आपरेशन मासूम के तहत फर्रूखाबाद के जिस सुभाष बाथम को सिरफिरा कह कर पुलिस मुठभेड में मार गिराया उसको सिरफिरा बनाने में व्यवस्था का पूरा दोष है. सुभाष बाथम कोई पहली आदमी नहीं है जिसे सिरफिरा कहा गया है. कुछ साल पहले की ही घटना है जब बस्ती जिले में एक सपेरा तहसील में अपनी परेशानियों से निजात नहीं पा सका तो उसने तहसील परिसर में ही सांप छोड दिये थे. कई साल पहले ही बात है राजधानी लखनऊ में कटोरी देवी नामक महिला चर्चा में थी. स्कूल शिक्षिका कटोरी देवी को गलत तरह से नौकरी से बाहर कर दिया गया. कटोरी देवी ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा के सामने धरना स्थल पर 14 साल धरना दिया. कटोरी देवी के खिलाफ पुलिस ने हर छलबल का प्रयोग किया. इसके बाद भी उसका धरना नहीं टूटा. व्यवस्था ने नहीं सुनी कोर्ट से उसको 14 साल के बाद न्याय मिल सका.
मऊ जिले के रहने वाली लाल बिहारी बचपन के दिनो में ही नौकरी करने मुम्बई चलग गये. उनको कागजों पर मरा दिखाकर जमीन जायदाद दूसरो ने अपने नाम लिखा ली. इसके बाद लाल बिहारी जब गांव आये तो 22 साल तहसील के चक्कर लगाने के बाद भी खुद को जिंदा नहीं साबित कर पाये. अंत में लाल बिहारी ने अपने जैसे और लोगों की लडाई लडने का फैसला कर ‘मृतक संघ’ बना लिया. अब उस पर फिल्म भी बन रही है. व्यवस्था के शिकार ऐसे लोगो को सिरफिरा बताकर उनकी परेशानी की अनदेखी की जाती है. व्यवस्था में अपनी ना सुनी जाने के कारण आदमी आपा खो देता है. कभी पानी की टंकी पर चढ जाता है तो कभी जहर खाकर खुदकशी कर लेता है. व्यवस्था अपनी करतूत पर हर बार पर्दा डालने में सफल हो जाती है.
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फर्रूखाबाद के मोहम्मदबाद कोतवाली के करथिया गांव का रहने वाले सुभाष बाथम भी ऐसी ही व्यवस्था में फंस कर सिरफिरा हो गया. उसे कोई रास्ता नहीं दिखा तो उसने अपनी बात को कहने के लिये 25 बच्चों को बंधक बनाकर अपनी बात कहने की कोशिश की. 25 बच्चों को बंधक बनाना अपराध था. इसकी सजा उसको अपनी जान गंवा कर मिली. सुभाष बाथम अपने पीछे जो सवाल छोड गया है. इन सवालों को गौर करेगे तो लगेगा कि सुभाष बाथम नहीं व्यवस्था सिरफिरी है. सरकार ने सिरफिरे सुभाष बाथम को मारने वाले पुलिस बल को 10 लाख का इनाम घोषित किया है. पर सुभाष बाथम को सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था पर वह मौन है ?
पुलिस से प्रताड़ित था सुभाष बाथम
सुभाष बाथम अपने मौसा की हत्या मे जेल भेजा गया था. 12 साल जेल में रहने के बाद कोर्ट से जमानत पर छूटकर बाहर आया. सुभाष को लगता था कि गांव वालों ने पुलिस के साथ मिलकर उसको जेल भिजवाया था. पुलिस ने चोरी और हरिजन एक्ट के मुकदमे भी उसके खिलाफ लिख रखे थे. डीएम के नाम लिखे अपने पत्र में सुभाष बाथम ने लिखा कि गरीबी में रहने के बाद भी उसको सरकारी कालोनी, शौचालय नहीं दिया गया. डीएम औफिस और तहसील के चक्कर लगाने के बाद भी उसको कालोनी और शौचालय नहीं दिया गया. मोहम्मदाबाद पुलिस पर आरोप लगाते हुये सुभाष ने कहा कि एसओजी से सिपाही उसको बहुत परेशान करते थे. उसने कहा कि एसओजी के सिपाही उसको चोरी के आरोप में बंद किया और करंट लाकर प्रताड़ित करते थे.
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जेल में रहने वाले और पुलिस के द्वारा प्रताडित होने पर किसी भी आदमी की मानसिक हालत बिगड सकती है. ऐसे में वह ऐसे कदम उठा सकता है. बच्चों को बंधक बनाना सुभाष की गलती थी. जिसकी सजा उसको मिल चुकी है. जरूरत इस बात की भी है कि सुभाष को सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था की भी जबावदेही तय की जाय. उत्तर प्रदेश के थाने और तहसीलों में ऐसे मामले भरे पडे है. जहां लोग व्यवस्था से परेशान होकर पागल होने के कगार पर है. लोगों को सिरफिरा बनने से रोकना है तो उनको सिरफिरा बनाने वाली व्यवस्था को सुधारना होगा उसकी जबावदेही तय करनी होगी. थाने और तहसील में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का जंजाल फैला हुआ है. इसमें रोज लोग पिस रहे है. पुलिस की प्रताड़ना हर मामले में देखी जा सकती है. मनचाहे मुकदमे लिखना और मनचाहे तरीके से रिपोर्ट लिखना आमबात हो गई है. इनमें फंसा सिरफिरा हो जा रहा है.