कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है, मगर इसका सबसे ज्यादा खौफनाक असर अमेरिका पर देखने को मिल रहा है.अमेरिका में कोरोना वायरस ने करीब 56 हजार लोगों की जान ले ली है.कोरोना अमेरिका के लिए सबसे घातक बन गया है.अबतक अमेरिका में 9 लाख 87 हजार के करीब लोग इस वायरस की चपेट में आ चुके हैं.
अमेरिका में जनवरी के बाद से ही कोरोना वायरस का कहर तेज होता गया और लगातार पीड़ितों की संख्या बढ़ती गई. पिछले करीब चालीस दिन में अमेरिका में ‘स्टे एट होम’ का आदेश लागू है, इस वजह से करीब 90 फीसदी अमेरिकी जनता अपने घरों में है. गौरतलब है कि अमेरिका में पूरी तरह से लॉकडाउन नहीं है, जिसकी काफी आलोचना भी हुई है. यही कारण रहा कि अमेरिका के बड़े शहरों में कोरोना वायरस का कहर थम ही नहीं रहा. अभी भी न्यूयॉर्क में कोरोना वायरस ने सबसे अधिक तबाही मचाई है, सिर्फ न्यूयॉर्क में ही करीब 18 हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि यहां पर 8 लाख से अधिक लोगों का टेस्ट हो चुका है.अमेरिका में इस महामारी के कारण करीब 2 करोड़ से अधिक लोग अपनी नौकरी गंवा चुके हैं. पूरी दुनिया में तबाही मचा रहे कोरोना का सबसे ज्यादा कहर अमेरिका पर टूटा है. अमेरिका में हर दिन कोरोना वायरस संक्रमण से मौत का ग्राफ बड़ा होता जा रहा है और हर दिन नया रिकॉर्ड बनता जा रहा है.
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अमेरिका के लिए पिछले कुछ साल बेहद मुसीबत भरे रहे हैं. इस साल कोरोना की विपदा आ गयी.उधर मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अमेरिका को जून से नंवबर के बीच कुदरत के कहर का फिर सामना करना पड़ सकता है. अगर अमेरिकी सरकार ने सही कदम नहीं उठाए और सही फैसले नहीं लिए तो प्राकृतिक मुसीबत बहुत बड़ी हो सकती है और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है.अमेरिका इस वक़्त तीन बड़ी मुसीबतों से घिरा हुआ है.
अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी अमेरिका के इलाके इसके पीछे बड़े कारण हैं इंसानी गतिविधियां – जंगलों की कटाई, बढ़ता प्रदूषण आदि.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के हाइड्रोक्लाइमेटोलॉजिस्ट पार्क विलियम्स और उनकी टीम ने अमेरिका के इस भयानक सूखे का अध्ययन किया है. पार्क विलियम्स की टीम ने अमेरिका के 1586 स्थानों पर जाकर हजारों पेड़ों, मिट्टी, जलस्तर, नमी और वातावरण का अध्ययन किया पार्क विलियम्स की यह रिपोर्ट साइंस जर्नल में प्रकाशित हुई है.पार्क की टीम ने दक्षिण-पश्चिमी अमेरिकी राज्यों और उत्तर पश्चिमी मेक्सिको के 1586 स्थानों की जांच करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. पार्क ने बताया कि इससे पहले अमेरिका और मेक्सिको के इन इलाकों में इतना लंबा सूखा साल 800 में आया था. 850 से 1600 के बीच भी कई बार सूखे की स्थिती आई लेकिन इतनी भयावह नहीं थी.साल 1575 से 1593 के बीच एक बड़ा सूखा पड़ा था. लेकिन, इस बार का सूखा ज्यादा भयावह है. इस सूखे से अभी तक अमेरिका उबर नहीं पाया है.इसी की वजह कैलिफोर्निया जैसे प्रांतों में पानी की कमी हो गई गई है. वहां आयदिन जंगलों में आग लगी रहती है.
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इसी बीच, कोरोना वायरस के हमले की चपेट में आया अमेरिका शुरुआती लापरवाहियों के चलते अब खस्ताहाल है.अमेरिका में कोरोना वायरस की वजह से दस लाख से ज्यादा लोग बीमार हैं, जबकि, 56 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. यह संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है.इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिकी सरकार द्वारा फैसला लेने में की गई लेटलतीफी.
जब अमेरिका को लॉकडाउन करना चाहिए था, जब उसे टेस्ट बढ़ाने चाहिए थे, तब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप राजनीति करने में लगे हुए थे. वे चीन और विश्व स्वास्थ संगठन पर गुस्सा उतार रहे थे. चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाराज डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों पर मिलीभगत का आरोप भी लगाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग रोक दी. दूसरे देशों से आने वाले लोगों पर रोक लगा दी. अमेरिका के इन फैसलों से दुनियाभर पर असर पड़ा.दुनिया को साफ़ नज़र आया कि सुपर पावर बुरी तरह बौखलाया हुआ है. वहीँ वे हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा की पैरवी में भी लगे हुए थे.भारत को धमका रहे थे कि दवा की खेप ना भेजी तो फिर जवाब दिया जाएगा, ऐसी बातें कर रहे थे। जिस दवा को लेकर पूरी दुनिया के डॉक्टर और वैज्ञानिक कह चुके हैं कि इस दवा से कोरोना मरीज का ठीक होना संभव नहीं है, ट्रंप उसी पर पूरा भरोसा जता रहे थे. हालांकि भारत ने दवा की खेप भेज दी मगर कोरोना से मौतों का सिलसिला फिर भी नहीं थम रहा है.
इस समय कोरोना वायरस का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट अमेरिका और न्यूयॉर्क बने हुए हैं. अमेरिका के बाद यूरोपीय देश स्पेन, इटली, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम हैं. इन देशों में लाखों की संख्या में लोग कोरोना वायरस की वजह से बीमार हुए हैं. हजारों की संख्या में लोग मारे गए हैं.
अमेरिका में इससे ज्यादा भयावह स्थिति बन सकती है अगर जून तक कोरोना वायरस का कोई रोकथाम नहीं हुआ तो, क्योंकि, जून से अमेरिका के ऊपर नई मुसीबत मंडराने लगेगी. इस मुसीबत का नाम है तूफान, हरिकेन और साइक्लोन. जिसकी भविष्यवाणी यूएस नेशनल ओशिएनोग्राफिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के हाइड्रोलॉजिक एंड एटमॉस्फियरिक साइंसेज ने की है.दोनों संस्थानों ने कहा है कि कि इस बार अमेरिका में भारी तूफान, हरिकेन और साइक्लोन आने की आशंका है. ऐसी ही भविष्यवाणी अटलांटा की एक निजी मौसम कंपनी द वेदर चैलन ने भी की है.
द वेदर चैनल के अनुसार इस साल 1 जून से लेकर 30 नवंबर के बीच 18 तूफान आएंगे. इनमें से 9 हरिकेन होंगे. वहीं, इस साल इन छह महीनों में 12 तूफान आएंगे, जिनमें से 6 हरिकेन होंगे.वेदर चैनल ने बताया है कि चार हरिकेन भयानक स्तर के होंगे. ये कैटेगरी तीन से ऊपर के हो सकते हैं. मतलब ये कि जब ये हरिकेन आएंगे तब हवा की रफ्तार 178 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार या उससे कहीं ज्यादा हो सकती है. जो अमेरिका में भारी तबाही मचाएगी.
कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी ने भी भयानक तूफान और हरिकेन आने की आशंका जताई है. सभी ने इस सीजन के इतने भयावह होने के पीछे हाई-सी सरफेस टेंपरेचर को कारण बताया है.अटलांटिक महासागर का पानी गर्म होकर हवा के साथ नमी बनाएगा. यही तूफानों को हवा देगा. अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से हरिकेन और तूफानों की संख्या बढ़ती हुई दिख रही है. वैज्ञानिकों ने पिछले 30 सालों का अध्ययन करके यह नतीजा निकाला है. एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि 1993 के बाद इस बार अटलांटिक महासागर में गर्मी ज्यादा है, जून आते-आते इसका भयावह असर होगा. जितनी ज्यादा गर्मी महासागर में बढ़ेगी, अमेरिका के ऊपर उतना ही खतरा बढ़ जाएगा।.
एरिजोना यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं काइल डेविस और जुबिन जेंग ने कहा कि यह अभी अप्रैल की भविष्यवाणी है.जून के शुरूआत में हम एक और भविष्यवाणी जारी करेंगे। हमने 1993 से लेकर पिछले साल तक का डेटा खंगाला है.
काइल डेविस ने कहा कि हमने देखा कि जिस साल महासागर में गर्मी बढ़ी है, उस साल अमेरिका में तूफानों और हरिकेन की संख्या और भयावहता भी बढ़ी है.काइल का कहना है कि गणना के अनुसार इस बार अटलांटिक महासागर की गर्मी की वजह से 10 हरिकेन आएंगे, जिनमें से 5 बेहद गंभीर स्तर के होंगे.19 समुद्री तूफान आएंगे और 163 बार तेज बारिश और आंधी की संभावना है.
तीन तरफ से मुसीबत में घिरे अमेरिका की अर्थव्यवस्था तेज़ी से ढलान की ओर बढ़ रही है.अमेरिकी राष्ट्रपति इससे बुरी तरह घबराये हुए हैं लेकिन फिर भी वो इसमें सुधार लाने के लिए आश्वस्त करते हैं.ट्रंप कहते हैं, ‘हमारे पास कोई विकल्प नहीं है.मुझे हमेशा हर चीज की चिंता रहती है. हमें इस समस्या से पार पाना ही होगा. विश्व के इतिहास में हमारी अर्थव्यवस्था सबसे बड़ी रही है…. चीन से बेहतर, किसी भी अन्य देश से बेहतर.हमने पिछले तीन साल में इसे खड़ा किया और फिर अचानक एक दिन उन्होंने कहा कि तुम्हे इसे बंद करना होगा. अब, हम इसे दोबारा खोल रहे हैं और हम बेहद मजबूत होगें, लेकिन दोबारा खोलने के लिए आपको उस पर कुछ धन लगाना होगा.’ उन्होंने कहा, ‘हमनें अपनी एयरलाइन्स बचा लीं.हमनें कई कम्पनियां बचा लीं, जो बड़ी कम्पनियां हैं और दो महीने पहले उनका बेहतरीन साल चल रहा था… और फिर अचानक से बाजार से बाहर हो गईं.हम उन कंपनियों को फिर पटरी पर ले आएंगे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कोरोना को चीन द्वारा बनाया जैविक हथियार ही मान रहे हैं जो अमेरिका जैसी सुपर पावर से लड़ने के लिए वूहान में बनाया गया. बीते हफ्ते व्हाइट हाउस में डेली ब्रीफिंग के दौरान ट्रंप ने कहा, ‘हम पर हमला हुआ. यह हमला ही है। यह कोई फ्लू नहीं है. पहले कभी किसी ने ऐसा कुछ नहीं देखा, 1917 में ऐसा आखिरी बार हुआ था’ ट्रंप कई हजार अरब डॉलर के प्रोत्साहन पैकेजों के परिणामस्वरूप बढ़ते अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण के बारे में किए एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि उनका प्रशासन वैश्विक महामारी से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए लोगों और उद्योगों की मदद के लिए सामने आया है. उन्होंने आश्वस्त किया कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था जल्दी ही पटरी पर आ जाएगी और हम मुसीबतों पर विजय पाएंगे.