राम तिल पहाड़ी इलाकों में होने वाली तिलहनी फसल है. इसे गाय, हिरन, जंगली सूअर वगैरह जानवर नहीं खाते हैं. आमतौर पर बारिश में भी होने वाली इस फसल को काला तिल या नाइजर नाम से भी जाना जाता है. इस में पीले रंग के फूल लगते हैं और फूलों के अंदर से निकलने वाले काले दानों को राम तिल कहा जाता है.
राम तिल से 40 से 45 फीसदी तेल निकलता है, जिस में प्रोटीन की मात्रा 30 से 35 फीसदी के होने की वजह से यह तेल खाने के लिए काफी फायदेमंद होता है.
पहाड़ी और गैरउपजाऊ जमीन में होने वाली राम तिल की फसल को मध्य प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी किसानों ने बड़े पैमाने पर लगा कर एक मिसाल कायम की है.
मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की बनखेड़ी तहसील के गुंदरई गांव के किसान दिनेश माहेश्वरी, दीपक माहेश्वरी और हेमंत माहेश्वरी के साथ दूसरे किसानों ने इसे तकरीबन 250 एकड़ रकबे में लगाया है.
खरीफ फसल के रूप में कम लागत वाली इस फसल से एक हेक्टेयर में तकरीबन 10 क्विंटल तक की पैदावार मिलती है और 50,000 रुपए का खालिस मुनाफा होता है.
राम तिल की उन्नत खेती करने वाले किसान दिनेश माहेश्वरी ने बताया कि इस बार भारी बारिश होने के चलते जहां परंपरागत फसलों को अच्छाखासा नुकसान हुआ है, वहीं राम तिल की फसल अच्छी हुई है. यह फसल उड़द, मूंग और सोयाबीन का एक अच्छा विकल्प साबित हुई है.
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कैसे करें राम तिल की खेती
खेती में नवाचार करने वाले किसान दिनेश माहेश्वरी राम तिल की खेती के तौरतरीके बताते हुए कहते हैं कि फसल की बोआई के लिए खेत को कल्टीवेटर से 2-3 बार गहरी जुताई कर के रोटावेटर से एकसार कर लिया जाता है.
राम तिल के बीज की उन्नत किस्मों उटकमंड, जेएनसी 1, जेएनसी 6, विरसर नाइजर 1 और 2, जेएनएस, पूजा, गुजराती नाइजर का भरपूर मात्रा में इस्तेमाल किया जा सकता है.
गुंदरई गांव के किसानों ने मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के कृषि अनुसंधान केंद्र में राम तिल का ब्रीडर सीड जेएनएस 28 को 2 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बोया है.
इस फसल में बीजों को छिड़कने के बजाय कतारों में लगाने से ज्यादा उत्पादन हासिल होता है. आमतौर पर कतार से कतार की दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 10 से 15 सैंटीमीटर रखने से एक हेक्टेयर में 2 लाख से ज्यादा पौधों की तादाद हो जाती है.
राम तिल की बोआई जुलाईअगस्त महीने में की जा सकती है. बीजों के समान वितरण के लिए बीज को गोबर की खाद या बालू में मिला कर बोआई करना अच्छा रहता है.
राम तिल की बडे़ पैमाने पर खेती करने के चलते कृषि विभाग के अधिकारी और जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह भी समयसमय पर किसानों को मिलने से इस बार फसल अच्छी हुई है.
उर्वरकों का प्रयोग
राम तिल की बड़े पैमाने पर खेती करने के चलते कृषि विभाग के अधिकारी और जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों की सलाह से उर्वरकों को सही मात्रा में औैर सही समय पर इस्तेमाल करने से इस बार किसानों की फसल में अच्छा इजाफा हुआ.
दीपक माहेश्वरी और हेमंत माहेश्वरी ने बताया कि थाइरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या ट्राइकोडर्मा बिरडी की 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से राम तिल के बीजों को उपचार कर के बोना चाहिए.
अच्छी उपज हासिल करने के लिए झ्र 20:20:20 किलोग्राम एनपीके प्रति हेक्टेयर यानी तकरीबन 45 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और 32 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.
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बोआई के समय नाइट्रोजन की आधी मात्रा और सिंगल सुपर फास्फेट और पोटाश की पूरी मात्रा दें. नाइट्रोजन की बाकी बची मात्रा बोआई के 25 से 30 दिनों के बाद निराईगुड़ाई करने के बाद डालनी चाहिए.
वैसे, यह फसल 100 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. जब पौधों की पत्तियां सूख कर गिरने लगें, फली का शीर्ष भाग भूरे और काले रंग का हो कर मुड़ने लगे तब फसल को काट लेना चाहिए. कटाई के बाद पौधों का गट्ठर बना कर बांध कर खेत में खुली धूप में एक सप्ताह तक सुखाना चाहिए. उस के बाद खलिहानों में लकड़ी या डंडों द्वारा पीट कर गहाई करनी चाहिए.
अतिरिक्त आमदनी के लिए मधुमक्खीपालन
गुंदरई गांव के इन किसानों ने राम तिल फसल के साथ मधुमक्खीपालन का काम भी शुरू किया है. राम तिल के खेतों में मधुमक्खीपालन करने के लिए हनी कलैक्ट बौक्स रखे हैं. मधुमक्खियां राम तिल के फूलों के रस को चूसती हैं और बौक्स में रस जमा करती हैं. इन बौक्सों से शहद तैयार कर अतिरिक्त आमदनी ली जा सकती है. मधुमक्खीपालन से तकरीबन 20 से 25 फीसदी मुनाफा बढ़ जाता है.
किसानों द्वारा किए जा रहे नवाचार को देखने जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति पीके बिसेन के साथ कृषि वैज्ञानिकों का एक दल नवंबर माह के पहले हफ्ते में गुंदरई गांव पहुंचा और राम तिल की लहलहाती फसल को देख कर किसानों के उन्नत ढंग से खेती करने की सराहना की.
नर्मदापुरम, होशंगाबाद के कमिश्नर आरके मिश्रा और कलक्टर शीलेंद्र सिंह ने भी राम तिल की खेती को देख कर किसानों के प्रयासों को सराहा. उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को मौके पर ही निर्देश दिए कि जिले के दूसरे किसानों को भी यहां का दौरा करा कर राम तिल की खेती के लिए प्रेरित किया जाए.
राम तिल की खेती को बढ़ावा देने के लिए गुंदरई गांव पहुंचे जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के कृषि विज्ञान केंद्र के संचालक डीके पहलवान, कृषि विभाग के संयुक्त संचालक जितेंद्र कुमार सिंह, राम तिल परियोजना समन्वयक रजनी बिसेन ने किसानों को बताया कि पहले ही मध्य प्रदेश में 40 से 42 हजार हेक्टेयर भूमि में राम तिल की फसल ली जा रही है.
उन्होंने आगे बताया कि ज्यादा पैदावार हासिल करने के लिए राम तिल की उन्नत किस्मों की ही बोनी कतारों में दोफन, त्रिफन या सीड ड्रिल से करनी चाहिए.
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इस फसल को अमरबेल से बचाने के लिए पेंडीमिथेलिन यानी स्टांप ऐक्स्ट्रा 38.7 फीसदी यानी सीएस 700 ग्राम प्रति एकड़ की व्यापारिक मात्रा 150 लिटर पानी में घोल कर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है.
राम तिल की खेती से संबंधित जानकारी के लिए प्रगतिशील किसान दिनेश माहेश्वरी से उन के मोबाइल नंबर 9425939000 पर बात की जा सकती है.