“बच्चे मन के सच्चे”, ये हम सब कहते सुनते आए हैं .अपनी निश्छल मुस्कान और मासूमियत से सबका मन मोह लेने वाले बच्चे सभी को भाते हैं लेकिन कभी कभी यही बच्चे कुछ ऐसा कर गुजरते हैं कि हम सब सोचते रह जाते हैं कि बालमन में ऐसी आपराधिक मानसिकता कैसे जन्मी पता ही नहीं चला .
बदलते समय के साथ अब बहुत जरूरी हो गया है कि माता पिता और परिवार के बुजुर्ग सभी बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखे.. बच्चे का सामान्य से हटकर कुछ अलग व्यवहार आने वाली परेशानी का संकेत हो सकता है .
बच्चों के स्वस्थ मानसिक विकास के लिए पारिवारिक वातावरण का अच्छा और सुमधुर होना बहुत जरूरी होता है. बड़ों की आपस की बातें भी कभी कभी बच्चों को परेशान कर सकती है जिसका असर उनके विकास पर पड़ सकता है जैसे कि माता पिता या बड़े बुजुर्गों के बीच कोई मतभेद है तो उस पर बच्चों के सामने कहा सुनी न करें, साथ ही आपस में बात करते समय भी शब्दों का चुनाव भी बेहतर करें . क्यू कि बच्चें जो देखते सुनते हैं वैसा ही आचरण करते हैं केवल स्कूल का बेहतर माहौल उनके व्यक्तित्व का निमार्ण नहीं कर सकता है.
ये भी पढ़ें- प्रीवैडिंग इन्क्वायरी दोनों पक्षों के हित में
बच्चें जहां और जिनके बीच खेलते और बातचीत करते हैं उनके संबध में भी जानकारी रखे और खुद बच्चों से सीधे पूछताछ भी करते रहे . केवल बातचीत करके आप आराम से बच्चों के बारें में जानकारी जुटा सकती है, बच्चों का दोस्त बनकर बात करना, उनकी समस्या हल करना बहुत जरूरी हो गया है .
2017 में गुरुग्राम के रेयान पब्लिक स्कूल में जिस अबोध बच्चे की हत्या हुई थी उसके पीछे का कारण जानकर तो हम सबको बहुत हैरानी हुई थी.. केवल एक्जाम, PTM टालने के लिए एक बच्चे ने दूसरे की हत्या का सहारा लिया . जिस बच्चे को एक्जाम का डर था वो अपनी मां और टीचर से भी बात कर सकता था, अपनी परेशानी कह सकता था अगर उससे टीचर और माता पिता का दोस्ताना व्यवहार होता तो . साथ ही सोचने वाली बात ये भी थी कि उसके मन में हत्या का विचार और प्लान कैसे आया..? ऐसी सोच और विचार एक दो दिन में नहीं पनपते हैं.. घर, स्कूल के दोस्त या कोई TV सीरियल से सम्भवतः प्रेरित हुआ हो . उसके व्यवहार में परिवर्तन भी दिखने लगा होगा अगर घर से कोई भी नोटिस करता तो बच्चा अपराधी बनने से बच जाता है और दूसरा बच्चा जीवित होता.
ये भी पढ़ें- जानिए, कैसे बचाएं बालों को पतला होने से
ऐसी छोटी छोटी बातों का बालमन पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है.. पहले के समय में झाड़ फूक, टोना टोटका से लोग इलाज़ की कोशिश करते थे, लेकिन अब चाइल्ड psycho.ogy के लिए अलग से स्टडी की जाती है और बच्चे को समझ कर उन्हें counse.ing द्वारा बेहतर करने का प्रयास किया जाता है . अगर बच्चों में कभी भी कोई बदलाव या चिड़चिड़ापन दिखे तो उनसे बात करें और समस्या न समझ आये तो डौक्टर की मदद ले.
बच्चों में स्वस्थ आदतों का विकास करें, उन्हें पौष्टिक खाना की आदत डाले, पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद के लिए भी समय दे . कुछ समय खुद भी उनके साथ बिताए और उस समय उनके बारें में, दोस्त, टीचर, स्कूल और पसंद नापसंद पर उन्हें बिना टोके उनकी बात सुनें.