‘‘तुझे मेरी कसम’’ से सोलो हीरो के रूप में अभिनय करियर की शुरुआत करने वाले रितेश देशमुख बाद में मल्टी स्टारर कामेडी फिल्मों या सेक्स कामेडी फिल्मों में नजर आने लगे. बीच में उन्होंने ‘एक विलेन’ जैसी बेहतरीन फिल्म की. और मराठी भाषा में ‘बालक पालक’, ‘एलो’ व ‘लई भारी’ जैसी अच्छी फिल्मों का निर्माण किया. फिल्म ‘बालक पालक’ व ‘एलो’ को कई अवार्ड मिले. पर हिंदी में ‘एक विलेन’ के बाद उनका करियर गड़बड़ ही चल रहा है. उनकी फिल्में लगातार असफल हो रही हैं.

फिलहाल 23 सितंबर को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बैंजो’ के अलावा रितेश देशमुख के पास एक भी हिंदी फिल्म नहीं है. यह एक अलग बात है कि वह मराठी भाषा में निशिकांत कामत के निर्देशन में ‘माउली’ फिल्म का निर्माण व उसमें अभिनय भी कर रहे हैं. मगर रितेश देशमुख को यह पसंद नहीं कि कोई पत्रकार उन्हे उनकी असफल फिल्मों पर सवाल करे. वह फिल्मों की असफलता के सवाल पर एरोगेंट की तरह जवाब देते हैं, शायद फिल्म ‘बैजो’ के उनके किरदार का यह असर है…

महाराष्ट् में गणेशोत्सव के दौरान संगीत के वाद्ययंत्र ‘बैंजो’ की धुने काफी सुनाई देती हैं. गणेशोत्सव के ही दौरान अचानक कई बैंजों पथक नजर आने लगते हैं. ‘बैंजो’ की धुन इतनी आकर्षक होती है कि लोग इस धुन को सुनते ही थिरकने लगते हैं. मगर इस वाद्ययंत्र वादक को कोई अहमियत नहीं दी जाती. इसी वाद्ययंत्र के इर्द गिर्द बुनी गयी कथा पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव एक फिल्म ‘‘बैंजो’’ लेकर आ रहे हैं, जिसमें नरगिस फाखरी के साथ रितेश देशमुख ने भी अभिनय किया है. इस फिल्म में रितेश देशमुख बैंजो वादक के ही किरदार में नजर आने वाले हैं.

फिल्म ‘‘बैजों’’ में रितेश देशमुख का अजीबोगरीब लुक है. लंबे बाल व लंबी दाढ़ी, जैसा कि अमूमन पश्चिमी देशों के राक स्टारों का नजर आता है. इसलिए जब हमने उनसे फिल्म के उनके लुक पर सवाल किया, तो रितेश देशमुख ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा-‘‘किरदार का चरित्र चित्रण यह है कि वह बहुत ही ज्यादा एरोगेंट है. उसकी अपनी एक स्टाइल है, दूसरों से खुद को उच्चस्तर का मानता है. बाल बढ़े हुए हैं, दिन भर दारू पीता रहता है. दाढ़ी भी नही बनाता. उसका लुक कुछ हद तक राक स्टार जैसा ही है. उसके पास एक ही जूता है. दो ही टीशर्ट व पैंट है. आज भी आप जाकर बस्तियों में इनसे मिलेंगे, तो यह अपनी स्टाइल में ही मिलेंगे. हमसे ज्यादा स्टाइलिश यह लोग होते हैं. इनके बात करने की अलग अदा होती है.’’

बैंजो बजाने वालों की निजी जिंदगी व उनकी तकलीफों को लेकर फिल्म ‘‘बैंजो’’ कुछ कहती है या नहीं? इस सवाल पर रितेश ने कहा- ‘‘यह फिल्म बैंजो वादकों का प्रतिनिधित्व करती है. पर उन पर यह कोई डाक्यूमेंट्री फिल्म नहीं है. यह फिल्म इस बात को रेखांकित करती है कि हर वह स्ट्रीट सिंगर जिसे कभी कोई प्लेटफार्म न मिलता हो और यदि उसे प्लेटफार्म मिल जाए, तो वह किन उंचाईयों को छू सकता है. बैंजो तो एक माध्यम है. यदि यह फिल्म महाराष्ट् की बजाय राजस्थान की पृष्ठभूमि पर होती, तो कोई दूसरा वाद्ययंत्र होता. पर इमोशन यानी कि भावनाएं वही होती, जो इस फिल्म में हैं. मेरे कहने का अर्थ यह कि पृष्ठभूमि में जो राज्य होता, उस राज्य के आर्ट फार्म को पेश किया जाता, पर इमोशन वही होते, जो इस फिल्म में हैं. यदि इमोशन सही हों, तो वह दर्शक को अपने साथ जोड़ सकता है. वही इस फिल्म की कोशिश है.’’

फिल्म ‘बैंजो’ के निर्देशक रवि जाधव के साथ रितेश देशमुख की पुरानी ट्यूनिंग है. वह रवि के ही साथ फिल्म ‘बालक पालक’ का निर्माण कर चुके हैं. रितेश देशमुख की इच्छा थी कि वह रवि जाधव के निर्देशन में अभिनय करें, इसी के चलते वह ‘बैंजो’ से जुड़े. खुद रितेश ने कहा- ‘‘वास्तव में रवि जाधव से हमारी बहुत पुरानी दोस्ती है. मराठी भाषा में वह बेहतरीन फिल्म निर्देशक हैं. हमने उनक साथ मिलकर उनके निर्देशन में ‘‘बालक पालक’’ बनायी थी, जिसे कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय अवार्ड भी मिले. मैं उनके काम से परिचित था. मैं उनके निर्देशन में अभिनय करना चाहता था. जब मुझे उनके निर्देशन में इस फिल्म से जुड़ने का अवसर मिला, तो मैने हां कह दिया.’’

कलाकार के तौर रवि जाधव के साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे? इस पर रितेश ने कहा-‘‘बहुत ही अच्छे. वह बहुत अच्छे निर्देशक हैं. मुझे उनकी सोच बहुत पसंद है. उनका लेखन बहुत सशक्त है.’’

नरगिस फाखरी के साथ पहली बार फिल्म करने के अनुभवों पर रितेश देशमुख ने कहा-‘‘वह बहुत फैंटास्टिक कलाकार हैं. उनके अंदर गजब की एनर्जी है. वह बहुत सकारात्मक सोच रखती हैं. इस फिल्म के किरदार के अनुसार वह बहुत सही हैं. फिल्म के किरदार की ही तरह वह भी न्यूयार्क से आयी हैं.’’

जब हमने उनसे लगातार उनकी फिल्मों के अफसल होने पर सवाल किया, तो उन्होने थोड़ा सा नाराजगी वाले अंदाज में ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा-‘‘किसी फिल्म के असफल होने पर या किसी फिल्म के सौ करोड़ कमाने पर उसका विश्लेषण करना मेरा एटीट्यूड नहीं है. आप इसे मेरा एरोगेंट न समझें. मगर आप लोग कभी यह नहीं पूछते कि फलां फिल्म ने सौ या तीन सौ करोड़ कैसे कमा लिए. सिर्फ फिल्म की असफलता पर ही सवाल क्यों उठाते हैं? मैं तो किसी पत्रकार से नहीं पूछता कि उनका अखबार कम क्यों बिकता है? देखिए, हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है. हर फिल्म तीन सौ करोड़ का धंधा नहीं करती. एक सुपर स्टार की एक फिल्म तीन सौ करोड़ का धंधा करे, पर उसकी दूसरी फिल्म दो सौ करोड़ का धंधा कर करे या सौ करोड़ का धंधा करे. अब एक बार तीन सौ करोड़ का धंधा करे और दूसरी फिल्म सौ करोड़ का धंधा करे, तो यह कहना कि वह सुपर स्टार खत्म हो गया, गलत बात है. सब कुछ फिल्म व फिल्म के कंटेंट पर निर्भर करता है.’’

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