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सगाई वाले दिन मैं जल्दी ही दुकान बंद कर के घर आ गया था, लेकिन शिखा ने कलह शुरू कर दिया था. वह पंकज के प्रति शिकायतों का पुराना पुलिंदा खोल कर बैठ गई थी. उस ने मेरा मूड इतना खराब कर दिया था कि जाने का उत्साह ही ठंडा पड़ गया. मैं बिस्तर पर पड़ापड़ा सो गया था. जब नींद खुली तो रात के 10 बज रहे थे. मन अंदर से कहीं कचोट रहा था कि तेरे सगे भाई की सगाई है और तू यहां घर में पड़ा है. फिर मैं बिना कुछ विचार किए, देर से ही सही, पंकज के घर चला गया था.

मानव का स्वभाव है कि अपनी गलती न मान कर दोष दूसरे के सिर पर मढ़ देता है, जैसे कि वह दोष मैं ने शिखा के सिर पर मढ़ दिया. ठीक है, शिखा ने मुझे रोकने का प्रयास अवश्य किया था किंतु मेरे पैरों में बेड़ी तो नहीं डाली थी. दोषी मैं ही था. वह तो दूसरे घर से आई थी. नए रिश्तों में एकदम से लगाव नहीं होता. मुझे ही कड़ी बन कर उस को अपने परिवार से जोड़ना चाहिए था, जैसे उस ने मुझे अपने परिवार से जोड़ लिया था.

शिखा की सिसकियों की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ. वह बाहर वाले कमरे में थी. उसे मालूम नहीं था कि मैं नहा कर बाहर आ चुका हूं और फोन की पैरलेल लाइन पर मां व उस की पूरी बातें सुन चुका हूं. मैं सहजता से बाहर गया और उस से पूछा, ‘‘शिखा, रो क्यों रही हो?’’ ‘‘मुझे रुलाने का ठेका तो तुम्हारे घर वालों ने ले रखा है. अभी आप की मां का फोन आया था. आप को तो पता है न, मेरी भाभी ने आत्महत्या की थी. आप की मां ने आरोप लगाया है कि भाभी की हत्या की साजिश में मैं भी शामिल थी,’’ कह कर वह जोर से रोने लगी.

‘‘बस, यही आरोप लगाने के लिए उन्होंने फोन किया था?’’ ‘‘उन के हिसाब से मैं ने रिश्तों को तोड़ा है. फिर भी वे चाहती हैं कि मैं पंकज की शादी में जाऊं. मैं इस शादी में हरगिज नहीं जाऊंगी, यह मेरा अंतिम फैसला है. तुम्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘सुनो, हम दोनों अपनाअपना फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं चाहते हुए भी तुम्हें पंकज के यहां चलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहता. किंतु अपना निर्णय लेने के लिए मैं स्वतंत्र हूं. मुझे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए.’’ ‘‘तो तुम जाओगे? पंकज तुम्हारे व मेरे लिए जगहजगह इतना जहर उगलता फिरता है, फिर भी जाओगे?’’

‘‘उस ने कभी मुझ से या मेरे सामने ऐसा नहीं कहा. लोगों के कहने पर हमें पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए. लोगों के कहने की परवा मैं ने की होती तो तुम को कभी भी वह प्यार न दे पाता, जो मैं ने तुम्हें दिया है. अभी तुम मांजी द्वारा आरोप लगाए जाने की बात कर रही थीं. पर वह उन्होंने नहीं लगाया. लोगों ने उन्हें ऐसा बताया होगा. आज तक मैं ने भी इस बारे में तुम से कुछ पूछा या कहा नहीं. आज कह रहा हूं… तुम्हारे ही कुछ परिचितों व रिश्तेदारों ने मुझ से भी कहा कि शिखा बहुत तेजमिजाज लड़की है. अपनी भाभी को इस ने कभी चैन से नहीं जीने दिया. इस के जुल्मों से परेशान हो कर भाभी की मौत हुई थी. पता नहीं वह हत्या थी या आत्महत्या…लेकिन मैं ने उन लोगों की परवा नहीं की…’’ ‘‘पर तुम ने उन की बातों पर विश्वास कर लिया? क्या तुम भी मुझे अपराधी समझते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें अपराधी नहीं समझता. न ही मैं ने उन लोगों की बातों पर विश्वास किया था. अगर विश्वास किया होता तो तुम से शादी न करता. तुम से बस एक सवाल करना चाहता हूं, लोग जब किसी के बारे में कुछ कहते हैं तो क्या हमें उस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए.’’

‘‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह सब झूठ है. हम से जलने वालों ने यह अफवाह फैलाई थी. इसी वजह से मेरी शादी में कई बार रुकावटें आईं.’’ ‘‘मैं ने भी उसे सच नहीं माना, बस तुम्हें यह एहसास कराना चाहता हूं कि जैसे ये सब बातें झूठी हैं, वैसे ही पंकज के खिलाफ हमें भड़काने वालों की बातें भी झूठी हो सकती हैं. उन्हें हम सत्य क्यों मान रहे हैं?’’

‘‘लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बातें झूठी हैं. खैर, लोगों ने सच कहा हो या झूठ, मैं तो नहीं जाऊंगी. एक बार भी उन्होंने मुझ से शादी में आने को नहीं कहा.’’ ‘‘कैसे कहता, सगाई पर आने के लिए तुम से कितना आग्रह कर के गया था. यहां तक कि उस ने तुम से माफी भी मांगी थी. फिर भी तुम नहीं गईं. इतना घमंड अच्छा नहीं. उस की जगह मैं होता तो दोबारा बुलाने न आता.’’

‘‘सब नाटक था, लेकिन आज अचानक तुम्हें हो क्या गया है? आज तो पंकज की बड़ी तरफदारी की जा रही है?’’

तभी द्वार की घंटी बजी. पंकज आया था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, भैया से तो आप को साथ लाने को कह ही चुका हूं, आप से भी कह रहा हूं. आप आएंगी तो मुझे खुशी होगी. अब मैं चलता हूं, बहुत काम करने हैं.’’ पंकज प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लौट गया.

मैं ने पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो गई कि तुम से उस ने आने को नहीं कहा? अब क्या इरादा है?’’

‘‘इरादा क्या होना है, हमारे पड़ोसियों से तो एक सप्ताह पहले ही आने को कह गया था. मुझे एक दिन पहले न्योता देने आया है. असली बात तो यह है कि मेरा मन उन से इतना खट्टा हो गया है कि मैं जाना नहीं चाहती. मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘तुम्हारी मरजी,’’ कह कर मैं दुकान चला गया.

थोड़ी देर बाद ही शिखा का फोन आया, ‘‘सुनो, एक खुशखबरी है. मेरे भाई हिमांशु की शादी तय हो गई है. 10 दिन बाद ही शादी है. उस के बाद कई महीने तक शादियां नहीं होंगी. इसीलिए जल्दी शादी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘बधाई हो, कब जा रही हो?’’ ‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अकेली ही जाऊंगी. तुम नहीं जाओगे?’’

‘‘तुम ने सही सोचा, तुम्हारे भाई की शादी है, तुम जाओ, मैं नहीं जाऊंगा.’’ ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें, कैसी बातें कर रहे हो? मेरे मांबाप की जगहंसाई कराने का इरादा है क्या? सब पूछेंगे, दामाद क्यों नहीं आया तो

क्या जवाब देंगे? लोग कई तरह की बातें बनाएंगे…’’ ‘‘बातें तो लोगों ने तब भी बनाई होंगी, जब एक ही शहर में रहते हुए, सगी भाभी हो कर भी तुम देवर की सगाई में नहीं गईं…और अब शादी में भी नहीं जाओगी. जगहंसाई क्या

यहां नहीं होगी या फिर इज्जत का ठेका तुम्हारे खानदान ने ही ले रखा है, हमारे खानदान की तो कोई इज्जत ही नहीं है?’’

‘‘मत करो तुलना दोनों खानदानों की. मेरे घर वाले तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. क्या तुम्हारे घर वाले मुझे वह इज्जत व प्यार दे पाए?’’ ‘‘हरेक को इज्जत व प्यार अपने व्यवहार से मिलता है.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी ?’’ ‘‘अंतिम ही समझो. यदि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी तो मैं भला तुम्हारे भाई की शादी में क्यों जाऊंगा?’’

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

दूसरे दिन पंकज की शादी में शिखा को आया देख कर मांजी का चेहरा खुशी से खिल उठा था. पंकज भी बहुत खुश था.

मांजी ने स्नेह से शिखा की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम आ गई, मैं बहुत खुश हूं. मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ ‘‘आती कैसे नहीं, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप के आग्रह को कैसे टाल सकती थी?’’

मैं मन ही मन मुसकराया. शिखा किन परिस्थितियों के कारण यहां आई, यह तो बस मैं ही जानता था. उस के ये संवाद भले ही झूठे थे, पर अपने सफल अभिनय द्वारा उस ने मां को प्रसन्न कर दिया था. यह हमारे बीच हुए समझौते की एक सुखद सफलता थी.

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