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मास्टर के संकेत पर सुलेमान बेंजो पर ‘तू चीज बड़ी है मस्त…’ की धुन छेड़ देते हैं. मास्टर की उंगलियां क्लेरिनेट पर थिरकने लगती हैं. धुन की लय पर बरातियों के पावों में अदृश्य थिरकन शुरू हो जाती है. कुछ उत्साही युवक लोगों को ठेलठाल कर गोलवृत्त बना लेते हैं और वृत्त के भीतर गाने की धुन पर डांस शुरू कर देते हैं. उन के बदन का हर अंग कमर, बांह, कूल्हे, टांगें वगैरा बेतरतीब झटकों से हवा में मटकने लगते हैं. गोबरा हंस पड़ता है, बुदबुदाने लगता है, ‘ले हलुवा, ई भी कोई डांस है. इस से अच्छा डांस तो हम कर सकता है. डांस सीखने के लिए ही तो परभूदेवा का फिलिम वह 15 बार देखा था. पर मुसीबत है कि डांस करें कहां? घेरे के भीतर घुसना मुमकिन नहीं. शक्लसूरत और कपड़ालत्ता है ही ऐसा कि दूर से ही चीह्न लिया जाएगा.’ पर उस का उत्साही मन नहीं मानता. होटल की दाईं ओर पतली गली है, अंधेरी और सुनसान. अधिक आवाजाही नहीं है उधर. ‘तू चीज बड़ी है मस्तमस्त’ की धुन हलकी हो कर मंडरा रही है उस जगह. गोबरा वहां आ जाता है और पूरी तन्मयता के संग धुन पर बदन थिरकाने लगता है. आत्ममुग्ध, ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना…’ जैसा ही उन्माद. नीम अंधेरे में नाचता हुआ वह ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल हवा में हाथपांव मार रहा हो. तभी गाना खत्म हो गया. बैंड की चीख एक झटके के साथ थम जाती है. चेहरे पर संतुष्टि की आभा लिए इठलाता हुआ गोबरा फिर पाखी के पास आ जाता है. पाखी उस के नाच के प्रति उन्माद को खूब समझ रही है. मुसकरा कर उस को प्रशंसात्मक बधाई देती है. थोड़ी देर में ही मुख्यद्वार पर दोस्तों से घिरा बींद यानी दूल्हा प्रकट होता है. बरातियों समेत सभी लोगों की नजरें उत्सुकता से बींद की ओर उठ जाती हैं. जरी की कामदार शेरवानी और रेशमी चूड़ीदार, माथे पर कलगी लगा साफा, कमर में लाल रेशम की कमरबंद, गले में मोतियों की कंठमाला, पीछे जरी की नक्काशी वाला बड़ा सा छत्र उठाए हुए है सांवर नाई. एक पल के लिए गोबरा की आंखें चुंधिया गईं, ई कौन है बाप, दूल्हा है…या रणबीर कपूर…या फिर श्रीमान गोबरा मुंडा. एकदूसरे को अतिक्रमित करते 3 साए गोबरा के जेहन में गड्डमड्ड होने लगते हैं.

इधर, पाखी की हसरतभरी नजरें भी बींद की ओर उठ जाती हैं. आह, प्रकृति ने कैसा लाललाल भराभरा चेहरा दिया सेठ लोगों को. दिमाग में एक चुहल कौंधती है. अगर इस दूल्हे के संयोग से उसे बच्चा हो जाए तो कैसा होगा उस का रूपरंग और नाकनक्श? उन के आदिवासियों में तो अधिकांश लोग सांवले होते हैं. उपलों जैसे होंठ और पकौड़े जैसी नाक वाले. गोबरा भी वैसा ही है. मन ही मन हंस पड़ती है वह. ट्रम्पेट थामे सुलेमान चचा बींद को देखते हैं तो एक झपाके से खुली आंखों में कुछ कोलाज कौंधने लगते हैं. रजिया 30वें वर्ष को छूने वाली है. काफी भागदौड़ के बावजूद कोई ढंग का लड़का नहीं मिल सका अब तक. एकाध जगह बात आगे बढ़ी तो मामला दहेज की ऊटपटांग मांग पर आ कर खारिज हो गया. चचा की तबीयत भी ठीक नहीं रहती इन दिनों. ट्रम्पेट में थोड़ी देर हवा फूंकते ही सांस उखड़ने लगती है. सलीम साहब कई बार उन्हें रिटायर कर देने की चेतावनी दे चुके हैं. चचा ने उन से वादा कर रखा है कि किसी तरह रजिया के हाथ पीले कर दें, फिर वे स्वयं बैंड से छुट्टी ले लेंगे. दहेज के लिए पैसे जुट जाएं, बस. बींद धीरेधीरे हाथी की चाल से चलता हुआ घोड़ी के पास आता है. घोड़ी उसे ‘टाइगर हिल्स’ की तरह लगती है, जिस पर चढ़ पाना टेढ़ी खीर है उस के लिए. बींद के पिता घोड़ी वाले साईस के कान में कुछ फुसफुसाते हैं. साईस घुटनों के बल नीचे झुक जाता है और फिर उस के कंधे पर पांव रखते हुए 3-4 प्रयासों के बाद आखिरकार बींद घोड़ी पर सवार हो जाने में सफल हो जाता है. उस के घोड़ी पर बैठते ही पिता, जिन के हाथ में सिक्कों से भरी थैली झूल रही थी, ने थैली से मुट्ठी भर सिक्के निकाले और बींद पर उछाल दिए.

जा…जिस पल का इतनी देर से इंतजार था, वह अचानक इस तरह आ जाएगा, यह बात गोबरा ने सोची भी न थी. वह उछाल भर कर सिक्कों पर चील की तरह झपट्टा मारता है. इसी बीच, पैसा लूटने वालों की छोटी सी भीड़ जमा हो जाती है वहां. टेपला, गोबिन, नरेन, सुक्खू इन सब को तो वह पहचानता है. और भी दूसरी बस्ती के कई नए चेहरे. एक हड़कंप सा मच जाता है घोड़ी के इर्दगिर्द. एकदूसरे को धकियातेठेलते सिक्कों को लूटने के लिए आतुर लड़के. फिर सबकुछ शांत हो जाता है. गोबरा पाखी के करीब आ कर मुट्ठी खोलता है. आंखों में चमक भर जाती है. 22 रुपए. छोटे सिक्के एक भी नहीं, सब 2 और 5 के सिक्के. बींद का पूरा लावलश्कर मंथर गति से आगे सरकने लगता है. पैसे लूटने वालों की भीड़ भी बरातियों के बीच में छिप जाती है.

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