मोबाइल और इंटरनेट ऐप्लिकेशंस या ऐप्स हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गए हैं. कैब हायर करने से लेकर फूड ऑर्डर करने तक ऐप्स का इस्तेमाल हो रहा है. लेकिन इन ऐप्स को बनाना एक आसान काम नहीं है. एक क्लाइंट से उसकी जरूरतों की जानकारी लेने से लेकर ऐप को पेश करने तक कई स्टेज से गुजरना पड़ता है.

1. जरूरतों को समझना

इसमें बिजनेस के नजरिए को जमीनी हकीकतों पर लाया जाता है. इसमें एंड यूजर को समझा जाता है और यह जानकारी हासिल की जाती है कि एंड यूजर के लिए ऐप क्या काम करेगा. उदाहरण के लिए, अगर ऐप बच्चों, युवाओं के लिए है या यह फेसबुक जैसा बड़ा दायरा रखता है? क्या ऐप का इस्तेमाल अपैरल खरीदने या कैब बुक कराने या फूड ऑर्डर करने के लिए किया जाएगा?

2. यूजर रिसर्च

प्रैक्टिकल रिसर्च के हिस्से के तौर पर 5 से 10 लोग इस विशेष प्रॉडक्ट के संभावित यूजर्स हो सकते हैं. काम शुरू करने से पहले उनका इंटरव्यू लिया जाता है जिससे उनकी जरूरतों को ऐप को लेकर अनुभव के बारे में जानकारी हासिल की जाती है.

3. बेसिक वर्कफ्लो

इस स्टेप में एक यूजर की जर्नी की योजना बनाई जाती है. इसमें पहला स्टेप साइन अप, अगला ऐप का परिचय और इसके बाद प्रॉडक्ट्स की खोज और अंत में काम पूरा करना शामिल होते हैं.

4. इन्फर्मेशन आर्किटेक्चर या साइट मैप बनाना

इसमें इस बात पर विचार किया जाता है कि ऐप को कैसा दिखना चाहिए. कौन सी जानकारी सबसे अधिक विजिबल होनी चाहिए? अगला क्या आ सकता है? कोई विशेष टास्क कहां रखना चाहिए? उदाहरण के लिए, अगर ऐप ई-कॉमर्स के लिए है तो सबसे विजिबल इन्फर्मेशन वर्तमान में चल रही सेल के बारे में होनी चाहिए. सबसे महत्वपूर्ण इन्फर्मेशन को प्राइमरी डेटा कहा जाता है. इसके बाद अगली जरूरत कार्ट या विशलिस्ट में जोड़ने की होगी. इसे स्क्रीन के दाएं कोने पर टॉप में रखना जा सकता है. इसके बाद ऐप की पूरी लुक और एक्सपीरिएंस को लेकर फैसला किया जाता है.

5. क्लाइंट फीडबैक

प्रत्येक बड़े कदम के बाद डिजाइनजर्स क्लाइंट्स से फीडबैक लेकर यह जानते हैं कि उन्हें किसी बदलाव की जरूरत है या नहीं.

6. एक डिजाइन प्रोटोटाइप तैयार करना

एंड प्रॉडक्ट का एक प्रोटोटाइप तैयार किया जाता है जिससे क्लाइंट से उसके लिए अप्रूवल लिया जा सके. प्रोटोटाइप तैयार करने के पसंदीदा टूल्स में से एक इनविजन है, जिससे डिजाइन का इंटरैक्टिव मॉकअप तैयार होता है जिसे क्लाइंट को दिखाया जा सकता है.

7. ऐप का डिवेलपमेंट

इस चरण में ऐंड्रॉयड, आईओएस और वेब के लिए विशेष ऐप्स बनाए जाते हैं. इसके बाद सर्वर पर बिजनस लॉजिक और डेटा रखा जाता है. इन्हें क्लाउड पर होस्ट किया जाता है, जैसे ऐमजॉन AWS. ऐप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) तैयार किए जाते हैं. API फंक्शंस और प्रोसिजर्स का एक सेट होते हैं, जिनसे उन ऐप्लिकेशंस को बनाने की सुविधा मिलती है जो एक ऑपरेटिंग सिस्टम या सर्विस के फीचर्स या डेटा को एक्सेस कर सकते हैं.

8. टेस्टिंग

इसमें ऐप का मोबाइल फोन्स के एक चुनिंदा सबसेट पर रियल टेस्टिंग की जाती है. इसमें अलग-अलग साइज और वर्जन के 30-40 फोन्स को शामिल किया जाता है, जिससे डिवेलपर्स इस बात को लेकर सुनिश्चित हो सकें कि ऐप सभी तरह के मोबाइल फोन्स पर समान क्षमता के साथ काम करेगा. टेस्टिंग में फंक्शनल टेस्टिंग, यूजर इंटरफेस (UI) टेस्टिंग और परफॉर्मेंस, सिक्यॉरिटी टेस्टिंग शामिल होती हैं.

मान लीजिए कि आप एक ऐप बना रहे हैं जो नए वर्जन्स पर काम करेगा, लेकिन पुराने वर्जन्स का क्या होगा? यह 4.2 इंच के डिवाइस पर काम करता है, क्या यह 7 इंच के डिवाइस पर भी काम करेगा? अगर आपने अपना प्रोटोटाइप एक बड़े साइज के लिए डिजाइन नहीं किया है तो UI पूरी तरह बेकार हो सकता है. इस तरह की समस्याएं ऐप के डिवेलपमेंट के अंतिम चरण में आती हैं. इस वजह से टेस्टिंग बहुत महत्वपूर्ण होती है.

9. ऐप का रिलीज

यह सबसे अंतिम कदम है. इसमें ऐप को मार्केट (ऐप स्टोर्स) पर रिलीज किया जाता है, जहां से यूजर्स उसे डाउनलोड कर सकते हैं.

10. ऐप का मेंटेनेंस

ये काम ऐनुअल कॉन्ट्रैक्ट के जरिए किया जाता है. 

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