एक लड़की और एक लड़का साइबर कैफे के काउंटर पर पहुंचते हैं. लड़के की उम्र 18 से 20 साल के बीच की होगी. लड़की ने दुपट्टे से अपना चेहरा ढक रखा है. लड़का भी कैप और बड़ा सा काला चश्मा लगाए हुए है. काउंटर पर बैठा शख्स उन्हें देख मुस्कुराता है और पूछता है- कितने घंटे? लड़का कहता है- ‘एक घंटा. उसके बाद लड़का अपने पौकेट से 100 रूपए का नोट उसे थमाता है. जोड़ा छोटे से कमरे में दाखिल हो जाता है और अंदर से किवाड़ बंद हो जाता है. काउंटर पर बैठा आदमी जोड़े से न तो पहचान पत्र मांगता है और न ही रजिस्टर में उनका नाम और पता दर्ज करता है, जबकि आईटी एक्ट के तहत यह जरूरी है. हर कैफे के नोटिस बोर्ड पर तो पहचान पत्र का फोटो कौपी जमा करने, पोर्न साइट नहीं देखने और न डाउनलोड करने की हिदायत तक लिखी रहती है, लेकिन उस पर शायद ही अमल किया जाता हो.
बिहार की राजधनी पटना समेत कई शहरों में ज्यादातर साइबर कैफे में सेक्स का खेल धड़ल्ले से चल रहा है. अगस्त में एक लड़की के साथ हुए गैंग रेप के मामले में साइबर कैफे को चलाने वाले अनिल कुमार की गिरफ्तारी हो चुकी है. एक्जीविशन रोड, कंकड़बाग, अशोक राजपथ, महेंद्रू, राजेंद्र नगर, राजा बाजार के करीब 15 साइबर कैफे का मुआयना करने के बाद साफ हो गया कि कैफे को चलाने वाले रुपयों की लालच में साइबर कैफे के बंद केबिनों में रंगरलियां मनाने की खुली छूट दे रहे हैं. आम तौर पर साइबर कैफे में एक घंटे की फीस 20 रूपये होती है, लेकिन युवा जोड़े एक घंटे के लिए केबिन में बंद होने का 100 रूपये तक दे देते हैं. पटना में तो पुलिस की कड़ाई की वजह से ज्यादातर कैफे वालों ने केबिनों से दरवाजा और परदा तो हटा दिया है पर बाकी शहरों में ऐसा नहीं हो सका है.
पुलिस भले ही कानून की धौंस जमा कर प्रेम के दीवानों को परेशान करने पर तुली हुई हो लेकिन प्रेमियों की नजर से देखा जाए तो युवा जोड़े साइबर कैफे के बंद केबिनों में प्यार और सकून के 2 पल ढूंढने आते हैं. पटना कौलेज में पढ़ने वाले एक प्रेमी जोड़े का दर्द है कि बड़े शहरों में तो प्रेमी जोड़े पार्कों, मेट्रो, मल्टीप्लेक्सों, सुपर मार्केट आदि में प्रेम की पींगे पढ़ते रहते हैं और 2-3 घंटा साथ गुजार लेते हैं. पटना जैसे छोटे शहर में इस तरह की जगहों की सुविधा नहीं है. छोटा शहर होने की वजह से किसी न किसी गली, सड़क, मार्केट आदि में युवा जोड़ों के पहचान वाले या रिश्तेदार घूमते मिल जाते हैं. इस डर से प्रेमी बेखौफ होकर साथ समय नहीं गुजार पाते हैं.
कुछ युवकों और युवतियों से जब यह पूछा गया कि पुलिस की रोक के बाद भी वे क्यों साइबर कैफे के केबिनों में बैठते हैं और उसमें आप लोग क्या करते हैं? एनआईटी बिहार का एक स्टूडेंट तैश में कहता है कि लड़का और लड़की साइबर कैफे में जाते हैं तो पुलिस को इससे एतराज क्यों है? यह जरूरी है कि साइबर कैफे में साथ जाने वाला हर युवा जोड़ा प्रेम की पींगे पढ़ने के लिए ही जाता है. कई युवाओं के घर पर कंप्यूटर और इंटरनेट सुविधा नहीं है तो वह किसी इम्तिहान का नतीजा देखने, नौकरियों के बारे में पता करने या पढ़ाई से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी हासिल करने के लिए साइबर कैफे जाते हैं, पर पुलिस छापामारी के दौरान कैफे में मौजूद हर लड़का और लड़की को एक ही डंडे से हांकने लगती है.
पटना के सिटी एसपी चंदन कुशवाहा कहते हैं कि आईटी एक्ट (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000) के तहत साइबर कैफे में सेक्स करने, सेक्स वीडियो या अपत्तिजनक सामग्री डाउनलोड या अपलोड करने पर कानूनी कारवाई की जाती है. इस एक्ट की धारा 78 के तहत इंस्पेक्टर लेवल के अफसर को जांच का अधिकार मिला हुआ है. धारा 80 के तहत आईटी एक्ट का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ पुलिस को बगैर वारंट के किसी को गिरफ्तार करने या छापा मारने का अधिकार मिला हुआ है. आईटी मामलों के जानकार मयंक बताते हैं कि आईटी एक्ट की धाराएं इतनी लचीली और बड़ी हैं कि पुलिस किसी भी साइबर मामले को अपराध बता कर उसके खिलाफ कारवाई कर सकती है.
मगध महिला कौलेज की बीए सेकंड ईयर की एक स्टूडेंट पुलिस के इस रवैये पर तैश में कहती है कि पुलिस बड़े और खतरनाक अपराधियों को तो पकड़ नहीं पाती है, जिसका भड़ास वह साइबर कैफे या पार्कों में युवा जोड़ों पर निकालती है. अपराधियों को पकड़ने में अकसर फेल रहने वाली पुलिस साथ घूम रहे या पार्कों या कैफे में बैठे युवा जोड़ों के साथ अपराधियों से भी बदतर सलूक करती है. यह क्या गैर कानूनी नहीं है? एडल्ट लड़का और लड़की अगर एक साथ घूम रहे हैं तो पुलिस को क्या परेशानी है? किसी पब्लिक प्लेस पर बैठ कर किसी तरह का भोंडा या भड़काऊ प्रदर्शन गैरकानूनी है. साइबर कैफे के केबिन में अगर युवा जोड़ा प्रेम के गीत गा रहा हो तो पता नहीं पुलिस को क्या परेशानी होने लगती है?
साइबर कैफे के केबिन में बैठना किसी भी नजर से गैरकानूनी नहीं है. आईटी कानून के तहत कैफे में बैठने वाले हरेक लोग से उनके पहचान पत्र की फोटो कौपी रिकार्ड में रखना जरूरी है. अमूमन कैफे चलाने वाले लोगों से न उनके पहचान पत्र की फोटो कौपी लेते हैं और न ही उनका नाम और पता रजिस्टर में लिखा करते हैं. रिटायर पुलिस अपफसर एके सिंह कहते हैं कि साइबर कैफे में आए हर आदमी से उसका पहचान पत्र लेना संचालक का काम है, अगर किसी का पहचान पत्र नहीं लिया गया है तो इसके लिए संचालक जिम्मेवार है न कि कस्टमर. पैसों के लालच में संचालक पहचान पत्रा नहीं लेते हैं.
पुलिस अफसरों का कहना है कि किसी भी कैफे से अपराधी किसी को जान से मारने की धमकी, रंगदारी वसूली और किसी भी तरह के अपराध से जुड़ा ई-मेल कर सकते हैं. पहचान पत्र की कौपी और उनके आने एवं जाने का समय रिकार्ड में नहीं रखने पर कैफे संचालक ही फंस सकते हैं. सभी तरह का रिकार्ड रखने पर कैफे संचालक तो कानून के फंदे में फंसने से बचेंगे ही साथ ही पुलिस को भी मुजरिम तक पहुंचने में आसानी होती है.
पुलिस ने तो सभी साइबर कैफे संचालकों को केबिन और परदा हटाने का आदेश दिया है, इसके बाद भी केबिन के अंदर और परदों के पीछे इश्कबाजी का खेल बेधड़क चल रहा है. एक साइबर कैफे के स्टाफ ने बताया कि पुलिस साइबर कैफों को नियम कायदों पर अमल करने की घुट्टी तो पिलाती है लेकिन करकरे नोट की चमक के आगे खुद ही कानून को भूल जाती है. हर कैफे वाले को हर महीने ‘चढ़ावा’ चढ़ाने के लिए मजबूर किया जाता है और इसके लिए इलाके के हिसाब से ‘चढ़ावा’ भी फिक्स कर रखा है.