फिल्म ‘परिणीता’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’,  ‘द डर्टी पिक्चर’, ‘कहानी’ आदि कई फिल्मों से अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं अभिनेत्री विद्या बालन स्वभाव से हंसमुख, विनम्र और स्पष्ट भाषी हैं. ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ उनके करियर की टर्निंग पॉइंट थी. जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उन्होंने अपने उत्कृष्ट परफोर्मेंस के लिए कई अवार्ड जीते. साल 2014 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यही वजह है कि आज कोई भी निर्माता, निर्देशक उन्हें लेकर एक सफल फिल्म बनाने की कोशिश करता है. वह अपनी कामयाबी से खुश हैं और मानती हैं कि एक अच्छी स्टोरी ही एक सफल फिल्म दे सकती है. ‘कहानी’ फिल्म उनकी सफल फिल्म रही, इसके बाद ‘कहानी 2’ में भी वह फिर एकबार जबरदस्त भूमिका में आ रही हैं. फिल्म की प्रमोशन को लेकर वह बहुत खुश हैं. उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

प्र. इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है, कौन सी बात आपको इसमें अच्छी लगी?

ये एक अलग तरह की इमोशनल थ्रिलर फिल्म है. अलग दुनिया, अलग भूमिका, सब अलग है. फिल्म में दुर्गा रानी सिंह के साथ जो होता है वह एकदम अलग है. साढ़े चार साल बाद यह नयी कहानी आई है. इसकी कहानी रोमांचक और मनोरंजक है. इसमें मुझे एक अलग भूमिका करने को मिला जो अच्छी और चुनौतीपूर्ण है.

प्र. सीक्वल करना कितना मुश्किल होता है? कितना प्रेशर होता है?

हां, मुझे पता है कि लोग पुरानी कहानी से इसकी तुलना करेंगे. मैंने निर्देशक से इस बारें में बात भी की. उन्होंने कहा कि ये फ्रैंचाइजी है. इसमें हर कहानी अलग-अलग होगी. पहली बार फिल्म सुनते ही मैंने निर्देशक से पूछा कि क्या इस फिल्म में पुरानी फिल्म का कुछ भाग होगा? उन्होंने आत्मविश्वास के साथ कहा कि ये एकदम अलग फिल्म है, इसकी तुलना उससे नहीं होगी.

प्र. इस फिल्म के लिए आपने कितना होम वर्क किया?

सुजोय और मैं हमेशा फिल्म को और उसके भूमिका को लेकर बात करते रहते हैं, उसमें ही आधी तैयारी हो जाती है, क्योंकि किरदार को समझने में समय लगता है. लेकिन लगातार बात करते रहने से वह आसान होता है. इसमें एक जगह जहां मेरा एक्सीडेंट होता है प्रोस्थेटिक का प्रयोग किया गया है. उसके लिए कई ट्रायल्स हुए. मेकअप पर बहुत ध्यान दिया गया, क्योंकि निर्देशक ‘नो मेकअप लुक’ चाहते थे. जो फिल्म के एक भाग पर अधिक था. दूसरे भाग में प्रोस्थेटिक का प्रयोग हुआ है. वे ड्राई स्किन चाहते थे, क्योंकि दृश्य पहाड़ों पर रहने वाले के थे. जो कलिम्पोंग में शूट हुआ. मेरे मेकअप आर्टिस्ट श्रेयस म्हात्रे ने काफी मेहनत की है. फिर भी सही नहीं हुआ. अंत में निर्देशक ने मोयास्चरायजर लगाने को मना किया. मैंने वही किया और लुक सही आया.

प्र. ये फिल्म एक मां और बेटी की कहानी है, आप इसे कैसे ‘एक्सप्लेन’ करना चाहेंगी?

मेरे हिसाब से एक मां अपनी बेटी के लिए कुछ भी कर सकती है. किसी का क़त्ल भी कर सकती है. कुछ ऐसी ही भाव इस फिल्म में है और शायद अधिकतर मां ऐसी ही होती है. दुर्गारानी सिंह भी ऐसी ही महिला है. एक रियल भूमिका निभाने में बहुत अच्छा लगा.

प्र. फिल्म का कौन सा भाग अभिनय करने में मुश्किल लगा?

किसी का कान चबाना था. मुझे बहुत बुरा लगा. मुझे डर भी लगा था कि ये सीन एक बार में हो जाये. बार-बार ‘रिटेक’ ना करना पड़े.

प्र. आपके हिसाब से फिल्म का प्रमोशन करना कितना जरुरी है?

फिल्म का प्रमोशन करना बहुत जरुरी है. ये आज के कलाकारों के लिए अच्छा मौका है कि वे अपने काम को लोगों तक मीडिया के माध्यम से पंहुचा पाते है. इसे मैं हमेशा नयी-नयी तरीके से करना चाहती हूं. ताकि दर्शकों की रूचि फिल्म के प्रति बढ़े. मुझे अलग-अलग तरीके से प्रमोशन करने में मज़ा आता है.

प्र. अब तक की जर्नी को कैसे देखती है? अपने आप में कितना बदलाव महसूस करती है?

जर्नी तो उतार-चढ़ाव के बीच रही कुछ फिल्में चली कुछ नहीं, पर मैंने कभी हार नहीं मानी, क्योंकि हर दिन एक नया दिन होता है और हर दिन आप कुछ नया कर सकते हैं. मेरे जीवन में बदलाव तो बहुत आया, पहले मैं अकेली थी अब शादी हो चुकी है. सब कुछ बदल चुका है समय के साथ-साथ मैं भी ग्रो हुई हूं.

प्र. आप हमेशा कुछ न कुछ सामाजिक कार्य करती हैं, इसकी रूचि कहां से पैदा हुई?

बचपन से ही हमें सिखाया जाता रहा है कि हमें वो सबकुछ मिला, जिसकी जरुरत है. लेकिन इसका कुछ भाग हमें उनको देना चाहिए जिनके पास यह सब नहीं है. मेरी बहन भी अपने बच्चों को शेयर सिखाती है. ये बचपन से ही बच्चों को सिखाना पड़ता है. इससे बच्चों में संवेदनशीलता बढ़ती है. साथ ही इससे आप को ख़ुशी मिलती है और एक इंसान अपने पास कितना रख सकता है. ये सारी चीजे मुझे किसी और के बारें में सोचने पर मजबूर करती है और मैं सामाजिक कार्य की ओर चल पड़ती हूं.

प्र. आगे क्या कर रही हैं?

मैं एक मलयालम बायोपिक लेखक कमलादास पर कर रही हूं. उसी की तैयारी चल राही है. वह एक कंट्रोवर्सियल महिला थी. जिस तरह से वह अपनी जिंदगी जीती थी वह लोगों को अभी भी रुचिकर लगता है. उनपर फिल्म बन रही है और मैं उनको समझना चाहती हूं. इसके अलावा किसी भी भाषा में अच्छी स्क्रिप्ट पर मैं काम करना चाहूंगी. अभी मराठी और बांग्ला दोनों से ऑफर आते हैं, पर कोई बात अभी तक बनी नहीं है.

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