी बातें बताने को कहा.

मदन भाटिया ने बताया कि वह रोज की तरह गत दिवस भी सवा 11 बजे नरेश सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला. पता चला, रामू कहीं बाहर गया हुआ था. मदन भाटिया पूर्णिमा के साथ अंदर गया और ड्राइंगरूम में सोफे पर जा बैठा. पूर्णिमा वहीं बैठ कर पढ़ती थी. उस ने मदन भाटिया को पानी पिलाया और किताबें तथा नोटबुक ले कर पढ़ाई के लिए आ बैठी.

इत्तफाक से पूर्णिमा पेन लाना भूल गई थी. वह पेन लाने के लिए उठी, तो भाटिया ने उसे अपना पेन दे दिया.

भाटिया ने लगभग पौन घंटे तक पूर्णिमा को पढ़ाया. जब वह जाने लगा तो पूर्णिमा चाय पीने की जिद करने लगी. वह बैठ गया. पूर्णिमा रसोई में जा कर 2 कप चाय बना लाई. चाय पीते समय पूर्णिमा की नजर किताबों के ऊपर रखे पेन पर पड़ी, तो उस ने पेन उठा कर भाटिया की ओर बढ़ाया. उस समय भाटिया के हाथ में चाय का प्याला था. उस ने यह सोच कर पेन सोफे पर रख दिया कि जाते समय उठा लेगा. लेकिन उसे पेन उठाने का ध्यान नहीं रहा.

मदन भाटिया नरेश सेठी की कोठी से सवा 12 बजे लौटा था. अगर वह सच बोल रहा था, तो फिर कत्ल सवा 12 से एक बजे के बीच पौन घंटे की अवधि में हुआ था. मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा ने उसे चाय पिलाई थी. चाय के प्याले भी सिंक में पड़े मिले थे. इस का मतलब यह था कि ऊपर वाली मंजिल में चाय के जो प्याले मिले थे, उन में पूर्णिमा ने मदन भाटिया के जाने के बाद किसी और के साथ चाय पी थी.

रामू और मदन भाटिया को भी हम संदेह से मुक्त नहीं कर सकते थे. इसीलिए मैं ने दोनों को निगरानी में रखने का आदेश दिया.

दूसरा सबइंसपेक्टर शंकर को ले कर साढ़े 10 बजे मेरे औफिस आया. शंकर 40-42 साल का गठे हुए बदन का व्यक्ति था. मैं ने शंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गत दिवस वह सवा 10 बजे सेठी की कोठी पर पहुंचा था. उस ने घंटी बजाई तो रामू की जगह पूर्णिमा सेठी ने दरवाजा खोला.

उस ने अंदर जा कर दूध दिया और साथ ही पिछले महीने का बिल भी. पूर्णिमा सेठी ने उसे साढ़े 4 सौ रुपए ला कर दिए. बिल 440 रुपए का था, अत: उस ने 10 रुपए पूर्णिमा को लौटा दिए. उस के बाद वह वहां से चला गया था.

मदन भाटिया के अनुसार पूर्णिमा सेठी सवा 12 बजे तक सहीसलामत थीं. जबकि शंकर सवा 10 बजे ही कोठी पर पहुंचा था. ऐसी स्थिति में उस पर शक करने की कोई तुक नहीं थी, फिर भी ऐहतियात के तौर पर मैं ने उसे भी निगरानी में रखने को कहा.

पूर्णिमा की हत्या हुए 24 घंटे होने को थे. इस बीच नरेश सामान्य हो गया होगा, यह सोच कर मैं इंसपेक्टर को साथ ले कर उस की कोठी पर पहुंचा. वहां पर हमें पूर्णिमा के मातापिता और भाई भी मिल गए. वे लोग रात को आए थे. पता चला, पूर्णिमा का मायका चंडीगढ़ में था. हम ने पूर्णिमा के मातापिता और भाई से बातचीत की तो उन्होंने अपने दामाद पर किसी तरह का संदेह व्यक्त नहीं किया. उन का कहना था कि नरेश पूर्णिमा को बहुत प्यार करता था. ऐसा कोई कारण नहीं था जिस की वजह से उसे पूर्णिमा की हत्या करने की जरूरत पड़ती.

मैं ने नरेश सेठी को एक अलग कमरे में बैठा कर पूछताछ की. उस ने बताया कि गत दिवस उसे 2-3 जगह जाना था, इसीलिए वह सुबह 9 बजे घर से निकल गया था. घर से रवाना होने के बाद वह पहले जैकी एक्सपोर्ट के मालिक नवीन खन्ना के घर ग्रेटर कैलाश गया. नवीन खन्ना के घर वह सवा घंटा बैठा रहा. वहां से वह आरकेपुरम स्थित अशोक बब्बर के घर गया. अशोक बब्बर की कालकाजी में बब्बर ओवरसीज के नाम से एक्सपोर्ट कंपनी थी. बब्बर के साथ वह एक घंटे तक रहा.

बब्बर के घर से वह लक्ष्मीबाई नगर स्थित अंजलि एक्सपोर्ट में पहुंचा. इस कंपनी के मालिक रमेश भसीन के साथ वह डेढ़ घंटा रहा. फिर वह ग्रीन पार्क स्थित अपने औफिस गया. तब तक दोपहर के पौने 2 बज गए थे. 2 बजे उसे औफिस में ही पूर्णिमा की हत्या की सूचना मिली.

नरेश सेठी के सचझूठ को परखने के लिए मैं ने तीनों पतों से जानकारी कराई तो पता चला, उस की बात सच थी. लेकिन इस के बावजूद हम नरेश सेठी को शक के दायरे से बाहर नहीं कर सकते थे. वजह यह थी कि नरेश जिनजिन जगहों पर गया था, वे सब लाजपतनगर के करीब थीं. नरेश के पास चूंकि कार थी, इसलिए वह आर.के. पुरम, ग्रेटर कैलाश, ग्रीन पार्क और लक्ष्मीबाई नगर कहीं से भी 10-15 मिनट में लाजपत नगर पहुंच सकता था.

बाकी सारी चीजें तो पता चल गईं, लेकिन हम यह पता नहीं लगा पाए कि पूर्णिमा ने दूसरी बार किस के साथ चाय पी थी. दोपहर होतेहोते हमें पूर्णिमा सेठी की लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस की मृत्यु दम घुटने से हुई थी. मृत्यु से पहले उस के साथ कुकर्म या सहवास नहीं हुआ था.

रिपोर्ट के अनुसार, पूर्णिमा की मृत्यु 12 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच हुई थी. नरेश सेठी की कोठी से न तो कोई सामान गायब था, न पूर्णिमा के साथ कुछ ऐसावैसा हुआ था, फिर हत्या क्यों की गई? इस मुद्दे पर हम बुरी तरह उलझ कर रह गए. कोई राह नहीं सूझी, तो मैं ने रामू के कमरे की खिड़की के नीचे गली में मिले चूडि़यों के टुकड़ों को जांच का मुद्दा बनाया.

सारे टुकड़ों को जोड़ा गया, तो 2 चूडि़यों के मौडल तैयार हुए. मैं ने चूडि़यों के इन मौडलों की नाप को पूर्णिमा के हाथों में मिली चूडि़यों से मिलाया, तो यह देख कर आश्चर्य हुआ कि मौडल वाली चूडि़यों की साइज पूर्णिमा की चूडि़यों से काफी छोटी थी. संदेह होने पर मैं ने नरेश सेठी की कोठी पर जा कर वार्डरोब में रखी पूर्णिमा की कांच की चूडि़यां देखीं.

उन चूडि़यों में वास्तव में लाल रंग की कोई चूड़ी नहीं थी. साइज भी घटनास्थल पर मिली चूडि़यों से बड़ी थी. इस से यह बात साफ हो गई कि खिड़की के बाहर गली में मिले चूडि़यों के टुकड़े पूर्णिमा के नहीं थे.

नरेश सेठी ने मेरे 3 बार पूछने पर भी यह बात स्पष्ट नहीं की थी कि पूर्णिमा मुंबई किस लिए जा रही थी. यह जानकारी हमारे लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती थी. रामू उस परिवार में पिछले 11 साल से नौकरी कर रहा था. यह सोच कर कि उसे परिवार के सभी महत्त्वपूर्ण मामलों की जानकारी रहती होगी, मैं ने रामू से पूछताछ करने की सोची.

इस बारे में रामू ने बताया कि मुंबई में मैडम के एक कजिन परवीन चड्ढा का काफी बड़ा कारोबार है. उन के कारोबार में मैडम स्लिपिंग पार्टनर थीं. वह उन्हीं के पास मुंबई आतीजाती थीं.

‘‘कितनेकितने दिनों के अंतराल से जाती थीं?’’ मैं ने पूछा तो रामू ने बताया कि वह महीने में 1-2 बार मुंबई जरूर जाती थीं और 3-4 दिन में लौटती थीं. इतना ही नहीं, कभीकभी परवीन चड्ढा भी दिल्ली आते रहते थे. वह हमेशा होटल में ठहरते थे. मेरे पूछने पर रामू ने यह भी बताया कि नरेश सेठी मैडम के बारबार मुंबई आनेजाने से खुश नहीं थे. इस बात को ले कर दोनों में एकदो बार झड़पें भी हुई थीं.

यह बात पता चलते ही मैं ने नरेश सेठी को बुलाया. उस से परवीन चड्ढा के बारे में पूछा तो वह थोड़ी झुंझलाहट में बोला, ‘‘मैं उस शख्स के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता. उस से मेरा न तो कोई सरोकार था, न है.’’

‘‘लेकिन तुम्हारी पत्नी का तो था? वह उस के पास महीने में 2-2 बार जाती थी.’’

नरेश सेठी कुछ देर खामोश बैठा रहा. फिर कुछ सोच कर बोला, ‘‘आप परवीन चड्ढा को इस केस में न घसीटें तो ठीक रहेगा. इस से हमारी बदनामी हो सकती है. मैं इतना ही कह सकता हूं कि वह मुंबई से यहां आ कर पूर्णिमा का कत्ल नहीं कर सकता. इस की उसे जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि पूर्णिमा ने उस की बहुत मदद की थी.’’

‘‘कर भी तो सकता है. पूर्णिमा उस के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर थी. हो सकता है, उस ने अपने किसी व्यावसायिक लाभ के लिए…’’ मैं ने कहना चाहा तो नरेश सेठी खीझे से स्वर में बोला, ‘‘स्लिपिंग पार्टनर सिर्फ नाम के लिए थी. एक बहाना था यह.’’

नरेश सेठी की बातों से मैं समझ गया कि पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के बीच चाहे जो भी रिश्ता रहा हो, उसे नरेश सेठी पसंद नहीं करता था. मैं नरेश सेठी को ले कर उस की कोठी पर गया और उस के बैडरूम और ड्राइंगरूम में लगे फोन के पास रखी मैसेज स्लिपें चैक कीं. बैडरूम के फोन वाली स्लिपों में मुझे एक काम का टेलीफोन नंबर मिल गया. इस नंबर के साथ 311 लिखा था.

मैं ने उस नंबर पर फोन मिलाया तो मेरा अनुमान सही निकला. वह नंबर नई दिल्ली के एक होटल का था. मैं समझ गया कि 311 इसी होटल के कमरे का नंबर है.

औफिस लौट कर मैं ने एक सबइंसपेक्टर को बुला कर कहा कि वह उस होटल के रिकौर्ड से पता लगाए कि कमरा नंबर 311 में एक और दो तारीख को कौन ठहरा था. वह कब होटल आया और कब गया? क्या उस के साथ कोई महिला भी थी?

सबइंसपेक्टर ने वापस लौट कर जो कुछ बताया, वह मेरी आशा के अनुरूप था. पता चला, उस कमरे में 30 तारीख से 2 तारीख की शाम तक परवीन चड्ढा ठहरा था. साथ में एक औरत भी थी, जो उस ने अपनी पत्नी बताई थी. परवीन चड्ढा ने अपना नामपता सही लिखा था. आगमन की जगह उस ने मुंबई लिखा था और जाने की जगह चंडीगढ़.

परवीन चड्ढा दिल्ली आया हो और पूर्णिमा से न मिला हो, ऐसा संभव नहीं था. मुझे लगा कि पूर्णिमा का कत्ल संभवत: परवीन चड्ढा ने ही किसी औरत की मदद से किया है. कत्ल क्यों किया, यह वही बता सकता है.

परवीन चड्ढा के बारे में जानकारी मिलने के बाद मैं ने शंकर और मदन भाटिया को इस चेतावनी के साथ जाने की इजाजत दे दी कि वह पूछताछ के लिए दिल्ली में ही उपलब्ध रहें. रामू की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं थी.

परवीन चड्ढा का मुंबई और चंडीगढ़ का पता नरेश सेठी से मिल गया था. मैं ने उसी रात उस की तलाश में दोनों जगह पुलिस पार्टियां भेजीं.

चंडीगढ़ गई पुलिस पार्टी दूसरे दिन परवीन चड्ढा को साथ ले कर दिल्ली लौट आई. उस के साथ उस की पत्नी परमजीत कौर भी थी. वे दोनों काफी घबराए हुए थे. परवीन चड्ढा कुछ दुखी और परेशान सा भी लग रहा था. मैं ने सब से पहले परमजीत कौर की चूडि़यों का साइज चैक किया. परमजीत कौर का साइज भी बड़ा था.

घटनास्थल पर मिली चूडि़यां उस की नहीं थीं, यह देख मुझे आश्चर्य हुआ. परवीन और परमजीत से बातचीत के बाद यह बात तो साफ हो गई कि होटल में वह दोनों ही कमरा नंबर 311 में ठहरे थे.

मैं ने परमजीत कौर से पूछा, ‘‘आप पूर्णिमा सेठी को जानती थीं?’’

‘‘हां, सालों पहले 2-3 बार मुलाकात हुई थी.’’ परमजीत कौर ने बताया तो मैं ने आश्चर्यचकित हो कर पूछा, ‘‘वह तो हर महीने मुंबई जाती थीं. क्या आप के घर नहीं ठहरती थीं?’’

‘‘नहीं.’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘वह आप लोगों के व्यवसाय में स्लिपिंग पार्टनर थीं?’’

‘‘स्लिपिंग पार्टनर!’’ परमजीत ऐसे चौंकी, जैसे मैं ने कोई अनहोनी बात कह दी हो.

मेरी और परमजीत कौर की इन बातों से परवीन चड्ढा के चेहरे का रंग उतर गया था. वह नजरें झुकाए बैठा था. मैं ने परमजीत से एक सवाल और पूछा, ‘‘आप को मालूम है, आप के पति एक और दो तारीख को दिल्ली में पूर्णिमा सेठी से मिले थे?’’

‘‘नहीं, यह बात मेरी जानकारी में नहीं है.’’

मैं ने परवीन को समझाते हुए कहा, ‘‘मि. चड्ढा, आप की प्रेमिका का कत्ल हो चुका है. हमें संदेह है कि कत्ल में आप शामिल हैं. अगर आप इस बात से इत्तफाक नहीं रखते तो हमें सारी बातें साफसाफ बता दें.’’

परवीन चड्ढा की स्थिति बड़ी विचित्र हो गई. उस के एक ओर पुलिस थी, दूसरी ओर बीवी. चेहरे का रंग उड़ जाना स्वाभाविक था. उस की समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे. लेकिन बोलना उस की मजबूरी थी.

परवीन चड्ढा ने जो कुछ बताया, उस का सार यह था कि पूर्णिमा और परवीन दोनों सहपाठी रहे थे. शादी से पहले दोनों न केवल एकदूसरे को जानते थे, बल्कि प्यार भी करते थे. उन की शादी भी हो जाती. लेकिन परवीन चड्ढा को 2 साल का बिजनैस मैनेजमेंट का कोर्स करने इंग्लैंड जाना पड़ा. इसी बीच पूर्णिमा के पिता ने उस की शादी नरेश सेठी से कर दी थी.

इस शादी का पूर्णिमा ने विरोध भी किया था, लेकिन अपनी मां और दिल्ली वाली मौसी के दबाव की वजह से उसे झुकना पड़ा था.

मैनेजमेंट का कोर्स करने के बाद परवीन भारत लौटा, तो उस ने पूर्णिया को उस की बेवफाई के लिए ताना दिया. पूर्णिमा ने बताया कि उस ने नरेश सेठी से अपनी मरजी से शादी नहीं की थी. इंग्लैंड से लौटने के बाद परवीन चड्ढा को मुंबई की एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर की नौकरी मिल गई. उस ने चंडीगढ़ की ही एक लड़की से शादी भी कर ली. लेकिन इस के बावजूद उस ने पूर्णिमा सेठी से मिलनाजुलना बंद नहीं किया था.

पूर्णिमा के पति का आयातनिर्यात का काफी बड़ा कारोबार था. पैसे की उस के पास कोई कमी नहीं थी. पूर्णिमा का जब भी मन होता, वह परवीन चड्ढा से मिलने मुंबई चली जाती थी.

नरेश सेठी की मां की मृत्यु उस की शादी से पहले ही हो चुकी थी. 2 साल बाद पिता भी चल बसे. लेदे कर नरेश सेठी का एक ही बड़ा भाई था, जो अमेरिका में रहता था.

परवीन को नौकरी करते अभी 3 साल हुए थे कि पूर्णिमा ने उसे कोई अपना व्यवसाय करने की राय दी. उस ने उस से यह भी कहा कि वह उस की आर्थिक मदद करेगी.

कुछ पैसा परवीन चड्ढा के पास था, कुछ पूर्णिमा ने दिया. कुछ पैसा बैंक से कर्ज ले कर उस ने भांडुप, पश्चिम मुंबई में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनाने की फैक्ट्री लगा ली. फैक्ट्री में इलैक्ट्रौनिक उपकरण बनने तो लगे, इस के बावजूद कई कारणों से उतना लाभ अर्जित न हुआ, जितना होना चाहिए था.

इस का नतीजा यह हुआ कि परवीन चड्ढा की आर्थिक स्थिति नरेश सेठी जैसी सुदृढ़ न हो सकी. उस की स्थिति को ध्यान में रखते दुए पूर्णिमा सेठी उस की जबतब रुपएपैसे से मदद करती रही. पूर्णिमा सेठी, नरेश सेठी से परवीन चड्ढा को अपना कजिन बताती थी. उस ने परवीन चड्ढा के कारोबार में स्लिपिंग पार्टनर होने की बात भी बताई थी. नरेश सेठी चूंकि अपने कारोबार में बेहद व्यस्त रहता था, इसलिए उस ने हमेशा उसी बात पर यकीन किया, जो पूर्णिमा ने कही थी.

पूछताछ में परवीन चड्ढा ने यह बात स्वीकार की कि पूर्णिमा उस से मिलने मुंबई जाती थी और होटल में ठहरती थी. उस ने यह भी माना कि 30 जुलाई को दिल्ली आते ही उस ने पूर्णिमा को फोन किया था. होटल का फोन नंबर और कमरा नंबर भी उस ने ही बताया था.

उस ने बताया कि वह 31 जुलाई, एक और 2 अगस्त को पूर्णिमा से उस की कोठी पर ही जा कर मिला था. वहीं पर पूर्णिमा का 5 अगस्त को मुंबई जाने का प्रोग्राम बना था. परवीन चड्ढा के अनुसार, परमजीत कौर को चंडीगढ़ छोड़ते हुए उसे भी 5 अगस्त को मुंबई पहुंचना था.

परवीन चड्ढा ने बताया कि पूर्णिमा के कत्ल में उस का कोई हाथ नहीं है. उस ने यह भी बताया कि पूर्णिमा उसे तनमनधन हर तरह से चाहती थी. ऐसी हालत में वह उस का बुरा कैसे सोच सकता था. अगर परवीन चड्ढा सच बोल रहा था तो फिर ऐसा कोई कारण नहीं था कि उसे पृर्णिमा का कल्ल करने की जरूरत पड़ती.

इस मामले में जितने भी लोग संदिग्ध हो सकते थे, मैं ने एकएक कर सभी से पूछताछ कर ली थी, फिर भी मैं हत्यारे की छाया को नहीं छू पाया. समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन है. मैं ने परवीन चड्ढा से पूछा कि 31 जुलाई और एक व 2 अगस्त को जब वह पूर्णिमा से मिलने गया था, तब उसे नरेश सेठी ने तो नहीं देखा था?

‘‘नरेश सेठी ने तो नहीं, लेकिन 3 अगस्त को जब मैं कोठी से बाहर जा रहा था, तो रामू मुझे जरूर मिला था. वह उसी समय कहीं से लौटा था.’’

परवीन चड्ढा की इस बात से मुझे लगा कि कहीं नरेश सेठी ने ही तो पूर्णिमा की हत्या नहीं की. हो सकता है, चूडि़यों के टुकड़े उस ने पुलिस को गुमराह करने के लिए फेंके हों. मैं ने रामू से पूछा कि उसे 3 अगस्त को परवीन चड्ढा को कोठी से निकलते देखा था, क्या यह बात उस ने नरेश सेठी से बताई थी?

रामू ने बताया कि 3 अगस्त को मैडम ने मुझे 11 बजे टेलीफोन का बिल जमा करने भेजा था. बिल जमा करने में काफी देर लगी. मैं साढ़े 12 बजे जब वापस लौटा, तो परवीन चड्ढा कोठी से निकल रहे थे. नरेश सेठी ने मुझे निर्देश दे रखा था कि कभी परवीन चड्ढा दिखाई दे, तो बताना. परवीन चड्ढा कई बार कोठी पर आए थे. मैं उन्हें पहचानता था, इसलिए यह बात मैं ने मालिक को बता दी थी.

रामू की बात से मुझे पक्का विश्वास हो गया कि पूर्णिमा की हत्या उस के पति ने ही की है. लेकिन समस्या यह थी कि नरेश सेठी के खिलाफ हमारे पास कोई ऐसा सुबूत नहीं था, जिस के बूते पर हम उसे गिरफ्तार कर सकते.

जब कोई रास्ता नहीं सूझा, तो मैं ने नरेश सेठी के बैडरूम की तलाशी लेने का निश्चय किया. मैं इंसपेक्टर को ले कर नरेश की कोठी पर पहुंचा और उस से बातचीत करने के बाद तलाशी लेने की इच्छा जाहिर की. उस ने इस में कोई आपत्ति नहीं की.

नीचे के दोनों बैडरूम, उन की शेल्फों और अलमारियों में हमें कोई भी ऐसी चीज न मिली, जिस के आधार पर कोई कड़ी जुड़ पाती. ऊपर वाले बैडरूम में भी हमें कोई खास चीज नहीं मिली. ऊपर वाले बैडरूम में अलमारी के ऊपर लोहे का पुराना संदूक रखा था. मैं ने वह संदूक उतरवाने को कहा, तो नरेश सेठी बोला, ‘‘इस संदूक में मां के पुराने कपड़े हैं. चाबी भी पता नहीं कहां होगी. उसे छोडि़़ए, उस में कुछ नहीं मिलेगा.’’

नरेश सेठी की इस बात से मुझे शक हुआ. मैं ने वह संदूक उतरवा लिया और उस से चाबी मांगी. वह बोला यह संदूक मां की मौत के बाद से यूं ही बंद है. चाबी पता नहीं कहां होगी. वैसे भी चाबियां पूर्णिमा के पास ही रहती थीं.

कोई और चारा न देख मैं ने संदूक का ताला तुड़वा दिया. उस संदूक में सब से ऊपर बिना तह किया शादी का लाल जोड़ा कुछ इस तरह रखा था, जैसे जल्दी में रखा गया हो. संदूक के अंदर गहने वगैरह तो नहीं थे, अलबत्ता सूखे फूलों की पत्तियां, कुछ पुराने कपड़े और एक पुरानी सफेद चादर थी. देख कर ही बताया जा सकता था कि यह सब सुहागरात की इस्तेमाली चीजें थीं.

उसी संदूक में हमें वह सबूत भी मिल गया, जिस के आधार पर हम कह सकते थे कि हत्यारा कौन है. वह सबूत था, लाल रंग की दरजनभर से ज्यादा चूडि़यां. ये चूडि़यां बिलकुल वैसी ही थीं, जैसी चूडि़यों के टुकड़े खिड़की के बाहर मिले थे.

मैं ने संदूक के अंदर से चूडि़यां निकाल कर हाथ में लीं, तो नरेश सेठी के चेहरे का रंग उतर गया. पूर्णिमा की मां अभी दिल्ली में ही थीं. मैं ने शादी का जोड़ा और चूडि़यां उसे दिखाईं तो उस ने बताया कि शादी का जोड़ा और चूडि़यां पूर्णिमा की ही थीं.

उस के अनुसार, 10 साल पहले जब पूर्णिमा की शादी हुई थी, तो वह बहुत दुबलीपतली थी. तब उस के हाथों में उसी साइज की चूडि़यां आती थीं.

इस के बाद नरेश समझ गया कि अब कुछ भी छिपाना व्यर्थ है. उस ने स्वत: ही सब कुछ कह डाला. नरेश सेठी ने बताया कि पूर्णिमा को वह बहुत प्यार करता था. उसे उस ने अपने व्यापार में भी औन रिकौर्ड आधे का साझेदार बना रखा था.

शादी के बाद शुरू के 6 साल उस ने पूर्णिमा के साथ बड़े आराम और प्रेम के साथ गुजारे. इस बीच उन के यहां एक बच्चा भी पैदा हुआ. तब तक उसे पूर्णिमा और परवीन चड्ढा के संबंधों या प्रेम की कोई बात पता नहीं थी. यही वजह थी कि जब पूर्णिमा ने परवीन के व्यवसाय में पैसा लगाया, तो भी उस ने कोई आपत्ति नहीं की.

नरेश सेठी के अनुसार पूर्णिमा पर उसे संदेह तब हुआ, जब 4 साल पहले रामू ने एक दिन बताया कि परवीन चड्ढा उस के पीछे कोठी पर आता है और घंटों वहां रहता है. पूर्णिमा उस वक्त किसी न किसी बहाने से उसे कहीं भेज देती थी. उस समय मेरा बेटा भी दिल्ली में ही था. उस ने भी मुझे यह बात बताई. यह पता चलने के बाद भी मैं ने पूर्णिमा पर शक नहीं किया.

बाद में जब बेटा मसूरी चला गया और पूर्णिमा हर महीने मुंबई जाने लगी, तो मैं ने टोकाटाकी शुरू की. लेकिन जबजब मैं ने कुछ कहा, पूर्णिमा मुझ से लड़ बैठती कि मैं बिना वजह उस पर शक करता हूं. मेरे मना करने के बावजूद वह मुंबई के चक्कर पर चक्कर लगाती रही और मैं कुछ न कर सका.

मेरी जानकारी के हिसाब से पूर्णिमा ने परवीन चड्ढा के व्यवसाय में 20 लाख रुपए लगाए थे. यह अलग बात थी कि उस व्यवसाय से पूर्णिमा को लाभ की कोई राशि कभी नहीं मिली थी. इस साल फरवरी में इत्तफाक से पूर्णिमा की एक व्यक्तिगत डायरी मेरे हाथ लग गई. उस डायरी में पूर्णिमा ने उस रकम का ब्यौरा लिख रखा था, जो उस ने परवीन चड्ढा को दी थी. मैं ने टोटल किया तो पता चला यह रकम लगभग 40 लाख थी.

मुझे लगा कि मैं ने कुछ न किया तो पूर्णिमा चड्ढा के चक्कर में मुझे बरबाद कर देगी. मैं ने निश्चय किया कि जैसे भी होगा, मैं इस कहानी को खत्म कर दूंगा.

नरेश सेठी ने बताया कि पिछले एक साल से उसे व्यापार में काफी नुकसान हुआ था. पैसे की परेशानी हो रही थी. मैं ने पूर्णिमा से कहा कि उस ने चड्ढा के व्यवसाय में जो 20 लाख रुपए लगाए हैं, उन से कोई लाभ तो हो नहीं रहा, अत: वापस ले ले.

पैसे लाने का बहाना कर वह मुंबई जाती और पैसा लाने के बजाए उसे पैसा दे कर आ जाती. मुझ से वह बहाने बना देती. मैं ने उस से कई बार कहा कि वह परवीन चड्ढा से मेरी बात करा दे, लेकिन उस ने चड्ढा से न तो मेरी बात ही कराई और न मिलवाया.

मजबूरी में मैं ने एक प्राइवेट जासूस की मदद ली और चड्ढा और अपनी पत्नी के संबंध की हकीकत पता की. जो कुछ पता चला, उस से मेरा दिल भी टूटा और विश्वास भी. रामू ने चड्ढा को 3 तारीख को देखा था. उस ने यह बात मुझे उसी शाम को बताई. मुझे लगा कि परवीन चड्ढा दिल्ली में ही होगा. मैं ने रामू से पूछा, ‘‘क्या मैडम ने आज दोपहर भी तुम्हें कहीं भेजा था?’’

उस ने बताया कि मैडम ने उसे 12 बजे कुछ कीमती साडि़यां दे कर कहा था कि वह उन्हें बैंडबौक्स ड्राईक्लीनर कनाट प्लेस को ड्राई क्लीनिंग के लिए दे आए. साडि़यां दे कर रामू ढाई बजे वापस लौटा था. लाजपत नगर में कई बड़े ड्राई क्लीनर थे, फिर क्लीनिंग के लिए साडि़यां कनाट प्लेस भेजने की क्या तुक थी. मैं समझ गया कि दोपहर में चड्ढा आया होगा. इसीलिए पूर्णिमा ने रामू को कनाट प्लेस भेजा होगा.

नरेश ने बताया, 2 अगस्त की सुबह जब मैं ड्राइंगरूम में बैठा चाय पी रहा था, तो रामू ने मुझ से कहा कि उस के मौसा का फोन आया था, उसे थोड़ी देर के लिए शकरपुर जाना है. मैं ने उस से पूछा कि कब तक लौटेगा तो वह बोला, 2-ढाई घंटे में लौट आएगा. पूर्णिमा मेरे पास बैठी थी. वह बोली, ‘‘कनाट प्लेस से मेरा एयर टिकट भी लाना है. मैं ने फोन किया था, साढ़े 12 या 1 बजे तक कंफर्मेशन मिलेगा.’’

नरेश ने मन ही मन हिसाब लगाया. साढ़े 12, एक बजे तक रामू कनाट प्लेस में रहेगा, फिर एकडेढ़ घंटे में घर लौटेगा. इसी बीच चड्ढा को आना चाहिए.

नरेश ने चाय पीतेपीते पूरी योजना बना ली कि उसे क्या करना है. हकीकत में उस का इरादा पूर्णिमा और चड्ढा को कोई शारीरिक क्षति पहुंचाने का नहीं था. अलबत्ता उस दिन वह उन दोनों को आमनेसामने बैठा कर कुछ बातें साफ कर लेना चाहता था.

नरेश ने बताया कि वह अशोक बब्बर के आरके पुरम स्थित घर से सवा 12 बजे निकला और पहले ग्रीन पार्क गया. उस का इरादा औफिस में जाने का था. लेकिन औफिस से थोड़ा पहले ही उस का इरादा बदल गया और उस ने घर जाने का निश्चय किया. जिस समय वह कोठी पर पहुंचा, उस समय पौने एक बजा था. जब वह अपनी गली में प्रवेश कर रहा था, तो उस गली से एक टैक्सी को निकलते देखा. उसे लगा कि वह औफिस के चक्कर में लेट हो गया और चड्ढा निकल गया.

नरेश सेठी ने बताया कि वह काफी गुस्से में था. कोठी के अंदर पहुंचा तो बाहर का गेट खुला पड़ा था. नीचे की मंजिल के दरवाजे भी खुले हुए थे. पूर्णिमा नीचे नहीं दिखी, तो वह ऊपर गया. ऊपर ड्राइंगरूम की मेज पर रखे 2 प्याले देखते ही नरेश समझ गया कि चड्ढा ही आया था. उस ने देखा, पूर्णिमा ऊपर वाले बैडरूम में पुराना संदूक खोले बैठी थी और उस का सामान सहेज रही थी.

नरेश गुस्से में तो था ही, उस ने पूर्णिमा से पूछा कि उस संदूक को क्यों खोले बैठी है? लेकिन उस ने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया. चड्ढा के बारे में भी उस ने जुबान नहीं खोली. इस पर नरेश ने संदूक का सारा सामान उलटपलट कर देखा, तो उसे पत्रों का एक बंडल मिला. नरेश ने बंडल खोलना चाहा, तो पूर्णिमा उलझ गई. उस ने पत्रों का बंडल नरेश के हाथ से छीनने की कोशिश की. जबकि वह सारे पत्र बिना पढ़े लौटाना नहीं चाहता था.

नरेश गुस्से में था और पूर्णिमा डरी हुई. जब वह नहीं मानी, तो नरेश ने उसे बैड पर गिराया और उस की चुन्नी से ही उस का गला घोंट दिया. वह भहरा कर एक ओर लुढ़की तो नरेश की रूह फना हो गई. वह उसे मारना नहीं चाहता था. लेकिन वह मर चुकी थी.

पूर्णिमा की लाश बैड पर पड़ी थी. बैड पर ही सामान भी फैला पड़ा था. सामान संदूक में भरने के बाद बैड को झाड़ना जरूरी था. सोचविचार कर नरेश पूर्णिमा की लाश रामू के कमरे में डाल आया और सारा सामान संदूक में भर दिया. पूर्णिमा से गुत्थमगुत्था होने की वजह से बैड पर सामान के साथ पड़ी कुछ चूडि़यां टूट गई थीं.

उन के टुकड़े बीन कर नरेश ने रामू के कमरे की खिड़की से बाहर फेंक दिए. दरअसल जिस बैडरूम में नरेश ने पूर्णिमा का गला घोंटा था, उस की खिड़की साइड वाली गैलरी में खुलती थी, जबकि रामू के कमरे की खिड़की गली में खुलती थी. इसीलिए उस ने चूडि़यां वहां से फेंक दी थीं.

संदूक में सामान भरने के बाद नरेश ने संदूक अलमारी के ऊपर रख दिया और डबल बैड की चादर झाड़ कर बिछा दी. पत्रों का बंडल साथ लिया और बिना एक पल भी गंवाए कोठी से बाहर निकल गया. यह सारा काम 15 मिनट में निपट गया था. यह इत्तेफाक ही था कि किसी ने उसे आतेजाते नहीं देखा था.

नरेश ने आगे बताया कि कोठी से निकल कर वह अंजलि एक्सपोर्ट के औफिस गया और वहां लगभग पौन घंटा बैठ कर अपने औफिस चला गया था.

पूर्णिमा के कत्ल की पूरी कहानी पता चल चुकी थी. हम ने नरेश को विधिवत गिरफ्तार कर लिया. उस ने अपने औफिस से पत्रों का पुलिंदा भी बरामद करा दिया. ये पत्र वे थे जो पूर्णिमा ने लंदन और मुंबई के पतों पर शादी से पहले और बाद में परवीन चड्ढा को लिखे थे. पत्रों के हिसाब से उन दोनों में बहुत प्यार था. प्यार ही नहीं दैहिक संबंध भी था.

रामू पर भी भादंवि की धारा 201 का अपराध बनता था. अत: पूछताछ के बाद हम ने नरेश सेठी और रामू को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.

—प्रस्तुति : पुष्कर पुष्प

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