एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता से ‘लोकल से वोकल’ होने की अपील कर रहे हैं, वहीं स्वदेशी को ले कर बहुत सारी घोषणाएं भी होने लगी हैं. कभी भारतीय जनता पार्टी के यही नेता लालू प्रसाद यादव के द्वारा रेलगाड़ियों में कुल्हड़ के प्रयोग की शुरुआत करने का मजाक उङाया करते थे. लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री पद से हटते ही कुल्हड़ की योजना बंद कर दी गई थी.
एक तरफ प्रधानमंत्री स्वदेशी का नारा दे रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उन की ही सरकार देश मे श्रम कानून को 3 साल के लिए खत्म कर रही है जिस से विदेशी कंपनियों को देश में अपना कारोबार शुरू करने में आसानी हो सके. यह दोनो ही बातें आपस में पूरी तरह से विपरीत हैं और जनता की समझ से परे भी.
चाइना से पलायन करने वालों पर निशाना
ये भी पढ़ें-पीएम का संदेश: जो न समझे वो अनाड़ी है
चाइना से पलायन कर के उद्योगधंधे भारत की तरफ आ रहे हैं यह बात जोरशोर से उठाई जा रही. उत्तर प्रदेश सरकार के 2 मंत्री सतीश महाना और सिद्धार्थ नाथ सिंह इन विदेशी कंपनियों के साथ रोज बातचीत करने का दावा कर रहे हैं. ये लोग सब से पहले अपने प्रदेश में इन को आकर्षित करने का दावा करते यह भूल जाते हैं कि 3 साल में हुई 2 इनवैस्टर समिट और एक डिफैंस ऐक्सपो का नतीजा जमीन पर नहीं दिखाई दिया. उधर उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी चरम पर है.
श्रम कानून में बदलाव के पीछे की मूल वजह इन कंपनियों को बताया जा रहा है. ये कंपनियां कोरोना वायरस के संकट के समय चाइना से अपना कारोबार समेट कर दूसरे देशों में कारोबार करने के लिए जाना चाहते हैं. केंद्र सरकार इस बात को बराबर कह रही है कि चाइना से पलायन करने वाली कंपनियां भारत आना चाहती हैं इसलिए कठोर लेबर कानून को सरल किया जाना चाहिए. भारत सरकार ने इस दिशा में कई कदम भी उठाए हैं. कई प्रदेशों की सरकारों ने श्रम कानूनों में 3 साल के लिए छूट देने का एलान भी किया है.
ये भी पढ़ें-श्रम कानून में बदलाव: मजदूर नहीं मनुवादी सोंच का विकास
चाइना तो बहाना है
चाइना से कंपनियों के पलायन की बात उतनी बड़ी नही है जितना बड़ा कर के उसे पेश किया जा रहा है. कोरोना वायरस के संकट वाले दौर में चाइना को छोड़ने वाली कंपनियों की संख्या बहुत कम है. चाइना ने अपने बिजनैस करने वाले 90% कंपनियों को वहां रोकने में सफलता हासिल कर ली है. केवल 10% कंपनियां ही चाइना को छोड़ने पर विचार कर रही हैं. ये 10% कंपनियां केवल भारत से ही बातचीत नहीं कर रहीं, बल्कि ताइवान, मलयेशिया, सिंगापुर जैसे दूसरे देशों के साथ भी बातचीत कर रही हैं.
इन कंपनियों के चाइना छोड़ने का कारण कोरोना वायरस नहीं है. इस की वजह अमेरिकी निर्यात और आयात की कुछ नीतियां हैं, जिस से प्रभावित हो कर कुछ कंपनियां चाइना छोड़ कर दूसरे देशों से अपना कारोबार शुरू करने की योजना में हैं. इन कंपनियों की पहली पसंद भारत नहीं है क्योंकि श्रम कानून सरल होने के बाद भी यहां अपराध और बिजली की सप्लाई बड़ी परेशानी है. ऐसे में भारत को कोई बड़ा निवेश मिलेगा इस की संभावना कम ही नजर आ रही है. यह और बात है कि कोरोना वायरस संकट की आड़ में केंद्र सरकार श्रम कानून को फांसी पर डाल कर मजदूरों के साथ भेदभाव जरूर कर रही है.
इनवैस्टर समिट का वादा नहीं हुआ पूरा
उत्तर प्रदेश सरकार चाइना से पलायन करने वाली कंपनियों से बातचीत का रोज विवरण डाल रही है, मगर यह नहीं बताती कि इस से पहले जो इनवैस्टर समिट हुए उन में जो वादे हुए थे उन का क्या हुआ?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर 2 इनवैस्टर समिट के जरीए देश की दिग्गज कंपनियों को निवेश कराने के लिए राजधानी लखनऊ बुलाया गया था. इन के प्रयास धरातल पर उतर नहीं पाए हैं कि अब चाइना से पलायन करने वाली कंपनियों को उत्तर प्रदेश लाने की मुहिम शुरू हो गई है.
चाइना से आने वाली कंपनियों की बात समझने के लिए जरूरी है कि पिछली इनवैस्टर समिट के नतीजों पर नजर डाल लें :
इन प्रयासों का नतीजा यह रहा है कि प्रदेश में 4,28,054 करोड़ के निवेश के प्रस्तावों पर महज 1,045 एमओयू ही साइन हुए. औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के आंकड़ों के मुताबिक पहली ग्राउंड ब्रैकिंग सैरेमनी में 61,792 करोड़ रुपए के 81 प्रोजेक्टों के एमओयू हुआ. 81 एमओयू में मात्र 6 ही शुरू हुए हैं.
दूसरी ग्राउंड ब्रेकिंग सैरेमनी में 67,201.5 करोड़ रुपए के 290 एमओयू हुए. इन में से 44 एमओयू पर काम शुरू हुआ है. जबकि 101 एमओयू प्रक्रियाधीन हैं. उधर 111 एमओयू शुरू ही नहीं हो पाए हैं.
4 कंपनियों ने एमओयू से पीछा छुड़ा लिया है. इस के साथ ही औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग थर्ड ग्राउंड ब्रेकिंग सैरेमनी की तैयारियों में जुटा है. 11,488 करोड़ के 20 एमओयू विभिन्न कंपनियों से होने की उम्मीद है.
बीते 3 सालों में टौप 6 मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 28, ऐग्रो ऐंड फूड प्रोसैसिंग में 196, आईटी ऐंड इलैक्ट्रोनिक्स में 92, टूरिज्म में 76, इंफ्रास्ट्रक्चर में 70, रिन्यूऐबिल ऐनर्जी में 71 एमओयू हुए.
औद्योगिक एवं अवस्थापना विभाग के सूत्रों का कहना है कि फर्स्ट जीबीसी के 10 एमओयू जून 2020 में, 5 एमओयू दिसंबर 2020 में और 6 एमओयू दिसंबर 2021 तक पूरी होने की संभावना है. इसी तरह सैकंड जीबीसी के 46 एमओयू जून 2020 तक, 40 एमओयू दिसंबर 2020 तक और 17 एमओयू दिसंबर 2021 तथा 28 एमओयू दिसंबर 2021 तक पूरी होने की संभावना है.
आंकड़ों की बात छोड़ भी दें तो जमीनी स्तर पर किसी कंपनी ने कोई काम शुरू नहीं किया.
कोरोना संकट के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा है कि 20 लाख लोगों को रोजीरोजगर दिया जाएगा. यह कैसे होगा? इस के जवाब में केवल इतना बातया जा रहा है कि चाइना से पलायन करने वाली कंपनियों से बात चल रही है.