साढ़े चार साल पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने जिस अखिलेश यादव की मधुर मुस्कान, सौम्य बातचीत और आम नेताओं से अलग ‘बौडी लैंग्वेज’ दिखती थी अब वह बदल गई है. अखिलेश जिन बातों का जबाव नहीं देना चाहते हैं उनसे बचने के लिये जब वह दूसरा जवाब देते हैं तो उसमें उनकी एग्रेशन दिखने लगी है.

समाजवादी पार्टी के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में जब उनसे पूछा गया कि वह इस कार्यक्रम में रहेंगे तो जबाव में गेहूं चावल की बात करने लगे. देखने में वह यह बात हंस कर रहे थे. उनकी हंसी के पीछे छिपा एग्रेशन नजर आ रहा था. पहले इस बात के सवालों को टालते हुये अखिलेश यादव जो बात कहते थे उसमें वह सौम्य नजर आते थे.

पारिवारिक विवाद में समाजवादी पार्टी को लेकर तमाम तरह की धारणायें बन रही है. इससे परिवार और पार्टी दोनों की छवि खराब हो रही है. पहले जो बात परिवार के अंदर की थी अब बाहर आ गई है. पार्टी के कार्यकर्ता जिस तरह से खेमे बंदी कर रहे हैं उससे उनको लाभ हो या नहीं पर पार्टी का नुकसान तय है. मुलायम परिवार का भला पार्टी के भले में ही निहित है.

पारिवारिक विवाद की बातें बाहर आने के बाद से पार्टी का नुकसान होने लगा है. शुरूआत में यह माना जा रहा था कि परिवार की बात परिवार के अंदर सुलझ जायेगी. अब यह विवाद बालू की तरह हाथ से फिसलता जा रहा है. ऐसे में अगर जल्द इसका सकारात्मक हल नहीं निकला तो मुठ्ठी खाली रह जायेगी.

असल में अब तक समझौते की मुद्रा में चल रहे अखिलेश यादव अब अपने को बदल चुके हैं. अब वह गुस्से में नजर आने लगे हैं. जानकार लोग कहते हैं कि अखिलेश यादव ने जिस समय अपने स्वभाव को बदला है वह सही समय नहीं है. उनके गुस्से से पार्टी टूट सकती है. जो परिवार, पार्टी और प्रदेश के हित में किसी भी तरह से नहीं है. यह सच है कि अखिलेश यादव को लेकर जिस तरह से चर्चायें चलती रही है उनको परिवार के अंदर से हवा दी जाती रही है.

इसके बाद भी मुख्यमंत्री जैसे पद पर होने के नाते उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह पार्टी को टूटने नहीं देंगे. परिवार के झगड़े का असर पार्टी पर न पड़े इसमें बाकी लोगों के साथ अखिलेश की भी जिम्मेदारी है. यह बात सही हो सकती है कि परिवार के इस विवाद में बाहरी लोगों की साजिश हो सकती है.अब साजिश से बचना और पार्टी को बचाना अखिलेश के लिये बड़ी चुनौती है. नहीं तो इस बात की तोहमत उन पर लगेगी कि वह प्रदेश चला पाये न पार्टी.                 

 

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