तेरी मेरी, इधर उधर की ना दुनिया जहान की बात कर
जरा भीतर उतर खुद के, खुद से कोई खुद की बात कर…
क्या खोया – क्या पाया, क्या क्या फिसल गया हाथ से
भूल सारी बेजा यादें, जो बाकी है सामने उसकी बात कर…
ना देख रुख हवाओं का, ना सोच आसमां के मिजाज की
हौसला है तो तौल ताकत पंखों की और चांद की बात कर…
ना घबरा दुनिया के अंधेरों से, ना फिक्र कर आंधियों की
रोशनी की आरजू है तो फिर चिराग जलाने की बात कर…
माना कतरे-कतरे पर यहां दुनिया की नीयत बिगड़ती है
मेरी प्यास बुझानी है तो फिर तमाम समंदर की बात कर…
बहारें तो आनी जानी हैं.. सावन का भी कहां भरोसा है
ए मरुस्थल, तू अपनी सुहानी, चांदनी रात की बात कर.
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