जमींदारों, सामंतों और अगड़ी जाति के रईसों के खिलाफ लड़ाई छेड़ने वाले नक्सलियों की नई खेप के सैंकड़ों लोग आज खुद नए जमाने के जमींदार बन चुके हैं. कई नक्सली अब जमींदार, ठेकेदार और कारोबारी  बनने की राह पर चल पड़े हैं. उनका कारोबार ऐसा चमक रहा है कि अच्छे-अच्छे कारोबारी उनसे काफी पीछे छूट गए हैं. अपने पैठ वाले इलाकों में सरकार के बराबर अपनी ‘सरकार’ चलाने वाले नक्सलियों ने पहले पैसा और प्रोपर्टी बनाने का नया फंडा अपनाया. उसके बाद पिछले 5-6 सालों से कई बड़े नक्सली सड़क, पुल, पुलिया बनाने से लेकर सरकारी योजनाओं में भाड़े पर ट्रैक्टर, जेसीबी मशीन, हाईवा मशीन, टीवर, डंपर आदि लगाने लगे हैं. इतना ही नहीं कई बिहार के इलाकों में तो सरकारी कामों का ठेका लेकर नक्सली ठेकेदार बन कर मोटी कमाई कर रहे हैं.

कुछ दिनों पहले खुफिया विभाग ने सरकार को रिपोर्ट सौंपी थी कि सरकारी योजनाओं में कई नक्सली पेटी कंट्रेक्टर के तौर पर काम कर रहे हैं. योजनाओं का ठेका हासिल करने वाली बड़ी बड़ी कंपनियों को धमका कर नक्सली छोटे-छोटे कामों का ठेका अपने हाथ में ले लेते हैं और बड़ी ठेका कंपनियां इस डर से नक्सलियों को ठेका दे देती हैं कि काम आसानी से हो सकेगा और नक्सलियों और अपराधियों की ओर से कोई परेशानी खड़ी नहीं की जाएगी. बड़ी ठेका कंपनियों की इस सोच को नक्सली जम कर भुना रहे हैं और खूब मलाई काट कर रहे हैं.

पिछले साल जमुई के हार्डकोर नक्सली पालुस हैम्ब्रम की एक जेसीबी मशीन पुलिस के हाथ लगी थी, उसके बाद ही पुलिस के माथे पर बल पड़ गए थे. पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू की तो कई चौंकाने वाली बातों का पता चला. उसके बाद खुफिया विभाग ने भी नक्सलियों के कारोबारी बनने वाली रिपोर्ट भी राज्य सरकार को सौंप दी. इससे नक्सलियों के व्यापारी बनने की बात पक्की हो गई. पुलिसिया जांच में उन्हें इस बात के कई पक्के सबूत मिल चुके हैं कि नक्सलियों ने अपने रिश्तेदारों और भरोसेमंदों को पेटी कंट्रेक्टर के धंधे में उतार रखा है और बड़ी कंपनियों पर धौंस जमा कर अपनी हूकूमत चला रहे हैं. बैठे-ठाले ठेका से होने वाले मुनाफे की रकम का बड़ा हिस्सा नक्सलियों के पास पहुंच रहा है. इससे वह बड़े ही आराम से लखपति-करोड़पति बन रहे हैं.

नक्सली असर वाले इलाकों में अकसर जेसीबी मशीन और डंपर आदि नक्सलियों द्वारा जलाने की वारदातें होती रहती हैं. पहले पुलिस यह समझती थी कि नक्सली सरकारी कामों को रोकने और ठेकेदारों से लेवी वसूलने के लिए ऐसा करते हैं, पर ऐसा नहीं है. नक्सली अपने जेबीसी और हाईवा मशीनों आदि को किराए पर लगाने के लिए दूसरे ठेकेदारों की मशीनों में आग लगा देते हैं. नक्सलियों के डर से अब कोई भी ठेकेदार निर्माण कंपनियों को मशीन देने से बिदकने लगे हैं. निर्माण कंपनियों को इससे कोई दिक्कत नहीं हुई, बल्कि नक्सनी उन्हें मशीने मुहैया करा रहे हैं और उनकी हिफाजत का भी भरोसा दिला रहे हैं.

ठेकेदारी समेत कई कारोबार में घुसे नक्सलियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. पुलिस मुख्यालय ने बिहार में अरबों रूपए को काम कर रही ठेका कंपनियों से उनके पेटी कंट्रेक्टरों की लिस्ट मांगी है. पुलिस को पूरा यकीन है कि या तो कुछ नक्सलियों ने खुद ठेका ले रखा है या फिर अपने करीबियों को ठेका दिलवा दिया है. ठेकदारों और नक्सलियों की इस सांठ-गांठ की रिपोर्ट से पुलिस और सरकार के होश उड़े हुए हैं. सूबे के तमाम सरकारी योजनाओं में लगे जेसीबी, टीवर, टैक्टर, ट्रक और हाईवा मशीनों के मालिक कौन-कौन लोग हैं, इसकी लिस्ट तैयार की जा रही है.

कुछ साल पहले ही खुफिया विभाग ने पुलिस को आगाह कर दिया था कि पेटी कंट्रेक्टर के काम में लग कर कई नक्सली करोड़पति बन बैठे हैं. एके-47, बंदूक और पिस्तौल के जोर पर वह बड़ी ठेका कंपनियों के जरिए लाखों रूपए कमा रहे हैं. पुलिस महकमे से मिली जानकारी के मुताबिक पटना में पिछले दिनों पकड़े गए नक्सलियों के पास से 68 लाख रूपए बरामद हुए. जहानाबाद में गिरफतार नक्सलियों के पास से 27 लाख 50 हजार रूपए और 5 मोबाइल फोन जब्त किए गए. औरंगाबाद में नक्सलियों के पास से 3 लाख 34 हजार रूपए और एक बोलेरो गाड़ी, गया में नक्सलियों के पास से 15 लाख रूपए, मुंगेर में नक्सलियों के पास से एक कार, 50 हजार रूपया और पिस्तौल बरामद किए गए.

गौरतलब है कि एक जेबीसी मशीन की कीमत 25 से 30 लाख रूपए के करीब होती है और इसका किराया प्रति घंटा एक हजार से 1500 रूपया होता है. टीपर की कीमत भी 30 लाख रूपए के आसपास है और उसका किराया रोजाना 5 हजार रूपया मिल जाता है. सड़क एवं पुल-पुलियों के काम में इन मशीनों को महीनों इस्तेमाल किया जाता है. इससे साफ हो जाता है कि मशीनों के किराए से ही नक्सलियों की जेबें किस कदर गरम हो रही है.

पुलिस हेडक्वाटर के सूत्रों पर भरोसा करें तो बिहार के कई नक्सलियों की करोड़ों की दौलत का पता करने का काम शुरू किया गया है. उसके बाद उनकी गैरकानूनी तरीके से बनाई गई संपत्ति को जब्त करने का काम चालू किया जा सकता है. गया जिला के देवकुमार यादव, मुंगेर के बाबूलाल यादव तथा अधिकलाल पंडित, औरंगाबाद के अखिलेश कुमार, अर्जुन सिंह, मृत्युंजय मिश्रा, यमुना मिस्त्री, नन्हे पासवान, दुधेश्वर, दीवीलाल, सत्यनारायण प्रजापति, ललन जी, राहुल, बिहारी, राजकिशोर यादव, सुभाष यादव, बिंदेश्वर पासवान एवं सुनी खत्री, सीतामढ़ी के संतोष झा और मृत्युंजय कुमार, जमुई के पांचू मुर्मू उवं पालुस हैम्ब्रम, मुजफ्फरपुर के अवध किशोर साह, संजय ठाकुर और विजय नाम के करोड़पति नक्सलियों की चल और अचल संपत्ति को खंगाला जा रहा है.

पुलिस का दावा है कि जमुई के नक्सली कमांडर बीरबल और रमेश हेम्ब्रम ने करोड़ों रूपए की दौलत बना रखी है. दोनों नक्सलियों के पास 80 लाख रूपए से ज्यादा की दौलत आंकी गई है. जमुई के लक्ष्मीपुर थाना के चपलवा गांव में बीरबल का 12 कमरों का घर है और उसकी कीमत 30 लाख रूपए आंकी गई है. जमुई के बाहर भी बीरबल ने प्रोपर्टी बना रखी है, जिसका पता लगाने में पुलिस लगी हुई है. वह फिलहाल जमुई जेल में बंद है.

चिंतक हेमंत राव कहते हैं कि नक्सलियों के करोबारी और करोड़पति बनने से यह साफ है कि नक्सल आंदोलन अपनी राह से भटक चुका है. पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में 18 मई 1967 को नक्सली आंदोलन की नींव रखने वाले कानू सन्याल ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिनों में यह कबूल किया था कि नक्सल आंदोलन अपने मकसद से भटक गया है. गरीबों और शोषितों को सामंतवाद के चंगुल से नजात दिलाने और उन्हें उनका हक और इंसाफ देने की नीयत से जिस नक्सल आंदोलन की शुरूआत की गई थी, वह आज लूटखसोट, भयादोहन और ऐयाशी का अड्डा बन कर रह गया है. गरीबों को जमींदारों और ऊंची जातियों की जुल्मों से बचाने की बात करने वाले नक्सलियों का एक बड़ा तबका पहले तो जुल्मी बना और अब कारोबारी बनने की राह पर चल पड़ा  है.

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