बहुजन समाज पार्टी यानी बसपा में केवल दलित कैडर को ही नहीं, बल्कि ऊंची जातियों को भी पार्टी में सतीश मिश्रा के बढ़ते दबदबे से परेशानी है. कभी मायावती के बेहद करीबी रहे उन के अंगरक्षक पदम सिंह ने इस बात को खुल कर कबूल किया. वे केवल मायावती के सुरक्षाधिकारी ही नहीं रहे, उन के बेहद करीबी थे. आगरा के रहने वाले और जाति से जाटव होने के कारण पदम सिंह की मायावती से ज्यादा नजदीकियां हो गई थीं. वे मायावती के जूते उठाने को ले कर भी चर्चा में रहे हैं. पदम सिंह बसपा छोड़ कर अब भाजपा में शामिल हो गए हैं. वे कहते हैं कि बसपा में अब सतीश मिश्रा ही सबकुछ हैं. ऐसे ही आरोप बसपा छोड़ने वाले ब्रजेश पाठक भी लगा चुके हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य भी यही बात दोहराते रहे हैं.

बसपा का मूल कैडर इस बात से नाराज है कि सत्ता का लाभ केवल ऊंची जातियों के नेताओं को मिलता है. इसी वजह से एकएक कर दलित नेता बसपा से अलग हो रहे हैं. बसपा छोड़ने वाले करीबकरीब सभी नेता इस बात को मानते हैं कि बसपा अब दलितों की पार्टी नहीं रह गई. यही वजह है कि एक के बाद एक दलित जातियां बसपा से अलग होती जा रही हैं. दलित जातियों को बसपा से अपने भले की जो उम्मीदें थीं, वे पूरी नहीं हो पा रही हैं. दिखावे के लिए ऊंची जाति के नेता मंच पर मायावती के पैर जरूर छू लेते हैं, पर दलितों को ले कर उन के मन में बैठी नफरत और छुआछूत का भाव दूर नहीं होता. बसपा प्रमुख मायावती को लगता है कि ब्राह्मण नेताओं को ज्यादा से ज्यादा टिकट दे कर वे सोशल इंजीनियरिंग को बढ़ा रही हैं. असल में ब्राह्मण तबका उन सीटों पर ही बसपा को थोड़ाबहुत वोट करता है, जहां पर उस की जाति का उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा होता है. बाकी सीटों पर वह बसपा से परहेज करता नजर आता है. 2007 में बहुमत की सरकार बनने के बाद ब्राह्मण नेताओं ने इस बात का प्रचार किया था कि बसपा की जीत ब्राह्मण वोटरों के कारण हुई. 2 साल बाद ही लोकसभा चुनाव में जब बसपा को मनचाही कामयाबी नहीं मिली, तो दलित वोटर पर तुहमत लगा दी गई कि उस ने बसपा को वोट नहीं दिया. बसपा का दलित और पिछड़ा कैडर इस बात से दुखी हो कर पार्टी से दूर होने लगा.

2012 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा की हार का एक बड़ा कारण पार्टी में ऐसे नेताओं की अहमियत बढ़ना है, जिस की जाति के लोग पार्टी को वोट नहीं देते. सतीश मिश्रा बसपा में मायावती के बाद नंबर 2 की हैसियत वाले नेता हैं. अपने कुछ करीबियों को अच्छे पदों पर बिठाया, जिस से उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का भी आरोप लगा.  सतीश मिश्रा से नाराजगी केवल दलित जातियों में ही नहीं, ऊंची जातियों में भी है. अब पदम सिंह की बातों ने बसपा में ‘सतीश मिश्रा फैक्टर’ को ले कर नाराजगी को उजागर कर दिया है.

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