बीज एक छोटी जीवित संरचना है, जिस में पौधा ऊतकों की कई परतों से ढका हुआ नींद में रहता है और जो सही माहौल जैसे नमी, ताप, हवा और रोशनी व मिट्टी के संपर्क से नए पौधों के रूप में विकसित हो जाता है.

भारत में किसान परिवारों की संख्या बहुत सारे पश्चिमी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है. ऐसे में किसानों को अधिक पैदावार के लिए अच्छी क्वालिटी वाले बीज सही मात्रा में सही समय पर सही कीमतों के साथ मुहैया कराना जरूरी है.

कुछ सब्जियां, जिन का इस्तेमाल किचन गार्डन के रूप में भी किया जाता है, जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, मटर, मूली, चुकंदर, लहसुन, प्याज, मेथी, चौलाई, पत्ता गोभी, फूल गोभी, भिंडी वगैरह के बीज उत्पादन की तकनीक व उन की क्वालिटी के बारे में वैज्ञानिक तरीके यहां बताए जा रहे हैं:

प्याज

प्याज में परागण कीटों द्वारा होता है. बीज के लिए यह 2 साला फसल है. प्याज की

सभी किस्मों का बीज मैदानी इलाकों में तैयार किया जा सकता है. बीज उत्पादन के लिए

सब्जी का बीज ऐसे करें तैयार

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बीज एक छोटी जीवित संरचना है, जिस में पौधा ऊतकों की कई परतों से ढका हुआ नींद में रहता है और जो सही माहौल जैसे नमी, ताप, हवा और रोशनी व मिट्टी के संपर्क से नए पौधों के रूप में विकसित हो जाता है.

भारत में किसान परिवारों की संख्या बहुत सारे पश्चिमी देशों की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है. ऐसे में किसानों को अधिक पैदावार के लिए अच्छी क्वालिटी वाले बीज सही मात्रा में सही समय पर सही कीमतों के साथ मुहैया कराना जरूरी है.

कुछ सब्जियां, जिन का इस्तेमाल किचन गार्डन के रूप में भी किया जाता है, जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, मटर, मूली, चुकंदर, लहसुन, प्याज, मेथी, चौलाई, पत्ता गोभी, फूल गोभी, भिंडी वगैरह के बीज उत्पादन की तकनीक व उन की क्वालिटी के बारे में वैज्ञानिक तरीके यहां बताए जा रहे हैं:

 

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2 विधियां हैं:

बीज से बीज : इस विधि में बल्बों का उत्पादन सामान्य तरीके से ही करते हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल उन किस्मों के लिए करते हैं, जिन का अच्छी तरह भंडारण नहीं किया जा सकता यानी बीजों का इस्तेमाल उसी साल करना होता है.

बीज की बोआई अगस्त महीने में करते हैं और प्रतिरोपण सितंबर माह में किया जाता है. बल्बों में फरवरी में फूल आ जाते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज के लिए बल्बों का चुनाव नहीं करते हैं. इसी कारण बीज प्रचुर मात्रा में होता है, परंतु क्वालिटी अच्छी नहीं होती है.

बल्ब से बीज : इस विधि में पिछले मौसम में हासिल बल्बों को खेत में लगाते हैं. बीज के लिए स्वस्थ, चमकदार, मध्यम आकार के बल्बों का चुनाव करते हैं. 7-9 सैंटीमीटर व्यास और 50-60 ग्राम औसत वजन वाले बल्बों को 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. स्वस्थ व औसत वजन वाले बल्ब लगाने से उपज में बढ़वार होती है. बल्बों को लगाते समय लाइन से लाइन व पौधों से पौधों की दूरी 45×30 सैंटीमीटर रखते हैं.

बल्बों को 45 सैंटीमीटर चौड़ी मेंड़ बना कर बोआई करना सही होता है. बोआई के

3 महीने बाद फूल आ जाते हैं और 6 हफ्ते बाद बीज पक कर तैयार हो जाते हैं. फूल एकसाथ पक कर तैयार नहीं होते हैं. पके बीज फूल से छिटक कर जमीन पर गिर जाते हैं. इसलिए तैयार बीज छिटकने से पहले फूल को काट लेते हैं.

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इस तरह की कटाई 4 बार की कटाई के बाद खत्म हो पाती है. पके पुष्प गुच्छ को बीज छत्रक भी कहते हैं. बीज छत्रकों को कटाई के बाद हवादार व छायादार जगह पर सुखा लेते हैं. अच्छी तरह सूख जाने के बाद छत्रकों से बीज अलग कर देते हैं. बीजों को साफ कर के अच्छी तरह सुखा लेते हैं.

टमाटर

बीज के लिए टमाटर की खेती उसी तरह से होती है, जिस तरह सब्जी के लिए करते हैं. टमाटर स्वपरागित पौधा होते हुए भी इस में

30-40 फीसदी तक परपरागण पाया जाता है. इस कारण बीज तैयार करते समय 2 किस्मों के बीजों की दूरी 50 से 100 मीटर रखते हैं. बीज के लिए स्वस्थ पौधे का चुनाव करते हैं और पूरी तरह से पक जाने के बाद बीज के लिए फल को तोड़ते हैं. फल तोड़ने के बाद 2 तरीकों से बीज को अलग करते हैं:

किण्वन विधि : इस विधि का इस्तेमाल छोटेछोटे फलों, जिन में ज्यादा बीज होते हैं, के लिए किया जाता है. इस में टमाटर के गुच्छे को मिट्टी या लकड़ी के बरतन में 1-2 दिनों के लिए रख देते हैं.

इस के बाद उस बरतन में पानी भर देते हैं, जिस में पके टमाटर के गुच्छे रखे होते हैं. इस में टमाटर का गूदा और छिलका तैरने लगता है और बीज नीचे तली में बैठ जाते हैं. इन्हें छान कर अलग कर लिया जाता है. इस काम में टमाटर का कोई भी भाग खाने के काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. इस विधि से मिले बीजों में अंकुरण अच्छा होता है.

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अम्लोपचार विधि : बड़े स्तर पर बीज हासिल करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल होता है. इस में टमाटर का गूदा खाने में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस के लिए 14 किलोग्राम पके टमाटर के फल में 100 मिलीलिटर हाइड्रोक्लोरिक एसिड गूदे के साथ अच्छी तरह मिला कर 30 मिनट तक रख देते हैं.

इस तरह बीज व गूदा लसलसे पदार्थ से अलग हो जाता है. उस के बाद बीज व गूदे को साफ पानी से अच्छी तरह साफ कर लेते हैं और बीज को सुखा लेते हैं. इस विधि से मिले बीजों में अंकुरण की समस्या देखी गई है.

बैगन

बैगन में स्वपरागण होता है, परंतु कुछ हद तक कीटों द्वारा परपरागण भी होता है. इसलिए जब बीज के लिए बैगन की खेती की जा रही हो तो बैगन की 2 किस्मों के बीच कम से कम 200 मीटर की दूरी रखी जानी जरूरी होती है.

फूल आने के पहले, फूल आते समय और फूलों के तैयार होते समय पौधों की जांच करते रहें. अच्छे स्वस्थ पौधों पर लगे फूलों को बीज के लिए छोड़ते हैं. बीमार पौधों को पहली जांच में ही हटा देना चाहिए.

बीज के लिए छोड़े गए फल जब पक कर पीले पड़ जाते हैं तब उन्हें तोड़ लेना चाहिए. फल का छिलका हटा दें और फल के चाकू से पतलेपतले टुकड़े कर के बीज को गूदे से निकाल कर पानी में डुबो देते हैं.

इस के बाद बीज को धूप में सुखा लेते हैं, नहीं तो बीज के फूटने का डर बना रहेगा. बीज की औसत प्राप्ति 125-200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

मटर

मटर स्वपरागित फल है, लेकिन कुछ किस्मों में कम मात्रा में परपरागण भी होता है. बीज के लिए मटर की खेती उसी तरह की जाती है जैसे सब्जी फसल के लिए की जाती है. बीजों में शुद्धता बनाए रखने के लिए आधार बीज के लिए 2 किस्मों की खेती में 20 मीटर और प्रमाणित बीज के लिए 10 मीटर का अंतर रखना चाहिए.

इस के बाद भी फूलों के आने पर जांच के दौरान अगर और किस्म का पौधा दिखाई पड़ता है तो उसे उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए. जांच के दौरान बीमारी व कीट वाले पौधों को भी उखाड़ कर खत्म कर देना चाहिए.

पकी हुई फलियों को तोड़ कर दानों को छिलकों से अलग कर लें. बीज से टूटेफूटे दानों को अलग कर देना चाहिए. मटर बीज की औसत उपज 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

मूली

मूली में भी परंपरागत परागण होता है. परपरागण मुख्य रूप से मधुमक्खियों द्वारा होता है. मूली की एशियाई किस्मों से मैदानी और पहाड़ी इलाकों में बीज तैयार हो सकता है, परंतु यूरोपियन किस्मों के बीज केवल पहाड़ी इलाकों में ही होते हैं. जापानी व्हाइट किस्म का बीज मैदानी इलाकों में भी तैयार किया जा सकता है.

प्रमाणित बीज के लिए मैदानों में मूली की 2 किस्मों के बीच 1,000 मीटर की दूरी रखते हैं, जबकि आधार बीज में यह दूरी 1,600 मीटर की होनी चाहिए. जब तापमान 33 डिगरी सैंटीग्रेड से ज्यादा हो जाता है, तो स्त्रीकेसर सूख जाती है और पराग का अंकुरण रुक जाता है.

मूली के बीज तैयार करने के 2 तरीके

बीज से बीज : इस विधि में मूली को खेत में ही छोड़ देते हैं. जड़ पकने के बाद फूल आते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज अधिक बनते हैं, परंतु बीज की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है, क्योंकि इस विधि में बीज पौधों का चुनाव संभव नहीं हो पाता है.

जड़ से बीज : इस विधि में मूली की स्वस्थ और पूरी तरह तैयार जड़ों को नवंबरदिसंबर महीने में, जब मूली खाने के लिए तैयार हो जाती है, तो उखाड़ लिया जाता है. आधे से तीनचौथाई भाग जड़ का और एकतिहाई हिस्सा पत्तियों का काट दिया जाता है. पत्ती सहित कटी हुई जड़ों को तैयार खेत में 75×30 सैंटीमीटर की दूरी पर फिर से लगाते हैं. इन्हें लगाने का सही समय मध्य नवंबर से दिसंबर मध्य तक का होता है. देरी से लगाने के कारण बहुत सी जड़ें सड़ जाती हैं. इन में से कुछ ही जड़ें फूटती हैं जिस के कारण कम बीज मिलता है.

नवंबरदिसंबर माह में लगाई जड़ों में मार्चअप्रैल में फलियां तैयार हो जाती हैं. फलियों को कुछ समय तक छाया

में सुखा लेते हैं. इस विधि से उन्नत बीज हासिल किया जा सकता है. किस्मों के अनुसार बीज की औसत उपज 600 से 800 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक होती है. मूली की तरह ही गाजर और शलजम के भी बीज तैयार कर सकते हैं.

भिंडी

यह स्वपरागित फसल होती है, परंतु इस में परपरागण की भी संभावना बनी रहती है. इसलिए बीज के लिए की जा रही खेती के लिए 2 किस्मों के बीच कम से कम 400 मीटर की दूरी रखनी चाहिए.

बीज वाले खेत से बीमार पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें. बीज के लिए स्वस्थ फल को पकने के लिए छोड़ देते हैं. अगर भिंडी को

2-3 बार तोड़ने के बाद बीज के लिए पकने के लिए छोड़ा जाता है तो बीज की मात्रा और क्वालिटी में कमी आ जाती है. भिंडी की बोआई करते समय पौधे से पौधे की दूरी 45×15 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.

शिमला मिर्च

यह फसल भी स्वपरागित है, परंतु परपरागण की संभावना के चलते 2 किस्मों के बीजों की बोआई करते समय 400 मीटर की दूरी रखें. बीज के लिए अच्छे, स्वस्थ पौधों को चुना जाता है. चुने हुए पौधों के फलों को पकने के लिए छोड़ना चाहिए.

अन्य मिर्च के फलों को तोड़ लेना चाहिए. पकने के लिए छोडे़ गए फलों को पूरी तरह पकने के बाद जब वे सिकुड़ने लगें, तब तोड़ लेते हैं. इस तरह औसत बीज की प्राप्ति 50 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.

चुकंदर

इस का बीज पहाड़ी इलाकों में ही तैयार किया जा सकता है. यह परपरागित फसल है और परपरागण हवा द्वारा होता है. प्रमाणित बीज में 1,000 मीटर, आधार बीज में 1,600  मीटर और नाभकीय बीज में 3,000 मीटर की दूरी पर अन्य किस्मों को उगाना चाहिए.

लहसुन

लहसुन की बोआई बीज से नहीं होती है. बोआई के लिए इस के जवों का इस्तेमाल करते हैं और बीज के लिए कोई खास तकनीक इस्तेमाल नहीं की जाती है. सब्जी या मसालों के लिए उपजाई गई फसल में से स्वस्थ, अच्छे

और बड़े कंदों को बीज के लिए रखते हैं.

बीज वाली फसल के लिए लाइन से लाइन की दूरी 40 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी

10-12 सैंटीमीटर रखते हैं.

सभी फसलों के बीज के लिए खेती करते समय खेती के वैज्ञानिक तरीकों को ही अपनाना चाहिए. खाद व पानी का भी इस्तेमाल इलाकेवार वैज्ञानिकों द्वारा तय मात्राओं के मुताबिक ही करना चाहिए. बीज उत्पादन के लिए केवल संबंधित फसल के लिए संस्तुत की गई दूरियों पर खास ध्यान देना चाहिए. इन तरीकों को अपना कर किसान अपनी जरूरतों के लिए बीज तैयार कर सकते हैं.            ठ्ठ

बीज से बीज : इस विधि में बल्बों का उत्पादन सामान्य तरीके से ही करते हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल उन किस्मों के लिए करते हैं, जिन का अच्छी तरह भंडारण नहीं किया जा सकता यानी बीजों का इस्तेमाल उसी साल करना होता है.

बीज की बोआई अगस्त महीने में करते हैं और प्रतिरोपण सितंबर माह में किया जाता है. बल्बों में फरवरी में फूल आ जाते हैं और बीज बनते हैं. इस विधि में बीज के लिए बल्बों का चुनाव नहीं करते हैं. इसी कारण बीज प्रचुर मात्रा में होता है, परंतु क्वालिटी अच्छी नहीं होती है.

बल्ब से बीज : इस विधि में पिछले मौसम में हासिल बल्बों को खेत में लगाते हैं. बीज के लिए स्वस्थ, चमकदार, मध्यम आकार के बल्बों का चुनाव करते हैं. 7-9 सैंटीमीटर व्यास और 50-60 ग्राम औसत वजन वाले बल्बों को 30 सैंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. स्वस्थ व औसत वजन वाले बल्ब लगाने से उपज में बढ़वार होती है. बल्बों को लगाते समय लाइन से लाइन व पौधों से पौधों की दूरी 45×30 सैंटीमीटर रखते हैं.

बल्बों को 45 सैंटीमीटर चौड़ी मेंड़ बना कर बोआई करना सही होता है. बोआई के

3 महीने बाद फूल आ जाते हैं और 6 हफ्ते बाद बीज पक कर तैयार हो जाते हैं. फूल एकसाथ पक कर तैयार नहीं होते हैं. पके बीज फूल से छिटक कर जमीन पर गिर जाते हैं. इसलिए तैयार बीज छिटकने से पहले फूल को काट लेते हैं.

इस तरह की कटाई 4 बार की कटाई के बाद खत्म हो पाती है. पके पुष्प गुच्छ को बीज छत्रक भी कहते हैं. बीज छत्रकों को कटाई के बाद हवादार व छायादार जगह पर सुखा लेते हैं. अच्छी तरह सूख जाने के बाद छत्रकों से बीज अलग कर देते हैं. बीजों को साफ कर के अच्छी तरह सुखा लेते हैं.

10-12 सैंटीमीटर रखते हैं.

सभी फसलों के बीज के लिए खेती करते समय खेती के वैज्ञानिक तरीकों को ही अपनाना चाहिए. खाद व पानी का भी इस्तेमाल इलाकेवार वैज्ञानिकों द्वारा तय मात्राओं के मुताबिक ही करना चाहिए. बीज उत्पादन के लिए केवल संबंधित फसल के लिए संस्तुत की गई दूरियों पर खास ध्यान देना चाहिए. इन तरीकों को अपना कर किसान अपनी जरूरतों के लिए बीज तैयार कर सकते हैं.

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