“अरे यार, तुम्हारे घर तक मेरी गाड़ी चली भी जाएगी या नहीं?” अमित ने व्यंग्य का एक और तीर फेंका.

“हां, यह प्रौब्लम तो है.  चलो, तुम्हारी गाड़ी मैं अपने एक मित्र के घर खड़ी करा दूंगा. उस का घर पास ही है,” राहुल अमित के व्यंग्य को समझ नहीं पाया.

“”अच्छा, चलो आओ, बैठो, चलते हैं,” अमित ने अपनी नई कार की ओर अहंकार से देखते हुए कहा.

“”लेकिन मेरा स्कूटर…चलो छोड़ो, इसे बाद में ले जाऊंगा.””

अमित और राहुल कार में बैठे और आगे बढ़ गए. रास्ते में राहुल और अमित स्कूल के क्लासमेट्स की बातें कर रहे थे कि बगल में पुलिस की गाड़ी चलती दिखाई दी. गाड़ी से एक पुलिस वाले ने राहुल की तरह हाथ हिलाया तो राहुल ने अमित को कार साइड में रोकने के लिए कहा. पुलिस की गाड़ी भी साथ में आ कर रुक गई. गाड़ी में से 2 पुलिस वाले बाहर निकले. उन में एक ठाटबाट वाला सीनियर इंस्पेक्टर और एक हवलदार था. दोनों ने राहुल को देखा और कहा, ““नमस्ते, राहुल सर.””

““कैसे हो, बहुत दिन बाद मिले हो,”” फिर अमित का परिचय कराते हुए कहा, ““ये मेरे दोस्त हैं अमित, विदेश में बड़ी कंपनी में उच्च अधिकारी हैं.”

“”नमस्ते,”” सीनियर इंस्पेक्टर ने अमित से कहा और फिर राहुल की तरफ मुखरित हो कर बोला, “”सर, बेटे का एडमीशन आप के स्कूल में कराना है, सोचा, एक बार खुद ही आप से कह कर सुनिश्चित कर लूं कि आप ही उसे पढ़ाएंगे. आप ने मुझे पढ़ालिखा कर यहां तक पहुंचा दिया है, तो मेरे बेटे को भी आप से सीखने का मौका मिले, इस से ज्यादा अच्छा और क्या हो सकता है.””

“”अरे, तुम मुझे यह कौल कर के कह देते,” राहुल ने कहा.

““बिलकुल नहीं, ऐसा अनादर कैसे कर सकता हूं मैं. मैं तो कल आने वाला था आप से मिलने, पर आप आज ही दिख गए.””

““अच्छा, चलो यह भी सही ही हुआ.”

कुछ देर घरबार की बात कर राहुल अमित के साथ वापस कार में बैठ गया.अमित ने सब ध्यान से सुना और राहुल का इतना आदर देख कर थोड़ा चौंका भी.

राहुल के दोस्त की गली में जब अमित की लंबीचौड़ी व महंगी कार पहुंची तो लोगों की नजरें भी कार के साथसाथ चलने लगीं. अमित के चहरे पर अत्यंत खुशी के भाव उभरने लगे थे. कार राहुल के दोस्त के घर से बाहर निकली तो लोग और बच्चे “नमस्ते राहुल सर”” कहते हुए आनेजाने लगे. अमित ने कार खड़ी की और राहुल के साथ उस के घर की तरफ बढ़ने लगा.

“मैं तो सोच रहा था, तुम किसी बड़ी कंपनी में इंजीनियर बन गए होगे. यह तुम टीचर कहां बन बैठे,”  पैदल चलतेचलते अमित ने राहुल से कहा.

“मैं तो हमेशा से टीचर ही बनना चाहता था,” राहुल ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया.

“अच्छा, अगर टीचर ही बनना था तो यह फटीचर स्कूल ही रह गया था.  तुम कहो तो अमेरिका या इंग्लैंड में किसी से बात करूं.  यों चुटकियों में तुम्हारा चयन करा दूंगा. या कहो तो दिल्ली या दुबई में एक स्कूल ही खुलवा देता हूं.  दोस्तों के लिए इतना तो कर ही सकता हूं.” अमित ने बड़े गर्व के साथ राहुल से कहा.

“अरे भाई, मैं भी इसी स्कूल में पढ़ चुका हूं.  हां, स्कूल की बिल्डिंग जरूर पुरानी है लेकिन यहां की पढ़ाई पूरे जिले में सब से अच्छी मानी जाती है.” अपने स्कूल के बारे में बताते हुए राहुल की आंखों में एक चमक सी थी.

“और तुम्हारे औफर के लिए धन्यवाद, लेकिन मैं यहीं खुश हूं,” राहुल ने मुसकराते हुए कहा तो अमित को थोड़ी निराशा सी हुई.

“लेकिन इस छोटे से शहर में रह कर तुम कितनी तरक्की कर पाओगे?  अपना नहीं तो अपने बच्चों के बारे में सोचो.  कल उन को भी किसी बड़े शहर जाना ही होगा.  मेरी मानो तो मेरे साथ दुबई चलो.  चाहो तो मेरी कंपनी में जौब कर लेना या फिर तुम्हें किसी स्कूल में सेट करा दूंगा,” अमित ने राहुल को समझाने की कोशिश की.

राहुल के घर जाने तक गली के कई लोग राहुल को ‘नमस्ते सर’ कहते सत्कार व्यक्त करने लगे. अमित के साथ कभी ऐसा नहीं हुआ था. राहुल के प्रति लोगों के इस प्रकार के सत्कारभाव को देख वह थोड़ा सकुचाया.

एक आदमी अपने बेटे को ले कर जा रहा था और राहुल को देख, रुक कर कहने लगा, ““अरे सर, कैसे हैं आप. सब बढ़िया तो है न?”

“”हां, सब ठीक है, आप बताइए.””

““हम भी बहुत अच्छे हैं. यह पिंकू जब से आप की क्लास में गया है, इतना तेज हो गया है कि हर समय गणित के जाने कैसेकैसे प्रश्न पूछने लगता है, हम तो कान पकड़ लेते हैं,” कह कर वह आदमी हंसने लगा. उसे देख राहुल भी हंस दिया.

अमित यह सब देखसुन असमंजस में पड़ गया. क्या उसे कभी इतना सम्मान, इतना प्यार मिला है लोगों से? वह जहां काम करता है वहां तो जिस की जेब में जितने बड़े नोट हैं उतनी ही बड़ी उस की इज्जत है या कहें उतना ही लोग उसे भाव देते हैं. यहां तो राहुल के साधारण होने पर भी लोग जहां देखते उस के आगेपीछे लग जाते. वह तो किसी को इस तरह का कोई लाभ भी नहीं पहुंचा सकता जिस के लालच में लोग ये सब करते हों. जिस तरह राहुल के छात्रों ने उसे याद रखा है और रख रहे हैं, क्या ऐसा कोई है जो अमित को याद रखेगा?

अमित यह सब सोच ही रहा था कि चलतेचलते राहुल का घर भी आ गया.  2 कमरों का छोटा सा घर था, लेकिन सबकुछ बड़ा व्यवस्थित और साफसुथरा था.

“ये हैं मेरे स्कूल के मित्र अमित.  विदेश में रहते हैं.  आज कितने ही सालों के बाद मिले हैं.  जल्दी से कुछ खाना खिलवाओ,”  राहुल ने अमित का परिचय अपनी पत्नी से कराते हुए कहा.

राहुल की पत्नी ने झटपट गर्मागर्म रोटी और सब्जी परोस दी.  अमित ने इतना स्वादिष्ट खाना कई वर्षों बाद खाया था.

“सच कह रहा हूं भाभीजी,  इतना स्वादिष्ट खाना मैं ने शायद पूरे जीवन में कभी नहीं खाया,” अमित ने दिल से खाने की तारीफ करते हुए कहा.

खाने के बाद अमित ने फिर से राहुल को दुबई चलने का औफर दे डाला.  इस बार राहुल थोड़ा गंभीर हो कर बोला, “यह सच है कि मैं बहुत ही मामूली पगार पर काम कर रहा हूं और मेरा घर भी छोटा सा है, लेकिन जो चीज मुझे यहां रोकती है वह है मेरी आत्मसंतुष्टि.  बचपन से ही मैं एक टीचर बनना चाहता था.  एमएससी और पीएचडी करने के बाद देशविदेश से मुझे कई औफर आए, लेकिन मैं ने अपने शहर के इस स्कूल को ही चुना क्योंकि मैं अपने शहर के लिए कुछ करना चाहता था.

“जानते हो, पहले यहां 10 में से एक छात्र ही इंजीनियरिंग या मेडिकल कालेज में एडमीशन ले पाता था.  मैं अपनी तारीफ नहीं कर रहा लेकिन पिछले 10 सालों में मेरे स्कूल से  50 बच्चे मेडिकल और 100 से ज्यादा बच्चे इंजीनियरिंग कालेज में प्रवेश ले चुके हैं.  इन बच्चों की सफलता मुझे वह खुशी और आत्मसंतुष्टि देती है जो शायद किसी कंपनी का सीईओ बनने पर भी नहीं मिलती.  और अगर अपना मन खुश है तो चाहे बिजनौर में रहो या बेंगलुरु या फिर बोस्टन, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता.  और फिर यहां मेरी पत्नी और बच्चे भी खुश हैं. मुझे और क्या चाहिए.”   राहुल के चेहरे पर आत्मसंतुष्टि की चमक थी.

और दूसरी तरफ अमित हैरान था.  उस को याद आ रही थी अपनी तनावभरी जिंदगी, न सेहत का ध्यान न परिवार संग बिताने के लिए समय.  कभीकभी तो उस को अपने बेटे के साथ डिनर किए हफ्तों बीत जाते.  छुट्टी के नाम पर साल में 2-4 दिन परिवार को कहीं विदेश घुमा लाता, उस में भी उस का फोन लगातार बजता रहता.  नौकरों के हाथों से बना खाना खाखा कर वह बचपन के स्वादिष्ट खानों का स्वाद ही भूल चुका था. इतनी कम उम्र में ही उस को हाई ब्लडप्रेशर और हलकी शुगर भी हो गई थी.

सामने दीवार पर राहुल, उस की पत्नी और उन के बेटे की तसवीर लगी थी.  सब कितने खुश नजर आ रहे थे.  वहीं दूसरी तरफ उस को अपनी पत्नी से लड़ने तक की फुरसत नहीं थी.  बेटे के स्कूल में क्या चल रहा है, उस को पता ही नहीं.  मम्मीपापा साल में कुछ दिन उस के साथ रहने आते तो उन से भी, बस, थोड़ीबहुत ही बातचीत हो पाती.

अब उस को लग रहा था कि राहुल तो कभी रेस में था ही नहीं, वह तो खुद अपनेआप से ही रेस लगा रहा था, और बारबार अपनेआप से ही हार रहा था.

“मैं फिर हार गया,”  अमित के मुंह से निकल गया.”कुछ कहा तुम ने,” राहुल ने उस को सवालिया नजरों से देखा.”कुछ नहीं,” अमित ने मुसकराते हुए कहा. अब उस को अपनी हार पर कोई दुख नहीं था.

 

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