यौनशोषण आज की बात नहीं, यह सदियों से एक बड़ी समस्या रही है. बलात्कार की शिकार न केवल बच्चियां, लड़कियां, युवतियां होती हैं बल्कि समाज में ऐसे भी लोग हैं जो बच्चों और युवकों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो मानते हैं कि पुरुषों का बलात्कार होता ही नहीं है…

निर्भया, हैदराबाद, उन्नाव के बाद फिर एक गैंगरेप की घटना सामने आई है. लेकिन यहां पीडि़त कोई लड़की नहीं बल्कि एक लड़का है. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में 22 साल के एक लड़के के साथ 4 लोगों ने मिल कर गैंगरेप किया. चारों आरोपियों ने पीडि़त की इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट के जरिए उस की लोकेशन को ट्रेस किया और उसे अगवा कर लिया.

क्या है पूरा मामला…

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वीबी नगर पुलिस स्टेशन के पुलिस अधिकारियों के अनुसार, 4 संदिग्ध उस लड़के को इंस्टाग्राम पर फौलो करते थे. उक्त लड़के ने शहर के एक रैस्तरां के बाहर की एक सैल्फी पोस्ट की. चारों ने इस पोस्ट को देखा और उस की लोकेशन का पता लगाते हुए वहां पहुंच गए. उस लड़के से कहा कि वे उसे इंस्टाग्राम पर फौलो करते हैं और उस के फैन हैं. फिर चारों लड़कों ने उसे साथ में बाइक सवारी करने को कहा. जैसे ही सब मुंबई हवाई अड्डे पर पहुंचे, उन चारों ने उसे कार में चलने को मजबूर किया. इस के बाद अगले 3 घंटों तक सब ने मिल कर उस का रेप किया और फिर कार से नीचे फेंक दिया.

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यौनशोषण सदियों से एक बड़ी समस्या रही है. इस के शिकार हुए लोग न सिर्फ अपना आत्मविश्वास खो देते हैं बल्कि अपने दिल में हमेशा के लिए यह बोझ ले कर चलते हैं. यौनशोषण सिर्फ फिल्मों, किताबों और कहानियों की बात नहीं है बल्कि यह हमारे घरआंगन, शहर, गली, महल्ले और यहां तक कि कमरे के अंदर की भी बात है.

क्या सिर्फ महिलाएं और लड़कियां ही यौनशोषण का सामना करती हैं? या फिर समाज में ऐसे भी लोग हैं जो युवकों, बच्चों और पुरुषों को भी अपनी हवस का शिकार बनाते हैं? अकसर लोग यही सोचते हैं कि क्या पुरुषों के साथ भी रेप होता है? क्या कोई महिला किसी पुरुष के साथ दुष्कर्म कर सकती है? या किसी पुरुष का नाजायज फायदा उठा सकती है?

दरअसल, कई लोग यह मानने के लिए तैयार ही नहीं कि पुरुषों का भी यौनशोषण हो सकता है. हमारी सरकार और पुलिस भी ऐसा ही मानती है.

अमित (बदला हुआ नाम) जब

9 साल का था तब पहली बार उस के टीचर ने उस का रेप किया. स्कूल की तरफ से पिकनिक पर गए अमित को अचानक अपने बिस्तर पर कुछ महसूस हुआ. उस ने देखा, उस का टीचर उसे चूम रहा है. उसे सोता जान कर उस टीचर ने उस के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए. फिर 12-13 साल की उम्र में उस के दोस्त ने उस के साथ जबरदस्ती की.

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अमित जब कालेज में पहुंचा, तब उस के बड़े भाई की पत्नी ने उस का यौनशोषण किया, यानी उस को अपने साथ संबंध बनाने को मजबूर किया. तंग आ चुका था वह अपनी भाभी से. दूर जाना चाहता था, पर वह उसे जाने नहीं देती थी. बुरी तरह फंस चुका था वह अपनी भाभी के चंगुल में. पर यह बात उस ने किसी को नहीं बताई क्योंकि उसे लगता था कि लोग उसे ही दोषी ठहराएंगे. किसी से कुछ न बोल कर वह मन ही मन घुटता रहा.

लेकिन, आज अमित अपने जीवन में सुखी है. अच्छी नौकरी के साथ एक हंसताखेलता परिवार भी है. लेकिन अपने साथ हुए शोषण को याद कर आज भी वह दुखी हो जाता है. कभीकभी तो वह नकारात्मकता में चला जाता है. सोचता है, उसे अपने साथ हुए शोषण पर आवाज उठानी चाहिए थी, चुप नहीं रहना चाहिए था.

एक शख्स का कहना है कि जब वह 20 साल का था और किराए के मकान में रहता था. गरमी में छत पर सोता था. एक रात उस का मकान मालिक, जिस की उम्र 60 साल से भी ज्यादा थी, भी छत पर सो रहा था. एकाएक उस ने अपनी चटाई उस के समीप सरका ली और उसे सोता हुआ समझ उस की पैंट में हाथ डाल दिया. यह यौनशोषण घंटों तक चला. वह जाग चुका था पर डर की वजह से हिल भी नहीं सका और मकान मालिक उस का शोषण करता रहा.

उस शख्स का कहना था कि उस का उसे थप्पड़ मारने का मन कर रहा था लेकिन उस वक्त वह इतना कमजोर था कि चुप रह गया. उस का कहना है कि चूंकि वह पुरुष है, इसलिए उस ने उस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और न ही किसी को कुछ बताया ही. लेकिन, आज उस बात को याद कर वह क्षुब्ध हो जाता है.

बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रहे एक लड़के ने तो अपनी महिला बौस से तंग आ कर आत्महत्या कर ली थी.

एक अन्य लड़के ने बताया कि उस की सगी मौसी, जो उस से उम्र में लगभग 10 साल बड़ी थी, अकसर उसे पढ़ाते हुए कमरे का दरवाजा बंद कर लेती थी. शुरूशुरू में यह सब उसे अच्छा नहीं लगता था, लेकिन बाद में उसे अच्छा लगने लगा.

फिल्म जगत में भी

होते हैं शिकार

अभिनेत्री राधिका आप्टे का कहना है कि फिल्म जगत में यौनशोषण केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि वे कई ऐसे पुरुषों को जानती हैं जो यौनशोषण के शिकार हुए हैं. हौलीवुड निर्माता हार्वे विंस्टीन विवाद के बाद से मनोरंजन क्षेत्र में यौनशोषण के कई मामले रोशनी में आए. एक के बाद एक केविन स्पेसि, जेम्स टोबैक, ब्रेट रैटनर जैसे कई हौलीवुड दिग्गजों पर यौनशोषण के आरोप लगे.

बौलीवुड में अभिनेता इरफान खान पहले अभिनेता थे जिन्होंने अपने संघर्षों के दिनों में खुद को मिले समझौते के प्रस्ताव की बात खुल कर सामने रखी थी. राधिका ने कहा कि अधिक से अधिक महिलाएं अपने अनुभवों को साझा कर रही हैं. एक ऐसे मंच की आवश्यकता है जहां इन की सुनवाई हो पाए. अभिनेत्री ने एक साक्षात्कार में कहा कि केवल महिलाओं को ही नहीं, पुरुषों को भी यौनशोषण का सामना करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि यह संवेदनशील व गंभीर विषय है और यौन दुराचार रोकने के लिए अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है.

पुरुषों के साथ यौन दुराचार विदेशों में भी

अरब जगत में हुए बीबीसी के एक सर्वे से इराक के बारे में चौंकने वाली जानकारी सामने आई. इस सर्वे में महिलाओं से ज्यादा पुरुषों ने अपने शारीरिक शोषण किए जाने की बात कही.

समी (बदला हुआ नाम) अपना अनुभव साझा करते हुए बताता है कि जब वह 13 साल का था तब 15 से 17 साल के बीच की उम्र के 3 बड़े लड़के उसे कोने में ले गए और उसे यहांवहां छूने व दबाने लगे. समी सदमे में था कि यह क्या हो रहा है. उस का जिस्म मानो जम गया था. फिर हिम्मत जुटा कर वह चिल्लाया. यह शोर जब दूसरे बच्चों तक पहुंचा तो उन्होंने हैडटीचर को बताया. उन तीनों लड़कों को स्कूल से निकाल दिया गया. निकालने का कारण उन के मातापिता को नहीं बताया गया.

लेकिन, जब हैडटीचर ने बताया कि स्कूल इसे सहमति से हुई यौन घटना बता रहा है और उसे खुश होना चाहिए कि उसे स्कूल से नहीं निकाला गया, तो समी शौक्ड रह गया. इस का मतलब सब को यही लग रहा था कि समी ने सब के साथ मिल कर सहमति से संबंध बनाए. इस हमले से हिल चुके समी ने अपने परिवारवालों को कुछ नहीं बताया. लेकिन कई महीनों तक वह सदमे में रहा. फिर उन के घर आए एक रिश्तेदार ने समी के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की. जब उस ने विरोध किया तो उस ने उसे मारा और रेप किया. वह हिंसक हमला समी के लिए बहुत दर्दनाक था. अगर वह उस के बारे में ज्यादा सोचता, तो उसे बुरे सपने आने लगते थे.

उस हमले के मानसिक घाव से समी इतना परेशान हो जाता था कि रोमांटिक रिश्तों से शरमाने लगा था. फिर उस ने शहर बदला, नए दोस्त बनाए और खुद में आत्मविश्वास पैदा किया. उस ने सोच लिया कि अब उस बुरे अनुभव का बोझ अकेला नहीं ढोएगा. फिर उस ने अपने दोस्तों के एक छोटे समूह से अपने अनुभव शेयर किए और पता चला कि वह अकेला इंसान नहीं है जो यौनशोषण का शिकार हुआ है. उस के दोस्तों के समूह में कई और युवा भी थे, जिन्होंने बताया कि उन के साथ भी ऐसा यौनउत्पीड़न हुआ है.

नहीं मिलता इंसाफ

’ह्यूमन राइट्स वाच’ इराक में गे पुरुषों और ट्रांस महिलाओं के साथ होने वाली यौनहिंसा के बारे में जानती है. हालांकि, ये मामले भी अकसर पुलिस में दर्ज नहीं कराए जाते. इराक में समलैंगिक लोगों के लिए काम करने वाले एक स्वीडन आधारित एनजीओ, इराकीर के संस्थापक अमीर कहते हैं, ‘‘गे और ट्रांस पुरुष इराक में लगातार यौन उत्पीड़न के शिकार होते हैं और ये मामले पुलिस में दर्ज नहीं होते, क्योंकि सामाजिक संरचना पुरुषों को इन चीजों के बारे में बात करने की इजाजत नहीं देती. वे इसलिए भी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं कि लोगों को पता चल जाएगा कि वे गे हैं, जिस के बाद वे और ज्यादा हिंसा के शिकार होंगे. हालांकि पुरुषों का बलात्कार भी कानून के खिलाफ है लेकिन पुलिस और समाज में आमतौर पर पीडि़तों के लिए संवेदना नहीं होती. दरअसल, कोई पुरुष बलात्कार के मामले में शिकायत दर्ज कराता है, तो पुलिस वाले उस पर ही हंसते हैं.’’

ऐसा कितनी ही बार हुआ होगा जब आप ने किसी पुरुष के यौनशोषण की बात सुनी होगी? इस का कारण यह है कि कई पुरुष अपने साथ हुए यौनशोषण  की जानकारी देते ही नहीं हैं. उन के मन में पुरुष होने के बावजूद ऐसा होने के लिए मजाक उड़ाए जाने का डर लगा रहता है. महिलाओं की तरह पुरुष अपने शोषण की कहानी नहीं लिख पाते.

एक रिपोर्ट कहती है कि हर 6 में से

एक पुरुष के साथ जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर यौनशोषण होता है, हालांकि, असल आंकड़ा शायद इस से भी ज्यादा हो क्योंकि कई पुरुष अपने साथ हुए शोषण की रिपोर्ट नहीं करते.

आखिर ऐसा क्यों

यौनशोषण के शिकार इंसान, चाहे वह महिला हो या पुरुष, के मन में कई तरह की भ्रांतियां होती हैं. सब से अहम यह है कि क्या मेरे साथ शोषण हुआ है या क्या कुछ गलत हुआ है या यह आम है? यह बात पुरुषों के मन में ज्यादा उठती है. बचपन में लड़कों के साथ हुआ यौनशोषण उन्हें लगता ही नहीं कि गलत है या कुछ बुरा हुआ है. उदाहरण के तौर पर अगर किसी पुरुष के साथ यौनशोषण कोई महिला कर रही है तो कई बार पुरुष को लगता है कि यह सही है.

इसी कारण कई बार पुरुष को असहजता महसूस होती है और इसे हंसी में टाल दिया जाता है. कई लोगों को तो यह लगता है कि शायद यह उन्हीं ने शुरू किया होगा और सब सही है जिंदगी में. बहुत बाद में उन्हें यह समझ में आता है कि वह सब गलत था और उन का शोषण हुआ था.

साइकोलौजी के मुताबिक, जिस भी लड़के के साथ बचपन में यौनशोषण हुआ होता है उसे आगे चल कर कहीं न कहीं अपनी निजी जिंदगी में दिक्कत होती है. कई इसे हाइपर सैक्सुअलिटी से मापते हैं. कई इसे महिलाओं के प्रति गुस्से से जाहिर करते हैं तो कई पुरुष महिला पर भरोसा नहीं कर पाते हैं और उन्हें गलत ही समझते हैं. बचपन में हुआ यौनशोषण बड़े होने पर सोच पर असर डालता है. अगर 2 छोटी उम्र के लड़के हैं और एक बड़ा और एक थोड़ी कम उम्र का है, तब समझना और मुश्किल हो जाता है कि यह यौनशोषण था.

एक रिसर्चर और ‘डोंट टैल : द सैक्सुअल अब्यूज और बौयज’ किताब के लेखक माइकल डोरैस कहते हैं कि उम्र इस बात पर बहुत असर डालती है कि यौनशोषण के बाद यौनशोषण का शिकार हुए इंसान की सोच कैसी होगी. अकसर मेल टू मेल यौनशोषण में लड़कों को बेहद उग्रता का एहसास होता है और उन का व्यवहार भी वैसा ही बन जाता है.

शर्म और खुद को दोषी समझने लगना, समस्या को जन्म देने लगता है. यौनशोषण किसी भी इंसान को अंदर से गंदा महसूस करवाता है.

समलैंगिकता का ठप्पा लगने का डर : यौनशोषण के शिकार पुरुष को लगता है कि उन के साथ हुए यौनशोषण के कारण लोग उन्हें समलैंगिक न समझने लग जाएं. फिर हो सकता है लोग उन का फायदा भी उठाने लगें. इसलिए वे अपने साथ हुए यौनशोषण की बात किसी से कह नहीं पाते हैं. कहीं न कहीं उन्हें अपनी बदनामी का डर होता है. बौलीवुड की फिल्म ‘बदरीनाथ की दुलहनिया’ में वरुण धवन के यौनशोषण के सीन को कौमेडी की तरह दिखाया गया था और यह बात बेहद चिंताजनक है. मेल ईगो को ले कर इस तरह के सीन समाज में यह दर्शाते हैं कि पुरुषों का यौनशोषण होता ही नहीं है और यह सिर्फ एक मजाक ही है.

पुरुषों के यौनशोषण पर कानून

भारत समेत दुनियाभर में महिलाओं की तरह पुरुष भी रेप का शिकार होते हैं. भारत में पुरुषों के साथ रेप को ले कर कानूनी मान्यता नहीं है, जिस के चलते ऐसे मामले उजागर नहीं हो पाते हैं. हालांकि, अमेरिका समेत दुनिया के दूसरे देशों में पुरुषों के साथ रेप के काफी मामले सामने आते हैं. विदेशों में पुरुषों के साथ रेप होने पर कानून हैं जिन के तहत आरोपी को सजा देने का प्रावधान किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट जितेद्र मोहन शर्मा और एडवोकेट उपेंद्र मिश्रा का कहना है कि भारत में महिलाओं के साथ होने वाले रेप को ही रेप माना जाता है. पुरुषों के साथ रेप को ले कर कोई कानून नहीं है. हालांकि, अननैचुरल सैक्स को ले कर कानूनी प्रावधान किए गए हैं. इस के तहत आरोपी को 10 साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. लेकिन पुरुषों के साथ रेप को ले कर कोई प्रावधान नहीं है.

हां, अगर कोई महिला शादी का झांसा दे कर किसी पुरुष से शारीरिक संबंध बनाती है, तो पुरुष को धोखाधड़ी का केस करने का अधिकार है. महिला द्वारा पुरुष का रेप किए जाने का एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा भी था. एक व्यक्ति ने याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि अगर कोई महिला शादी का वादा कर के शारीरिक संबंध बनाती है और फिर शादी से मुकर जाती है तो क्या यह बलात्कार और धोखा माना जाएगा? उस ने उस महिला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई भी, जिस को कर्नाटक हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था.

2017 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में एसिड अटैक से पीडि़त पुरुषों को भी सरकारी सहायता देने की सिफारिश की थी. एसिड अटैक की शिकार सिर्फ लड़कियों और महिलाओं को ही सरकारी मदद दी जाती है. उन का सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में मुफ्त इलाज किया जाता है. उन की प्लास्टिक सर्जरी की जाती है. साथ ही, उन्हें इस संकट से उबरने के लिए काउंसलिंग की सुविधा भी दी जाती है. परंतु इसी प्रकार के हमले के शिकार पुरुषों को ये सुविधाएं नहीं मिलती हैं. वे एक अभिशप्त जीवन जीने को मजबूर होते हैं.

भारतीय समाज हमेशा से पुरुष प्रधान रहा है. नतीजा यह हुआ कि यहां महिलाओं को शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया. इसी को ध्यान में रखते हुए महिलाओं के विकास और सुरक्षा हेतु कानून बनाए गए. पर कुछ लोगों ने कानून का दुरुपयोग भी करना शुरू कर दिया और वृद्धों पर भी शारीरिक शोषण के आरोप लगाए जाने लगे. कई बार पुरुषों का शारीरिक शोषण महिलाओं अथवा खुद पुरुषों द्वारा किया जाता है. यह धारणा है कि हमेशा पुरुष ही गलत होते हैं. वे तो बलिष्ठ होते हैं, फिर कोई उन का शोषण कैसे कर सकता है? पर हमें समझना होगा कि हर सिक्के

के दो पहलू होते हैं और पुरुषों का भी मानसिक व शारीरिक शोषण हो सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल अपने एक फैसले में कहा था कि दुष्कर्म और तेजाब पीडि़तों को मुआवजा देने की योजना में नाबालिग लड़कों और पुरुषों को भी शामिल किया जाए. यह निर्णय ‘जैंडर इक्वैलिटी’ की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है. राजस्थान के एक प्रतिष्ठित बोर्डिंग स्कूल की 11वीं कक्षा के छात्र का सीनियर विद्यार्थियों ने शारीरिक शोषण किया, जिस की शिकायत उस के अभिभावकों ने की. मगर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बावजूद हर स्तर पर इस मामले को दबाने का प्रयास किया गया. राज्य के मीडिया ने लगातार इस मामले को एक महीने तक उठाया था. बावजूद इस के, समाज और प्रशासन के स्तर पर एक चुप्पी सी छाई रही, जैसे यह कोई बड़ी बात हो ही न.

सोच सही नहीं

सर्वे बताता है कि लड़कियों के यौनशोषण के मामले में पुलिस अब जल्द सक्रिय हो जाती है. लेकिन लड़कों के ऐसे मामलों में कुछ खास ध्यान नहीं दिया जाता. सच तो यह है कि लड़कों के साथ हो रहे इन यौन अपराधों के लिए कानूनी पहलू से कहीं ज्यादा सामाजिक सोच जिम्मेदार है. समाज मान कर चलता है कि यौनशोषण तो लड़कियों का होता है. यह बात आमतौर पर दिमाग में लोगों के नहीं आती कि इस का शिकार लड़के भी होते हैं. महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की वर्ष 2007 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 52.22 प्रतिशत बच्चों को यौनशोषण के एक या अधिक रूपों का सामना करना पड़ा और इन में से 52.94 प्रतिशत लड़के इस का शिकार हुए. लेकिन यह बहुत हैरान करने वाला तथ्य है कि इस सत्य के उजागर होने के बाद भी न तो इस संबंध में विधायी संस्थाओं में कोई चर्चा की गई और न ही किसी शोध पर जोर दिया गया.

कुछ समय पहले हुए एससीआईआरटी (स्टेट काउंसिल औफ एजुकेशन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग), हरियाणा के सर्वे में खुलासा हुआ कि लड़कियों के मुकाबले लड़के यौनशोषण के ज्यादा शिकार हो रहे हैं. भले ही यह बात आप को हैरान कर रही हो, मगर सालों से छिपाया जाने वाला यह नंगा सच है जिसे हमेशा ‘मिथक’ कह कर झुठलाया गया है. आमतौर पर लोग इस बात को गंभीरता से नहीं लेते. मानते ही नहीं कि लड़कों का भी रेप हो सकता है और यदि मान भी जाते हैं तो सोचते हैं कि यह कोई बड़ी बात नहीं है. इस से कोई खास नुकसान नहीं होता.

इंडियन जर्नल औफ साइकेट्रिक्स ने 2015 में एक लेख प्रकाशित किया था, जिस में कुछ यौनपीडि़तों का उल्लेख किया गया था. उन में एक प्रसंग 9 वर्ष के पीडि़त बालक का था. उस के पिता ने अपने बेटे के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श का विरोध करते हुए कहा था कि इस से न तो वह अपना कौमार्य खोएगा और न ही गर्भवती होगा. उसे एक मर्द की तरह व्यवहार करना चाहिए्र न कि किसी डरपोक इंसान की तरह.

यह सोच एक पिता की नहीं, बल्कि पूरे समाज की है. अगर बलात्कार से किसी का कौमार्य भंग नहीं होता, वह गर्भवती नहीं होता, तो क्या इसे अपराध नहीं माना जाएगा? यौनशोषण के शिकार पुरुषों को भी महिलाओं के समान ही पीड़ा और मानसिक आघात झेलना पड़ता है. उन्हें भी अपने साथ हुए शोषण पर आत्मग्लानि होती है. इस के साथ ही उन्हें भी समाज द्वारा मजाक बनाए जाने का डर सताता है. जानने पर उन से भी लोग किनारा करने लगते हैं, जो कई बार उन्हें अवसाद में धकेल देता है.

आज जिस तरह से लड़कियां अपने घर में भी असुरक्षित हैं, वैसे ही छोटे लड़के और युवा भी यह खतरा झेलते हैं. कई बार तो उन्हें अपने रिश्तेदार, पड़ोसी के भी हमले का शिकार होना पड़ता है. स्कूलों में उन्हें शिक्षकों, अन्य कर्मचारियों या सीनियर छात्रों से खतरा रहता है. पर हादसा होने पर भय या संकोच के कारण वे लंबे समय तक किसी से कुछ कह नहीं पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं. कई बच्चे तो समझ ही नहीं पाते कि उन के साथ हो क्या रहा है? लेकिन उस बात का बच्चे के व्यक्तित्व पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे बच्चे आगे चल कर कुंठा में जीने लगते हैं. कुछ बच्चे हिम्मत कर अगर अपने मातापिता, परिवार से यह बताते भी हैं तो उन्हें चुप रहने के लिए कहा जाता है.

2010 में ईटी-साइनोवेट ने देश के

7 शहरों में एक सर्वे कराया, जिस में बेंगलुरु के 32 प्रतिशत पुरुषों ने अपने साथ यौनउत्पीड़न की बात मानी. पुरुष यौनउत्पीड़न को हलके तौर पर लेने वालों को पता होना चाहिए कि 2015 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पाया कि भारतीय जेलों में खुदकुशी की बड़ी वजह साथी कैदियों द्वारा किया गया दुष्कर्म है. मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था वर्ल्ड विजन औफ इंडिया ने साफ कहा कि भारत में हर साल यौनशोषण के जितने भी मामले सामने आते हैं, उन में लड़केलड़कियों की संख्या करीबकरीब बराबर ही होती है.

लेकिन अब इस टैबू को तोड़ने के लिए फिल्म निर्मात्री और लेखिका इनसिया दरीवाला विशेष कैंपन चला रही हैं. बता दें कि मुंबई में रहने वाली इनसिया खुद यौनशोषण की शिकार हो चुकी हैं. इनसिया एनडीटीवी डौट कौम पर प्रकाशित एक लेख में कहती हैं, ‘‘मुझ से लोग अकसर पूछते हैं कि एक पुरुष द्वारा यौनशोषण की शिकार हुई महिला होने के बावजूद तुम पुरुषों के यौनशोषण को सामने लाने का कैंपेन कैसे चला सकती हो? तो मैं कहती हूं कि इस सवाल का जवाब पुरुष रेप और यौनशोषण से जुड़े आंकड़े हैं.’’

इनसिया ने बताया कि साल 2007 में भारत सरकार ने एक सर्वे कराया था.

इस अध्ययन में पाया गया कि करीब 59.9 प्रतिशत बच्चे यौनशोषण के शिकार हुए थे. इन में सभी उम्र, राज्यों और सामाजिक पृष्ठभूमि के बच्चे थे.

इनसिया के अनुसार, यौनशोषण के शिकार ज्यादातर बच्चों का यौनशोषण

5  से 16 वर्ष की उम्र के बीच हुआ. इनसिया लिखती हैं कि बच्चे अपने करीबियों को भी इस बारे में नहीं बता पाते. उन्हें डर लगता है कि लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे, लोग उन का यकीन नहीं करेंगे, मजाक उड़ाएंगे. इनसिया ने बताया कि उन के पति का भी बचपन में शारीरिक शोषण किया गया था. वे कहती हैं कि 6 हजार बच्चों और कई वयस्कों से बातचीत करने के बाद मुझे यकीन हो गया कि लड़कों के संग यौनशोषण की घटनाएं पिछले कुछ सालों में और तेजी से बढ़ी हैं. इसलिए इनसिया चाहती हैं कि सरकार इस दिशा में तेजी से कदम उठाए. उन का कहना है कि समाज का जो नजरिया है लड़कों को देखने का, ठीक नहीं है क्योंकि पुरुष बनने से पहले वे लड़के और बच्चे ही होते हैं.

लड़कों के साथ यौनउत्पीड़न होने पर बताने में कतराने की वजह के सवाल पर इनसिया ने कहा कि दरअसल, जब समाज में किसी लड़की के साथ यौनउत्पीड़न की घटना होती है तो समाज की पहली प्रतिक्रिया हमदर्दी की होती है. उसे बचाने के लिए सपोर्ट सिस्टम होता है. लेकिन अगर कोई लड़का अपने साथ हुए यौनउत्पीड़न के मामले को ले कर बोलता भी है तो पहले लोग उस पर हंसेंगे, उस का मजाक उड़ाएंगे. मानेंगे भी नहीं कि उस के साथ ऐसा कुछ हुआ भी है. वे कहेंगे, ‘तुम झूठ बोल रहे हो, यह हो ही नहीं सकता.’ हंसी और मजाक बनाए जाने के कारण लड़कों को आगे आने से डर लगता है.

इनसिया करीब 2 वर्षों से इस अभियान से जुड़ी हुई हैं और शुक्रगुजार हैं वे सरकार की, कि कम से कम वह इस ओर ध्यान तो दे रही है. आज सामान्य कानूनों को निष्पक्ष बनाने की प्रक्रिया चल रही है. इस की शुरुआत पोस्को कानून से हुई. अब धारा 377, पुरुषों के दुष्कर्म कानून को भी देखा जा रहा है. इनसिया कहती हैं कि अब यह नहीं है कि सरकार एक लिंग को ध्यान में रख कर सारे कानून बनाए. यह सिर्फ महिलाओं की बात नहीं है. पुरुष और महिलाओं को समानरूप से सुरक्षा मिलनी चाहिए.

दरअसल, कानून के साथ लोगों को अपनी सोच बदलने की भी जरूरत है कि समाज हम लोगों से बनता है, इसलिए मानसिकता बदलना बहुत जरूरी है. अगर हम मानसिकता नहीं बदल पाए तो कानून कितने भी सख्त बन जाएं, उन का कोई फायदा नहीं होगा.

मी टू की तर्ज पर अब मेन टू कैंपेन की शुरुआत की गई है. इस अभियान के तहत महिलाओं के हाथों यौनशोषण के शिकार हुए पुरुष अब खुल कर बोलेंगे. पीडि़त पुरुष सब के सामने अपनी आपबीती रखेंगे. इस कैंपेन में फ्रांस के एक पूर्व राजनयिक भी शामिल हैं जिन्हें 2017 में यौनशोषण उत्पीड़न के मामले

में अदालत ने बरी कर दिया था. इस अभियान की शुरुआत 15 लोगों के

समूह ने की थी.

 

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