नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल का नई दिल्ली में स्वागत हरेक नजरिये से गर्मजोशी भरा रहा. अपने दौरे से पहले ही दाहाल ने यह साफ किया था कि उनका मुख्य मकसद भारत-नेपाल संबंधों को फिर से पटरी पर लाना है. गौरतलब है कि पिछली सरकार के दौरान दोनों देशों के रिश्ते काफी खराब स्थिति में पहुंच गए थे. संबंध और न बिगड़ें, इस लिहाज से दाहाल ने दो वादे किए. पहला, उन्होंने मधेस आबादी से संपर्क बनाने और संविधान संशोधन के जरिये संविधान से जुड़ी उनकी शिकायतें दूर करने का वचन दिया है.

गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल को एक संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र बनाने की दिशा में पिछले साल घोषित संविधान एक ऐतिहासिक घटना है, और हमारी सरकार इसे लागू करने में समाज के सभी तबकों को साथ लेने की लगातार कोशिश कर रही है. दूसरा, प्रधानमंत्री दाहाल यह प्रदर्शित करना चाहते हैं कि वह पुराने माओवादी नेता नहीं हैं, बल्कि एक व्यावहारिक राजनेता हैं और अपने दक्षिणी पड़ोसियों के साथ बेहतर रिश्ते के हिमायती हैं.

प्रधानमंत्री दाहाल के इन वादों को दिल्ली ने काफी उत्साह से लिया है. भारत सरकार भी नेपाल के साथ अपने रिश्ते सुधारने के अवसर देख रही थी. और जब दाहाल प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए, तो भारत के नीति-नियंताओं को वह मौका मिला कि वे दोनों देशों के रिश्ते को उसी सुखद दौर में ले जाने की कोशिश करें, जो 2014 में मोदी के चुनाव के ठीक बाद दिखा था. फिर भी, प्रधानमंत्री दाहाल को दोनों देशों द्वारा जारी साझा बयान के कुछ बिंदुओं पर सफाई देने में मुश्किलें पेश आ सकती हैं.

एक तो यही कि भारत से पुनर्निर्माण के लिए जो आर्थिक मदद मिलेगी, उसे किस तरह से खर्च किया जाना चाहिए, यह नेपाल सरकार के ऊपर छोड़ने की बजाय उसकी शर्तें पहले ही तय की गई हैं. इसी तरह, विदेश नीति के मसले पर भी उन्हें बताना होगा कि उनकी नीति क्या है? नेपाल पर भारत का पिछलग्गू होने के आरोप लगते रहे हैं. उन्हें यह साफ करना ही पड़ेगा कि देशहित और व्यावहारिकता ही आखिरकार नेपाल की प्राथमिकता है.

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