लेखक: अलंकृत कश्यप
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काम सीखने के दौरान वह अपनी बहन रूबी के यहां मोहल्ला कनक विहार में आ कर ठहर जाता था. रोजाना दिन निकलते ही वह प्लंबिंग का काम करने निकल जाता था और दिन ढले बहन के घर लौटता था. धीरेधीरे उस का कामधंधा चल निकला. आलोक की बहन का विवाह अनिल गुप्ता के साथ हुआ था.
धीरेधीरे आलोक गुप्ता ने लखनऊ शहर में अपना कामधंधा जमा लिया तो उस ने बहन के घर से अलग दूसरी जगह रहने का मन बना लिया. फिर उस ने कनक विहार सिटी में भोलाराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया. कुछ दिनों वहां रहने के बाद वह भोलाराम का कमरा खाली कर सलेमपुर पतौरा गांव के निकट दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के यहां किराए पर रहने लगा.
सिपाहीराम का काफी बड़ा मकान था. सिपाहीराम भी आलोक की तरह हंसमुख था, इसलिए कुछ ही दिनों में वह उस से घुलमिल गया. शाम को आलोक जब काम से वापस लौटता था तो खाना खा कर चहलकदमी को निकल जाता था. यह उस की रोजमर्रा की दिनचर्या थी. वह सिपाहीराम की परचून की दुकान पर बैठ कर पान मसाला खाता और घूमने के बाद अपने कमरे में जा कर सो जाता था.
आलोक लगभग 25 साल का नौजवान था. वह खर्चीला और दिलफेंक आदमी था. 18 अगस्त, 2019 की बात है. आलोक बुद्धेश्वर चौराहे पर खड़ा सब्जी ले रहा था. उस समय रात के 8 बजे थे. सब्जी ले कर वह ज्यों ही मुड़ा, उस का सामना दयावती से हो गया.
दयावती आलोक से भलीभांति परिचित थी. आलोक जब कनक विहार सिटी में भोलाराम के मकान में किराए पर रह रहा था, तब दयावती भी उसी मकान में रह रही थी. उसी दौरान दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. दयावती शादीशुदा थी और उस का पति नौकरी करता था.
एक बार आलोक अपने गांव फरेंदा आया हुआ था. गांव में कई दिन रुकने के बाद वह अपने कमरे पर पहुंचा तो पता चला भोलाराम द्वारा मकान का किराया बढ़ाने पर कई किराएदार कमरा खाली कर के चले गए. दयावती भी उन में से एक थी.
दयावती के जाने का अशोक को अफसोस हुआ. आलोक को यह पता नहीं चल सका कि दयावती ने किराए पर दूसरा कमरा कहां लिया है. इस के बाद आलोक ने भी भोलाराम का कमरा खाली कर के सिपाहीराम के यहां किराए पर रहना शुरू कर दिया था.
कई महीने बाद उस दिन आलोक और दयावती की अचानक मुलाकात हुई थी. दयावती ने उस से पूछा कि अब तुम कहां रह रहे हो तो उस ने बताया कि वह दुल्लूखेड़ा में सिपाहीराम के मकान में रह रहा है. वहां अभी भी कई कमरे खाली पड़े हैं.
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दयावती उस दिन काफी देर तक आलोक से बातें करती रही. दयावती ने आलोक कुमार से सिपाहीराम के मकान का पता पूछ लिया और यह कह कर चली गई कि वह अपने पति रामकिशन पर सिपाहीराम के मकान में किराए पर रहने के लिए दबाव डालेगी.
2-4 दिन बाद ही दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां कमरा देखने पहुंच गई. कमरा पसंद आने पर वह मकान मालिक को किराए का एडवांस दे आई. हालांकि सिपाहीराम रामकिशन से अनजान था, वह उसे कमरा देने में आनाकानी करता रहा. लेकिन जब आलोक ने कहा कि वह रामकिशन को जानता है, इस के बाद ही उस ने उसे कमरा दिया.
दयावती अपने पति के साथ सिपाहीराम के यहां आ कर रहने लगी. चूंकि दयावती आलोक से पहले से काफी घुलीमिली थी, इसलिए उसे नई जगह पर एडजस्ट होने में कोई दिक्कत नहीं हुई. सिपाहीराम ने घर में ही परचून की दुकान खोल रखी थी. मोहल्ले के लोगों को सिपाहीराम की दुकान से रोजमर्रा की जरूरतें आसानी से सुलभ हो जाती थीं. आलोक की जमानत पर सिपाहीराम ने रामकिशन को दुकान का सामान उधार देना शुरू कर दिया था.
सिपाहीराम की इस सहानुभूति से दयावती भी उस में ज्यादा रुचि लेने लगी थी. सिपाहीराम उस की हर परेशानी को दूर करने के लिए तैयार रहता था. दयावती को सिपाहीराम के मकान में रहते 2-3 महीने बीत चुके थे. वह धीरेधीरे सिपाहीराम की तरफ आकर्षित होती गई. दयावती ने सिपाहीराम के मन की खोट पहचान ली थी.
बहकी हुई औरतों को पराए मर्दों की तरफ आकर्षित होते देर नहीं लगती. दयावती को भी सिपाहीराम को आकर्षित करने में ज्यादा समय नहीं लगा.
लेकिन दयावती और आलोक के अंतरंग संबंधों की बात भी सिपाहीराम से छिपी न रह सकीं. समय ने करवट बदली और दयावती व आलोक की मुलाकातें फिर से होने लगीं. वहां रहने के दौरान दोनों एकदूसरे के प्रति पूर्णतया समर्पित रहने लगे.
उधर सिपाहीराम भी दयावती को चाहने लगा था, लेकिन उस के मकान में रह रही महिलाओं की दिन में होने वाली चहलपहल से उसे दयावती से बात करने और मिलने का मौका नहीं मिल पाता था.
एक बार की बात है. आलोक अपने पैतृक गांव फरेंदा जाने की तैयारी कर चुका था. मौका पा कर दयावती ने आलोक को रोकते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे और तुम्हारे भाई रामकिशन के लिए पूड़ीकचौड़ी बना रही हूं. तुम अपने कमरे में जा कर लेटो, मैं खाना बना कर लाती हूं. खाना खा कर तुम गांव चले जाना.’’
आलोक अपने कमरे का दरवाजा बंद कर चुका था. वह वापस आ कर दयावती के कमरे में जा कर लेट गया. कुछ ही देर में दयावती थाली में खाना परोस कर आलोक के सामने आ खड़ी हुई. आलोक उस समय खाना खा रहा था.
एक दूसरी किराएदार महिला ने आलोक को दयावती के कमरे में खाना खाते देखा तो वह सुलग उठी. वह अपनी भड़ास निकालते हुए उस के गैस चूल्हे के पास खड़ी हो कर बोली, ‘‘अब तो गैरमर्दों को भी खाना खिलाने की जरूरत पड़ने लगी. अपना खर्च तो पूरा होता नहीं, गैरमर्दों को घर में बिठा कर खाना खिलाया जाता है.’’
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इस के बाद वह महिला सीधी सिपाहीराम के पास गई और कहने लगी, ‘‘दयावती के यहां बाहरी लोगों की खूब आवभगत होती है, कभी तुम्हें एक कप चाय के लिए पूछा है उस ने?’’
यह बात सुन कर सिपाहीराम दयावती के कमरे के सामने जा कर खड़ा हो गया, क्योंकि राजवती के मुंह से यह बात सुन कर सिपाहीराम आगबबूला हो उठा था. सिपाहीराम उम्रदराज बेशक था, लेकिन वह दयावती को चाहता था. उस दिन उस ने दयावती से कहा तो कुछ नहीं, लेकिन उसे इस बात की तसदीक हो गई कि दयावती उसे न चाह कर आलोक को ज्यादा चाहती है.
यही गांठ सिपाहीराम के मन में घर कर गई. सिपाहीराम यह बात भलीभांति समझ गया कि दयावती और आलोक के संबंध पतिपत्नी जैसे हैं.
आलोक और दयावती की निकटता मकान मालिक सिपाहीराम की आंखों में कांटा बन कर खटकने लगी. उस ने कई बार आलोक कुमार को समझाया भी कि वह शरीफ आदमी बन कर रहे. दयावती का चक्कर छोड़ दे. लेकिन आलोक ने उस की बातों पर गौर नहीं किया.
आखिर सिपाहीराम ने उसे रास्ते से हटाने की अपनी क्रूर योजना बना ली. इस योजना में उस ने कनक सिटी के मोनू पांडेय, बबलू प्रजापति और सलेमपुर पतौरा के कल्लू उर्फ हिमांशु गुप्ता, संतोष और अरुण यादव को शामिल कर लिया.
उस दिन 12 अक्तूबर, 2019 को सिपाहीराम ने साढ़े 9 बजे रात को शराब मंगाई और आलोक को भी इस पार्टी में शामिल कर लिया. उस के सभी साथियों ने मिल कर शराब पी.
शराब पीने के बाद योजनानुसार खूब विवाद हुआ. फिर सिपाहीराम के साथियों ने मिल कर उस की दुकान पर ही आलोक को ईंटों से कुचल कर लहूलुहान कर दिया. उस के बाद उन्होंने फोन कर के एंबुलेंस बुला ली.
वे उसे ऐरा अस्पताल की ले गए. एंबुलेंस के ड्राइवर ने कहा कि वह इस घायल आदमी को सरकारी अस्पताल के अलावा और कहीं नहीं ले जाएगा. तब उन्होंने सरकारी अस्पताल के गेट पर एंबुलेंस रुकवा ली और मरणासन्न अवस्था में आलोक को अपनी बाइक से लाद कर मलीहाबाद थाना क्षेत्र की ओर ले गए. दूसरी बाइक पर उस के अन्य साथी भी थे.
इन लोगों ने तिलसुगा गांव के निकट नाले के किनारे जा कर घायल आलोक को फेंक दिया.
वहीं उस की मौत हो गई. इस के बाद मकान मालिक सिपाहीराम ने खुद को पाकसाफ दिखाने के लिए अपहरण करने की सूचना रूबी के भाई को दे दी.
थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह ने सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद उन्हें कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद पुलिस फरार आरोपी संतोष सिंह के संभावित स्थानों पर दबिश दी, लेकिन वह फरार था. अंतत: 22 अक्तूबर, 2019 को मुखबिर की सूचना पर आरोपी संतोष सिंह लोधी भी उन के हत्थे चढ़ गया. पूछताछ के बाद उसे भी जेल भेज दिया गया.