0:00
12:24

उन दिनों मैं नजीबाबाद में तैनात था. एक दिन एक दोहरे हत्याकांड का मामला सामने आया. मैं एक कांस्टेबल को ले कर घटनास्थल पर पहुंच गया. मई का महीना था. तेज गरमी पड़ रही थी. हत्या की वारदात चौधरी गनी के डेरे पर हुई थी, जो गांव टिब्बी का रहने वाला था. उस डेरे में नीची छतों के कमरे थे और एक कमरे में दोनों मृतकों की लाशें चारपाई पर रखी थीं, जो एक चादर से ढंकी थीं.

कमरे में जितने लोग थे, चौधरी ने सब को बाहर कर के दरवाजा बंद कर दिया. इस के बाद उस ने लाशों के ऊपर से चादर खींच दी. मेरी नजर लाशों पर पड़ी तो मैं ने शरम से नजरें दूसरी ओर फेर लीं. लाशें मर्द और औरत की थीं और दोनों नग्न हालत में एकदूसरे से लिपटे हुए थे. चौधरी ने कहा, ‘‘मैं ने इसीलिए सब को बाहर निकाला था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन हैं ये दोनों?’’

उस ने मर्द की ओर इशारा कर के कहा, ‘‘यह तो मुश्ताक है, मेरा नौकर और यह औरत बशारत की पत्नी सुगरा है.’’

मैं ने दोनों लाशों का बारीकी से निरीक्षण किया. जांच से पता लगा कि दोनों जब एकदूसरे में खोए हुए थे, तभी किसी ने दोनों पर पूरा रिवौल्वर खाली कर दिया था. दोनों के शरीर का ऊपरी भाग खून में नहाया हुआ था. पहली नजर में यह बदले की काररवाई लगती थी. दोनों जवान और सुंदर थे. देखने के बाद मैं ने लाशों पर चादर डाल दी.

‘‘यह किस का काम हो सकता है?’’ मैं ने चौधरी गनी से पूछा.

वह अपनी एक टांग को दबाते हुए बोला, ‘‘यह आप जांच कर के पता लगा सकते हैं.’’

‘‘लेकिन आप का दिमाग क्या कहता है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मुझे बशारत मतलब सुगरा के पति पर शक है.’’

‘‘क्या आप ने बशारत से पूछताछ की है?’’

‘‘मैं ने एक आदमी उस के घर भेजा था, लेकिन वह घर पर नहीं मिला.’’

‘‘इस का मतलब उसे अभी तक इस घटना का पता नहीं लगा.’’

‘‘मलिक साहब, वह खुद ही इधरउधर निकल गया होगा.’’

चौधरी की बात से मैं समझ गया कि वह बशारत को मुश्ताक और सुगरा का हत्यारा समझ रहा है. मैं ने उस की आंखों में देखते हुए कहा, ‘‘चौधरी साहब, आप इस घटना के बारे में क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ ज्यादा नहीं.’’ उस का एक हाथ फिर अपनी बाईं टांग की ओर गया.

‘‘आप की टांग में क्या हो गया है, जो आप बारबार हाथ लगा रहे हैं.’’

‘‘मेरी टांग में कुछ दिनों से बहुत दर्द हो रहा है.’’ वह कुछ रुक कर बोला, ‘‘मैं तो यहां हवेली में आराम कर रहा था कि मुराद दौड़ते हुए आया. उस ने बताया कि मुश्ताक और सुगरा को किसी ने मार दिया है. मैं ने डेरे पर जा कर लाशों को देखा और एक आदमी बशारत को देखने के लिए भेज दिया. फिर हवेली पहुंच कर मंजूरे को आप के पास थाने भेजा और मुश्ताक की पत्नी को भी खबर कर दी. वह बेचारी रोपीट रही है.’’

मुश्ताक की पत्नी बिलकीस लाशों को देखने के लिए कहती रही, लेकिन मुराद ने उस से कह दिया कि जब तक पुलिस काररवाई नहीं हो जाती, वह उसे देखने नहीं देगा.

मैं ने जरूरी काररवाई कर के लाशों को जिला अस्पताल भिजवा दिया और कमरे की बारीकी से जांच की. कमरे में एक ओर खिड़की थी, खिड़की में कोई जाली या सरिए नहीं लगे थे. वहां एक चारपाई थी, जिस पर दोनों की लाशें रखी थीं.

चारपाई को रंगते हुए खून नीचे फर्श पर गिरा था, जो जम गया था. हत्या करने का कोई भी हथियार अथवा कोई भी ऐसी चीज नहीं मिली, जो हत्या की जांच में मदद कर पाती. कमरे के बाहर कुछ लोग खडे थे. मैं ने उन में से एक समझदार से आदमी की ओर इशारा कर के उसे बुलाया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘चाचा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, रहमत…रहमत अली.’’

‘‘क्या तुम भी इसी गांव में रहते हो?’’

उस ने हां में जवाब दिया तो मैं ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चाचा, तुम मेरे साथ आओ.’’

मैं उसे एक कमरे में ले गया, जिस में खेती का सामान और कबाड़ रखा था. उस सामान में मैं हत्या करने वाला हथियार देख रहा था, साथ ही चाचा से भी बात कर रहा था.

इस के बाद मैं ने 2 और कमरों की तलाशी ली, लेकिन काम की कोई चीज नहीं मिली. मेरे पास सरकारी ताला था, मैं ने उस कमरे में ताला लगा कर उसे सील कर दिया, जिस में उन दोनों की लाशें मिली थीं.

कुछ और लोगों से बात कर के मैं रहमत को साथ ले कर डेरे से निकल कर टिब्बी गांव की ओर चल दिया. मैं चलतेचलते उस से बात कर रहा था. उस से काम की कई बातें पता लगीं, जो मैं आगे बताऊंगा.

चौधरी गनी ने मुझ से कहा था कि घटनास्थल से सीधा हवेली आऊं, लेकिन मैं ने पहले बशारत से मिलने की सोची. मैं पूछतेपूछते बशारत के घर तक पहुंच गया.

बशारत का घर गांव के बीचोबीच था, लेकिन वह घर में नहीं था. एक आदमी फरमान ने बताया कि वह खेतों में भी नहीं है. हम सब उस का इंतजार कर रहे हैं. उस ने गली में इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘आप अंदर आ जाएं सरकार, कुछ देर और खड़े रहे तो यहां मेला लग जाएगा.’’

‘‘तुम्हारे साढ़ू ने कारनामा ही ऐसा किया है, मेला तो लगेगा ही.’’

वह परेशान सा हो कर बोला, ‘‘समझ नहीं आ रहा, उस ने ऐसा काम कैसे कर दिया.’’

मैं अंदर एक कमरे में बैठ गया, जहां पहले से ही फरमान की पत्नी और बच्चे बैठे थे.

में ने उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि मैं कस्बा नजीबाबाद के थाने का इंचार्ज हूं. गांव टिब्बी मेरे ही थाने में आता है.

फरमान ने सिर हिला दिया, लेकिन उस की पत्नी कुबरा चुप नहीं रही. वह बोली, ‘‘थानेदार साहब, आप ने काररवाई करने में इतनी जल्दी क्यों की? कम से कम बशारत के आने का तो इंतजार कर लेते. लाशों को बाद में भी अस्पताल भिजवाया जा सकता था. हम अपनी बहन का मुंह भी नहीं देख सके.’’ इतना कह कर वह रोने लगी.

‘‘पागलों जैसी बातें न कर कुबरा, ऐसी हालत में उन का मुंह देखती. कुछ शरम है कि नहीं?’’ फरमान ने उसे झिड़का.

‘‘मैं गरमी की वजह से लाशों को अधिक देर तक नहीं रख सकता था.’’ मैं ने कुबरा से कहा, ‘‘तसल्ली रखो, पोस्टमार्टम के बाद लाशों को आप के हवाले कर दिया जाएगा, फिर आप अच्छी तरह अपनी बहन का मुंह देख लेना.’’

वह बोली, ‘‘थानेदार साहब हम चौधरियों के डेरे तक गए थे, लेकिन उस कमीने मुराद ने हमें कमरे के अंदर नहीं जाने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है कुबरा, हालात को समझने की कोशिश करो. तुम्हारी छोटी बहन ने ऐसी हरकत कर के हमारी नाक कटवा दी, अब तुम बाकी की कसर भी पूरी करना चाहती हो.’’ फरमान ने उसे डांटते हुए कहा.

मैं ने कुबरा को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘बीवी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं, चौधरी गनी ने ही मुराद को वहां खड़ा किया था. मृतक मुश्ताक की पत्नी भी अपने पति का मुंह देखने वहां पहुंची थी, लेकिन मुराद ने उसे भी अंदर नहीं जाने दिया.’’ फरमान ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘‘मलिक साहब, आप की बातों से लग रहा है कि आप इस हत्या में बशारत पर शक कर रहे हैं.’’

‘‘क्या मैं बशारत पर शक करने के मामले में सही नहीं हूं?’’ मैं ने उसे जवाब देने के बजाय उल्टा सवाल कर दिया.

मेरा सवाल सुन कर वह इधरउधर देखने लगा, फिर बोला, ‘‘मेरा मतलब यह है कि बशारत…इतना हिम्मत वाला नहीं है.’’

सुगरा यानी सुग्गी के बेखौफ व्यवहार के बारे में मुझे रहमत अली ने भी बताया था. अब फरमान की बातों से लग रहा था कि वह अपनी साली के कारनामों से खुश नहीं था.

‘‘फरमान, पत्नी का मामला ऐसा होता है कि कमजोर आदमी भी अपनी इज्जत के लिए टार्जन बन जाता है. अगर उस ने हत्या नहीं की तो गायब क्यों हो गया?’’

‘‘यह बात तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही. मैं ने उसे खेतों में भी देखा और गांव में भी, लेकिन उस का कहीं पता नहीं लगा. वह आज बैलगाड़ी भी ले गया था. कह रहा था कि वापसी में अपने और मेरे जानवरों के लिए चारा ले आएगा, लेकिन अभी तक नहीं आया.’’

कुबरा कहने लगी, ‘‘हम भी बशारत के इंतजार में अपना घर छोड़े बैठे हैं, छोटे बच्चे की भी तो समस्या है.’’

‘‘कौन सा छोटा बच्चा?’’

वह बोली, ‘‘सुग्गी का एक ही तो बच्चा है नवेद. उसे किस के पास छोड़ें. फरमान कहते हैं इसे अपने साथ ले चलो, वैसे भी वह हमारे ही घर में रहता है.’’

मैं ने नवेद के बारे में कुरेद कर पूछा तो कुछ बातें सामने आने लगीं. कुबरा ने बताया, ‘‘आज दोपहर सुग्गी जब बशारत के लिए खेतों पर खाना ले कर जाने लगी तो उस ने 5 साल के नवेद को मेरे पास छोड़ दिया था. वह हमारे घर खुशी से रहता है.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या वह रोज इसी वक्त खाना ले कर जाती थी?’’

‘‘जी हां, वह इसी समय खाना ले कर जाती थी,’’ वह संकोच से बोली, ‘‘और जाते वक्त नवेद को हमारे घर छोड़ जाती थी.’’

‘‘क्या बात है कुबरा, तुम इतनी बेचैन क्यों हो?’’ मैं ने उस के अंदर की उलझन को पहचान कर कहा, ‘‘तुम मुझे उलझी हुई दिखाई दे रही हो. अगर कोई परेशानी हो तो बताओ.’’

‘‘दरअसल, मैं एक बात बताना भूल गई. पता नहीं उस बात का कोई महत्त्व है भी या नहीं.’’

मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘बताओ तो सही.’’

‘‘आज सुग्गी ने जाते हुए कहा था कि उसे वापस लौटने में देर हो जाएगी.’’ वह रोते हुए बोली, ‘‘मुझे क्या पता था कि उसे इतनी देर हो जाएगी कि वापस ही नहीं लौटेगी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कुबरा बीबी, यह बताओ सुग्गी ने यह क्यों कहा था कि देर हो जाएगी, क्या उस ने कारण बताया था?’’

उस ने आंसू पोंछते हुए कहा कि सुग्गी ने बताया था कि बशारत को खाना खिलाने के बाद वह चौधरियों की हवेली जाएगी.

मैं ने पूछा, ‘‘वह चौधरियों की हवेली क्यों जाना चाहती थी?’’

‘‘चौधरी गनी ने उसे किसी काम के लिए बुलाया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘कौन सा काम?’’

‘‘यह तो उस ने नहीं बताया, लेकिन चौधरी गनी इस गांव के मालिक हैं, वह किसी को भी तलब कर सकते हैं.’’

मैं सोचने लगा, जब चौधरी गनी से मैं बात कर रहा था तो उस ने सुग्गी को बुलाने के बारे में नहीं बताया था. मुझे लगा कि कहीं कोई गड़बड़ जरूर है. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी से बुलाने की बात किस ने कही थी?’’

‘‘मासी मुखतारा आई थी.’’

‘‘मासी मुखतारा कौन है और कहां रहती है?’’

‘‘मासी मुखतारा हवेली में काम करती है और वहीं रहती है.’’

मैं ने मुखतारा को भी अपने दिमाग में रखा. इस से पहले 3 और नाम थे चौधरी गनी, बशारत और मुराद. यहां से निपट कर मुझे हवेली जाना था. मैं चौधरी गनी की हवेली की ओर जाने लगा तो फरमान भी मेरे साथ चलने लगा. तभी एक छोटा सा गोराचिट्टा बच्चा घर से निकल कर आया और बोला, ‘‘खालू, मेरे अब्बाअम्मा कब आएंगे?’’

फरमान चौधरी की हवेली तक मेरे साथ आया. मैं ने उस से कहा कि तुम बशारत के घर में ही रहना और जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना. मैं इधर चौधरी की हवेली में बैठा हूं.

चौधरी ने बड़े तपाक से मेरा स्वागत किया. उस ने अपनी बैठक में बिठाया. उस की बैठक की सजावट देख कर लगा कि वास्तव में वह उस इलाके का राजा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘मुराद कहां है?’’

चौधरी बोला, ‘‘वह डेरे पर गया है, मंजूर भी उस के साथ है. दोनों वहीं रहेंगे, सोएंगे भी वहीं.’’

‘‘डेरे के कमरे पर तो मैं ने ताला डाल दिया है.’’

‘‘वहां 2 कमरे और भी हैं. वैसे आजकल गरमी है, वे अहाते में ही सोते हैं.’’ इतना कह कर चौधरी ने पूछा, ‘‘आप बशारत के घर काफी देर तक रहे हैं, कोई नुक्ता हाथ लगा या नहीं?’’

‘‘हां, एक सिरा हाथ तो लगा है, देखो उस से काम चलता है या नहीं.’’

सुन कर चौधरी के कान खड़े हो गए. वह तुरंत बोला, ‘‘आप कौन से सिरे की बात कर रहे हैं?’’

‘‘चौधरी साहब, जो सिरा मेरे हाथ लगा है, उस के दूसरे किनारे पर आप खड़े हैं.’’

‘‘मतलब?’’ वह चौंका.

मैं ने क हा, ‘‘मुझे पता लगा है कि आप ने सुग्गी को कल दोपहर अपने डेरे पर बुलाया था.’’

उस के चेहरे का रंग फीका पड़ गया. वह बोला, ‘‘आप को यह बात किस ने बताई?’’

‘‘पहले आप इस बात की पुष्टि करें, फिर उस का नाम बताऊंगा.’’

‘‘नहीं, मैं ने उसे नहीं बुलाया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘आज दोपहर जब सुग्गी बशारत का खाना ले कर खेतों पर जा रही थी, तो उस ने अपने बेटे नवेद को फरमान के घर छोड़ा और उस की पत्नी कुबरा से कहा कि वापस लौटने में उसे देर हो जाएगी, क्योंकि उसे मासी मुखतारा ने कहा है कि चौधरी की हवेली जाना है.’’

वह गुस्से से बोला, ‘‘उस दुष्ट औरत ने झूठ बोला है, आप उसे जानते नहीं. वह औरत…लेकिन छोड़ो मरने वाले को बुरा नहीं कहना चाहिए.’’

‘‘तो चौधरी साहब आप इस बात से इनकार करते हैं कि मासी मुखतारा उसे बुलाने नहीं गई थी?’’

‘‘हां, बिलकुल मैं इनकार करता हूं. आप को अभी पता लग जाएगा.’’ उस ने मुखतारा को बुलाया तो वह तुरंत आ गई. देखने में वह बहुत तेज औरत लग रही थी. उस ने आते ही कहा, ‘‘नहीं, मैं ने कुछ नहीं कहा, पिछले 3 दिन से तो मैं ने सुग्गी की शक्ल भी नहीं देखी.’’

मुझे मुखतारा की बात को सच मानना पड़ा. चौधरी बोला, ‘‘मलिक साहब, आप जानते नहीं, सुग्गी किस तरह की औरत थी. छलफरेब उस की नसनस में था. जो औरत अपने पति की नहीं हुई, वह किसी और की कैसे हो सकती है.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, आप ने यह तो साबित कर दिया कि सुग्गी को आप ने हवेली पर नहीं बुलाया था, पर मैं ने सुना है कि वह आप की हवेली के अकसर चक्कर लगाती थी.’’

‘‘हां मलिक साहब, वह हफ्ते में 1-2 बार हवेली आती थी.’’ वह थोड़ा रुक कर बोला, ‘‘बात यह है मलिक साहब, मेरी पत्नी का नीचे का हिस्सा पैरलाइज है. सुग्गी को तेल मालिश करने के लिए बुलाया जाता था.’’

उस का बयान सुन कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक है चौधरी साहब, अब मैं चलता हूं. लेकिन कल आप मुराद को थाने जरूर भेज दें, उस का बयान लेना है.’’

मैं जीप में बैठ कर गांव के अंदर की ओर जा रहा था, क्योंकि मुझे बशारत के घर के आगे से जाने पर पता लग जाता कि वह आया या नहीं. अभी तांगा चल ही रहा था कि एक औरत जीप के आगे आई. ड्राइवर बोला, ‘‘इस का खसम तो हराम की मौत मारा गया, अब पता नहीं यह क्या चाहती है?’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या यह मुश्ताक की पत्नी बिलकीस है?’’

वह कहने लगा, ‘‘हां, वही है.’’

‘‘मुझे मौत चाहिए दारोगाजी, जब मेरा पति नहीं रहा तो मैं जी कर क्या करूंगी. डायन मेरे पति को खा गई.’’ बोलतेबोलते उस का गला रुंध गया. बिलकीस को देख कर मुझे हैरानी हुई, क्योंकि मुश्ताक बड़ा सुंदर था लेकिन वह छोटे कद की सांवली औरत थी.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘बीबी, तुम बिलकीस हो, क्या तुम उस डायन के बारे में कुछ बताओगी?’’

वह बोली, ‘‘आइए थानेदार साहब, मेरे घर आओ, मैं सब कुछ बताऊंगी.’’

मैं ने उस की बात मान ली.

‘‘तुम ने सुग्गी को डायन कहा, वास्तव में वह डायन ही थी.’’ मैं ने उस से हमदर्दी जताते हुए कहा, ‘‘अब मुझे बताओ, उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं बहुत दुखी औरत हूं.’’ वह सिसकते हुए बोली, ‘‘मैं एक कालीकलूटी औरत हूं. मुश्ताक को गोरीचिट्टी औरत चाहिए थी. मैं ने उस से कई बार कहा कि किसी सुंदर सी औरत से निकाह कर ले. मैं नौकरानी बन कर रह लूंगी, लेकिन वह नहीं माना. मुझे क्या पता था कि वह इस तरह घर से बाहर क्या गुल खिलाता फिर रहा है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘बिलकीस, अगर तुम चाहती हो कि मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को पकड़ूं तो मुझे बताओ कि उन दोनों के बीच यह चक्कर कब से चल रहा था?’’

‘‘यह तो पता नहीं. लेकिन मुझे कुछ दिनों पहले ही पता लगा था.’’

‘‘तुम्हें यह बात किस से पता लगी?’’

‘‘मुझे मुराद ने एक महीने पहले बताया था. उस ने कहा था कि अपने पति की देखभाल करो, वह सुग्गी से मिलता है और सुग्गी उस से मिलने डेरे पर जाती है.’’

‘‘तो तुम ने उस पर नजर रखी?’’

‘‘नहीं जी, मैं ने मुश्ताक पर भरोसा किया और समझा कि सुग्गी को ले कर तो किसी को भी बदनाम किया जा सकता है. लेकिन आज की घटना से मुझे पूरा यकीन हो गया कि मुराद की बात सच थी.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘तुम्हें मुश्ताक से इस बात की पुष्टि करनी चाहिए थी.’’

वह बोली, ‘‘दरअसल, मुराद ने मुझे कसम दे रखी थी.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बताओ तुम्हें किसी पर शक है?’’

वह बोली, ‘‘जब मैं ने देखा ही नहीं तो किस का नाम लूं. लेकिन इस सब का जिम्मेदार मैं सुग्गी को समझती हूं.’’

उठते हुए मैं ने कहा, ‘‘अच्छा बिलकीस, मैं तुम्हारे पति के हत्यारे को जरूर पकड़ूंगा. इस बीच अगर तुम्हें कुछ पता लगे तो मुझे जरूर बताना.’’

उस ने पूछा कि पति की लाश कब मिलेगी. इस पर मैं ने उसे बताया कि जैसे ही लाश अस्पताल से आएगी, मैं खबर कर दूंगा.

वहां से मैं सीधा बशारत के घर पहुंचा. वहां फरमान मिला, उस ने बताया कि वह अभी तक नहीं आया है. मैं ने उस से कहा कि जैसे ही वह आए, मुझे खबर कर देना.

मैं रात का खाना खा कर घर पर बैठा था कि कांस्टेबल आफताब ने आ कर बताया, ‘‘सर, बशारत आया है. उस के साथ उस का साढ़ू भी है. वे चारे से लदी बैलगाड़ी पर आए हैं.’’

मैं थाने पहुंचा और दोनों को अपने कमरे में बुलाया. मैं ने फरमान से पूछा, ‘‘तुम्हारी इस से कोई बात हुई?’’

वह बोला, ‘‘बातें तो बहुत हुई हैं जनाब, लेकिन वही बात जो मैं कह रहा था, उन की हत्या में इस का कोई हाथ नहीं है.’’

मैं ने बशारत की ओर देखते हुए कहा, ‘‘मुझे सचसच बताओ कि तुम ने ये हत्याएं क्यों कीं?’’

उस ने कहा कि इस में उस का कोई हाथ नहीं है.

मैं ने कहा, ‘‘अच्छा तो तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारे साथ कोई दूसरा तरीका आजमाना पड़ेगा.’’

मैं ने हवलदार को आवाज लगाई. बशारत यह सुन कर कांप गया और रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘जनाब, एक तो मेरी पत्नी की हत्या हो गई और उल्टा आप मुझे ही दबा रहे हैं.’’

‘‘सारे कायदेकानून तुम्हें अभी पढ़ाए जाएंगे, तुम आसानी से छूटने वाले नहीं हो.’’

बशारत की उम्र 40 के लगभग होगी. छोटा कद, चेहरे पर चेचक के दाग, एक टांग से लंगड़ा, पतलादुबला, किसी भी तरह सुग्गी के मेल का नहीं था. ऐसा ही बिलकीस और मुश्ताक का जोड़ था.

हवलदार चमन कमरे में आया तो मैं ने फरमान से कहा कि वह कमरे से बाहर जा कर बैठे. जब जरूरत होगी, बुला लेंगे. वह चला गया तो मैं ने बशारत की ओर देख कर कहा, ‘‘हां भाई, आसानी से बताएगा या सच उगलवाने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी.’’

वह कांपते हुए बोला, ‘‘हुजूर, मैं बिलकुल निर्दोष हूं, मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘चौधरी के डेरे पर जो घटना घटी, वह तुम्हें पता है या मैं बताऊं?’’

‘‘मुझे पता है चौधरी के डेरे पर किसी ने मेरी पत्नी और मुश्ताक की हत्या कर दी है और उस का आरोप मेरे ऊपर लगाया जा रहा है.’’

‘‘स्थिति के हिसाब से शक तो तुम पर ही जाएगा.’’

‘‘हुजून, मुझे क्या पता. मेरे घर से तो दोपहर में वह ठीकठाक गई थी.’’ कहते हुए उस ने गरदन झुका ली.

उस की गरदन झुकी देख कर मैं समझ गया कि वह इस घटना से बहुत दुखी है, इसलिए मैं ने उसे धीरेधीरे कुरेदना शुरू किया. मैं ने उस से पूछा, ‘‘सुग्गी, खाना ले कर तुम्हारे पास कब पहुंची थी?’’

उस ने बताया, ‘‘उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था.’’

‘‘तुम्हारे पास वह कितनी देर रही?’’

उसे कुछ हिम्मत सी हुई, उस ने निर्भीक हो कर कहा, ‘‘यही कोई 20-25 मिनट यानी कोई डेढ़ बजे दोपहर तक.’’

मैं ने उस की आंखों में झांकते हुए कहा, ‘‘तुम रोज सूरज छिपने से पहले घर आ जाते हो, आज इतनी देर कैसे हो गई, कहां थे तुम?’’

‘‘मैं लंगरवाल चला गया था. शफी से अपने पैसे लेने. यह बात मैं ने सुग्गी को भी बता दी थी कि मैं रात तक घर पहुंचूंगा.’’

मैं ने हवलदार चमन को कमरे से बाहर जाने के लिए कहा, क्योंकि वह उस की मौजूदगी में डराडरा बोल रहा था. उस के जाते ही मैं ने उसे बैठने को कहा.

‘‘तुम लंगरवाल कितने बजे गए थे? यह समझ लेना कि मैं आंखें मूंद कर तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर लूंगा. मैं एक आदमी भेज कर शफी से तुम्हारी बातों की पुष्टि करवाऊंगा.’’

‘‘आप कैसे भी पता कर लें, मैं वहां करीब 4 बजे गया था.’’

मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘तुम्हें सुग्गी और मुश्ताक के संबंधों का पता था?’’

वह धीरे से बोला, ‘‘नहीं हुजूर, मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था.’’

‘‘तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है. मैं तुम्हारी बात किसी से नहीं कहूंगा. सचसच बताओ, तुम्हें कुछ पता था?’’

‘‘थानेदारजी, मैं ने आप से कसम खाई है, मुझे कुछ भी पता नहीं था.’’

‘‘तुम्हारी शादी को कितने दिन हो गए?’’

‘‘कोई 7 साल.’’

‘‘फिर तो तुम अपनी पत्नी को अच्छी तरह समझते होगे?’’

वह कुछ उलझ सा गया और मेरी ओर देख कर बोला, ‘‘जी?’’

‘‘देखो, बुरा मत मानना. हम केस की तफ्तीश बड़ी गहराई से करते हैं और हर तरह के सवाल करते हैं. मैं ने तुम्हारी पत्नी के बारे में कुछ अच्छी बातें नहीं सुनीं.’’

वह पलक झपकते ही मेरी बात की गहराई तक पहुंच गया. वह बोला, ‘‘आप ने ठीक ही सुना है.’’

‘‘तुम तो उस के पति थे, तुम उसे समझाते.’’

उस ने अपना चेहरा दोनों हाथों में छिपा लिया और टूटे हुए दिल से बोला, ‘‘मैं उसे क्या समझाता, उस पर मेरा जोर नहीं चलता था.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘हुजूर, दुनिया मुझे उस का पति कहती है, लेकिन यह बात नहीं है.’’ वह रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘असल बात यह है कि आज तक सुग्गी ने मुझे अपने पास तक नहीं आने दिया.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं है बशारत, तुम 5 साल के बेटे नवेद के बाप हो.’’

उस ने बड़े दुख से कहा, जैसे उस की आवाज किसी कुएं से आ रही हो, ‘‘थानेदार साहब, भाग्य में अगर औलाद लिखी हो तो मिल ही जाती है, कभी बाप की कोशिश से और कभी मां के जरिए से.’’

बशारत हिचकियों से रोने लगा. वह रोता रहा और अपनी कहानी सुनाता रहा. ऐसी कहानी जो सुग्गी ने उस से जूते की नोक पर लिखवाई थी. जब से उस का विवाह सुग्गी के साथ हुआ था, वह उस की सुंदरता के आगे सिर झुकाए रहता था. जैसा वह कहती थी, वह वही करता था.

मैं ने उस के साढ़ू फरमान को बुलवा कर कहा, ‘‘आज की रात बशारत लौकअप में रहेगा, कल मैं एक सिपाही लंगरवाल भेज कर इस के जाने की पुष्टि कराऊंगा. इस की बात सच हुई तो मैं इसे छोड़ दूंगा.’’

अगले दिन सुबह मैं सरकारी काम से हैडक्वार्टर चला गया. जब दोपहर को वापस थाने आया तो हवलदार चमन ने बताया, ‘‘सरजी, आप के लिए अच्छी खबर है. जिस रिवौल्वर से हत्या की गई थी, वह मिल गया है.’’

मैं उछल पड़ा, ‘‘कहां है रिवौल्वर, कहां से मिला?’’

हवलदार ने बताया कि फरमान दे कर गया है, वह कह रहा था कि यह जानवरों के चारे के ढेर से मिला था. वह अभी कुछ देर में थाने आने के लिए कह कर गया है.

मैं ने जो सिपाही लंगरवाल भेजा था, वह आ गया और उस ने शफी से बशारत के वहां पहुंचने की पुष्टि करा ली थी. मैं ने बशारत को बुला कर कहा, ‘‘बशारत, हत्या में इस्तेमाल रिवौल्वर मिल गया है.’’

उस ने पूछा, ‘‘कहां से मिला?’’

‘‘तुम्हारी बैलगाड़ी पर लदे चारे के ढेर से.’’

वह हकला कर बोला, ‘‘गाड़ी में…किस ने रखा?’’

‘‘यह तो तुम ही बताओगे,’’ मैं ने कपड़े में लिपटे हुए रिवौल्वर की एक झलक उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘इसे तुम्हारा साढ़ू चारे के ढेर से लाया है. इसे या तो तुम ने चारे में रखा होगा या फरमान ने.’’

‘‘मैं…मैं ने तो नहीं छिपाया, लेकिन…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया, जैसे उसे कोई बात याद आ गई हो.

मैं ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘लेकिन के बाद तुम्हारी जबान को ब्रेक क्यों लग गया?’’

‘‘मुझे लगता है, यह मुराद का कारनामा है.’

मुराद के नाम से मैं चौंक पड़ा. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

वह माथे पर हाथ मार कर बोला, ‘‘यह बात मुझे कल रात क्यों याद नहीं आई?’’

‘‘अब याद आ गई है तो बताओ.’’

‘‘हुजूर, नहीं भूलूंगा, अब मुझे याद आया. जब मैं चारा बैलगाड़ी पर लाद रहा था तो मुराद मेरे पास आया था. उस ने कहा, ‘चाचा, लाओ घास बैलगाड़ी पर लादने में तुम्हारी मदद करता हूं.’ फिर वह चारा लादने लगा. मुझे 101 प्रतिशत यकीन है, मेरी नजर बचा कर उसी ने रिवौल्वर चारे में रख दिया होगा.’’

वह आगे बोला, ‘‘वह मेरे पास करीब साढ़े 3 बजे आया था. मैं ने उस से पूछा कि डेरे की ओर से गोलियां चलने की आवाजें आ रही थीं. सब ठीक तो है न. इस पर उस ने बताया कि उसे कुछ नहीं पता, क्योंकि वह नहर पार वाले खेतों से आ रहा है. फिर वह मेरे पास ज्यादा देर नहीं रुका. मैं भी लंगरवाल चला गया.’’

‘‘तुम ने गोलियों की आवाज मुराद के आने से पहले किस समय सुनी थी?’’

‘‘उस के आने से कोई एक घंटा पहले.’’

मैं ने फरमान और बशारत को जाने के लिए कहा, क्योंकि मुझे इस हत्या में उन का हाथ नहीं लग रहा था. उन के जाने के बाद मैं ने हवलदार से पूछा कि क्या मुराद आया था. उस ने इनकार कर दिया.

‘‘नहीं आया तो अब आएगा.’’ हवलदार मेरा इशारा समझ गया.

‘‘अभी आया सर, उसे लाता हूं.’’

‘‘देखो, 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर सीधे चौधरी के डेरे पर जाओ. इस समय वह वहीं मिलेगा. उसे गिरफ्तार कर के ले आओ. और हां, मुराद को चौधरी से नहीं मिलने देना और न ही बात करने देना.’’

शाम से कुछ देर पहले हवलदार चमन मुराद को गिरफ्तार कर के ले आया. मैं ने पूछा, ‘‘इस सरकारी सांड को गिरफ्तार करने में कोई परेशानी तो नहीं हुई?’’

वह बोला, ‘‘परेशानी तो नहीं हुई, लेकिन अपने आप को बहुत तीसमारखां समझ रहा है. मुझे डीएसपी, एसपी की धमकियां दे रहा था.’’

‘‘तुम समझे नहीं चमन, राजा का कुत्ता भी प्रजा को बहुत नीच समझता है.’’

‘‘मेरे लिए क्या हुकुम है सर?’’

‘‘अभी तुम इसे मेरे पास छोड़ जाओ, मैं इसे शराफत का पाठ सिखाऊंगा.’’

उस के जाने के बाद मैं ने मुराद की ओर देखा, वह मेरे इशारों को समझ गया था. उस की उम्र लगभग 25 साल होगी. उस की आंखों में लोमड़ी सी मक्कारी भरी थी. वह बड़ी ढिठाई से बोला, ‘‘थानेदार साहब, मुझे यहां किस अपराध में गिरफ्तार कर के लाया गया है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘तुम्हें बहुत गंभीर अपराध में गिरफ्तार किया गया है. अगर तुम ने अपना अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया तो फायदे में रहोगे.’’

वह मेरी बात से थोड़ा डरा, लेकिन कुछ देर बाद बोला, ‘‘जब मैं ने कोई अपराध ही नहीं किया तो किस बात को स्वीकार कर लूं?’’

मैं ने अपनी दराज में से कपड़े में लिपटा एक रिवौल्वर निकाला और उस की एक झलक उसे दिखाते हुए बोला, ‘‘इसे पहचानते हो?’’

रिवौल्वर को देख कर उस की आंखों में लोमड़ी जैसी चमक आ गई. मैं समझ गया कि उस ने रिवौल्वर को पहचान लिया है. उस ने बड़ी ढिठाई से कहा, ‘‘यह तो हथियार है. इस का मुझ से क्या संबंध है?’’

मैं ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘इस रिवौल्वर का तुम से बहुत गहरा संबंध है. शराफत से मान जाओ, नहीं तो बहुत बड़ी मुसीबत तुम्हारा इंतजार कर रही है.’’

‘‘मैं किस बात को मान लूं?’’ उस ने अकड़ कर जवाब दिया.

‘‘यह मान लो कि तुम ने यह रिवौल्वर बशारत की चारे वाली गाड़ी में घास के अंदर छिपाया था.’’

‘‘यह झूठ है.’’ वह चीखा.

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘यह थाना है, तुम्हारी खाला का घर नहीं, ज्यादा तेज आवाज में बोलोगे तो जबान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

मेरे तेवर बदलते देख कर वह कुछ नरम पड़ते हुए बोला, ‘‘सर, मैं इस रिवौल्वर के बारे में कुछ नहीं जानता.’’

‘‘मैं बताता हूं,’’ मैं ने तीखे स्वर में कहा, ‘‘यह वह रिवौल्वर है, जिस से तुम्हारे साथी मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की गई है और यह काम तुम्हारे अलावा कोई नहीं कर सकता.’’

मेरी इस बात से वह और भी नरम हो कर बोला, ‘‘आप के पास इस बात का क्या सबूत है?’’

मैं ने थोड़ा झूठ मिला कर कहा, ‘‘पहला सब से बड़ा सबूत तो यह है कि इस पर तुम्हारी अंगुलियों के निशान हैं, जिन की जांच मैं ने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट से करवा ली है.’’

वह मेरी चाल में आ गया. उस ने कहा, ‘‘यह नहीं हो सकता, मैं ने तो…’’ वह बोलतेबोलते रुक गया. वह कुछ ऐसी बात कहना चाह रहा था, जो उसे फांसी तक ले जाती.

मैं ने उस की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘वह इसलिए न कि तुम ने घास में रिवौल्वर छिपाते वक्त उस पर से अपनी अंगुलियों के निशान मिटा दिए थे.’’

वह बोला, ‘‘आप तो मुझे पागल कर देंगे.’’

‘‘पागल तो तुम हो, मैं तो तुम्हारे पागलपन का इलाज कर रहा हूं. बताओ, पागलपन में तुम ने उन दोनों की हत्या की थी, उन्होंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

‘‘मैं ने किसी की हत्या नहीं की है.’’ उस की हठधर्मी जाने का नाम नहीं ले रही थी.

‘‘इस का मतलब यह है कि तुम शराफत की जबान नहीं समझते. तुम्हारी जबान खुलवाने के लिए चमन को बुलाना पड़ेगा.’’

‘‘सर, आप से कोई बड़ी गलती हो गई है.’’

मैं ने उसे एक मुक्का मार कर कहा, ‘‘गलती के बच्चे, क्या यह सही नहीं है कि कल दोपहर बाद 3 बजे तुम बशारत से खेतों पर मिले थे और बैलगाड़ी में चारा लदवाने में उस की मदद की थी?’’

वह इस बात से मुकरते हुए बोला, ‘‘मैं ने उस की शक्ल तक नहीं देखी.’’

मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘कल जब तुम उस के पास पहुंचे तो बशारत ने तुम से कहा था कि डेरे से फायरिंग की कैसी आवाज आई थी, इस पर तुम ने कहा था कि मैं तो नहर पार वाले खेतों की ओर से आ रहा हूं, इसलिए फायरिंग का कुछ पता नहीं.’’

‘‘यह बिलकुल झूठ है.’’

‘‘क्या झूठ है, फायरिंग का होना या बशारत का तुम से पूछना और उसे जवाब देना?’’

‘‘मैं बशारत की बात कर रहा हूं, मैं उस से न तो मिला था और न ही उस से कोई बात हुई थी.’’

‘‘तुम्हारा मतलब दूसरी बात ठीक है. फायरिंग वास्तव में हुई थी.’’

‘‘जी हां, फायरिंग की आवाज सुन कर तो मैं डेरे की ओर भागा था.’’

वह मेरे बिछाए जाल में फंस गया था, मैं ने उस से पूछा, ‘‘जब फायरिंग हुई थी, तब तुम कहां थे?’’

‘‘मैं नहर पार वाले खेतों में था.’’

‘‘तुम डेरे से इतनी दूर वहां क्या कर रहे थे?’’

उस ने कहा, ‘‘कल दोपहर में मैं ने और मुश्ताक ने एक साथ खाना खाया था. खाने के बाद मुश्ताक ने मुझ से नहर पार वाली जमीन पर जाने के लिए कहा. उधर कुछ काम था, मैं 2 बजे वहां चला गया और अपने काम में लग गया. कुछ ही देर हुई थी कि डेरे की ओर से फायरिंग की आवाज सुनाई दी. मैं सब काम छोड़ कर डेरे की ओर भागा. जब मैं वहां पहुंचा तो मुश्ताक और सुग्गी को बड़ी खराब हालत में देखा, वे खून में नहाए हुए थे.

‘‘उन की लाशें देख कर मैं तुरंत चौधरी के पास गया और उन्हें पूरी बात बताई. चौधरी मेरे साथ आए और देख कर थूथू करने लगे. बस यही कहानी थी सर.’’

‘‘बहुत अच्छी कहानी गढ़ी है तुम ने. तुम ने बशारत के बयान को तो झूठा बता दिया, बिलकीस के बारे में तुम क्या कहते हो?’’

‘‘क्या बिलकीस ने भी मेरे बारे में कुछ कहा है?’’

‘‘हां, उस ने बहुत कुछ कहा है.’’

‘‘क्या…क्या…’’ वह घबराते हुए बोला.

‘‘बताने का कोई फायदा नहीं, उस के बयान को तो तुम पहले ही झुठला चुके हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं थानेदार साहब,’’ वह हैरत से मेरी ओर देखने लगा.

मैं ठहर कर बोला, ‘‘अभी कुछ देर पहले तुम ने कहा था कि मुश्ताक और सुग्गी के अवैध संबंधों का तुम्हें पता नहीं था और दूसरी ओर तुम बिलकीस को यह पट्टियां पढ़ाते रहे हो कि वह अपने पति पर नजर रखे, क्योंकि सुग्गी के साथ उस का कोई चक्कर चल रहा है और वह मुश्ताक से मिलने डेरे पर आती रहती है.’’

‘‘यह बात गलत है, मैं ने कभी बिलकीस से कोई बात नहीं की.’’

उस की बातों से लग रहा था कि वह हार मानने वाला नहीं है. मैं ने उस की आंखों में झांक कर कहा, ‘‘बशारत झूठा है और बिलकीस ने भी तुम्हारे बारे में गलत बयान दिया है. लेकिन एक बात याद रखो, तुम मेरे हत्थे चढ़े हो, मैं तुम्हें सीधा अदालत ले जाऊंगा और साथ में दोनों गवाहों को भी. फिर बिलकीस और बशारत की गवाही तुम्हें सीधा जेल भिजवा देगी.’’

मैं ने चमन शाह को बुला कर कहा कि यह तुम्हारा केस है, इसे ले जाओ और इस की अच्छी तरह खातिर करो. वह उसे अपने साथ ले गया.

अंधेरा होने से पहले चौधरी गनी थाने आया, वह काफी गरम दिखाई दे रहा था. आते ही बोला, ‘‘मलिक साहब, यह आप ने क्या अंधेर मचा रखी है. आप ने हत्यारे को खुला छोड़ कर एक निर्दोष को पकड़ लिया.’’

मैं ने अंजान बन कर कहा, ‘‘आप किस हत्यारे और किस निर्दोष की बात कर रहे हैं?’’

‘‘मैं बशारत और मुराद की बात कह रहा हूं.’’

‘‘अच्छा तो आप यह कहना चाहते हैं कि बशारत हत्यारा और मुराद निर्दोष है.’’

‘‘इस में क्या शक है?’’

‘‘आप के पास इस का कोई सबूत?’’ मैं ने पूछा.

वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘सबूत तो आप के पास भी नहीं है.’’

‘‘मेरे पास बहुत सबूत हैं, सुबह तक दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.’’ मैं ने पूरे विश्वास से कहा.

चौधरी बहुत गुस्से में दिखाई दे रहा था. मुराद उस का खास आदमी था. वह उस के बचाव के लिए बोला, ‘‘या तो आप बशारत को भी बंद करें या मुराद को छोड़ दें.’’

मैं ने उसी के स्वर में जवाब दिया, ‘‘अब आप मुझे थानेदारी सिखाएंगे?’’

‘‘आप अच्छा नहीं कर रहे हैं, मलिक साहब.’’ उस की आवाज में धमकी छिपी थी.

‘‘मैं जो कुछ भी कर रहा हूं, सोचसमझ कर रहा हूं. मैं अपने काम में किसी का दखल सहन नहीं कर सकता. अब आप जा सकते हैं.’’ मेरे इस व्यवहार से वह मुझे घूरता रहा, फिर फुफकारते हुए बोला, ‘‘मैं मुराद से कुछ बात करना चाहता हूं.’’

मैं ने इनकार कर दिया.

वह पैर पटक कर जाते हुए कहने लगा, ‘‘मैं तुम्हें देख लूंगा थानेदार.’’

‘‘बता कर देखने आना चौधरीजी, ताकि मैं तैयार हो कर बैठूं.’’

मैं ने चमन शाह को बुलाया और मुराद के बारे में जरूरी निर्देश दिए कि अगर कोई मुराद से मिलने आए तो उसे हवालात के पास फटकने तक नहीं देना.

अगला दिन बड़ा हंगामे वाला गुजरा. मुश्ताक और सुग्गी की लाशें आ गईं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के हिसाब से उन की मौत दोपहर 2 और 3 बजे के बीच हुई थी. यह रिपोर्ट मेरे अनुमान की पुष्टि कर रही थी. दोनों को उन की बेखबरी में गोली मारी गई थी. उन्हें संभलने का भी मौका नहीं मिला था.

रिपोर्ट के मुताबिक मुश्ताक को 4 और सुग्गी को 2 गोलियां मारी गई थीं, जिस से दोनों की मौत मौके पर ही हो गई थी. मैं ने जरूरी कागज तैयार कर के लाशें उन के घर वालों को सौंप दीं. फिर मैं ने हवलदार चमन शाह से पूछा कि हवालाती का क्या हाल है, उस ने कुछ कबूला या नहीं.

उस ने मूंछों पर ताव दे कर कहा, ‘‘क्या बात करते हैं सरजी, आप का शिष्य हूं, नाकाम कैसे हो सकता हूं. मैं ने उस से अपराध कबूलवा लिया है.’’

‘‘इस का मतलब है कि वह बयान देने के लिए तैयार है. उसे मेरे पास ले आओ.’’

कुछ देर बाद वह उसे ले आया. मैं समझ रहा था कि उस की हत्या ईर्ष्या की वजह से हुई होगी, लेकिन उस के बयान के मुताबिक दोनों की हत्या चौधरी के कहने पर की गई थी.

मुराद के बयान के मुताबिक चौधरी और सुग्गी के आपस में अवैध संबंध थे. यह चक्कर तब शुरू हुआ था, जब सुग्गी चौधरी की बीमार पत्नी नरगिस की मालिश करने आती थी. उसी दौरान चौधरी ने उस से संबंध बना लिए थे. इन दोनों का मिलन चलता रहा. इसी बीच चौधरी को पता लगा कि सुग्गी के संबंध उस के नौकर मुश्ताक से भी हैं. यह जान कर उसे बहुत गुसा आया. उस ने दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने और पहले से ज्यादा मिलने लगे.

अंत में मजबूर हो कर चौधरी ने मुराद से उन की हत्या करने के लिए कह दिया. घटना के दिन मुराद ने ही खाला मुखतारा को सुग्गी को बुलाने के लिए भेजा था और कहा था कि उसे मुश्ताक ने बुलाया है.

मुराद जानता था कि सुग्गी बशारत को खाना खिलाने के बाद सीधे मुश्ताक से मिलने आएगी. उस ने मुश्ताक से कहा कि वह नहर पार वाले खेतों पर जा रहा है. उस समय मुश्ताक ट्यूबवैल वाले कमरे में था. मुराद उन्हें धोखा देने के लिए वहां से चला गया. फिर उन की आंख बचा कर कमरे के पीछे चला गया और कमरे में आ कर तख्त के पीछे रिवौल्वर तैयार कर के खड़ा हो गया.

सुग्गी जैसे ही आई, मुश्ताक ने उसे कमरे में बुलाया और दरवाजा बंद कर लिया. दोनों मस्ती करने लगे. मुराद चुपके से निकला और दोनों को गोली मार दी. जब उस ने देखा कि दोनों मर गए हैं तो उस ने तख्त को कमरे से निकाल कर कबाड़ वाले कमरे में रख दिया.

जब मैं जांच के लिए वहां पहुंचा तो मुझे उस कमरे में कोई तख्त नहीं दिखाई दिया. दोनों की हत्या कर के चौधरी की योजना के अनुसार मुराद रिवौल्वर को बशारत के सामान में छिपाना चाहता था, जिस से छानबीन के दौरान पुलिस का शक बशारत पर ही जाए.

मुराद का बयान बहुत खास था. उस ने चौधरी के कहने से मुश्ताक और सुग्गी की हत्या की थी, इसलिए चौधरी भी इस अपराध में बराबर का भागीदार था और यह उसे जेल में डालने के लिए काफी था. मैं ने चौधरी को खुद गिरफ्तार करने का फैसला किया और हवलदार चमन से कहा कि मुराद की देखभाल जरूरी है, किसी को हवालात के पास तक आने नहीं देना.

मैं कांस्टेबल आफताब को साथ ले कर हवेली की ओर चल दिया. हमारी जीप चौधरी  की हवेली पहुंची. उस वक्त चौधरी हवेली से निकल रहा था. अगर हमें थोड़ी देर हो जाती तो वह चला जाता. मुझे देख कर चौधरी ठिठका. मेरा दिल तो कर रहा था कि उसे इसी समय हथकड़ी पहना दूं, लेकिन मैं उस से थोड़ी ठिठोली करना चाहता था.

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, सब कुशल तो है? बनठन कर सुबहसुबह कहां चले?’’

‘‘मैं डीएसपी साहब से मिलने जा रहा हूं.’’ उस ने बताया.

‘‘कोई खास समस्या आ गई है क्या?’’

वह कहने लगा, ‘‘मलिक साहब, जिन अधिकारियों के आगे आप लोग सावधान की मुद्रा में खड़े होते हैं, वे मेरे दोस्तों में हैं. आप को पता नहीं चौधरी गनी कितना ताकतवर है.’’

उस ने मुझे हवेली में बैठने के लिए भी नहीं कहा. उसे यह पता नहीं था कि अभी कुछ ही देर में मैं उसे हवालात में डालने वाला हूं. मैं ने उसे और अधिक उल्लू बनाने के लिए कहा, ‘‘चौधरी साहब, मुझे आप की पावर का पता लग गया है. मेरे थाने में बडे़ अधिकारियों के भेजे हुए कुछ लोग आए बैठे हैं. लगता है, आप की पहुंच बहुत ही ऊपर तक है. तभी आप ने मेरी शिकायत ऊपर कर दी है.’’

‘‘आप ने भी तो बहुत अंधेर मचा रखी है.’’

मैं ने कहा, ‘‘जो हुआ, सो हुआ. इस समय आप मेरे साथ थाने चलें. मुराद का केस निपटाना है. मैं ने उसे हवालात में बंद कर के बहुत बड़ी गलती की है. आप डीएसपी साहब से फिर कभी मिल लेना.’’

वह मेरे झांसे में आ गया और बोला, ‘‘अच्छा, थाने में कौन आए हैं, क्या एसपी साहब ने अपने आदमी भेजे हैं?’’

इस बात से यह पता लग गया कि उस ने एसपी तक मेरी शिकायत की है. मैं ने कहा, ‘‘यहां खड़ेखड़े क्या बात होगी. आप मेरे साथ थाने चलें, वहीं चल कर बात करेंगे.’’

वह खुश हो गया और हम लोग थाने पहुंच गए. वहां मैं ने चौधरी को अपने कमरे में बिठाया. उस ने कमरे में चारों ओर देखा. दरअसल, वह यह देखना चाह रहा था कि कौन आया है.

मैं ने उस से कहा, ‘‘टांग के दर्द ने आप की अक्ल भी छीन ली है. मैं वर्दी पहने बैठा हूं और आप को मैं दिखाई नहीं दे रहा, वह बंदा मैं ही हूं.’’

‘‘आप मुझे धोखा दे कर यहां लाए हैं, यह आप ने अच्छा नहीं किया.’’

‘चौधरी साहब, मैं केस की तफ्तीश पूरी कर चुका हूं. मुझे इस केस में आप की बहुत जरूरत है. आप के कहने से मुराद ने सुग्गी और मुश्ताक की हत्या की है.’’ फिर मैं ने उसे पूरी कहानी सुना दी.

वह कुरसी से खड़ा हो कर तैश में बोला, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

मैं भी खड़ा हो कर बोला, ‘‘यह बदतमीजी नहीं, बल्कि सच्चाई है. जो कुछ आप ने सुना, वह मुराद का बयान है. आप ही के आदेश पर उस ने सुग्गी और मुश्ताक को निर्दयता से गोलियां मारीं.’’

उस का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया, वह बोला, ‘‘क्या उस ने मेरे खिलाफ बयान दे दिया है, उस की इतनी हिम्मत?’’

मैं ने कहा, ‘‘चौधरी साहब, यह आप की हवेली नहीं, थाना है. अब आप भी पुलिस कस्टडी में हैं. आप भी मुराद के साथ जेल की ताजी ठंडी हवा का मजा लोगे.’’

वह बहुत गुस्सा हुआ और पैर पटकते हुए बोला, ‘‘उस की मैं अभी जबान काट लूंगा.’’

कह कर वह दरवाजे की ओर भागा. मैं ने तुरंत हवलदार चमन को आवाज दे कर कहा, ‘‘इसे देखो.’’

चमन शाह पहले से ही तैयार था, लेकिन चौधरी ने तेजी से उसे धक्का दिया, जिस से चमन डगमगा गया. वह संभल कर चौधरी के पीछे भागा. मैं अपने कमरे से निकला तो फायरिंग की आवाज आई.

मैं ने भाग कर देखा तो हवालात के बाहर चमन शाह ने चौधरी को दबोच रखा था और दूसरे कांस्टेबल उस से रिवौल्वर छीनने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने हवालात में देखा तो मुराद जमीन पर उल्टा पड़ा था और उस के शरीर से खून बह रहा था. उस ने उस का सीना छलनी कर दिया था.

चौधरी ने मेरा काम आसान कर दिया था, अब किसी तफ्तीश की जरूरत नहीं थी. उसे फांसी के फंदे तक पहुंचाने के लिए यही सबूत काफी थे.

मैं ने कागज तैयार कर के मुराद की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और चौधरी को अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मुकदमा चला और उसे फांसी की सजा हो गई.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...