लेखक : डा. नवीन कुमार बोहरा

औलिव औयल यानी जैतून के तेल के बारे में ज्यादातर सभी लोग जानते हैं. जैतून तेल के अनेक प्राकृतिक उपयोगों से अनेक सौंदर्य प्रसाधन बनाए जाते हैं.

जैतून सब से पहले स्पेन में उगाया गया था और उस के बाद यह धीरेधीरे दक्षिण अमेरिका, आस्ट्रेलिया और उत्तरी अफ्रीका तक फैल गया.

भारत में उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में 3,000 से 4,500 फुट की ऊंचाई वाली घाटियों में खासतौर से त्यूनी देहरादून और काणाताल टिटरी में जंगली जैतून जिसे काव कहते हैं, बहुतायत में पाया जाता है.

भारत यूरोपियन देशों से हर साल करोड़ों रुपए का जैतून तेल और अचार आयात करता है. दुनिया में सब से ज्यादा जैतून का उत्पादन स्पेन, इटली, ग्रीस, फ्रांस, पुर्तगाल, ट्यूनीशिया, टर्की वगैरह देशों में किया जाता है.

जैतून की खेती माली नजरिए से भी काफी अहम है, क्योंकि वह जमीन जो खेती योग्य और दूसरे फलों के लिए मुफीद नहीं होती, वहां इस को रोपा जा सकता है. भूमध्य सागरीय देशों में इस की खेती का व्यावसायीकरण किया जा रहा है.

जैतून को आमतौर पर 2 वैज्ञानिकों के नाम यथा आलिया सातिवा और आलिया यूरोपा से जाना जाता है. यह आमतौर पर समुद्र तल से 1,000 से 1,500 मीटर ऊंचाई वाली जगहों पर, जहां अधिकतम तापमान 35 डिगरी सैंटीग्रेड तक पहुंचता है, पाया जाता है. सर्दी में यह कुछ घंटों के लिए 5 डिगरी से 6 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान भी सहन कर सकता है.

जैतून में पुष्पन काल में पूरे पादप सफेद रंग के मीठी खुशबू बिखेरते फूलों से लद जाते हैं. इस के बाद ये फूल अक्तूबर से जनवरी माह के मध्य छोटेछोटे गहरे हरे रंग के फूलों में बदल जाते हैं और पकने पर बैगनी व काला रंग ले लेते हैं. जैतून के फल में 45-55 फीसदी पानी,

13-28 तेल, 1.5 से 2 फीसदी नाइट्रोजन यौगिक, 18-24 फीसदी कार्बोहाइड्रेट यौगिक, 5 से 8 फीसदी फाइबर और 1 से 2 फीसदी राख पाई जाती है.

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जैतून की खेती : जैतून के लिए 60 फीसदी बालू, 20 फीसदी लोमी और 20 फीसदी क्ले वाली मिट्टी सही रहती है. यह 6.5 से 8 पीएच मान वाली मिट्टी में भी उग सकता है.

मिट्टी में जुताई के बाद 400 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गोबर की सड़ी खाद डालें और 6×6 मीटर की दूरी पर गड्ढे के मुताबिक कीटनाशक डालें. उन में 50 ग्राम प्रति गड्ढे के मुताबिक कीटनाशक मिट्टी में मिला कर भर देते हैं.

जैतून के लिए खाद जरूरी है और पहले साल में 20 किलोग्राम प्रति गड्ढे के हिसाब से गोबर की खाद, 50 ग्राम नाइट्रोजन, 50 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश तत्त्व के रूप में देना चाहिए.

इस के अलावा 2 से 5 साल तक के पौधों में अमोनियम सल्फेट 500 से 1,000 ग्राम प्रति पादप, सुपर फास्फेट 200-500 ग्राम प्रति पादप और पोटैशियम 200-400 ग्राम प्रति पादप देना सही रहता है.

जैतून पेड़ के पादपों में वसंत मौसम में नमी रहने पर 5वें से 6ठे साल के बाद अमोनियम सल्फेट 1.5 से 2.5 किलोग्राम प्रति पेड़, सुपर फास्फेट 0.5 से 1.5 किलोग्राम प्रति पेड़ जनवरी माह में और पोटैशियम सल्फेट 0.4 से 0.8 किलोग्राम प्रति पेड़ पुष्पन के बाद और यूरिया 0.2 से 0.4 किलोग्राम प्रति पेड़ सिंचाई के बाद डालना चाहिए.

प्रवर्धन : जैतून का प्रवर्धन ग्राफ्टिंग और बडिंग के द्वारा व बीजों की बोआई कर तैयार किए जाते हैं. आमतौर पर बीजों के अच्छे जमाव के लिए सितंबर व अक्तूबर माह में सोडियम कार्बोनेट के 3 फीसदी घोल से 5 घंटे तक उपचारित कर लगाना उचित रहता है. कटिंग विधि में 2 इंच लंबी कटिंग, जिस में 4 से 8 गांठें और 2 से 4 पत्तियां हों, काट लें.

ब्यूटारिक अम्ल के 2,500 पीपीएम घोल में डुबो कर लगाना सही रहता है. अच्छी उपज के लिए परागण किस्मों को लगाना चाहिए. पेंडोलियो किस्म परागण करने वालों के रूप में सही रहती है. इसी प्रकार कई किस्मों को एकसाथ लगाने से उपज अच्छी होती है.

जैतून की खेती में पहले 3-4 सालों में नीबू, आड़ू और सब्जियों की खेती 2 पेड़ों के बीच वाली जगह में की जा सकती है, परंतु पानी तने के पास रुकना नहीं चाहिए और पानी के निकलने का पुख्ता बंदोबस्त होना चाहिए.

जैतून की कई किस्में क्षेत्र विशेष के आधार पर मालूम हो चुकी हैं जैसे कोराटिना, फ्रांटोयो, लोसिनो, पेंडालिनो, बियाकोलिला, सिंप्रेसिनो वगैरह.

उपयोग : जैतून की लकड़ी और फल दोनों ही उपयोगी हैं. लकड़ी को अन्य इमारती लकडि़यों की तरह उपयोग किया जा सकता है. इस के फलों को सीधे खाया जा सकता है या फिर इन का अचार भी बनाया जा सकता है. जैतून में फल 5वें साल से उगना शुरू होते हैं, जो हर साल 5 से 10 किलोग्राम तक हासिल हो सकते हैं. जैतून के फलों से तेल भी निकाला जाता है.

जैतून तेल के कई स्तर होते हैं, जो हर स्तर पर अपनी विशेषता रखते हैं. जैतून के फल की ऊपरी सतह को जैसे ही तोड़ा जाता है, वैसे ही तेल की कुछ बूंदें हाथ में आ जाती हैं, यही सब से अच्छा होता है और वर्जिन औलिव औयल कहलाता है.

जैतून के तेल का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधनों, साबुन, परफ्यूम, दवाएं वगैरह बनाने में किया जाता है. छोटे बच्चों की मालिश में यह सब से अच्छा माना जाता है. खाना पकाने में यह कम उपयोग में आता है, परंतु सलाद में बहुतायत में इस्तेमाल होता है.

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आधुनिक शोध से मिली जानकारी के मुताबिक, हर दिन एक चम्मच औलिव औयल खाने में इस्तेमाल करने से रक्तचाप यानी ब्लडप्र्रैशर कम होता है और कौलेस्ट्रौल लेवल में कमी आती है. इस तरह दिल के मरीजों के लिए भी और धमनियों की रुकावट दूर करने में यह बेहद उपयोगी है.

आधुनिक दिनचर्या में फास्ट फूड और दूसरी वजहों से दिल और दूसरे रोगों में वृद्धि के मद्देनजर जैतून बेहद उपयोगी है. आज इस की उपयोगिता को देखते हुए इटली, स्पेन, यूनान और पुर्तगाल में इस का इस्तेमाल बहुतायत से हो रहा है.

जैतून को शांति का प्रतीक भी माना गया है और इस की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दे कर न केवल माली हालत में सुधार लाया जा सकता है, बल्कि विदेशी पैसों की बचत भी की जा सकती है.

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